अहिरौली गंगा घाट (बक्सर , बिहार ) चित्र प्रतीकात्मक है। |
इस श्रृंखला की पहली पोस्ट में आपने पढ़ा, कैसे मेरे और मां गंगा के बीच संवाद शुरु हुआ और मैंने उनसे कैसे बक्सर का प्रारंभिक इतिहास जाना । परंतु मेरा प्रश्न अनुत्तरित रह गया था , कि भगवान राम ने कैसे अहिल्या का उद्धार किया ?चूँकि मैं जीवन यापन के लिए मां गंगा से सैकड़ों किलोमीटर दूर बेतवा किनारे ओरछा में रहता हूं और साल में एक या दो बार ही आना हो पाता है, इसलिए मां गंगा से मुलाकात अधूरी रही और महीनों तक यह प्रश्न मेरे मन में भ्रमण करता रहा, कि आखिर भगवान श्री राम अपने गुरु विश्वामित्र के साथ जब गौतम ऋषि के आश्रम पहुंचे होंगे तो वह दृश्य कैसा होगा और उस स्त्री को जिसको उसके स्वयं तपस्वी पति ने छोड़ दिया हो ,आखिर भगवान ने कैसे उस पर अपनी करुणा दिखाई होगी ?
मां गंगा की कृपा बहुत जल्दी मुझ पर हुई और उन्होंने अपने तट पर मुझे जल्दी ही बुला लिया और इस बार मैं फिर हाजिर था। अपने उन्हीं प्रश्नों या जिज्ञासाओं के उत्तर को पाने के लिए और मां गंगा के बक्सर स्थित उसी रामरेखा घाट पर मैं पहुंचा जहां कभी भगवान श्री राम अपने अनुज लक्ष्मण और गुरु विश्वामित्र के साथ स्नान करते थे। मैं मां गंगा के आंचल के एक छोर पर प्रतीक्षारत बैठा था , कि कब मां गंगा अपनी कृपा मुझ पर बरसा दे ! और महीनों से अनुत्तरित प्रश्नों के उत्तर मुझे मिले। मां गंगा की कृपा मुझ पर हुई और गंगा की अविरल धारा से आवाज आई- हे पुत्र ! आखिर तुम्हें आना ही पड़ा ! मैं हाथ जोड़कर नतमस्तक खड़ा था और मैंने कहा कि क्या ऐसा हो सकता है कि आप बुलाएं और आपका यह अनुग्रहित पुत्र आए ना ।
इसके पश्चात मैंने मां गंगा से अपना वही पुराना प्रश्न दोहराया कि आज मां बताइए पाषाण बनी अहिल्या से कैसे मिले प्रभु राम ?
कुछ देर की शांति के पश्चात गंगा की लहरें शांत हुई और कुछ देर के बाद मां गंगा बोली - मैं त्रेता युग में पहुंच गई थी और मुझसे बोली - पुत्र मुझे अच्छे से याद है, वह दिन जब ऋषि गौतम और उनकी पत्नी की कथा महर्षि विश्वामित्र ने राम को सुनाई और राम ने अहिल्या के लांछन और अपमान की कथा सुनकर अपने गुरुदेव से कहा - कि मैं उस देवी के दर्शन करना चाहूंगा गुरुदेव ! गुरुदेव ने कुछ कहा नहीं केवल गर्व से देखा था राम की ओर और राम के निकट पहुंच कर उनके कंधे पर हाथ रख कर दूर आकाश की ओर निहारा और अपने शिष्य के मुख से उस तिरस्कृत और लोक निर्वासित महिला के लिए देवी का संबोधन सुन बोले कि आज तुम में मैं अपना आप में मेरा विस्तार देख रहा हूं। कुछ क्षण तक महर्षि विश्वामित्र आत्म मुग्ध से खड़े रहे और राम की ओर देखते हुए बोले उसे भी तुम्हारी ही प्रतीक्षा है। राम ! अपमान और उपेक्षा ने उसकी चेतना को लगभग नष्ट कर दिया है, मनुष्यों की छाया से भी वह डरती है , किसी को दूर से ही देख कर छिपने या भागने का प्रयत्न करती है ,डरती है, न जाने क्या अपशब्द सुनने पड़े ! चेतना का केवल यही प्रमाण शेष रह गया है। समाज उसे दूषित करने वालों की लोग पूजा करता है। ! पुरुष जो ठहरे शक्तिशाली जो ठहरे वे छल कर सकते हैं ! लूट सकते हैं !दूसरों को अपमानित कर सकते हैं ! और जिन्हें चलते लूटते और अपमानित करते हैं, उन्हीं को इन सब के लिए दोषी भी सिद्ध कर सकते हैं। आश्चर्य है ! जो सिरजता है, गढ़़ता है लोक को जीवन और अवलंबन देता है, वही सबसे अधिक अपमानित भी होता है वह धरती हो,स्त्री हो या नदी हो सबकी एक नियति है । महर्षि विश्वामित्र और उनके दोनों होनहार शिष्य धीरे धीरे मेरे किनारे ही उस स्थान पर पहुंचे जहां पर अहिल्या जीवित होते हुए भी पाषाण की तरह शापित थी। राम ने अपने दोनों हाथ जोड़ लिए थे और दूर किसी स्त्री की छाया दिख रही थी, वह हाथ जोड़े उसी दिशा में चलते रहे लक्ष्मण भी उनका अनुगमन करके उनके साथ उसी तरह चल रहे थे, संभवत उन्हें भी लगा था कि वह व्यक्ति अन्य लोगों से भिन्न है , वह ना तो अपने स्थान से हिली थी और ना भागी थी। संभव है उसे आंखों से कुछ दिख ही ना रहा हो या संभव है कि उसमें हिलने की शक्ति ही ना रह गई हो ! नहीं ! वह शायद इधर देख ही नहीं पा रही थी, मौन बैठी थी। किसी सोच में डूबी थी। उसके निकट पहुंचकर राम उसके चरणों में लेट गए थे और बोली आपने बहुत दुख झेला है मां ! मैं समस्त पुरुष जाति की ओर से आपसे क्षमा मांगने आया हूं ! हे देवी मैं आपको अपमानित करने वाली उस दम्भी पुरुष जाति का प्रतिनिधि आपसे दंड मांगने आया हूं ।उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था। यदि राम के शब्द उसके कानों में पड़ भी रहे थे, तो उनका अर्थ शायद उसकी समझ में नहीं आ रहा था ! वह जड़ सी एकटक राम को देखी जा रही थी ! नहीं, उसके कानों में कोई ध्वनि आवश्यक टकराई थी उसने बोलने का प्रयत्न किया था, होठ हिले थे, पर शब्द बाहर नहीं आ पा रहे थे। कोई मरणासन्न व्यक्ति जैसे कुछ कहने का प्रयत्न करें और उसकी आवाज एक अस्पष्ट फुसफूसाहट बनकर रह जाए और बहुत ध्यान देने पर कुछ समझ में आए वैसे ही उसने कहा था - मैं लंछिता हूँ ! पतिता हूं ! उसने राम के सिर को अपनी दुर्बल अंगुलियों से कुछ इस तरह छुआ था, जैसे उठाने का प्रयत्न कर रही हो !
और फिर वही शब्द 'पतिता ' .. आप पतित नहीं हो सकती मां , जो पतित होते हैं, वह अपने जघन्य कृत्य पर भी अपने को पतित नहीं कहते। वह अपने पापों को लेकर गर्व करते हैं , उनकी चेतना अहंकार से इतनी मलिन हो चुकी होती है , कि वे अपने पातकों को समझ ही नहीं पाते। जिनमें पतित होने का बोध है, जो उन अहंकारियों द्वारा पातिकी कहीं जाते हैं। वे या तो अज्ञान अपज्ञान या व्यवस्था के कारण उनके ही पापों और पातकों का बोझ धोने को बाध्य कर दिए जाते हैं । राम ने प्रतिवाद करते हुए कहा था ।
अहिल्या की समझ में कुछ नहीं आ रहा था। वह केवल आश्चर्य से राम को निहार रही थी राम ने कुछ स्पष्ट स्वर में एक एक शब्द पर रुकते हुए और एक एक शब्द का स्पष्ट उच्चारण करते हुए फिर कहा " तुम पतित नहीं हो मां तुमने दूसरों के पातक का प्रक्षालन अपनी पीड़ा और यात्रा से किया है । जैसे मां अपनी गोद के बच्चों की मल का प्रक्षालन करती है । हाँ मां, अपने समस्त अहंकार के बावजूद पुरुष जाति स्त्री के सम्मुख एक शिशु ही बना रह जाता है अपनी धात्री और पोषिका को ही दूषित और मलिन करके किलकारियां भरने वाले शिशु से अधिक क्या है वह "
तुम्हारी बातें मेरी समझ में नहीं आती अहिल्या ने दुर्बल और कांपते हुए स्वर में कहा था। उसकी समझ में कुछ तो आ ही रहा था, अन्यथा वाणी में यह परिवर्तन कहां से आता । उसके नकार में भी आत्मविश्वास कहां से लौटता । ' कुछ समझ में नहीं आता बेटा" बेटा शब्द का उच्चारण उसने इतने विलगित होकर किया था ,कि अपना संयम ना खोने वाले राम की भी आंखें भर आई थी ।
आततायी होते हैं मां ,जो दूसरों को कुचलकर अकेले ऊपर उठना चाहते हैं ,सिर तान कर शिखर बनना चाहते हैं। मैंने शिखरों को भूचाल तो दूर मात्र मेह से खिसकते और लुढकते देखा है । पर्वतों को अपने अहंकार के दरबार से बिना किसी बाहरी ठोकर या आघात के चूर चूर होते देखा है । लेकिन मैंने धरती को द्रवित होकर बहते तो देखा है, पर पतित होते नहीं देखा । स्त्री तो जननी होती है ! वह तो धरती होती है ! मां वह पतित नहीं हो सकती ! पतितो को भी वही संभालती है और वहीं संभाल सकती है । यदि वह पतित होगी तो उसे कौन संभालेगा । राम ने अपने संयत पर कोमल स्वर में कहा था । उस समय वृद्धा के मुख पर हो रहे भाव परिवर्तन को देखकर आश्चर्य हो रहा था उसमें एक ऐसी प्राणशक्ति आ गई थी मानो कोई सूखी लता वर्षा की झड़ी से एक ही क्षण में हरी हो गई हो ।
तुम कौन हो ? कौन हो तुम ? उसने अपने आंतरिक आह्लाद को दबाते हुए भर आई सी आवाज में कहा था । " तुम मनुष्य नहीं हो सकते " नहीं तुम मनुष्य नहीं हो सकते , तुम भगवान हो । तुम पतित पावन भगवान हो , पतितों को भी पवित्र मानने वाले, उपेक्षित और वंचितों को उनका लूटा हुआ सौभाग्य और गौरव दिलाने वाले अवतार हो तुम " वह बढ़कर राम के चरणों में लिपट गई और फूट-फूट कर रोने लगी थी राम बार-बार उठो मां ! उठो देवी ! कहकर बुला रहे थे !
मां गंगा की लहरें शांत हो चली थी , इधर मेरा मन अशांत हो चला था , आँखों से अविरल धारा बह रही थी ......
( क्रमशः अगले भाग में जारी )
चित्रकला - अलका दास |
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (10-05-2019) को "कुछ सीख लेना चाहिए" (चर्चा अंक-3331) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार शास्त्री जी , स्नेह बनाये राखिये ।
हटाएंबहुत सुंदर आख्यान
जवाब देंहटाएंआभार सर
हटाएंअपनी पूर्व परिचित शैली के साथ बहुत अरसे बाद पधारे श्रीमंत 😊 शानदार वर्णन👍
जवाब देंहटाएंआभार , बुआ
हटाएंये दो टके की नौकरी में मेरा लाखो का लेखन जाये !
निस्संदेह आज मां गंगा गभीर प्रदुषण से ग्रसित है।हम सभी का दायित्व है कि इसको और गंदा होने से बचाये वरना यह कहानियों तक सीमित हो जाएगी।
जवाब देंहटाएंसही कहा माथुर सर । आभार
हटाएंबहुत सुंदर लेख
जवाब देंहटाएंआभार
हटाएंअद्भुत रचना। एक सांस में पढ़ गया। लिखते रहिए
जवाब देंहटाएंडॉ साहब लिखने का मन बहुत करता है, लेकिन समय ही नही मिल पाता । अब इसी पोस्ट को देख लीजिए 11 महीने लग गए इतनी सी पोस्ट लिखने में । प्रोत्साहन के लिए आभार
हटाएंमैं तो बह गई भावों मैं, बहुत ही सुंदर राम जी और माता अहिल्या का वर्णन😰😰 खुशी के आंसूं🙏🙏
जवाब देंहटाएं- संगीता बलोदी
बहुत सुन्दर रचना .... गंगा माँ से संवाद... मन के किसी कोने से प्रकट होते प्रश्न ..अहिल्या और श्री राम का ववर्णन.... सब कुछ बढ़िया
जवाब देंहटाएंआभार रितेश जी ! स्नेह बनाये रखिये ।
हटाएंबहुत ही बढि़या। ऐसा लगा जैसे हम आपके और गंगा के संवाद को हम वहीं बैठ कर सुन रहे हैं। बहुत बढि़या लगा। बक्सर एक ऐसा स्थान है जिसका ऐतिहासिक के साथ साथ पौराणिक मान्यता भी बहुत अधिक है। आपका ये लेख बहुत लोगों को वहां के इतिहास से से परिचय कराएगा।
जवाब देंहटाएंऐसे बैठकर प्राकृतिक चीजों से साक्षात्कार बहुत ही सुखद अनुभूति प्रदान करता है। और उन पलों को याद करके मन में हर बार प्रसन्नता की कुछ अमिट लकीरें खींचती चली जाती है।
अधिकतर लोगों की यही कहानी है कि वो अपने आस-पास की चीजों से अनजान रह जाते हैं या जानते हुए भी ये सोचकर नहीं जा पाते हैं कि ये तो घर के पास ही है कभी भी चले जाएंगे और ये घर के पास की चीज बिना देखा हुआ रह जाता है। पर आदमी करे भी तो क्या करे, रोजगार, काम, व्यापार की तलाश में वो दूसरे जगह स्थानापन्न हो जाता है और फिर वो अपनी जड़ों से कुछ पल, कुछ समय के लिए दूर हो जाता है।
आभार अभय जी , आज की भागदौड़ की जिंदगी में लोग अपने आसपास की चीजों स्थानों से जुड़ नही पाते । वरना बात करने बैठों तो सारी कायनात आपसे बात करेगी ।
हटाएंदिल से दिखी गई एक सुन्दर पोस्ट। लिखते रहे
जवाब देंहटाएंआभार सचिन जी , लिखना तो बहुत चाहता हूँ, मगर नौकरी की व्यस्तता के कारण समय नही मिल पाता है ।
हटाएंप्रभु राम और मां अहिल्या के मर्मस्पर्शी संवाद पढ़ते पढ़ते मेरी आँखें बार बार डबडबा रही थीं। आपकी सशक्त लेखनी को प्रणाम।
जवाब देंहटाएंभावातिरेक में लिखते लिखते कुछ typo रह जाती हैं। एक बार पुनः दृष्टि डाल लीजिएगा तो वह सब भी दूर हो जाएंगी।
आभार आदरणीय
हटाएंबहुत ही सुंदर...
जवाब देंहटाएंराम एक तापस तिय तारी
श्री रामजी ने अहिल्या जी का उद्धार कर दिया
बल्कि मात्र उनकी रज ने ही कर दिया
गयी पति लोक आंनद भरी
आभार डॉ साहब
हटाएंबहुत ही जीवंत वर्णन
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति , आंखे नम भी हो जाती हैं पढ़ते पढ़ते
जवाब देंहटाएंलगता है हम स्वयं गंगा मां से संवाद कर रहे हैं , देवी का संबोधन दिल को छू गया
यही प्रमाण है कि बहुत ऊंचाई पर भी इंसान विनम्र रह सकता है । - विजया पन्त तुली (प्रसिद्द पर्वतारोही)
बहुत कम लोग जानते हैं कि अहल्या तत्कालीन विश्व की सर्वश्रेष्ठ सुंदरी थीं। ब्रह्मा ने उनके रचना के लिए सर्वोत्कृष्ट पदार्थों का चयन किया था। बहुत अच्छा लेख है। लगता है कि हम भी लक्ष्मण के पीछे खड़े होकर उन तीनों का वार्तालाप सुन रहे हों। जैसे दृश्य काव्य हो। बहुत बहुत अच्छा।
जवाब देंहटाएं- धर्मेंद्र जोशी
आज इस प्रसंग को पड़कर अहिल्या को पुनरावलोकन का अवसर प्राप्त हुआ। इसके लिए मुकेश जी को साधुवाद। अहिल्या हिन्दू कथाओं में वर्णित एक स्त्री पात्र हैं, जो गौतम ऋषि की पत्नी थीं। ब्राह्मणों और पुराणों में इनकी कथा छिटपुट रूप से कई जगह प्राप्त होती है और रामायण और बाद की रामकथाओं में विस्तार से इनकी कथा वर्णित है। कथाओं के अनुसार यह गौतम ऋषि की पत्नी और ब्रह्माजी की मानसपुत्री थी। ब्रह्मा ने अहल्या को सबसे सुंदर स्त्री बनाया। सभी देवता उनसे विवाह करना चाहते थे। ब्रह्मा ने एक शर्त रखी जो सबसे पहले त्रिलोक का भ्रमण कर आएगा वही अहल्या का वरण करेगा। इंद्र अपनी सभी चमत्कारी शक्ति द्वारा सबसे पहले त्रिलोक का भ्रमण कर आये। लेकिन तभी नारद ने ब्रह्माजी को बताया की ऋषि गौतम ने इंद्र से पहले किया है। नारदजी ने ब्रह्माजी को बताया की अपने दैनिक पूजा क्रम में ऋषि गौतम ने गाय माता का परिक्रमा करते समय बछडे को जन्म दिया। वेदानुसार इस अवस्था में गाय की परिक्रमा करना त्रिलोक परिक्रमा समान होता है। इस तरह माता अहल्या की शादी अत्रि ऋषि के पुत्र ऋषि गौतम से हुआ।
जवाब देंहटाएं- धर्मेंद्र जोशी
ऐसा लगता आप यहाँ माँ गंगा के लिए लेखक गणेश बन जाते हैं,, विचार उनके,, लेखन आपके। एक चीज यहाँ पूछना था की उनके साथ छल क्या सतयुग में हुआ था? क्योंकि यहाँ लिखे हैं अब त्रेता में आ गयी हूँ। इसे पढने से "पत्थर होना" शब्द का अर्थ सही से समझ में आया। पहले मै सोचता था पत्थर होने के बाद फिर महिला शरीर कैसे हो सकता है,, यह तो असंभव होगा। पत्थर के मूर्तियों का प्राणप्रतिष्ठापन अलग बात है। बहुत बढिया लिखे हैं।
जवाब देंहटाएं- ललित विजय
अहिल्या व भगवान राम संवाद का बेहतरीन वर्णन!
जवाब देंहटाएं- मनीष कुमार
अहिल्या उद्धार का इस रुप मे प्रस्तुति करण, वो भी इन शब्दो के मोतियों की माला मे पिरोकर, मानो साक्षात माँ गंगा से संवाद चल रहा है। शब्दो के जादूगर की लेखनी, जीवंत शैली को सादर प्रणाम।
जवाब देंहटाएंआभार सर
हटाएंअद्भुद आलेख।जीवंत शैली में शब्दों की जादूगरी।वाह
जवाब देंहटाएंइसके पहले भाग को भी भेजें।जिज्ञासा बढ़ गई है।
पहले भाग की लिंक शुरुआत में दी है ।आभार
हटाएंआम तौर पर हम सब यही कहानी पढ़ते हैं कि गौतम ऋषि के श्राप से अहिल्या पत्थर हो गईं और फिर जब वनवास के दौरान भगवान राम की चरण रज उस पाषाण पर पडी तो वह पुनः स्त्री बन गयी। वास्तव में काव्य लेखन की ये शैली रूपकों का उपयोग करती है जो अधिकांश लोग समझ नहीं पाते और शब्दों को जस का तस धार्मिक भावना के वशीभूत स्वीकार कर लेते हैं।
जवाब देंहटाएंप्रख्यात कथाकार नरेंद्र कोहली ने अपनी राम कथा में इस आख्यान का तार्किक विवरण प्रस्तुत करते हुए बताया कि गौतम ऋषि के 'श्राप' से अहिल्या के 'पत्थर' हो जाने का क्या मंतव्य है। वास्तव में श्राप देना अदालत के फैसले या फतवे के समकक्ष होता था।। अपनी पत्नी अहिल्या के बहिष्कार / सामाजिक तिरस्कार का गौतम ऋषि का निर्णय एक प्रकार का फतवा ही था जिसको या तो गौतम ऋषि स्वयं वापिस ले सकते थे या उनसे भी ऊंचे पद पर विराजमान कोई ऋषि उस निर्णय को पलट सकता था।
गौतम ऋषि से भी ऊंचे पद पर यदि कोई ऋषि होंगे भी तो उन्होंने निर्णय न तो बदला न ही बदलने की जरूरत समझी। फलस्वरूप समाज से बहिष्कृत होकर अहिल्या जंगल में एक कुटिया बना कर पूर्णतः एकाकी जीवन जीती रहीं।
राम अकेले ऐसे व्यक्ति सिद्ध हुए जिनके पास इतना नैतिक बल था कि वह गौतम ऋषि के फतवे को (श्राप को) कूड़ेदान में फेंकते हुए पाषाणवत जीवन जी रही अहिल्या के दर्शन करने के लिए पहुंचे और इस प्रकार उनका सामाजिक बहिष्कार रिरस्त कर दिया। जब राम ने गौतम ऋषि द्वारा लगाए गए प्रतिबन्ध को अस्वीकार कर दिया तो सामान्य जनता पर लगा हुआ प्रतिबन्ध स्वयमेव समाप्त हो गया।
इसी तार्किक घटनाक्रम को आपने बहुत प्रभावी ढंग से पुनः प्रस्तुत किया है जिसके लिए आप साधुवाद के पात्र हैं।
आदरणीय आभार । इस छोटी सी पोस्ट को लिखने में एक वर्ष का समय लगा, इस दौरान कई पुस्तकें भी पढ़ी । इस प्रसंग का मर्म भी समझा तब जाकर ये पोस्ट लिख पाया । स्नेह बनाये रखिये ।
हटाएंमैं कहानी पढ़कर ...भगवान् श्री राम और देवी अहिल्या का संवाद पढ़कर विस्मित भी हूँ .क्रोधित भी हूँ ...दुखी भी हूँ ..पुरुष प्रजाति जिसे नारी की रक्षा का दायित्व मिला था ..वो इतनी निर्दयी कैसे हो गयी ...पांडेय जी ....इतना बेहतरीन लिखा है की शब्द नहीं हैं मेरे पास और तारीफ के लिए ...आशा है आपका और माँ गंगा का ये प्रेम और वात्सल्य भरा संवाद आगे भी पढ़ने को मिलता रहेगा ..
जवाब देंहटाएंआभार योगी जी , इतनी सी पोस्ट लिखने एक साल लग गए । कई बार रोया, कई बार आंसू पोंछे , कई बार गुस्सा आया ।
हटाएंमां गंगा से अभी बहुत सी गाथाएं सुननी है । बस समय मिलता रहे ।
आज फ़िर से भाव विभोर कर दिया .माँ अहल्या और भगवान श्री राम का संवाद तो अद्भुत है .
जवाब देंहटाएंआभार नरेश जी
हटाएंउत्कृष्ट ओर भावविभोर कर देने वाली पोस्ट।
जवाब देंहटाएंआप की प्रभावशाली लेखन शैली ने इस वृत्तांत को एक नया काव्य कलेवर दे दिया है। बधाई।।
जवाब देंहटाएंअरविंद मिश्र
अति सुन्दर
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिखा सर 🙏🙏
जवाब देंहटाएंअद्भुत चिन्तन व लेखन, कठिन विषय को इतने रोचकता और सरलता प्रस्तुत कर भावविभोर कर दिया आपने।
जवाब देंहटाएंगलत खबर मत फैलाये श्रीमान माता अहिल्या का उद्धार दरभंगा जिले के कमतौल रेलवे स्टेशन से स्टे गांव अधिकारी गांव में हुआ था।
जवाब देंहटाएंशानदार लेखन मुकेश जी
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति , आंखे नम भी हो जाती हैं पढ़ते पढ़ते
जवाब देंहटाएंलगता है हम स्वयं गंगा मां से संवाद कर रहे हैं , देवी का संबोधन दिल को छू गया