नमस्कार मित्रो ,
बहुत दिनों बाद मैं आज ब्लॉग लिखने बैठा हूँ . कुछ दिन सोचा इन्टरनेट की दुनिया से दूर होकर साहित्य की दुनिया की सैर की जाये . इस लिए मैं पिछले हफ्ते हिंदी साहित्य का व्यंग्य का सर्वश्रेष्ठ और कालजयी उपन्यास " राग दरवारी " पढने में व्यस्त था . सच पूछो तो श्रीलाल शुक्ल जी का लिखित उपन्यास हर भारतीय को पढना चाहिए . इस उपन्यास में शुक्ल जी ने एक कसबे 'शिवपालगंज ' और उसके निवासियों ( जिन्हें उपन्यास में गंजहा कहा गया है ) के बहाने भारतीय संस्कृति और मानसिकता पर करारा व्यंग्य किया है . जैसे :- " वर्तमान शिक्षा पद्धति रास्ते में पड़ी हुई कुतिया है , जिसे कोई भी लात मार सकता है . "
शुक्ल जी ने शिवपालगंज कसबे के बहाने देश की लगभग हर समस्या को जोरदार तरीके से उठाते है . यही कारण है, कि 1960 के दशक में लिखा गया ये उपन्यास आज भी प्रासंगिक है. शुक्ल जी जिस सरल भाषा शैली में अपनी बात रखते है ,वह लाजवाब है ! उदहारण के लिए " इस देश के निवासी परंपरा से कवि है , चीज को समझने से पहले वे उस पर मुग्ध होकर कविता कहते है . भाखड़ा नांगल बांध को देखकर वे कह सकते है 'अहा ! अपना चमत्कार दिखाने के लिए , देखो प्रभु ने फिर से भारतभूमि को चुना . '
मेरे अभी तक पढ़े गए साहित्य में निश्चय ही 'राग दरवारी ' सर्वश्रेष्ट है . राग दरवारी के पात्र वैद्य जी , रंगनाथ , रुप्पन बाबु , बद्री पहलवान , प्रिंसपल साहब , खन्ना मास्टर , सनीचर , लंग्गड़ और अन्य पात्र हमारे आस-पास के ही लगते है . और उपन्यास को पढ़ते समय हम भी उन्ही में शामिल हो जाते है . लगता है शुक्ल जी हमारी ही कहानी कह रहे है . आज भी ग्रामीण भारत 'राग दरवारी ' के शिवपाल गंज कि तरह है . आज देश के लोग वैद्य जी तरह देश को अच्छाई का मुखौटा पहन कर लूट रहे है , आज भी प्रिंसिपल साहब जैसे चापलूस देश की व्यवस्था को चूस रहे है . आज भी सत्ता का विरोध करने वालों को खन्ना मास्टर की तरह परेशान किया जा रहा है . आज भी लंग्गड़ जैसे कई ईमानदार लोग अपनी जमीन की नक़ल लेने के लिए तहसीली का चक्कर काट रहे है. आज भी बद्री पहलवान जैसे गुंडे सत्ता के उत्तराधिकारी बन रहे है . आज भी गयादीन जैसे सीधे-सादे लोग अपनी बेटी की इज्जत बचाने के लिए पलायन कर रहे है . आज भी सनीचर जैसे लोग सत्ता की कठपुतली बन कर दुसरो की उंगलियों पर नाच रहे है . आज भी देश के लोग भंग और गांजे के नशे में धूत्त होकर मतदान कर रहे है , आज भी रुप्पन बाबु और रंगनाथ जैसे पढ़े लिखे हम जैसे लोग शुरूआती विरोध का भ्रम रच कर बाद में उसी सड़ी हुई व्यवस्था का अंग बनने को बेबस है !!!
स्वर्गीय श्रीलाल शुक्ल जी को नमन !
इन्टरनेट प्रेमियों के लिए खुशखबरी ' राग दरबारी ' जो कि राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित है , अब ऑनलाइन भी उपलब्ध है .
बहुत दिनों बाद मैं आज ब्लॉग लिखने बैठा हूँ . कुछ दिन सोचा इन्टरनेट की दुनिया से दूर होकर साहित्य की दुनिया की सैर की जाये . इस लिए मैं पिछले हफ्ते हिंदी साहित्य का व्यंग्य का सर्वश्रेष्ठ और कालजयी उपन्यास " राग दरवारी " पढने में व्यस्त था . सच पूछो तो श्रीलाल शुक्ल जी का लिखित उपन्यास हर भारतीय को पढना चाहिए . इस उपन्यास में शुक्ल जी ने एक कसबे 'शिवपालगंज ' और उसके निवासियों ( जिन्हें उपन्यास में गंजहा कहा गया है ) के बहाने भारतीय संस्कृति और मानसिकता पर करारा व्यंग्य किया है . जैसे :- " वर्तमान शिक्षा पद्धति रास्ते में पड़ी हुई कुतिया है , जिसे कोई भी लात मार सकता है . "
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स्व० श्रीलाल शुक्ल जी |
मेरे अभी तक पढ़े गए साहित्य में निश्चय ही 'राग दरवारी ' सर्वश्रेष्ट है . राग दरवारी के पात्र वैद्य जी , रंगनाथ , रुप्पन बाबु , बद्री पहलवान , प्रिंसपल साहब , खन्ना मास्टर , सनीचर , लंग्गड़ और अन्य पात्र हमारे आस-पास के ही लगते है . और उपन्यास को पढ़ते समय हम भी उन्ही में शामिल हो जाते है . लगता है शुक्ल जी हमारी ही कहानी कह रहे है . आज भी ग्रामीण भारत 'राग दरवारी ' के शिवपाल गंज कि तरह है . आज देश के लोग वैद्य जी तरह देश को अच्छाई का मुखौटा पहन कर लूट रहे है , आज भी प्रिंसिपल साहब जैसे चापलूस देश की व्यवस्था को चूस रहे है . आज भी सत्ता का विरोध करने वालों को खन्ना मास्टर की तरह परेशान किया जा रहा है . आज भी लंग्गड़ जैसे कई ईमानदार लोग अपनी जमीन की नक़ल लेने के लिए तहसीली का चक्कर काट रहे है. आज भी बद्री पहलवान जैसे गुंडे सत्ता के उत्तराधिकारी बन रहे है . आज भी गयादीन जैसे सीधे-सादे लोग अपनी बेटी की इज्जत बचाने के लिए पलायन कर रहे है . आज भी सनीचर जैसे लोग सत्ता की कठपुतली बन कर दुसरो की उंगलियों पर नाच रहे है . आज भी देश के लोग भंग और गांजे के नशे में धूत्त होकर मतदान कर रहे है , आज भी रुप्पन बाबु और रंगनाथ जैसे पढ़े लिखे हम जैसे लोग शुरूआती विरोध का भ्रम रच कर बाद में उसी सड़ी हुई व्यवस्था का अंग बनने को बेबस है !!!
स्वर्गीय श्रीलाल शुक्ल जी को नमन !
इन्टरनेट प्रेमियों के लिए खुशखबरी ' राग दरबारी ' जो कि राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित है , अब ऑनलाइन भी उपलब्ध है .