बहुत पहले गणेश चतुर्थी के समय ये कविता लिखी थी , आज आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ .
गणेश चतुर्थी के पहले लोग पंडाल सजा रहे थे
लेकिन धार्मिक की जगह , फ़िल्मी गीत बजा रहे थे
बंगले के पीछे कांटा लगा, बुद्धि विनायक सुन रहे थे
मानो काँटों से बचने के लिए , जाल कोई बुन रहे थे
बेरी के नीचे लगा हुआ था, काँटों का अम्बार
लहूलुहान से गजानन , होके बेबस और लाचार
सोच रहे थे कब अनंत चतुर्दशी आएगी
जाने कब इन बेरी के काँटों से मुक्ति मिल पायेगी
मुश्किल हो गया , इस लोक में शांति का ठिकाना
नाक में दम कर दिया ,और कहते अगले बरस जल्दी आना
मैं इसी बरस जल्दी जाने की सोच रहा हूँ
अपने फ़िल्मी भक्तों के लिए , अपने आंसू पोछ रहा हूँ
मुझसे भी बढ़कर है , इनके लिए फिल्मे और फ़िल्मी संसार
फिर गणेशोत्सव क्यों मानते , करते क्यों मुझ पर उपकार ?
- मुकेश पाण्डेय 'चन्दन '
गणेश चतुर्थी और पर्युषण पर्व की शुभकामनाएं
गणेश चतुर्थी के पहले लोग पंडाल सजा रहे थे
लेकिन धार्मिक की जगह , फ़िल्मी गीत बजा रहे थे
बंगले के पीछे कांटा लगा, बुद्धि विनायक सुन रहे थे
मानो काँटों से बचने के लिए , जाल कोई बुन रहे थे
बेरी के नीचे लगा हुआ था, काँटों का अम्बार
लहूलुहान से गजानन , होके बेबस और लाचार
सोच रहे थे कब अनंत चतुर्दशी आएगी
जाने कब इन बेरी के काँटों से मुक्ति मिल पायेगी
मुश्किल हो गया , इस लोक में शांति का ठिकाना
नाक में दम कर दिया ,और कहते अगले बरस जल्दी आना
मैं इसी बरस जल्दी जाने की सोच रहा हूँ
अपने फ़िल्मी भक्तों के लिए , अपने आंसू पोछ रहा हूँ
मुझसे भी बढ़कर है , इनके लिए फिल्मे और फ़िल्मी संसार
फिर गणेशोत्सव क्यों मानते , करते क्यों मुझ पर उपकार ?
- मुकेश पाण्डेय 'चन्दन '
गणेश चतुर्थी और पर्युषण पर्व की शुभकामनाएं
बढ़िया कटाक्ष....
जवाब देंहटाएंझांकी के नाम पर उत्पात ही करते हैं...
आपको भी शुभकामनाएं.
अनु
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंगणेशचतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएँ!
वाह ...बहुत करारा व्यंग्य
जवाब देंहटाएंवाह भई मुकेश जी
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति "कांटा लगा'
जवाब देंहटाएंआभार अनिल जी
हटाएंआभार अनिल जी
हटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति "कांटा लगा'
जवाब देंहटाएंयथार्थ सत्य।
जवाब देंहटाएंभयंकर ध्वनि प्रदूषण हो रहा है, भक्ति के नाम पर।
यथार्थ सत्य।
जवाब देंहटाएंभयंकर ध्वनि प्रदूषण हो रहा है, भक्ति के नाम पर।
विघ्न विनाशक खुद आपदा ग्रस्त, बिचारे!
जवाब देंहटाएंजी आजकल भक्ति भी आधुनिकता की शिकार हो गयी है। जो भगवान को भी पसन्द नही आती
जवाब देंहटाएंजी आजकल भक्ति भी आधुनिकता की शिकार हो गयी है। जो भगवान को भी पसन्द नही आती
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