न जाने क्यूँ वो मुझसे रूठ गये
एक पल में ही सरे रिश्ते नाते टूट गये
क्या खता की थी हमने, जो हमको ये सिला मिला
क्या ज़रा सी आह भरने पर, हमको ये जलजला मिला
उनको हमारी छोटी सी गलती पर, जरा भी रहम न आया
बड़े जालिम निकले वो, जो हमपे इतना सितम ढाया
उनके साथ ही , उनकी यादें , बातें , सारे कारवां पीछे छूट गये
न जाने क्यूँ वो मुझसे रूठ गये
निगाहें जब हम उनसे मिलते है वो अपना चेहरा मोड़ लेते है अब
हमने भी देखना बंद कर दिया , हम भी दूर से हाथ जोड़ लेते है अब
हमसे रुखसत जो वो होंगे, तभी नज़रे मिलायेंगे हम
गर जालिम है वो , तो हम भी कर सकते है जुलम
सपने निकले कच्ची मिटटी के , जो झट से टूट गये
न जाने क्यूँ वो मुझसे रूठ गये
विचारों की रेल चल रही .........चन्दन की महक के साथ ,अभिव्यक्ति का सफ़र जारी है . क्या आप मेरे हमसफ़र बनेगे ?
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orchha gatha
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क्या बात है पाण्डेय जी लाजवाब लिखा है आपने ।पढके लगा कि जैसे जख्म अभी ताजे हैँ ।
जवाब देंहटाएंmithilesh ji , ye mere jakhm nhi hai , balki ye maine apne dost ke liye likhi thi , apni life to mast hai .
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