तब बारिश हो रही थी , था शायद सावन का महिना
जब भीगता देख मुझे , मुस्कुराई थी एक हसीना
उसकी मुस्कराहट , दिल में हलचल मचा गई
एक पल में ही न जाने , कितने सपने सजा गई
पास आते उसके कदमो ने , दिल में उमंग जगाई
मन ख़ुशी से झूमा , मनो उसके कदमों में दुनिया समाई
कदम-दर-कदम दिल की धड़कन तेज हो रही थी
आँखे उसकी कुछ उम्मीदों का बीज बो रही थी
होंठ मानो उसके कुछ कहने को थे बेताब
इधर हम जागी आँखों से देख रहे थे ख्वाब
जिन्दगी भीगते-भागते कर गयी मजाक
पर कैसे मानू की ये हकीकत थी या इत्तफाक
उसकी छुअन से तन में एक बिजली समाई
हाथ में राखी लिए बोली , आज रक्षाबंधन है मेरे भाई !!!!
:-)
जवाब देंहटाएंफिर मिलेगी...कोई और...किसी और एहसास के साथ...
अनु
अनु जी , शुक्रिया ! मैं भी इन्तजार में हूँ
हटाएंहाथ में राखी लिए बोली,आज रक्षाबंधन है मेरे भाई,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST ...: रक्षा का बंधन,,,,
मेरी संवेदनाएँ आपके साथ है. इस दुर्घटना के लिये.
जवाब देंहटाएंरचना जी , इसे दुर्घटना नही इत्तफाक कहिये
हटाएंफंस गए आप ... चलिए कोई बात नहीं ...
जवाब देंहटाएंदिगंबर जी , फंसने के बाद ही तो निकलने के रास्ते मिलते है !
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