रविवार, 11 सितंबर 2016

जब नक्सली क्षेत्र में बम बने हम (गुप्तेश्वर नाथ धाम यात्रा भाग -1)

व्हाट्स एप ग्रुप " घुमक्कड़ी दिल से "  में पटियाला वासी श्री सुशिल कुमार जी ने एक नई श्रृंखला प्रारम्भ की " छुपा हीरा ( Hidden places)" इसी श्रृंखला में बिहार के आरा (भोजपुर जिला ) के रहने वाले श्री संजय कुमार सिंह जी ने सासाराम के पास गुप्तेश्वर नाथ धाम जिसे स्थानीय लोग "गुप्ता बाबा " के नाम से जानते है , का परिचय ग्रुप में कराया । अब चूँकि मैं भी बिहार के बक्सर जिले का मूल निवासी हूँ, और आरा और सासाराम हमारे पडोसी जिले है , तो मैंने संजय जी से गुप्ता धाम चलने की चरचा की , तो उन्होंने बताया कि वहां यात्रा सिर्फ सावन और फागुन के महीनों में ही होती है । मेरी तो बांछे खिल गयी (शरीर में जहाँ भी होती हो ) , क्योंकि 16 जुलाई 2016 को मेरे पुत्र की मूल पूजा (सताईसा) करने मुझे घर आना ही था । खैर 20 जुलाई से सावन का महीना शुरू हो रहा था । व्हाट्स एप्प पर ही संजय जी से चर्चा हुई और 22 जुलाई को सासाराम में मिलने का तय हुआ । 11 जुलाई को मैं सपरिवार ओरछा से अपनी कार से  बक्सर अपने घर आया । 16 जुलाई को बारिश के बीच सताईसा का कार्यक्रम संपन्न हुआ । अभी तक घर में मैंने गुप्ता धाम जाने की चर्चा नही की थी । गांव के कुछ घुमक्कडों से जरूर गुप्ता धाम के बारे पूछा । जब  घर पर चर्चा की तो कोहराम मच गया । गुप्ता धाम ही नही सासाराम जिला नक्सली क्षेत्र के रूप में बदनाम है । और गुप्ता धाम में तो प्रशासन है ही नही । सारी व्यवस्थाएं नक्सली ही सँभालते है । पूरा क्षेत्र घने जंगलों वाला पहाड़ी इलाका है । बरसात में तो और रास्ते बंद हो जाते है , जगह-जगह बरसाती नदियां और झरने बहते है । घर की इंवेस्टिगेशन में जब पूछा गया कि वहां के बारे में किसने बताया । तो संजय जी के बारे में बताया गया , अब और आफत कि एक अनजान आदमी जिससे कभी मिले नही , उसके कहने पर नक्सली क्षेत्र में जाने तैयार हो गए ! अब मैं किंकर्तव्यविमूढ़ कि जाना तो है, लेकिन कैसे ?
इसी बीच संजय जी से मोबाइल पर चर्चा हुई , तो उन्होंने बताया कि वो 22 जुलाई की रात सासाराम मिलेंगे , पहले बाइक से चलने का कार्यक्रम था , मगर हो रही बारिश के कारण मैंने अपनी कार से जाने का फैसला किया । घरवालों को बताया कि बस सासाराम घूम के लौट आऊंगा । जब कार से चलने का फैसला हो गया तो साथ चलने के लिए मेरा सबसे छोटा भाई अभिषेक (मोनू), मेरा ड्राइवर टिंकू भी तैयार हो गए ।  22 जुलाई को अंत में मेरे चाचा जी जो स्वास्थ्य कारणों से इस बार देवघर कांवर यात्रा में नही जा पाए , वो भी तैयार हो गए । खैर घर से कार में मैं, ड्राइवर टिंकू और चाचा जी निकल पड़े । सोनपुर में पदस्थ मोनू ट्रैन से आ रहे था, जिसे हमने डुमरांव रेलवे स्टेशन से साथ लिया । अब कार में चार लोग हो गए , सासाराम में संजय जी के मिलने पर कार फुल हो जानी थी । डुमरांव से हम लोग विक्रमगंज के रास्ते सासाराम की ओर बढ़ रहे थे । बक्सर जिले की सीमा पार करते ही जब हम रोहतास (सासाराम) जिले की सीमा में प्रवेश किये , तो सड़क के दोनों तरफ सिर्फ पानी ही पानी नज़र आ रहा था । खेत, घर सब पानी -पानी हुए जा रहे थे । कुछ खेतों में महिलाएं  धान रोप रही थी । रोहतास जिले को बिहार का धान का कटोरा कहते है । इस क्षेत्र में चावल बहुतायत में होता है , रास्ते में हर थोड़ी दूरी पर मिलती राइस मिलों ने पुख्ता किया । सासाराम मेरी घुमक्कड़ यात्रा में बहुत पहले से था , क्योंकि एक तो यह मेरे घर से नजदीक था , दूसरा इतिहास का विद्यार्थी होने के कारण मध्य कालीन इतिहास के सर्वश्रेष्ठ व्यक्तित्व शेरशाह सूरी की कर्मस्थली का अलग ही आकर्षण था ।  मेरी इच्छा आज पूरी होने वाली थी । अब चूँकि संजय जी अपना ऑफिस का कार्य पूरा करने के बाद रात्रि 9-10 बजे आने वाले थे, तो हम लोगो के पास सासाराम और आसपास घूमने के लिए पूरा दिन था । सबसे पहले हमने सासाराम की शान शेरशाह सूरी के मकबरे की ओर रुख किया । मोबाइल पर गूगल मैप की सहायता से हम शेरशाह के भव्य मकबरे पर पहुँचे ।

मेरे गांव में हर साल देवघर जाने वाले कांवरियां 
सड़क के किनारे धान के खेत में रोपणी करती हुई महिलायें

शेरशाह सूरी इतिहास में मेरे प्रिय पात्रों में से एक रहा है । उसका जीवन प्रेरणादायी रहा है । अपनी तलवार के एक वार से शेर के दो टुकड़े करने वाला बाबर की सेना का एक अदना सा सैनिक बहुत जल्दी ही हुमांयू को बुरी तरह हराकर हिंदुस्तान का शहंशाह बन जाता है । लेकिन मुझे शेरशाह इस वजह से पसंद नही है । बल्कि उसके अपने पांच वर्ष (1540-1545 ई0) के छोटे से कार्यकाल में जो कार्य किये वो अतुलनीय है ।उस ज़माने में कोलकाता से उत्तर भारत के सभी महत्वपूर्ण शहरों जैसे धनबाद, गया, सासाराम, ग़ाज़ीपुर, वाराणसी, इलाहबाद, कानपूर, आगरा, मथुरा, दिल्ली, अमृतसर, लाहौर से होकर पेशावर तक पक्की सड़क बनवाई । आज हम जिसे ग्रैंड ट्रंक रोड या जीटी रोड (NH No. 2) के नाम से जानते है । इस सड़क के दोनों तरफ छायादार और फलदार वृक्ष लगवाये , यात्रियों के रुकने के लिए सराय, कुंऐं आदि की व्यवस्था की । हमारी भारतीय करेंसी रुपया भी शेरशाह की देन है । भूमि की पैमाइश भी शेरशाह ने टोडरमल (जो बाद में अकबर के नवरत्नों में शामिल हुए ) से करवाई । इतिहासकार तो यहाँ तक लिखते है, कि अगर शेरशाह न होता तो अकबर भी महान न होता । क्योंकि अकबर शेरशाह की अधिकांश योजनाओं को आगे बढाकर प्रसिद्धि हासिल की । तो ऐसे महान शासक का मकबरा जो न केवल अपने गृहराज्य में बल्कि गृह जिले के पास हो देखना बनता है । अब इतिहास से वापिस वर्तमान में लौटते है । गूगल मैप के भरोसे हम मकबरे के चक्कर लगाते रहे , अंततः एक स्थानीय व्यक्ति से पूछकर प्रवेश द्वार पर पहुंचे ।टिकट काउंटर लिखी जगह पर पहुँचे तो वहां ताला लगा हुआ था । फिर पार्किंग वाले ने बताया कि गेट के पास बने काउंटर से टिकट मिलेगा । टिकट लेकर स्मारक के अंदर दाखिल हुए । शेरशाह का मकबरा भारत के सुन्दर मकबरों में से एक है । मकबरे के चारो तरफ एक बड़ा तालाब बना है , जिसके किनारों पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI)  ने सुन्दर बगीचा विकसित किया है ।
शेरशाह ने अपने मकबरे का निर्माण कार्य स्वयं ही शुरू किया था, लेकिन 1545 में कालिंजर के किले को जीतने के प्रयास में बारुदखाने में आग लग जाने के कारण असमय ही मृत्यु हो जाने के कारण शेरशाह के पुत्र सलीम सूरी ने इसे पूरा करवाया था ।ये मकबरा भारत में अफगानी स्थापत्य का सर्वश्रेष्ठ नमूना है । एक तरफ ये भव्य है, तो दूसरी तरफ ये सादगी से भी परिपूर्ण है । तालाब के बीचो बीच बना इस  मकबरे में मध्य में एक बड़ा गुम्बद है, जिसके कोनों पर अष्टकोणीय शैली में अन्य छोटे गुम्बद बने है । पूरा मकबरा मूलतः ईटों से निर्मित है, जिस पर बाद में लाल पत्थरों को लगाया गया है । मुख्य गुम्बद के नीचे भीतर शेरशाह सूरी और उनके खास दरबारियो की कब्रें है । अंदर जूते-चप्पल पहनकर जाना मना है । जब अंदर घुसे तो बाहर की जालियों से रौशनी छनकर कब्रों के ऊपर आ रही थी । मानों  सूरज भी हिंदुस्तान की तारीख में दफन हो चुके अजीम सुल्तान का इस्तकबाल कर रहा हो । मैं भी कुछ देर तक उन कब्रों के बीच खड़ा फक्र महसूस कर रहा था । अंदर फ़ोटो खींचना मना था । फिर आँख बचाकर एक दो फ़ोटो खींच ही ली । मकबरे की दीवारों पर फ़ारसी या अरबी में कुरान की आयते लिखी थी । बाहर कुछ नवयुगल इतिहास से अनजान अपने वर्तमान में मगन थे । धूप बहुत ही तेज थी । लेकिन मकबरे से तालाब के दूसरी तरफ की हरियाली आँखों को सुकून दे रही थी । खैर कुछ देर और घूमने के बाद फ़ोटो खींच कर हम मकबरे की सीमा से बाहर निकल पड़े । अब हमारा अगला लक्ष्य सासाराम में ही स्थित ताराचण्डी देवी मंदिर था । अपनी कार हमने मकबरे के पीछे वाले रस्ते पर मोड़ ली ...क्रमशः जारी


टिकट कॉउंटर जहाँ टिकट नही मिलता 

प्रवेश द्वार 

प्रवेश करते ही दिखाई देता भव्य मकबरा 

हमारी घुमक्कड़ फैमिली 


मकबरे का प्रवेश

अंदर मजार (कब्र) का द्वार 

मकबरे का गलियारा

बाहर तालाब की ओर का दृश्य

बाहर आँगन में बने छोटे कमरे 

शेरशाह की मजार

मेहराब से दिखता एक गुम्बद

एक झरोखे से देखने के बाद विदा..शेरशाह महान




26 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर चित्र,परिपूर्ण जानकारी...
    अगले भाग का इंतजार रहेगा।

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    1. पिछली पोस्ट की तरह ये परिपूर्ण न देता तो कई लोग लट्ठ लेकर आ जाते डॉ साहब :-)

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  2. घर से निकलना भी बहुत मुश्किल काम होता है, लेकिन घरवालो ने आपको अकेले जाने नही दिया साथ मे जाने के लिए कई सदस्यों को साथ भेज दिया। शेरशाह सूरी एक अच्छे शासक थे, दिल्ली स्थित पुराने किले में भी उनका महल था, व उन्होने कई इमारतो का निर्माण कराया था।
    पोस्ट पढ कर अच्छा लगा, आगे की पोस्ट का इंतजार रहेगा।

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    1. घरवालों के नज़रिये से चिंता वाज़िब थी , सचिन भाई । शेरशाह की महानता तो बहुत है , पर पोस्ट इतिहास की नही घुमक्कडी की है , इसलिए कम लिखा । आपका आभार

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  3. मोहक और जानकारी भरी चित्रमय पोस्ट

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (13-09-2016) को "खूब फूलो और फलो बेटा नितिन!" (चर्चा अंक-2464)) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  5. ये मकबरा भारत में अफगानी स्थापत्य का सर्वश्रेष्ठ नमूना है । एक तरफ ये भव्य है, तो दूसरी तरफ ये सादगी से भी परिपूर्ण है । तालाब के बीचो बीच बना इस मकबरे में मध्य में एक बड़ा गुम्बद है, जिसके कोनों पर अष्टकोणीय शैली में अन्य छोटे गुम्बद बने है ।जाना चाहता था इधर गया से लौटते समय लेकिन संयोग नही बना ! शानदार प्रस्तुति पांडेय जी

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    1. आभार योगी जी । अब कभी इधर का कार्यक्रम बने तो जरूर जाइयेगा ।

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  6. बाहर कुछ नवयुगल इतिहास से अनजान अपने वर्तमान में मगन थे । हा हा हा..... शानदार लेख।

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    1. नवयुगल इतिहास से अनजान होकर वर्तमान में भविष्य की तैयारी कर रहे थे ।
      आभार

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  7. पहला भाग पढ़ लिया, बहुत अच्छा लगा, घर से निकलना सच में मुश्किल काम होता है, अब दूसरा भाग पढता हूँ, और हाँ आपने एक फोटो डाला है जिसमे लिखा है टिकट काउंटर जहाँ टिकट नहीं मिलता, ऐसे बहुत जगह मिल जायेगे खोजने पर इसकी भी एक संग्रह बनानी पड़ेगी

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  8. क्या बात है बहुत ही अच्छा विवरण पढ़ कर मजा आ गया।

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  9. सुन्दर छाया चित्रों के साथ ऐतिहासिक जानकारी से परिपूर्ण वर्णन

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ab apki baari hai, kuchh kahne ki ...

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