सोमवार, 9 मई 2016

थरथराता प्लेटफॉर्म और आधी रात को लुटे-पिटे हम !


मित्रों कई बार घुमक्कडी के दौरान कई ऐसी घटनाएं हो जाती है , कि जीवन भर याद रह जाती है । ऐसी एक घटना आज आप से साझा कर रहा हूँ ।
 पांच साल पुरानी है , अप्रैल 2011 की तब भी बंगाल में विधानसभा चुनाव हो रहे थे ।
बिहार लोकसेवा आयोग की प्रारंभिक परीक्षा का परीक्षा केंद्र मुझे किशनगंज मिला । किशनगंज बिहार का एक पिछड़ा मुस्लिम बहुल इलाका है । जो चिकन नेक यानि बांग्लादेशी सीमा के नजदीक है । मैंने इस जगह का नाम सिर्फ शाहनवाज़ हुसैन के लोकसभा क्षेत्र के तौर पर सुना था ।
अकेले जाने की इच्छा नही हो रही थी । तो पटना में रह रहे मेरे मंझले भाई निकेश को तैयार करने को सोचा । मगर वो किशनगंज जाने को तैयार हो कैसे ? आखिर कोई घूमने वाली जगह तो है नही !
खैर दिमाग लगाकर उसे किशनगंज के नजदीक प्रसिद्द हिल स्टेशन दार्जलिंग घुमाने का लालच दिया। तो उसने अपने एक दोस्त आकाश अग्रवाल को भी तैयार कर लिया ।
खैर दार्जलिंग की बात घर में किसी को नही बताया ।खैर जैसे तैसे हम लोग शाम को किशनगंज पहुँच ही गए । मैंने कल्पना की थी , कि जिला मुख्यालय है तो ठीक ठाक शहर होगा । मगर मेरी कल्पना गाड़ी के स्टेशन पर पहुचते ही धराशायी हो गयी । पूरा स्टेशन परीक्षार्थियों से भरा पड़ा था । जहाँ नजरें घुमाओं वही नवयुवा समूह किताब - नोट्स लिए ठसे पड़े थे । खैर ट्रेन से उतरने में ज्यादा मशक्कत नही करनी पड़ी । बस अपने बैग उठा कर सीट से खड़े हुए । लोगों के रेले ने ठेल कर प्लेटफॉर्म पर पहुँचा दिया । उतारकर उन दोनों को खोजा।
अब पटना से ट्रेन पकड़कर कटिहार पहुँचे । वहां ट्रेन बदलनी थी । तो एक पैसेंजर ट्रेन मिली ठसाठस भरी हुई । हम 3 लोग दो बोगी में बैठे । केले के खेतों के नज़ारे खिड़की से दिखाई दे रहे थे । ट्रेन में परीक्षार्थी ही ज्यादा बैठे । वो भी बेटिकट । मैथिलि भाषी युवाओं के हुजूम की बातें सर के ऊपर से जा रही थी ।।

खैर ट्रेन किशनगंज पहुँच ही गयी ।
अब सबसे पहले सोचा कि पहले रात गुजारने की व्यवस्था कर ली जाये , फिर आगे सुध ली जाये । जैसा कि पहले बताया कि किशनगंज बहुत बड़ा शहर नही था । स्टेशन के बाहर निकला लेकिन मुसीबतें आना तो अब शुरू होना था । स्टेशन के आसपास के इक्का दुक्का लॉज नुमा होटल होउसफुल थे । यहां तक कि उनकी छत भी गद्दे लगाकर 50-50 रु0 में फूल हो चुकी थी ।खैर कुछ लोकल्स की बात मानकर मुख्य बाजार की तरफ गए । पूरा शहर (जितना भी था) छान मारा मगर कहीं रुकने का ठिकाना नही मिला । रात गहरी हो चुकी थी । भूख भी चरम पर पहुँच रही थी । फिर वापिस स्टेशन लौटे । खाने की दुकानों पर खाने के भाव बढ़ चुके थे । और खाने में भी बस दाल-चावल-चोखा ही था । बहुत थक चुके थे । इसलिए उसी के लिए तैयार हुए । पर हाय री किस्मत ... हमारे पहुँचने पर वो भी खल्लास !
जैसे तैसे नींद आई । तभी स्टेशन पर कोई ट्रेन आई । ट्रेन के आने से ही पूरा प्लेटफॉर्म थरथराने लगा । मेरी नींद खुल गयी । अब ट्रेन के जाने का इंतजार करने के अलावा कोई विकल्प नही था । चाय- मूंगफली वाले जोर जोर से चिल्ला रहे थे ।
कपडे उतारकर बरमूडा-टी शर्ट पहनी और नीचे चादर बिछाई ।बैग को तकिया बनाया और चादर के नीचे ही जूते छुपाये । मेरे भाई और उसके दोस्त को नींद नही आ रही थी । आती भी कैसे जो मच्छरों की फौज अपनी मौज में तल्लीनता से लगी थी । खैर मुझे सुबह पेपर देना था , तो मैं लेट गया गमछा ओढ़कर ।
अब मरता क्या न करता ।जो मिला उसी से काम चलाया । बिस्किट और नमकीन ।
और रात गुजरने के लिए रेलवे स्टेशन पहुचे । परीक्षार्थियों के बिछोने पुरे प्लेटफार्म पर बिछ चुके थे । अब सुबह से पेपर था तो सोना अनिवार्य था । जैसे तैसे कुछ जगह बनायीं । अप्रैल की गरमी थी ।
खैर कुछ देर में ट्रेन अपना कारवां लेकर चली गयी । धीरे धीरे माहोल पुराने रंग में आया । लेकिन मेरे तो पैरों तले से जमीन ही खिसक गयी .....
मैंने अपने आसपास देखा तो भाई और उसका दोस्त गायब ..और इतना ही नही बैग और जूते भी गायब !!
मेरा तो दिमाग ही सुन्न सा हो गया । आखिर कुछ समझ ही नही आ रहा था । मैं सिर्फ बरमूडा-टी शर्ट पर लुटा-पिटा सा हैरान चारो तरफ दोनों को और सामान को खोज रहा .....
न पास में मोबाइल
न जेब में पर्स या पैसे
न बदन पर पुरे कपडे ..
पुरा प्लेटफॉर्म खचाखच भरा हुआ । अब क्या करूँ ?
कहीं खोजने भी नही जा सकता क्योंकि हो सकता वो दोनों आसपास ही हो । और जब मुझे वहां न देखे तो परेशान हो सकते है । है तो बच्चे ही । अब मेरे पास उसी जगह पर  इंतजार करने के अलावा कोई विकल्प नही था ।संजय जी डर खुद के लिए नही उन दोनों के लिए चिंता थी

आँखों से नींद गायब हो गयी । अब चुपचाप चारो तरफ आँखे फाड़कर उन दोनों को खोज रहा था । सुबह के चार बज गए । लोग जागने लगे थे । लेकिन उन दोनों का कहीं पता ही नही । खैर जैसे तैसे प्लेटफॉर्म का एक चक्कर लगा कर आया , तो देखा दोनों मजे से वेटिंग रूम में चार्जिंग पिन में चार्जर लगाकर मोबाइल चार्ज कर रहे थे । अब मेरा गुस्सा फट पड़ा ।
 दोनों ने कहा कि नींद नही आने के कारण वो यहां मोबाइल चार्ज करने आ गए । बैग और जूते इसलिए उठा लाये ताकि मेरी नींद का फायदा उठाकर चुरा न ले । मुझे इसलिए नही बताया कि मेरी नींद ख़राब न हो । खैर नींद तो ख़राब तो हो ही गयी थी । सुबह पेपर दिया । और अपने वादे के मुताबिक निकल पड़े दार्जलिंग के लिए ।मगर...
और चल पड़े सिलीगुड़ी की  और
उस समय बंगाल में विधान सभा चुनाव होने के कारण बस बंद । बस स्टैंड पर कई घंटे गुजरने के बाद एक ठसाठस भरी बस आई । नीचे जगह न होने के कारण बस की छत पर बैठे (पहली बार )

आगे का सफ़र भी सुहाना नही रहा । चुनाव के कारण वाहन आसानी से नही मिल रहे थे । खैर जब दार्जलिंग में टाइगर हिल से कंचन जंघा को देखा तो सब कष्ट भूल गया ।


21 टिप्‍पणियां:

  1. हमारे लिये मजेदार यात्रा।

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  2. उत्तर
    1. उस वक़्त तो लगा बुद्धत्व की प्राप्ति हो गयी है । सब मोह माया है ।
      आभार डॉ साहब

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  3. यात्रा मे अक्सर ऐसा होता है।मगर अंत भला तो सब भला।

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  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  5. बहुत बढ़िया पाण्डेय जी.....आपकी इस यादगार यात्रा को पढ़कर हम भी भागीदार हुए..... रोमांचक वर्णन

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  6. यात्रा वृत्तांत के बिना यात्रा कुछ अधूरा सा लगता है! यही तो हमारी यात्रा को जिंदा रखती है ! लगता है जैसे वो पल अभी भी हमारे साथ है ! अगली यात्रा के लिए शुभकामनायें !

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  7. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जन्मदिवस - महाराणा प्रताप, गोपाल कृष्ण गोखले और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  8. भाईसाहब मैं आज पढ़ पाया पर अभिभूत हूँ आनन्दित हूँ
    आप पर ईश्वर और माँ बेतवा की कृपा हुई है

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ab apki baari hai, kuchh kahne ki ...

orchha gatha

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