ओरछा के जहांगीर महल के पीछे सूर्योदय |
अधिकांश लोग सोशल मीडिया के माध्यमो ( फेसबुक, व्हाट्स एप्प , इंस्टाग्राम , ट्विट्टर आदि ) से हुई मित्रता को आभासी या नकली मानते है। उनका मानना होता है , कि इन माध्यमों से बने रिश्ते अंतरजाल से कभी भी वास्तविकता के धरातल पर नही आ पाते है। पर मेरा अनुभव कुछ अलग ही रहा। सोशल मीडिया से नाता ऑरकुट के जमाने से जुड़ा जो ब्लॉगिंग के सुनहरे दौर से होते हुए आज फेसबुक और व्हाट्स एप्प तक आ चुका है। फेसबुक में शुरू में अपने परिचितों, दोस्तों को जोड़ा फिर ब्लॉगिंग के दोस्तों से जानपहचान बढ़ी तो वो भी जुड़ते गए। ओरछा में पदस्थापना होने के बाद तो उनसे साक्षात्कार होने के अवसर आने लगे।
२०१४ में सबसे पहले मेरी मुलाकात ओरछा में यात्रा ब्लॉग लिखने वाले संदीप पवार जाटदेवता (विस्तृत विवरण आप उनके नीले रंग के लिखे नाम पर क्लिक कर पढ़ सकते है।) से हुई। पहली बार आभासी दुनिया के किसी मित्र से मिल रहा था। तब मेरी शादी नही हुई थी, ओरछा में अपने शासकीय आवास में नाना जी के साथ अकेला रहता था। पहली बार मिलने में मन में कई तरह के प्रश्न और शंकाएं मन में थी , इसलिए संदीप भाई को घर न ले जाकर एक होटल में रुकवाया ( पैसे भी उन्ही ने दिए ) . लेकिन जब उनके साथ ओरछा घुमा तो सारे भ्रम और शंकाएं दूर हो गयी। तब दूसरे दिन अपने घर में ठहराया। अब कथित आभासी दुनिया का भ्रम दूर हो चूका था। फोटोग्राफी का भी हल्का सा शौक अपने मोबाइल से ही पूरा करता था। एक दिन फेसबुक पर ही ब्लोगेर और फेसबुक मित्र आदरणीय पी एन सुब्रमण्यम के कॉमेंट से रायट ऑफ़ कलर ग्रुप से जुड़ा। इस ग्रुप में बहुत ही अच्छे लोगों से जुड़ाव हुआ। उनमे से ओम सैनी जी और अवतार सिंह पाहवा जी की चर्चा से व्हाट्स एप्प के एक ग्रुप घुमक्कड़ी दिल से के बारे में पता चला। और अब मेरे हाथ खजाना ही लग गया। एक से बढ़कर घुमक्कड़ इस ग्रुप से जुड़े हुए थे। सबसे कम घूमने वाला मैं ही था। तो इन बड़े बड़े घुमक्कड़ों के बीच अपनी जगह बनाने के लिए मैंने ओरछा गाथा एक धारावाहिक के रूप में लिखना शुरू किया। अप्रत्याशित रूप से इसे वाह वाही मिलने लगी। और मुकेश पाण्डेय के साथ ही ओरछा भी सबके दिल में जगह बनाने लगा। सामान्यतः काम प्रसिद्ध लेकिन बहुत खूबसूरत ओरछा अब घुमक्कड़ों को लुभाने लगा था। इसी बीच २०१६ में चर्चित घुमक्कड़ और ब्लॉगर ललित शर्मा जी भी ओरछा आये , और चार दिन रुके। इन चार दिनों में घुमक्कड़ी, इतिहास, पुरातत्व, ब्लॉगिंग और ब्लॉगर , पर्यटन, राजनीती, शासकीय सेवा, छत्तीसगढ़ से लेकर लगभग हर विषय पर उनसे बहुत कुछ जानने और सीखने का सौभाग्यशाली अवसर मिला। इसके बाद झाँसी में मत्स्य विभाग में उच्च पदासीन अधिकारी श्री अरविन्द मिश्र जी जिनका हाल ही में स्थानांतरण झाँसी हुआ , ललित जी की फेसबुक पोस्ट देखकर मुझ से और ओरछा से मिलने एक सुबह चले आये। परंतु मेरी व्यस्तता के कारण कम ही मिल पाए पर उनका स्नेह अनवरत रहा। अब ओरछा का आकर्षण बढ़ने लगा था। इसी १५ अगस्त को अचानक प्रसिद्द घुमक्कड़ और ब्लॉगर द्वय मनुप्रकाश त्यागी जी और कमल कुमार सिंह जी ओरछा आये, और पूरा दिन मेरे साथ ओरछा घूमे। कमल भाई इससे पहले भी कई बार ओरछा आ चुके थे , और ओरछा को अपनी गर्लफ्रेंड कहते है।
अब आते है , इस पोस्ट के मूल कथानक की ओर यानि ओरछा महामिलन की पृष्ठभूमि पर। नवम्बर २०१६ के अंतिम सप्ताह में मैं अपनी ससुराल में हो रही शादी में बक्सर गया था , वहां मेरा मोबाइल गुमने के कारण इन्टरनेट की दुनिया था। विवाह कार्यक्रम के बाद खुद अपनी कार ड्राइव करते हुए आ रहा था , तभी घुमक्कड़ी दिल से ग्रुप के सबसे सक्रीय एडमिन श्री संजय कौशिक जी का मेरे पास कॉल आया , चूँकि मैं बनारस के ट्रैफिक की रस में फंसा था , इसलिए उस वक़्त बात नही कर पाया। फिर एकाध घंटे बाद बनारस से निकलने के बाद एक ढाबे पर रुक कर कौशिक जी से बात की। तो उन्होंने कहा- हम लोग आपके दरवाजे पर खड़े है , और आप गायब है ! जब मैं उनकी बात समझ नही पाया तो उन्होंने बताया - ग्रुप में मुम्बई वाले विनोद गुप्ता जी की पहल पर पूरे ग्रुप के एक मिलन कार्यक्रम की बात हुई , सब ओरछा के लिए तैयार है। २४ और २५ दिसंबर की तारीख भी तय कर ली गयी है। अब आगे की जिम्मेदारी मेरी है। मैंने भी रामराजा सरकार का स्मरण करके हाँ कर दी। भई , होहि वही जो राम रचि राखा ! जब रामराजा ने बुलाया है , तो व्यवस्था भी वही करेंगे। खैर ओरछा पहुंचने के बाद ओरछा रेजीडेंसी होटल ( जो एक आबकारी ठेकेदार का ही है ) में २४ दिसंबर को १५ कमरे बुक किये। हालाँकि १५ कमरों की बुकिंग के लिए ग्रुप के अधिकांश सदस्य असहमत थे। परंतु मैंने ये सोचकर बुक किये, कि अगर जरुरत नही पड़ी तो कैंसिल कर देंगे। ग्रुप में कार्यक्रम की चर्चा ज्यादा लोगों के बीच खो जाती या कोई दूसरा ई रूप ले लेती थी। इसलिए ग्रुप के एडमिन में ओरछा मिलन के नाम से एक और अस्थायी ग्रुप बनाया जो बाद में ख़त्म भी कर दिया। इस ग्रुप में ग्रुप के तीन एडमिन संजय कौशिक जी(सोनीपत हरियाणा ), किशन बाहेती जी ( कोलकाता ), रितेश गुप्ता जी (आगरा ) के अलावा प्रतीक गाँधी (मुम्बई ) , प्रकाश यादव जी ( रायगढ़ , छत्तीसगढ़ ) , पंकज शर्मा जी ( हरिद्वार ) और मैं सदस्य था। अब दूसरे ग्रुप में तैयारी संबंधी चर्चाएं होती , और महत्वपूर्ण बातें मुख्य ग्रुप में भी रखी जाती थी। जब खाने की व्यवस्था की बात आयी तो मेरे समक्ष विकल्पों की कमी नही अधिकता की समस्या सामने आयी। खैर पंकज राय की सलाह से राजू चाट भंडार के नत्थू को खाने के आर्डर के लिए चुना गया। अब मीनू की बात जब सामने आयी तो मैंने सोचा कि जब पुरे देश से लोग आ रहे है , तो खाने में विविधता होने के साथ स्थानीयता का भी समावेश होना चाहिए। इसी सोच के अंतर्गत खाने का मेनू तय हो गया।
जब ग्रुप में कार्यक्रम तय हुआ था , तो मौसम बड़ा खुशनुमा सा था , लेकिन जैसे जैसे दिन नजदीक आ रहे थे, शीतलहर का प्रकोपबद्ध रहा था। कोहरे की चादर उत्तर भारत की सभी ट्रेनों की गति को मंद कर रही थी। लोगों के टिकट कन्फर्म नही हुए थे। कुछ सदस्यों को पारिवारिक और शारीरिक समस्याएं आ गयी थी। कुल मिलकर कार्यक्रम खटाई में पड़ते दिख रहा था। कुछ लोगों ने तो कार्यक्रम की विफलता की पूर्व घोषणा सार्वजानिक रूप से कर दी थी। पर मेरे मन में चिंता की कोई बात नही थी , क्योंकि मैंने तो सब रामराजा सरकार के भरोसे छोड़ दिया। पर घने अंधकार होने के मतलब सवेरा जल्द होनेवाला है। अब कुहरा छटने लगा , ट्रेने वक़्त से नही तो तय वक़्त के नजदीक चलने लगी। लोगो की टिकट भी कन्फर्म होने लगी। मौसम का मिजाज देख कर कुछ लोग और तैयार हो गए। आश्चर्यजनक रूप से लोगों की बाधाएं दूर होने लगी। मैंने भी अपने जिला अधिकारी श्री संजय गुप्ता जी से दो दिन की अनुमति ले ली। अब आगंतुकों की बेसब्री बढ़ने लगी। १४ राज्यों के ( मतलब आधा देश ) लगभग ४० लोग ओरछा परस्पर मिलने आ रहे थे ..घुमक्कड़ी का एक सुनहरा अध्याय लिखने वाला था . ऐतिहासिक ओरछा में एक इतिहास लिखा जाने वाला था। ओरछा के अख़बारों में इस महामिलन की खबरें छपने लगी। क्रमशः जारी ....
संदीप पवार जाटदेवता से हुई मुलाकात |
ललित शर्मा जी के साथ बीते चार दिन |
कमल कुमार सिंह और मनु प्रकाश त्यागी जी के साथ ओरछा |
असली कहानी तो आज पता चली और मैं भी हा ना के समुंदर में गोते खाती हुई आखिर राजाराम के बहाव में बह गई और अपनी उपस्थिति दर्ज करवा ही ली ओरछा के ऐतिहासिक धरोहर में 👍आगे का इंतजार ....
जवाब देंहटाएंजय रामराजा सरकार की
हटाएंबुआ ऐसे ही कोई "एडमिन" नहीं बना देता...
हटाएं"सादर प्रणाम सहित"
ओरछा नरेश राजा राम चंद्र की जय ।
जवाब देंहटाएंएक बार फिर से सुनहरे पल में की यादो में खो गया ।
बहुत बढ़िया शुरुआत की है । कौन कहता है की सपने सच नहीं होते ,ओरछा मिलन में कई लोगो के सपनो को सच होते देखा है ।
मिलेगे फिर से
घुम्मकड़ी दिल से
जब सबसे बड़ा उदाहरण आप और बुआ जी है ।
हटाएंमिलेंगे फिर से
घुमक्कड़ी दिल से
मुकेश भाई, ओरछा आना कई वर्षों से मेरे राडार पर था। मेरे आगमन का सुत्रधार मरावी (अतिरिक्त जिलाधीश टीकमगढ) बने,उनके कई निमंत्रण थे। उनके निमंत्रण को अतिरिक्त बल आपसे मिला और मैं दिल्ली से ओरछा पहुँच गया। चार दिन तो बारात भी नहीं रुकती परन्तु आपके सहृदयता एवं मिलनसारिता ने रोक लिया। तापती गरमी के बावजूद जी भर ओरछा देखा। राजा राम की विशेष कृपा एवं अनुकम्पा रही।
जवाब देंहटाएंऐसे किसी आयोजन के लिए मैने ओरछा आगमन के दौरान आपसे चर्चा करके प्रयास किया था जो उस समय सिरे नहीं चड्डी पाया परन्तु आखिर किसी न किसी रूप में आपके पुरुषार्थ से मिलन समपन्न हुआ। जिसका प्रतिभागी मैं नहीं बन सका।
रही आभासी दुनिया की बात तो यहाँ दोनों तरह के लोग हैं परन्तु ईश्वर कृपा से मुझे सभी डायमंड ही मिले जिन पर मैं सहर्ष गर्व करना चाहूँगा।
इस आयोजन के लिए आपको अशेष शुभकामनाएँ एवं बधाईयाँ।
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जवाब देंहटाएंआभार, ललित जी आपसे चार दिन का मिलना भी कम ही लगा । पुनर्मिलन की प्रतीक्षा में
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हटाएंमेरे बारे में आपकी ऊपर लिखी टिप्पणी अन्दर कहीं चुभ-सी गयी। कार्यक्रम की विफलता की घोषणा मैंने की थी। लेकिन जिस समय मैंने ग्रुप छोड़ा था, उस समय इसके सफल होने के आसार नजर नहीं आ रहे थे। मुझसे पीछे जो भी वार्तालाप हुआ, उसका मुझे पता नहीं चल सका। और न ही यह पता चल सका कि ओरछा सम्मलेन सफल होने जा रहा है। और जब यह सब पता चला, उस समय हम राजस्थान यात्रा पर थे। हम अपनी यात्रा बीच में छोड़कर दिल्ली लौट आये, ताकि ओरछा पहुँच सके। 24 तारीख को झाँसी रिटायरिंग रूम भी हमने बुक कर लिया था।
जवाब देंहटाएंखैर, और क्या कहूँ? कैसे समझाऊँ अपनी बात?
आप अनावश्यक रूप से स्वयं को खलनायक मान रहे है । बल्कि आप तो कार्यक्रम के प्रेरकों में से एक है । यदि आप विनोद को न उकसाते तो शायद बाकि लोग भी तैयार न होते ।
हटाएंहां ललित जी से इस आयोजन की पूर्व सूचना मिली बाद। मेरी उत्कंठा भी थी मगर राजकीय व्यस्तताओं के चलते पहुंच न सका। कार्यक्रम सफल होनेकी सूचना भी मिली थी। सूत्रधार बनने की बधाई। यह बड़े जिगरे का काम है।
जवाब देंहटाएंआभार सर
हटाएंरामराजा की जय । बेहर शानदार तरीके से अंजाम दिया आपने हर काम को । जिम्मेदारी बड़ी भारी चीज है और आपने वहाँ इसे बखूबी उठाया । खाने का चुनाव भी बहुत ही बढ़िया था ।
जवाब देंहटाएंआभार हरेंद्र भाई
हटाएंरामराजा की कृपा और आपके अनथक प्रयासों के बगैर ओरछा मिलन सफल ना होता....आप की अनुपस्थिति ने ही ग्रुप के सदस्यों ने तिथि और स्थान फाइनल कर लिया और व्यवस्था की सारी ज़िम्मेदारियाँ आपको दे दीं ये आप पर ग्रुप सदस्यों का विश्वास ही था और आपने भी बिना किसी आपत्ति के इस ज़िम्मेदारी को स्वीकार किया और बेहतरीन तरीके से अंजाम तक पहुँचाया ये आपका प्रेम था आभासी मित्रों के लिए । रामराजा की कृपा और आपकी मेहनत से ये मिलन बहुत ही सफल रहा....
जवाब देंहटाएंअब आभासी कहाँ रहे डॉ साहब !आभार
हटाएंजय श्री राम। ओरछा आना अपने आप में एक अलग तरह का नशा था, जो दिन पर दिन बढ़ता गया। अच्छा लिखा आपने।
जवाब देंहटाएंनशा प्रेम का,नशा मिलन का,नशा घुमक्कड़ी का ... जय रामराजा सरकार
हटाएंट्रेन के रिजर्वेशन कराने के बावजूद भी मैं पहुंच न सका । छूट्टी कम पड़ गए। लेकिन इस महामिलन को देखकर अंदर से बड़ी खुशी मिली। इंटरनेट के जाल के बाहर निकलकर मिला जा सकता है।
जवाब देंहटाएंऔर इस आयोजन के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद !
कपिल जी, आभार
हटाएंहम आपकी मज़बूरी समझ सकते है ।
परस्पर मिलना भी संयोग की बात है। कई महीनों से आप का भी आग्रह रहा और हम सभी की भी इच्छा रही कि ओरछा अवश्य ही जाना है, पर किसी न किसी वजह से अधिकाँश मित्रों का सम्भव नही हो सका.... शायद, हर स्थान के भ्रमण का भी प्रारब्ध द्वारा एक समय नियत होता है, उसके पहले उस स्थान के विचरण के तमाम प्रयत्न भी आपकी तमाम चेष्टाओं के बावजूद भी निष्फल हो जाते हैं।
जवाब देंहटाएंआपके द्वारा लिखित ओरछा के इतिहास की महागाथा ने निश्चित ही हम सब के दिलो-दिमाग में ओरछा की एक अद्धभुत छवि निर्मित कर दी है। जिसमे रामराजा के स्वामी हैं ही साथ में उनके अलावा ओरछा महाराज, उनकी रानी और राय परवीन जैसे अनेक नायकों और नायिकाओं का विशिष्ट स्थान है।
खैर, आशा भी है और मन में चाह भी कि 2017 अवश्य ही उन सभी दोस्तों के लिए ओरछा प्रवास का वाहक बनें जो किसी न किसी कारणवश अभी तक इस स्थान को देखने का सौभाग्य नही पा सके ����
आभार ।
हटाएंप्रतीक्षारत ओरछा...
इस आयोंजन की सफलता ही इस बात का प्रमाण है कि हम एक दूसरे से दिल से जुड़े हां नीरज भाई ना। उस्काते तो सही में। मैं नही आ पाता
जवाब देंहटाएंआप तो सूत्रधार हैं इस एतिहासिक घटना के!!!
हटाएंविनोद भाई और नीरज भाई आप दोनों का दिल से आभार
हटाएंपांडे जी ओरछा आना तो पहले से निश्चित था एक दो बार प्लान बना भी पर रामराजा की इच्छा थी की ओरछा आओ तो पूरे धमाल के साथ जो आपकी अगुआई में और घुमक्कड़ी दिल से के महामिलन आयोजन में रामराजा की कृपा से बहुत ही सुन्दर तरीके से पूरी हुई।जय राजा राम की , घुमक्कड़ी दिल से मिलेंगे फिर से
जवाब देंहटाएंइस आयोजन ने जहाँ दिल मिलाये है, वही नये आयाम खुले है । जय रामराजा की
हटाएंयूं तो इंटरनेट और सोशल मीडिया से एक दशक से भी अधिक समय से जुड़ा हुआ हूँ,ब्लॉग लिखते लिखते भी कई वर्ष बीत गए हैं और इन सालों में बहुत सारे ऐसे मित्र बने हैं जो मेरे जीवन और दिनचर्या का अभिन्न अंग बन चुके हैं परंतु ओरछा महामिलन इस मायने में मेरे लिए विशिष्ट हो गया है कि इसने मुझे न केवल बहुत सारे नए ब्लॉगर - फोटोग्राफी के शौकीन मित्र दिए बल्कि उन सब से व्यक्तिगत मुलाक़ात का स्वर्णिम अवसर भी दिया। मैं रितेश गुप्ता का विशेष आभारी हूँ जिन्होंने मुझे घुमक्कडी दिल से ग्रुप से जोड़ा और मुझे इस ग्रुप से अनुमति दिलवाई कि मैं भी इस ओरछा महामिलन का हिस्सा बन सकूं।
जवाब देंहटाएंजब खीर बन कर तैयार हो गयी तो उसका आनंद लेने के लिए मैं भी मौजूद था पर इस खीर को बनाने हेतु जिन मित्रों ने दिन रात मेहनत करके दूध, चावल, मेवे, चीनी और अंगीठी का प्रबंध किया, घंटों तक कड़छी घुमाई उन सब को नमन करता हूँ। इस पोस्ट का अगला भाग भी जल्दी ही प्रस्तुत किया जाएगा इस अपेक्षा के साथ आपके इस आलेख को पुनः पढ़ने जारहा हूँ।
पहले याद दिलाया होता तो खीर भी बनवा लेते ।
हटाएंआभार सर , आपके शामिल होने से कार्यक्रम में चार चाँद लग गए ( बाकी तीन पहले से थे । ) ☺
बहुत बेहतरीन ब्लॉग लिखा पांडेय जी ! बहुत कुछ नया पता चला ! मैंने जब पढ़ना शुरू किया तो मन इतना रम गया कि पता ही नही चला कि पोस्ट खत्म हो गयी है ! यूँ जीवन में बहुत से प्रोग्राम बनते बिगड़ते रहते हैं लेकिन इस प्रोग्राम में न पहुँच पाने की कसक हमेशा बनी रहेगी ! मुझे शुरू से अंदाज़ा था कि मैं 24 तारिख तक ठीक नहीं हो पाऊंगा , पूरे ही शरीर पर एलर्जी हो रही थी और लगभग हर घंटे एक लोशन लगाना पड़ रहा था , लोगों ने कहा भी कि कोई दिक्कत नहीं होगी , लेकिन मेरी दिक्कत से आप लोगों को परेशानी हो सकती थी , इसलिए मन मारकर घर में ही पड़ा रहा ! लेकिन अंत समय तक आप सबको नहीं बताया , इसका सिर्फ एक कारण था कि अगर मैं पहले से मना करता तो संभव था कि लोगों का वहां जाने का "चार्म " कम हो जाता ! भगवान् से प्रार्थना कि हम आगे भी ऐसे ही मिलते रहे , और आपको आपके अथक प्रयासों के लिए साधुवाद !!
जवाब देंहटाएंसच में पोस्ट पढ़ते-पढ़ते बहुत जल्दी खत्म हो गयी.
हटाएंयोगी जी, आपकी कमी तो हमने भी महसूस की । कोई बात नही
हटाएंमिलेंगे फिर से , घुमक्कड़ी दिल से
आम तौर पर अधिकतर लोग इन्टरनेट के माध्यम से हुई मित्रता को हल्के में ही लेते हैं. एक बात तो तय है की यह सिर्फ एक एतिहासिक नहीं बल्कि एक महाएतिहासिक मिलन है जिसने इन्टरनेट की आभासी दुनिया से हमें बाहर निकाल कर वास्तविकता से रूबरू करवाया है.
जवाब देंहटाएंमुझे इस बात की आश्चर्य और खुशी भी है की आपने इतने आनन-फानन में, इतने कम दिनों की पूर्वसूचना के बावजूद भी इसे सफल कर दिया, वरना शुरुआत में मैं भी इसे हल्के में ही ले रहा था.
ओरछा के बारे लोग कम ही जानते हैं, इसलिए मिलन के साथ साथ एक एतिहासिक अछूते स्थान को भी देखने का आनंद प्राप्त हुआ. और हाँ, अपने जिस तरह से एक अच्छे गाइड की भांति स्मारकों का एतिहासिक वर्णन किया, वह काबिलेतारीफ है.
आपके अलावा इस महामिलन के सूत्रधार विनोद गुप्ता जी का विशेष आभार जिन्होंने मजाक-मजाक में ही इस महामिलन का नाम लिया और यह सफल भी रहा. आभार उन सभी एड्मिनों का भी जिन्होंने अपने सारे काम-धाम से ध्यान हटा इस महामिलन को सफल करने में दिया, साथ ही उन सभी आगंतुकों का जिन्होंने अपना महत्वपूर्ण वक़्त इसे दिया.
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आर डी भाई , दिल से आभार ।मैं तो सिर्फ माध्यम था,मेजबान तो रामराजा थे , जिनकी वजह से ये सब हो पाया ।
हटाएंऔरछा महामिलन अपने आप में ऐतिहासिक और अभूतपूर्व रहा...
जवाब देंहटाएंहिन्दीभाषी यात्रा ब्लागरों,फोटोग्राफर और उनके पाठकों का ऐसा महामिलन शायद कभी न हुवा होगा...
इस महामिलन के लिए आप की सक्रियता और आत्मविश्वास से हम भी बहुत कुछ सिखकर गये।
व्यवस्था के लिए सभी के अपने,अपने कार्यक्षेत्र रहे होंगे..?
अगले अंक की प्रतीक्षा मे...
डॉ साहब , आपका आना बड़ा ही रोमांचक था । ऐसी परिस्थितियों में आप आये बड़ी बात थी ।
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंएक एक पल को याद कर सँजोया ये ब्लॉग पोस्ट ,जिसमे बहुत सी बातों से अनभिज्ञ थे हम । पहली बार मैंने आपके बारे ने जाट देवता के ही ब्लॉग से जाना था । राम राजा जी को , आपको , ओरछा को ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया, चित्र और लेख दोनों लगे 🙏🙏🙏🙏🙏
इस महामिलन की यादें दिल में अभी तक जवां है और इस कार्यक्रम को पूर्णतः सफल बनाने में आपके अप्रत्याशित योगदान को नमन ।
घुमक्कड़ी दिल से के व्हाट्स एप और फेसबुक ग्रुप के सभी सदस्यों को इस कार्यक्रम के सफल होने पर बधाई ।
घुमक्कड़ी दिल से
मिलेंगे फिर से ।
जय रामराजा की । सबके सम्मिलित प्रयास से ये आयोजन संभव हो पाया । आभार
हटाएंबहुत जबरदस्त विवरण, मुकेश जी। आपकी कलम कमाल की है। जब आगाज़ इतना खूबसूरत है तो अंजाम कैसा होगा। मुझे इस बात की ख़ुशी तथा गर्व है की मैं ओरछा महामिलन का हिस्सा बन सका। आभार....
जवाब देंहटाएंआपका भी आभार
हटाएंMuje kai naami dost isi aabhashi duniya se mile, aur mera ghumakkdi ka sokh thoda thoda raftar pakdne laga. Aapki lekhni bahut hi shandar hai.
जवाब देंहटाएंआभार
हटाएंमैंने ओरछा का नाम ग्रुप में आप से ही सुना ।इससे पहले इस नाम से अनजान था । जब मालूम हुआ की 24-25 दिसंबर को ओरछा में मिलने का प्रोग्राम है तो काफी धर्म संकट में पड़ गया क्योंकि इसके 2 दिन बाद ही मुझे सपरिवार 10 दिन की लम्बी यात्रा पर निकलना था ।लेकिन एक साथ इतने दोस्तों से मिलने की ललक से खुद को रोक नहीं पाया । अभी भी मैं जगन्नाथ पुरी में हूँ वहीँ से जबाब दे रहा हूँ । जय राजा राम की ।जय जगन्नाथ की ।
जवाब देंहटाएंजय रामराजा की
हटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "ठण्ड में स्नान के तरीके - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंआभार
हटाएं*जय रामराजा की* मैं इस घुमक्कडी महोत्सव का हिस्सा बनने से चूक गया।पता नही कब ऐसा मौका आयेगा।
जवाब देंहटाएंआपका प्रयास सराहनीय है जो बिना किसी पूर्व सूचना के इतने बड़े प्रोग्राम को सफलतापूर्वक समपन्न कराया।
तुम बड़े याद आये ...
हटाएंदुनिया गोल है कब कौन किस मोड़ पर टकरा जाय कोई नहीं जानता..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं
सच कहा कविता जी । आपको भी शुभकामनाएं
हटाएंचन्दन जी आपने , ओरछा मिलन के "महामिलन" बनाने और बनने का बड़ा ही शानदार वर्णन किया है जी
जवाब देंहटाएंयह महामिलन यूँ समझो घुमक्कड़ी के आज के दौर का एक नया अध्याय साबित हुआ और शुरू हुआ ... आपकी मेहमाननवाजी, अपनापन और सभी घुमक्कडों से मिलने के आत्मीय आन्नद के साथ साथ राम राजा का आशीर्वाद मिलना, अब ओरछा के शानदार इतिहास की तरह ऐतिहासिक और यादगार लम्हे बन गया है ... वहां मौजूद हर कोई अब इन्हें अपने दिल में हमेशा संजोये रखेगा ....रामराजा की जय
आभार पंकज जी । आपका आगमन भी किसी चमत्कार से कम नही था ।
हटाएंबहुत सुन्दर तथा मनोरंजक पोस्ट।
जवाब देंहटाएंBahut khub !
जवाब देंहटाएंChandan ji....aapki yatra Orcha ke ghumakkadi bahut achhi lagi....Ghumakkadi dil se ne itihas racha hai wo apke prayaso ka hi fal hai....bahut hi achha likha hai aapne
जवाब देंहटाएंमुकेश जी आप सभी लोगों के दर्शन करने का अभिलाषी हूँ। बहुत़ ही सुंदर मिलन समारोह रहा आप लोगों का। प्रभु राम से यहीं प्रार्थना हैं कि मुझे भी आप लोगों के समक्ष रहने का मौका मिले। घुम्मकड़ी करते हैं तो दिल से। अन्तर्मन से इच्छा है तो मिलेंगे जरूर आप लोगों से। 🇮🇳 🇮🇳
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