हजारों साल पुराने शैल चित्र !
बी एस सी की पढ़ाई के दौरान मानव विज्ञान (Anthropology) विषय रहा । तब से आदि मानव से आधुनिक मानव का विकास क्रम सिलेबस का हिस्सा रहा । मगर मुझे शैल चित्रों ने सदैव आकर्षित किया । मध्य प्रदेश में यूनेस्को की विश्व धरोहर भीमबेटका शैल चित्रों के लिए विश्वविख्यात है, मगर दुर्भाग्य से वहां तक जा न पाया । खैर पन्ना जिले में पदस्थापना के दौरान कई जगहों पर शैल चित्रों के होने की जानकारी मिली तो दिल खुशी से नाच उठा । उसी यात्रा का पहला पड़ाव प्रस्तुत है ।
मनुष्य प्रारम्भ से अन्य जीवों से अधिक मस्तिष्क वाला रहा है । प्रारम्भ में जब मानव बानरो की भांति पेड़ पर रहता था, तब उसे कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता था , क्योंकि प्रकृति ने उसे अन्य जीवों की तरह कोई विशेष अंग नही दिए जिससे वह अपनी रक्षा या बचाव हेतु अनुकूलन कर सके । न तो मांसाहारी जीवों की तरह नुकीले नाखून, लंबे दांत दिए और न ही शाकाहारी जीवों की तरह सींग या खुर दिए । पेड़ों पर रहने के लिए पूंछ का भी सहारा न रहा । बेचारा मजबूरी में पेड़ से नीचे उतरा । अब समस्या ये कि चार पैर (तब हाथ का प्रयोग पैर के रूप में ही था ) पर चलने पर लम्बी घास के कारण ज्यादा दूर तक नही दिख पाता था । अब खूंखार जंगली जानवरों के बीच निरीह मानव अपने अगले पैरों को हवा में रख पिछले पैरों पर खड़ा हुआ । यह क्रांतिकारी घटना थी । क्योंकि यही से मानव अन्य जीवों से अलग विशिष्ट श्रेणी की ओर उन्मुख हुआ । अगले पैर अब हाथ के रूप में विकसित हुए , हाथ का अंगूठा अंगुलियों के समकोण पर आया, जिससे चीजों को पकड़ना आसान हुआ । सिर सीधा होने से मष्तिष्क के लिए ज्यादा जगह बनी । बड़ा मस्तिष्क मतलब बड़ी सोच और बड़ी सोच मतलब बड़ा बदलाव । इतनी कहानी सुनाने का मतलब ये है कि इसी बड़े मस्तिष्क ने कल्पनाओं और विचारों को जन्म दिया । अब पेड़ से उतर आये थे, और हाथ में पत्थर के औजार आ गए थे । तो शिकार भी करने लगे । हालांकि शिकार सामूहिक रूप से हो पाता था । कई बार गलती से बड़ा शिकार हाथ लग जाता तो बचे माँस को सुरक्षित और संग्रहित करने की जरूरत पड़ी । तो बड़े जानवरों की प्राकृतिक गुफाओं पर कब्जा किया गया । संग्रहित शिकार की सुरक्षा के लिए पहरेदार भी बिठाए गए । अब पहरेदार दिनभर बैठे बैठे क्या करे ? तो गुफाओं की दीवारों पर पत्थरों से आड़ी तिरछी रेखाएं खींची । जब साथ वालों ने तारीफ की तो उन रेखाओं के विकास कर आसपास की गतिविधियों को उकेरा । फिर वनस्पतियों के रस से रंग बनाया । अब तो गुफ़ाओं की दीवारों पर रंगीन चित्रकारी होने लगी । यही से आदि मानव द्वारा बनाये गए शैल चित्रों की शुरुआत हुई । जो आज हजारों साल बाद भी गुफाओं में मिलते है ।
मध्य प्रदेश में भीमबेटका के शैलचित्र को यूनेस्को की विश्व धरोहर में शामिल हो गए । मगर आज भी मध्य प्रदेश में बहुत सी जगहों पर ये उपेक्षित पड़े है , और समय की मार से बचकर आज के मानव की मार से खराब हो रहे है । इसी तरह के शैलचित्र मध्य प्रदेश के पन्ना जिले के पहाड़ीखेड़ा गांव के पास बृहस्पति कुंड जलप्रपात के आसपास बहुतायत में है । मगर सरंक्षण के अभाव में नष्ट होने की कगार पर है । बहुत से शैल चित्र धुंधले पड़ गए है । इन शैल चित्रों में आदि मानव ने तत्कालीन परिस्थितियों और जीवों की चित्रित किया है । इन चित्रों में वन्य जीव, आखेट, नृत्य आदि का चित्रण लाल रंगों से किया गया है । आगे भी शैल चित्रों की खोज जारी रहेगी ....
- मुकेश पाण्डेय
इस गूढ़ विषय को चित्रकारी तक पहुंचाने और सरल भाषा में रोचकता प्रदान करने के आपके लेखन के क्या कहने.. इन दुर्लभ कलाकृतियों का संरक्षण होने से ही भावी पीढ़ी अपने विकास को समझ पायेगी।
जवाब देंहटाएंबधाई हो ! आप मेरे ब्लॉग पर सन 2020 में पहली टिप्पणी कर्ता बन गए है । आपको जब भी मुलाकात होगी तब घुमक्कड़ी से संबंधित एक किताब पुरस्कार स्वरूप दी जाएगी । पोस्ट को पसंद करने के लिए आभार ।
हटाएंयानी कि आप अभी तक प्रकाश से नही मिले☺️
हटाएंइन शैलचित्रों की जानकारी नहीं थी। बीजावर के आगे पहाडियों में जरूर पाई गई है। संभवतः वही पहाड़ी श्रृंखला होगी।
जवाब देंहटाएंआदरणीय बिजावर के अलावा पन्ना, छतरपुर, सागर जिले के कई स्थानों पर शैल चित्र मिले है । मगर संरक्षण का घोर अभाव है ।
हटाएंशानदार लेखनी के साथ उस जगह की विस्तृत जानकारी भी ओर चाहिए और जलप्रपात के भी फोटू होते तो सोने पे सुहागा होता। अगली कड़ी के इंतजार में
जवाब देंहटाएंआभार बुआ जी, जलप्रपात की ढेर सारी फ़ोटो पहले फेसबुक में शेयर कर चुका हूं । इस पोस्ट का उद्देश्य जलप्रपात नही बल्कि शैलचित्र है, इसलिए सिर्फ उसी पर फोकस किया है । जलप्रपात भी बहुत खूबसूरत है , लेकिन अबकी बार उसमे पानी कम था, बरसात में गजब का सौंदर्य होता है । लगता है जैसे छोटा नियाग्रा हो । जलप्रपात पर अलग से पोस्ट लिख दूंगा । दुनिया का इकलौता झरना जहाँ हीरे मिलते है ।
हटाएंसचमुच पाण्डेय जी आपकी ये भूमिका पढ़े बिना ये चित्र बिल्कुल नीरस और बेकार लगते लेकिन इनके पीछे की पूरी कहानी पढ़ने के बाद एक अलग ही नजरिया बन गया इनके प्रति । सौभाग्य से भीमबेटका वाले चित्र मैंने देखे हुये हैं । सचमुच चित्र फीके होते जा रहे हैं, यदि आपकी पोस्ट से भी इन्हें संरक्षण मिल जाये तो ये एक उपलब्धि ही होगी ।
जवाब देंहटाएंयह पोस्ट तो सिर्फ भूमिका ही समझिए अगली पोस्ट में शैलचित्र के विस्तार से जाने का प्रयास करूंगा । इनके संरक्षण के लिए अपने स्तर से प्रयास करूंगा ।
हटाएंपन्ना के शैल चित्रों पर शोध जारी रखें और एक रंगीन बुकलेट भी प्रकाशित करें जिनमें चित्रों की बुद्धिसम्मत व्याख्या भी हो। कौन से जानवर हैं। रंग का मिश्रण क्या रहा होगा। कितने पुराने हो सकते हैं। एक चित्र में दिख रहा जानवर जिराफ जैसा दिख रहा है। मगर अब तो जिराफ भारत में मिलते नहीं।
जवाब देंहटाएंआदरणीय प्रणाम, पन्ना जिले में बहुत सी जगहों पर शैलचित्र है , परंतु उपेक्षित अवस्था में है । इनके अध्ययन के लिए प्रयासरत हूँ । और प्रशासन से संरक्षण के लिए भी लगा हूँ ।
हटाएंबेहतरीन जानकारी और ज्ञानवर्धन के लिए धन्यवाद मुकेश जी ����
जवाब देंहटाएंडॉ साहब आभार, स्नेह बनाये रखिये ।
हटाएंशैलचित्र.... सुनते जरूर आये थे...पर शैलचित्रों के इयिहास के बारे में जानकारी नगण्य थी भैया....पर आपने जिस सहज और कौतूहलता पैदा करने वाले अंदाज में जानकारी उपलब्ध कराई है, उसके बाद तो देखने की उत्कंठा अत्यंत बलवती हो गयी है....
जवाब देंहटाएंस्वागत है श्याम जी ।
हटाएंबढ़िया जानकारी दी आपने पाण्डेय जी ..... भित्ति शैल चित्र के बारे ....
जवाब देंहटाएंमध्यप्रदेश की धरती हमेशा से ही आदी सभ्यताओं की पालना रही है, इन भित्ति चित्रों को देखकर इतिहास की सैर करना निश्चित रूप से रोमांचक रहा होगा.. 😊
जवाब देंहटाएंसही कहा अनुज । अभी भी ये शैल चित्र उपेक्षित है । इन पर शोध जारी है ।
हटाएंज्ञानवर्धक लेख
जवाब देंहटाएंआभार
हटाएंबेहतरीन शुरुआत। पन्ना को आप विश्व के पर्यटन मानचित्र पर स्वर्ण अक्षरों में अंकित करके रहेंगे , ऐसे शुभकामनायें !!
जवाब देंहटाएंआभार
हटाएंअद्भुत जानकारी वाला पोस्ट. शैल चित्रों का इस तरह से उपेक्षा बताती है हम अपने धरोहरों के प्रति कितने लापरवाह हैं.
जवाब देंहटाएंहम सदा से लापरवाह रहे है ।
हटाएंIf you looking for Publish a book in India contact us today for more information
जवाब देंहटाएंअनूठी जानकारी, मुकेश जी! ये इंसान के पेड़ों पर रहने की और चार पैरों पर चलने की बात लगभग कितनी पुरानी मानी जाती है?
जवाब देंहटाएंआदरणीय विज्ञान के अनुसार होमो इरेक्टस मानव ने पेड़ों से उतरकर सीधे खड़े होकर जमीन पर चलना सीखा । जो लगभग 1 लाख वर्ष पूर्व पाए जाते थे ।
हटाएंगूढ़ बातों को सरल ढंग प्रस्तुति के लिए साधुवाद
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आशुतोष जी
हटाएंवाह, बहुत खूब.....मैने भीमबेटका के शैल चित्रों के अलावा उत्तराखंड में एक जगह गुफा में बने शैल चित्रो को देखा है, इन्हें देख कर एक अजब का आनंद आता है कि हजारों साल पुरातन कुछ तो बचा है जिसे हम अपनी आँखों से साक्षात देख पा रहे हैं।
जवाब देंहटाएंअत्यंत आभार विकास जी, इन चित्रों को अनुभव करना बिल्कुल टाइम ट्रेवल करने जैसा होता है ।
हटाएंHyena In Hindi
जवाब देंहटाएंलकड़बग्घा की रोचक तथ्य
बहुत ही सुंदर लेखन भैया,
जवाब देंहटाएंबहुत ही सटीक गोता लगाया है कल्पनाओं के सागर में।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबिजली बिल कैसे चेक करें
जवाब देंहटाएंअद्भुत।
जवाब देंहटाएंआपने बहुत ही रोचक ढंग से विवरण किया ।
शैलचित्र बहुत ही सुन्दर है । आपने सही कहा कि इनको देखना टाइम ट्रैवल के समान ही है।
Meter Number Se Bijli Bill Check Kaise Kare?
जवाब देंहटाएंGoogle Se Baat Kaise Kare
जवाब देंहटाएंPhoto Ka Size Kaise Kam Kare
जवाब देंहटाएंDate Of Birth Se Age Kaise Nikale
जवाब देंहटाएंVideo Instagram Download
जवाब देंहटाएं