शुक्रवार, 6 जनवरी 2017

ओरछा महामिलन : पूर्व गाथा 2

राम राम मित्रों,
अभी तक आप ने  ओरछा महामिलन की पूर्व गाथा को न केवल पढ़ा बल्कि पुरस्कार स्वरुप  प्रोत्साहन वाली टिप्पणियां भी की , जिसमे अगले भाग को जल्द ही पढ़ने की इच्छा व्यक्त की गयी।  आपके इसी प्रेम और  इच्छा  का सम्मान करते हुए अपने व्यस्त समय में से कुछ पल चुरा कर  ओरछा महामिलन के  यादों के सागर में पुनः डुबकी लगाकर कुछ लम्हों  के मोती शब्दों की माला में पिरोकर आपके सामने लाया हूँ।   जैसा कि आपने अभी तक पढ़ा  था , कि  कैसे इस महामिलन की पृष्ठभूमि तैयार हुई।  घुमक्कड़ी दिल से की विशेष टीम अपने ख्वाबों की जमीन को हकीकत बनाने के लिए दिन-रात लगी हुई थी।  इस महामिलन समान पुष्प वाटिका का माली मुझे बनाया गया , और मैंने इसका मालिकाना हक़ ओरछाधीश भगवान  रामराजा को सौपकर अपने कर्तव्य में लग गया। 
             अब जैसे-जैसे  आयोजन के दिन नजदीक आते जा रहे थे , दिल की धड़कने तेज होती आ रही थी।  कभी अपने घर में भी कोई पारिवारिक आयोजन की जिम्मेदारी न सम्हालने वाले मुझ जैसे व्यक्ति को इतनी बड़ी जिम्मेदारी दे दी गयी थी।  खैर जब सर ओखली में दे ही दिया था, तो अब मूसल से क्या डरना ? मैंने आयोजन के लिए अपने से जुड़े पंकज राय , प्रदीप राजपूत , जय कोली और जगदीश बाथम को साथ लेकर एक टीम बनाई इसमें बाद में कैलाश यादव और देवेंद्र रजक  को भी जोड़ा।  इस टीम में सबको अलग-अलग काम सौंपे और उनकी जिम्मेदारी भी दी।  इससे मेरी धड़कनों को भी सुस्ताने का मौका मिला।
                                                                                                     अब बकरे की अम्मा भी कब तक खैर मनाती।  23 दिसंबर को भदौही (उत्तर प्रदेश ) जिले के  रहने वाले युवा घुमक्कड़ जो इलाहबाद से सिविल सर्विस की भी तैयारी भी कर रहे है।  सुबह-सुबह ही कॉल किये कि वो बुंदेलखंड एक्सप्रेस से आ रहे है।  अब विडम्बना ये कि बुंदेलखंड एक्सप्रेस ओरछा से गुजरती तो है, पर ठहरती नही।  वैसे ओरछा भले ही पर्यटन के मामले में कितना धनी हो , परंतु रेलवे विभाग की नजर में बस एक छोटा सा स्टेशन है , जहाँ एक्सप्रेस या मेल ट्रैन तभी रूकती है,  जब उन्हें आगे के लिए सिग्नल न मिले।  अगर रेलवे विभाग ओरछा के मामले में अपना ये मोतियाबिंद ठीक करले तो उसके राजस्व में तो बढ़ोत्तरी तो होगी ही , साथ ही ओरछा आने वालों  का भी भला हो जायेगा।  मैं दावे से कहता हूँ , कि ओरछा आने वालों की दुआओं के असर से घाटे  में चल रहे रेलवे विभाग को फायदा जरूर होगा।  वैसे भी वर्तमान केंद्रीय सरकार और राजाराम का पुराना  नाता है।  लो रेलवे के चक्कर में रेलयात्राओं से घबराने वाले अपने सूरज बाबू को तो  भूल ही गए।  खैर मेरे बताये अनुसार मिसिर जी झाँसी स्टेशन से ऑटो से ओरछा मेरे घर आ ही गए।  अब सूरज बाबू को घर पर ही चाय नाश्ता ( पोहा ) करवाने के बाद नहाने की बात हुई , तो पर्व-त्यौहार पर नहाने वाले मिसिर जी कुछ अनमने से लगे।  फिर मुझ जैसे कौवा स्नान करने वाले पराक्रमी द्वारा बेतवा स्न्नान महत्त्व बताने पर भी छोरा गंगा किनारे का  पिघला नही तो जबरन ही अपनी कार में बिठाकर बेतवा तट ( मेरे घर के पास ही होटल बुंदेलखंड रिवर साइड के पीछे का घाट , जहाँ भीड़ न के बराबर होती है।  ) लेकर गए।  अब दो बाभन नदी तेरे ठन्डे पानी से डरते डरते आखिरकार डुबकी लगा बैठे।  बेतवा का साफ़ और स्वच्छ पानी देखकर सूरज बाबू  बड़े खुश हुए।  अब गंगा किनारे रहने वालों को इतने साफ़ नदी जल को देखने की आदत नही है न ! जब सूरज बाबू से एक दिन पहले आने का उद्देश्य पूछा तो कुछ और ही कहानी पता चली।  जबकि ग्रुप वाले ये सोच कर बड़े खुश थे, कि सूरज मिसिर जी मुझे मदद करने पहले ही पहुँच गए है।  दरअसल सूरज बाबू घर से ये सोचकर रेलगाड़ी में बैठे थे, कि रास्ते में उतरकर एक दिन  विश्व धरोहर खजुराहो के महान स्थापत्य वाले मंदिरों को देखने में बिताएंगे , पर हाय री ! किस्मत टेशन निकलने के बाद निंदिया रानी विदा हुई , तब तक ओरछा ही आने वाला था।  बेतवा में डुबकी लगाने के बाद पेट पूजा की बारी।  वैसे भी पानी सूखा और बाभन भूखा।  तो पास ही बने ओरछा महराज मधुकर शाह द्वितीय के बने शानदार होटल बुंदेलखंड रिवरसाइड की सैर करने के बाद हम दोनों भूखे बाभन (दोनो पुरबिया ) अंग्रेजी इश्टाइल में जमकर जीमे।  इसके बाद घर आकर आराम किया।  ( अब खाने के आराम भी तो जरुरी है।  )  शाम को सूरज बाबू को अपनी कार से ओरछा की एक झलक दिखाई और खुद आयोजन की अंतिम तैयारी का जायजा लिया। नदी किनारे जब छतरियों के बगल से जब कंचना घाट पहुंचे तो वहां पैडल वोट तैर रही थी।  तो हम भी नौकायन का मजा लेने पहुँच गए। सूरज बाबु को रामराजा सरकार के दर्शन करवाये। अपनी भदोही मुलाकात में मैंने सूरज बाबू  को अपनी पाककला विशेज्ञता के बारे में बताया था, तो आज मौका मिलते ही सूरज बाबू भी अपनी पाककला प्रदर्शन को उतावले हो गए।  और उनकी जिद के आगे झुककर मटर पनीर की सामग्री खरीद कर श्रीमती जी को सूचित कर दिया गया।  अब घर पहुंचकर सूरज बाबू  ने किचन की  कमान संभाली और कमाल कर दिया।
                                           व्हाट्स एप्प ग्रुप घुमक्कड़ी दिल से में लोगों के आगमन की अपडेट्स लगातार मिल रहे थे।  तभी हरेंद्र धर्रा जी जो  हसनगढ़ , रोहतक हरियाणा के रहने वाले है , उनकी अपडेट्स आयी कि वो खजुराहो भ्रमण के बाद वापिस झाँसी की ओर अपनी रेलगाड़ी से बढ़ रहे है।  मैंने उनकी वर्तमान स्थिति जानने को कॉल किया , तो उन्होंने बताया कि रात  11  बजे पहुँचने की बात कही।  जब मैंने उन्हें अपनी कार से ले आने की बात कही तो उन्होंने सचिन जांगड़ा जी ( जो झाँसी लगभग रात्रि 2 बजे पहुँचने वाले थे ) के साथ आने की बात कहकर कॉल काट दिया।  और इधर मेरी नींद गायब हो चुकी थी .... क्रमशः 
बेतवा में सूरज को डुबकी लगवाने ले जाते हुए 

होटल बुंदेलखंड रिवरसाइड में पेट पूजा करते हुए 

मेरी कार और सूरज बाबू 
कंचना घाट में नौकायन का मजा लेते हुए 

रामराजा के दर्शन के बाद 

अपनी पाककला की तारीफ सुनते हुए  सूरज बाबू 

35 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया पोस्ट चन्दन जी ... विवरण अच्छा लगा. |

    आपके ब्लॉग में लगे चित्रों में कुछ गडबड है मतलब खिचे खिचे से लग है .... साइज में ही कुछ गडबड है | मोबाईल पर तो सही नजर आते है पर पी सी पर नहीं...

    अगले लेख की प्रतीक्षा में

    धन्यवाद

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    1. आपकी बात सही है । पर गड़बड़ मुझे भी समझ नही आई कि ये कैसे हुआ ? इसे कैसे दूर किया जाये ?
      आभार

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  2. बहुत सुन्दर लिखा है,एक एक शब्द मोतियों की तरह माला में पिरोया है।ओरछा ..राम राजा की कृपा से आज सब के दिलों की धड़कन बन चुका है।आपका प्रयास सराहनीय है।राम राजा की ही कृपा है जो उन्होंने आपको प्रतिनिधि बनाकर भेजा।जय राजा राम की🙏 🙏

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    1. बिन हरि कृपा मिले नही संता !
      धन्य भाग हमारे जो प्रभु ने हमे माध्यम बनाया ।
      जय रामराजा सरकार

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  3. तो ये बात है!!! मियां सूरज, (okay, okay, मियां नहीं, सूरज और मुकेश बाम्हनद्वय) के नहाने से बेतवा के पानी में जो उबाल आ गया था, उसकी असली वज़ह अब समझ पाया हूं। दर असल, अपनी सीमित श्रवण क्षमता के चलते मैं ग्रुप में रहने के बावजूद काफी सारी जिन बातों को ’मिस’ कर जाता हूं, वह मुझे एक-एक करके ब-जरिया ब्लॉग पढ़ने को मिल रही हैं!

    मुकेश पाण्डेय जी, आपकी सशक्त लेखनी का तो अब परिचय पा ही चुका हूं और इस परिचय को निरंतर और प्रगाढ़ करते रहने की इच्छा से इस ब्लॉग से निरंतर संपर्क बनाये हुए हूं। आशा है, अगले भाग लेकर भी शीघ्र ही उपस्थित होंगे क्योंकि ये कहानी कुछ जल्दी ही खत्म हो गयी। फोटो की चौड़ाई वास्तव में कुछ कम हो रही है। ऐसा लग रहा है कि फोटो की तुलना में कॉलम की चौड़ाई कम पड़ गयी। मेरे जैसा लम्बा आदमी जब ट्रेन में साइड की छोटी बर्थ पर लेटता है तो पैर सिकोड़ने पड़ते हैं, कुछ कुछ ऐसा ही मामला लग रहा है। :-)

    जहां तक ओरछा में मेल और एक्सप्रेस ट्रेन रुकवाने का संबंध है, उसका क्या फार्मूला है, वह बताता हूं! जैन धर्मावलंबियों ने जब मांग की थी कि उनके तीर्थ स्थल महावीर जी पर मेल व एक्सप्रेस ट्रेन रुकनी चाहियें तो रेलवे विभाग ने कहा था कि यदि तीन माह तक प्रति सप्ताह 10,000 से अधिक टिकट महावीर जी स्टेशन के लिये खरीदी जाएंगी और इतनी ही महावीर जी के टिकट काउंटर से बिकेंगी तो रेलवे स्टेशन को अपग्रेड कर दिया जायेगा। बस, जैन समाज को हुक्म कर दिया गया कि महावीर जी जाओ या ना जाओ, अपनी अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार महावीर जी के लिये टिकट खरीदो और फाड़ कर फेंकते रहो। अगल बगल के स्टेशन से लोगों ने १०० -१०० टिकट हर रोज़ खरीदीं और फाड़ कर फेंकते रहे। नतीज़ा? वहां फ्रंटियर मेल का भी हाल्ट मिल गया !

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    1. आदरणीय आपकी टिप्पणी मेरे लिये किसी पुरस्कार से कम नही है । फोटो मैंने अपने मोबाइल से खींची थी, शायद इसी कारण कुछ गड़बड़ हो सकती है । ट्रैन स्टॉपेज के लिए आपकी तरकीब ओरछा के लोगो को बताता हूँ । शायद काम कर जाये ।
      स्नेह बनाये रखियेगा ।

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  4. Mujhe to bas padhne me maja aa raha hai jaldi jaldi agla bhag likhte rahiye ,aapka lika hua padhne me maja aata hai

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  5. इस मिलन की शुरूआती पोस्ट बेहतरीन थी सो स्वाभाविक ही है कि अगली पोस्ट की भी प्रतीक्षा बैचेन करने की हद तक होना!
    दूसरी कड़ी की शुरुआत प्रथम से भी उत्तम है। पर आगे का सारा फ़ुटेज अपने मिसिर जी खा गए ! हम सब तो वाकई यह समझे थे कि आयोजन में हाथ बटाने ही वो एक दिन पहले आये हैं! यह राज़ तो आज खुला कि उनका जल्द आगमन तो महज़ दुर्घटना थी। खैर,jokes apart मिसिर जी एक अद्धभुत व्यक्तित्व के स्वामी है और सदा ही स्वयं में आनंदचित्त रहने वाले भी, भले ही परिस्थितियाँ कितनी ही प्रतिकूल ही क्यूँ न हों!बरसूडी में उनसे मुलाकात सदैव स्मरण रहेगी!
    उम्मीद है कि वो अवश्य ही आपकी अपेक्षाओं पर भी खरे उतरे होंगे!
    अपने पंडी जी के बारे में इतना इसलिए लिख गया कि आज की आपकी पोस्ट मुख्यतः उनको ही समर्पित है! बाकी उनका नहाने से जी चुराने वाला व्यक्तित्व का पहलू अभी तक अछूता ही था सभी से, जो आज आपके सौजन्य से सार्वजनिक हो गया है!
    मेहमानों की आमद शुरू हो चुकी है, इसलिए अब आगे की कड़ियाँ अवश्य ही और भी रोचक रहने वाली हैं!

    अभी तक की दो कड़ियों में प्रकाशित सामग्री उत्तम है.... सादर

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    1. मिसिर जी खाने में तो उस्ताद है । सो यहां भी फुटेज खा गए । आभार
      आपकी टिप्पणियां हमेशा ही प्रोत्साहित करती है ।

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  6. सनसनीखेज वृतांत और नयनाभिराम चित्र

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  7. आज बहुत से रहस्यो का उजागर हुआ । आगे भी ओरछा महामिलन के गूढ बात का बेसब्री से इतंजार है ।

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    1. अभी तो आगाज़ किया है , अंजाम तक देखिये क्या क्या होता है ।

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  8. मेरा बेहतरीन :) चरित्र चित्रण किया आपने, वैसे स्मरण करा दू की मैंने समूह में पहले ही कहा था कि मैं एक दिन पहले ही पहुच जाऊंगा हाथ बटाने को परंतु जब आपसे बात हुयी फोन पर तो मैं समझ गया था कि व्यवस्था में मेरी कोई आवश्यकता नहीं है फिर खजुराहो की योजना बनाई पर ना जा पाया ये श्री रामराज की कृपा ही थी जो आप से शिक्षा ग्रहण करने का अवसर मिल पाया :) _/\_ , न नहाने में मेरा भी छोटा मोटा विश्व रिकॉर्ड है लेह में लगातार 12 दिन नहीं नहाया था जिसमे 4 दिन मुह भी न धोया :) , स्नोफिल्स अधिक होने के कारण किसी और की अपेक्षा मुझे जुकाम और खाँसी जल्दी आती है इसी लिए न नहाना ज्यादा श्रेयष्कर समझता हूँ, ब्राह्मण पुत्रम सदा पवित्रम, बाकि जो है सो हइये है

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    1. सूरज मिसिर जी , अब बेनामी होकर टिपियाने की जरूरत नही । सब आपको पहचान गये है । रिकॉर्ड को लिम्का बुक में भिजवाने का प्रयास करता हूँ । लास्ट में हमारा डॉयलोग हमी को चेंप दिए !

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    2. ब्राह्मण पुत्रम् सदा पवित्रम् !
      बहुत खूब मिसीर जी !

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  9. बहुत बढ़िया....
    वही प्रवाह लेखनी का..वही " चन्दन" की खुशबु लेखन में..प्रिय सूरज का नया रूप देखने को मिला , बरसुड़ी में भी इसने सबको नहलाया पर खुद ना नहाया..अगले भाग की प्रतीक्षा में ।
    हाँ एक शब्द जोड़ने की प्रार्थना है लेख में (अब खाने के"बाद"आराम भी तो जरूरी है)

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    1. आभार डॉ साहब !
      सूरज को हमने तो रोज ओरछा में नहलाया ।

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  10. पाण्डेय जी दूसरी क़िस्त का वाकई बेसब्री से इंतज़ार था, पद्म शुरू किये तो पोस्ट कब खत्म हुई पता न चला।
    खैर, आपने टीम बढ़िया चुनी थी, सभी ने अपनी भूमिका बेहतर तरीके से निभायी। सभी अपने फन में माहिर। विशेष रूप से राजू चाट भंडार का वह छुटकू, बड़ी तेजी से अपना काम निपटाता है। इसी निपटने के चक्कर में उसने कइयों की आधी प्लेटें ही समेट ली।
    अगली कड़ी की प्रतीक्षा...

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  11. ओरछा के राजाराम जी की जय
    ओरछा महामिलन से पहले की बाते जानकर और पढ़कर अच्छा लग रहा है । किसी भी कार्यक्रम की सफलता के पीछे अपितु एक व्यक्ति का नहीं बल्कि पूरी टीम का हाथ होता है , जो नीव की ईट की तरह होती है । आज उन ईटो के बारे में जानकर अच्छा लगा ।तहे दिल से उनको धन्यवाद देना चाहता हु और खासकर यादव जी का जिनके साथ मैंने उतना ही समय बिताया जितना आप सभी मित्रो के साथ ।
    जो गंगा में न नहाया उन्हें बेतवा में नहला ही दिए आपने । अब तक छह महीने तक की छूटी हो गयी नहाने की ।
    ओरछा मिलन की आगे की बाते जानने की बाट जोहता
    आपका मित्र

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  12. Finally suraj babu galti se hi sahi kam se kam pahunch to gaye. Yadi unki nidiyan rani or door ja kar khulti to ghatna kuchh alag bhi ho sakti thi.is baat ki khushi hai ki kam se kam chhora ganga kinare vala betva me to naha hi gaya

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    1. हा हा , हर्षिता जी ।
      वैसे जिसको रामराजा ने बुला उसकी निंदिया रानी और कही कैसे खुल सकती थी ।

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  13. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (07-01-2017) को "पढ़ना-लिखना मजबूरी है" (चर्चा अंक-2577) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    नववर्ष 2017 की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'


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  14. तो ये पोस्ट पूर्णतः सूरज भाई के आगमन पर आधारित तथा उन्हीं को समर्पित थी। बहुत बढ़िया लेखन तथा सुन्दर चित्र। अगली पोस्ट का बेसब्री से इंतज़ार.....

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  15. आपने सजीव वर्णन कर दिया।ऐसा लगा मैं खुद तैयारीयां करा रहा हूं☺

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  16. सूरज तो हर शाम ही माँ बेतवा के आँचल में सर छुपा के सो ही जाता होगा और ये सूरज.......चलो पर्व त्यौहार भी नहा ले तो बहुत है ! बेहतरीन पोस्ट पांडेय जी

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  17. अब जाकर समझ में आया की सूरज बाबू पहले क्यों आ धमके थे... हा हा हा

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ab apki baari hai, kuchh kahne ki ...

orchha gatha

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