शुक्रवार, 22 नवंबर 2013

जिन्द्गी न जाने , क्यूँ खफा हो गयी है ...

 जिन्द्गी  न जाने , क्यूँ खफा हो गयी है

हैतन्हाई के आलम में , ख़ुशी बेवफा हो गयी है 

जो लिखे मोहब्बत के तराने , आज हुए बेगाने
दिल में बसी तेरी खुशबु , जाने कहाँ दफा हो गयी है


सोचा था , एक दिन पूरी होगी मोहब्बत की किताब
अफ़सोस , बचे कुछ पन्ने, कुछ फलसफा हो गयी 

जेहन में बची यादें, दिल भी वीरान हुआ 
दफन हो सब बातें , जिंदगी भी सफा हो गयी 

महक न रह गयी बाकि, चली ऐसी आंधियां 
वीरान 'चन्दन' के दरख्त , अब ऐसी फ़िज़ा हो गयी है . 
- मुकेश पाण्डेय 'चन्दन'

15 टिप्‍पणियां:

  1. अति सुन्दर..अति सुन्दर..क्या प्रबल भाव है.. बस अति सुन्दर..

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  2. इस खुशी को अपने आस पास ढूंढना होता है .. मिल जाती है ...

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    1. शुक्रिया दिगंबर जी , इसी तरह स्नेह बनाए रखे. सच कहा आपने ...लेकिन कभी- कभी ढूंढने पर भी ख़ुशी नही मिल पाती है. वैसे मेरी कोशिश यही होती है .

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  3. शुक्रिया शास्त्री जी , इसी तरह स्नेह बनाए रखे

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  4. शुक्रिया हर्षवर्धन जी , इसी तरह स्नेह बनाए रखे

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  5. jmane ke sawalo ko main hanske tal jata hu, nami aankho ki kehti h mujhe tum yaad aate ho.

    जवाब देंहटाएं
  6. सुन्दर एहसासों से लबरेज ..
    सोचा था , एक दिन पूरी होगी मोहब्बत की किताब
    अफ़सोस , बचे कुछ पन्ने, कुछ फलसफा हो गयी
    खुबसूरत पंक्तियाँ ..बधाई

    जवाब देंहटाएं

ab apki baari hai, kuchh kahne ki ...

orchha gatha

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