बुधवार, 12 जनवरी 2011

स्वामी विवेकानंद कुछ जाने कुछ अनजानेसे .... युवादिवस की शुभ कामनाएं . फिर हाजिर हूँ ..... एक नए जोश धमाके के साथ !!

नमस्कार मित्रो,
सभी ब्लोगर्स भाई-बहनों , माताओ, चाचाओ, चाचियों , मामियों , मामाओं आदि सभी पढने वालो को देर से ही सही नव वर्ष की शुभकामनाये । इतने दिन तक गायब रहने के लिए क्षमा चाहता हूँ। वजह सिर्फ इतनी सी है की पिछले दिनों मैं मध्य प्रदेश राज्य लोक सेवा आयोग की मुख्य परीक्षा में व्यस्त रहा ।
मित्रो आज स्वामी विवेकानंद जी की जन्म तिथि को सारे देश में युवा दिवस के रूप में मनाया जा रहा हूँ तो सोचा क्यूँ न उनके जीवन के कुछ जाने अनजाने पहलूओ की चर्चा की जाये ........
स्वामी जी को आज हम विवेकानंद के नाम से जानते है , लेकिन सन्यासी होने के बाद स्वामी जी ने अपने बचपन के नाम नरेन्द्र नाथ दत्त को त्यागकर अपना नाम स्वामी विविदिशानंद रखा था । लेकिन जब विश्व धर्म संसद में भाग लेने के पहले जब खेतड़ी महराज ने स्वाजी से कहा की - स्वामीजी आपका यह नाम थोडा कठिन है , अतः आप कोई सरल सा नाम रखे तो लोगो को आसानी होगी । स्वामीजी ने खेतड़ी महराज की बात मानकर अपना नाम विवेक आनंद अर्थात विवेकानंद कर लिया । और ११ सितम्बर १८९३ को शिकागो में साडी दुनिया ने भारत के इस सन्यासी को सनातन धर्म की श्रेष्ठता पर दहाड़ते सुना ।
स्वामी जी चाहते थे कि युवा पहले स्वयं का विकास करे , तभी तो वो देश का विकास कर सकेंगे । स्वामीजी भारत को अनंत संभावनाओं वाला एक सर्वश्रेष्ठ देश मानते थे । उनका मानना था कि भारतीय युवा ही देश को स्वतंत्र कर सकते है । परन्तु स्वामीजी आत्मविकास पर भी बल देते थे।
एक बार स्वामी जी बनारस में बाबा विश्वनाथ के दर्शन से लौट रहे थे , उनके हाथो में प्रसाद कि थैली थी जिसे देख कुछ बन्दर उनकी और लपके .... स्वाजी ने दौड़ लगा दी ..बन्दर भी उनके पीछे भागे ...तभी एक दुकान वाले ने आवाज़ लगी "भागो मत सामना करो " स्वाजी जी रुके ..रुक कर पीछे देखा तो बन्दर उलटे पांव भाग गये । स्वाजी जी ने इस बात को गाँठ बाँध लिया । और अपने जीवन में कभी परेशानियों से भागे नहीं बल्कि उनका रुक कर सामना किया और विजय हासिल की ।
स्वामी जी के जीवन के बहुत सारे किस्से है जिन्हें हम अपने जीवन में उतार सकते है ........
एक बार स्वामी जी कलकत्ता में ठहरे हुए थे , वे रोज सुवह नित्य कि भांति प्रातः भ्रमण पर जाते थे , उसी रस्ते से गवर्नर जनरल भी मोर्निंग वाक को जाता था । गवर्नर जनरल ने स्वामी जी के बारे सुना था , इसलिए वो स्वामी जी कि परीक्षा लेना चाहता था। एक दिन उसने रस्ते कि एक दीवार पर लिखा ' वेयर इज गोड' स्वामी जी ने वेयर कि स्पेलिंग में से डव्लू हटा दिया । अब दीवार पर लिखा था ' हीयर इज गोड "

1 टिप्पणी:

  1. आपको भी नव वर्ष की बहुत-बहुत बधाई । एक फिर से स्वागत है आपका ।

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ab apki baari hai, kuchh kahne ki ...

orchha gatha

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