नमस्कार दोस्तों, अपने जवाहर सिंह झल्लू जी इस बार मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर हरिद्वार में लगे महाकुम्भ पहुच गये। अब जब झल्लू जी जहाँ हो वहां कोई अनोखी बात न हो ऐसा हो ही नही सकता है ! पहली बात अपने झल्लू जी ही अनोखे है ! अब झल्लू जी हरिद्वार में जैसे ही गंगा के किनारे कपडे उतार कर नहाने के लिए घुसे तो पानी ठंडा था। किसी तरह हिम्मत बांध कर झल्लू जी आख़िरकार जल में घुस ही गये । अब जब घुस गये तो डुबकी भी लगा ली। जब झल्लू जी डुबकी लगा के बहार आये तो , गजब हो गया ! भई , कोई महँ पापी जो अपने पाप धोने हरिद्वार कुम्भ में आया होगा , मगर अपनी आदत छोड़ नही पाया और झल्लू जी के कपडे मार ले गया ।
अब झल्लू जी लंगोट पर सर्दी में ठिठुरते खड़े ! समझ में नही आ रहा की क्या करे ? जब ठण्ड ज्यादा लगने लगी तो पोलिस थाने की और जोर से दौड़ लगा दी । मगर झल्लू जी की परेशानी यहीं ख़त्म नही हुई , उनके के पीछे एक आदमी भी दौड़ लगाने लगा ! झल्लू जी अब और परेशां की एक तो नंगे बदन ठण्ड में कुल्फी हो रहे थे , ऊपर से ये मुया पीछे पड़ गया । अब झल्लू जी आगे बड़ी तेजी से अपनी पूरी दम लगा के भागे ................ वह आदमी भी उतनी ही तेजी भगा । झल्लू जी की जान अटकी की अब क्या करे ?!
जब झल्लू जी पुलिस थाने के नजदीक पहुचे तो सोचा अब रुक के देख लिया जाये , आखिर ये इंसान क्यों मेरे पेछ्हे भाग रहा है । झल्लू जी रुके , सांस ली । इतने में वो आदमी भी पहुच गया , बोला - महराज जी आप की भेष भूओषा देख कर लग रहा है, की आप बहुत पहुचे हुए संत है । आप ही मेरा कल्याण कर सकते है । झल्लू जी की जान में जान आई और बोले- पैर छोडो , मैं कोई संत वन्त नही हूँ । मैं तो पुलिस थाने जा रहा हूँ , मेरा कोई वस्त्र हरण कर ले गया । भई मुझे माफ़ करो ।
विचारों की रेल चल रही .........चन्दन की महक के साथ ,अभिव्यक्ति का सफ़र जारी है . क्या आप मेरे हमसफ़र बनेगे ?
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orchha gatha
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