काफिले गुजरते रहे, मैं खड़ा रहा बनके मील का पत्थर
मंजिल कितनी दूर है, बताता रहा उन्हें जो थे राही-ऐ-सफर
आते थे मुसिर, जाते थे मुसाफिर , हर किसी पे थी मेरी नज़र
गर्मी,बरसात,और ठण्ड आए गए , पर मैं था बेअसर
हर भूले भटके को मैंने बताया , कहाँ है तेरी डगर
थके थे जो, कहा मैंने -मंजिल बाकि है,थामो जिगर
चलते रहो हरदम तुम, गुजर गये न जाने कितने लश्कर
मुसाफिर हो तुम जिन्दगी में, न सोचना यहाँ बनाने की घर
दिन गुजरना है, सबको यहाँ , नही है कोई अमर
गर रुक गए तो रुक जायगी जिन्दगी, चलते रहो ढूंढ के हमसफ़र
एक ही मंजिल पर रह ख़त्म न होगी, ढूंढो मंजिले इधर उधर
रह काँटों की भी मिलेगी तुम्हे, आते रहेंगे तुम पर कहर
मुश्किलों से न डरना , क्योंकि मिलेगा अमृत के पहले ज़हर
काफिले गुजरते रहे , मैं खड़ा रहा बनके.........मील का पत्थर
आपका अपना ही स्नेहिल
मुकेश पाण्डेय "chandan"
विचारों की रेल चल रही .........चन्दन की महक के साथ ,अभिव्यक्ति का सफ़र जारी है . क्या आप मेरे हमसफ़र बनेगे ?
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orchha gatha
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wakai aap meel ke patthar nazar aa rahe hai.
जवाब देंहटाएंगर रुक गए तो रुक जायगी जिन्दगी, चलते रहो ढूंढ के हमसफ़र
जवाब देंहटाएंएक ही मंजिल पर रह ख़त्म न होगी, ढूंढो मंजिले इधर उधर
रह काँटों की भी मिलेगी तुम्हे, आते रहेंगे तुम पर कहर
मुश्किलों से न डरना , क्योंकि मिलेगा अमृत के पहले ज़हर
ववाह...वाह... बहुत गहरी बात कह दी आपने .....लाजवाब .....!!