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राजा महल से दिखता भव्य चतुर्भुज मंदिर |
राम राम मित्रों ,
चाय -नाश्ता से निवृत होकर सभी ओरछा भ्रमण हेतु तैयार हो गए थे , इधर मैं भी अपने घर से तैयार होकर और सूरज मिश्र को साथ लेकर होटल पहुँच गया। झाँसी रेलवे स्टेशन पर हुई अनावश्यक देरी के कारण मेरे द्वारा सभी सदस्यों के लिए बनाये ओरछा भ्रमण कार्यक्रम में भारी मन से कटौती करनी पड़ी। खैर होटल से पैदल ही घुमक्कड़ों का काफिला मेरे साथ निकल पड़ा। सभी सदस्य घुमक्कड़ी दिल से के लोगो वाली टोपी पहने निकले। होटल से हम लोग सब्जीमंडी होते हुए फूलबाग पहुंचे।
फूलबाग और इसमें बना महल बुंदेला राजाओं का ग्रीष्म ऋतू का आरामगाह था। महल सिर्फ ऊपर ही नही जमीन के नीचे भी बना था। महल के पीछे दो मीनारें बनी हुई है , जिसमे कई छेद बने हुए है। यह मध्यकाल में गर्मी से बचने की वातानूकूलित व्यवस्था थी। उन्नत स्थापत्य कला के ये नमूने आज उपेक्षित पड़े है। इन मीनारों के नीचे पानी को संगृहीत करने के लिए बड़े-बड़े हौद बने थे। गर्मियों जब हवा मीनारों के छेदों से होकर नीछे हौद तक आती , तो पानी के प्रभाव से ठंडी होकर महल में प्रवेश करती थी। इस तरह बुंदेला शासक गर्मी में भी सर्दी का अहसास करते थे। कभी कभी राजाओं को सनक भी चढ़ जाती थी , तो इन मीनारों के ऊपर वादको को बिठाया जाता , और वादकगण जब मीनारों के ऊपर से ढोल, नगाड़े बजाते तो नीचे महल में उनकी आवाज़ सावन-भादों के बादलों की गर्जना जैसी लगती थी। इसलिए इन दोनों मीनारों का नामकरण सावन-भादों किया गया। लेकिन आज के ओरछा में इन सावन - भादों की अलग ही कहानी प्रचलित है। कहते है, कि सावन और भादों नाम से एक प्रेमी-प्रेमिका थे। ज़माने ने उनके प्रेम को स्वीकार नही किया , अतः उन दोनों ने एक साथ अपने प्राण त्याग दिए। जब लोगो को इस के बारे में पता चला तो उनकी याद में ये दो मीनारें बनवाई। यहाँ तक कहा जाता है , ये सावन-भादों के महीने में ये दोनों मीनारें आपस में मिलती है। अब मुझे भी ओरछा में पदस्थ हुए तीन साल हो गए , मुझे तो आजतक कभी ये मिलते हुए दिखाई-सुनाई नही दिए। खैर इस कहानी की वजह से ये लोगों के आकर्षण का विषय जरूर है। सावन-भादों के नीचे महल के भूतल को असामाजिक लोगो की वजह से बंद कर दिया गया है।
अब वर्तमान में लौटते है , हम लोग फूलबाग में सबसे पहले चन्दन कटोरा से रु-ब-रु हुए। ये पत्थर का बना हुआ , एक बड़ा सा नक्काशीदार कटोरा है , जिसका प्रयोग युद्ध में जाने वाले सैनिको को चन्दन घोलकर तिलक लगाने में होता था। लेकिन इसका सबसे बड़ा आकर्षण पत्थर के बने होने के वावजूद धातु की तरह आवाज करना है। लोगो ने धातू जैसी आवाज़ सुनने के लिए इसमें खूब पत्थर मारे , जिससे इसका एक तरफ का हिस्सा दरक गया , इसलिए अब इसे चारो तरफ से जाली से घेर दिया है। पता नही कब हम लोगों को अपनी विरासतों को सहेजने की अकल आएगी ! ग्रुप के फोटोग्राफर्स सक्रीय हुए और चन्दन कटोरा को अपने कैमरे में कैद किया।
अब हम लोग हरदौल बैठक में दाखिल हुए जो पालकी महल का एक हिस्सा है। पालकी जैसी आकृति होने के कारण इसे पालकी महल कहा जाता है। लोक देवता के रूप में प्रतिष्टित हरदौल के बारे में मैंने अपने घुमक्कड़ सदस्यों को ज्यादा नही बताया , क्योंकि तब लाइट एंड साउंड शो में उत्सुकता नही रहती। लेकिन आप को संक्षेप में बता देना चाहूंगा।
"महाराजा वीर सिंह के आठ पुत्र थे, जिनमें सबसे बड़े का नाम जुझार सिंह व सबसे छोटे हरदौल थे। जुझार को आगरा दरबार और हरदौल को ओरछा से राज्य संचालन का जिम्मा विरासत में मिला हुआ था। लोग जुझार सिंह को कान का कच्चा व हरदौल को ब्रह्मचारी एवं धार्मिक प्रवृत्ति का मानते हैं। , "सन 1688 में एक खंगार सेनापति पहाड़ सिंह, प्रतीत राय व महिला हीरादेवी के भड़कावे में आकर राजा जुझार सिंह ने अपनी पत्नी चंपावती से छोटे भाई हरदौल को ‘विष' पिला कर पतिव्रता होने की परीक्षा ली, विषपान से महज 23 साल की उम्र में हरदौल की मौत हो गई। हरदौल के शव को बस्ती से अलग बीहड़ में दफनाया गया। जुझार की बहन कुंजावती, जो दतिया के राजा रणजीत सिंह को ब्याही थी, अपनी बेटी के ब्याह में भाई जुझार से जब भात मांगने गई तो उसने यह कह कर दुत्कार दिया क्योंकि वह हरदौल से ज्यादा स्नेह करती थी, श्मशान में जाकर उसी से भात मांगे। बस, क्या था कुंजावती रोती-बिलखती हरदौल की समाधि (चबूतरा) पहुंची और मर्यादा की दुहाई देकर भात मांगा तो समाधि से आवज आई कि वह (हरदौल) भात लेकर आएगा। इस बुजुर्ग के अनुसार, "भांजी की शादी में राजा हरदौल की रूह भात लेकर गई, मगर भानेज दामाद (दूल्हे) की जिद पर मृतक राजा हरदौल को सदेह प्रकट होना पड़ा। बस, इस चमत्कार से उनकी समाधि में भव्य मन्दिर का निर्माण कराया गया और लोग राजा हरदौल को ‘देव' रूप में पूजने लगे।" कुंजावती की बेटी की शादी में हुए चमत्कार के बाद आस-पास के हर गांव में ग्रामीणों ने प्रतीक के तौर पर एक-एक ‘हरदौल चबूतरा' का निर्माण कराया, जो कई गांवों में अब भी मौजूद हैं। शादी-विवाह हो या यज्ञ-अनुश्ठानों का भंड़ारा, लोग सबसे पहले चबूतरों में जाकर राजा हरदौल को आमंत्रित करते हैं, उन्हें निमंत्रण देने से भंड़ारे में कोई कमी नहीं आती।"
लाला हरदौल को मैंने भी अपनी शादी में निमंत्रण पत्र दिया था , और उनकी कृपा से भंडारे में कोई कमी नही हुई थी। वैसे आपको बताता चलूँ मैं ही नही मेरे विभाग में मुझसे पहले भी ओरछा में पदस्थ लोगों की शादी ओरछा में आने के बाद ही हुई। खैर हम लोग पालकी महल से होते हुए , फूलबाग बाजार में से रामराजा मंदिर की ओर बढे जहाँ सभी ने सावन-भादों मीनारों के साथ फोटो खिंचवाई , ग्रुप फोटो भी खींचा गया। अब रामराजा मंदिर प्रांगण में सब पहुँच चुके थे। लेकिन मंदिर बंद हो चूका था। क्योंकि ओरछा में भगवान राम भगवान नही बल्कि राजा बनकर अयोध्या से आये थे। इसकी पूरी कहानी आप मेरी
ओरछा-गाथा पर क्लिक करके पढ़ सकते है। अतः यहाँ रामराजा के मंदिर में खुलने -बंद होने की अलग ही समय-सारिणी है। सुबह 9 बजे मंदिर के पट खुलते है। और साढ़े 12 बजे बंद होकर कुछ देर के लिए 1 बजे राजभोग लगाने के लिए खुलते है। सबने मंदिर के बाहर से ही ग्रुप फोटो खिंचवाई। दर्शन शाम को नियत किये गए। और काफिला बढ़ चूका पास ही बने भव्य चतुर्भुज मंदिर की ओर..... अब ये मंदिर क्यों नही रामराजा मंदिर बन सका , इसकी भी कहानी आप ओरछा-गाथा में पढ़ सकते है। चारमंजिला मंदिर के पीछे के द्वार से सबने प्रवेश किया। सबसे पहले सबने चतुर्भुज मंदिर में भगवान कृष्ण (चतुर्भुज ) के दर्शन किये और इसकी भव्यता से मोहित हुए बिना नही रह पाए। अब इस मंदिर की खड़ी और ऊँची सीढ़ियों को चढ़ते हुए सब मंदिर की छत की और चल पड़े। प्रसिद्द फोटोग्राफर और ब्लॉगर सुशांत सिंघल जी अपनी उम्र का तकाजा करते हुए ऊपर नही आये जबकि लगभग उनके हमउम्र रमेश शर्मा जी बेधड़क सीढियाँ चढ़ते चले आये। जम्मू और कश्मीर का निवसी होना शायद काम आया होगा। चतुर्भुज मंदिर की सीढियाँ , गलियारे , झरोखे से लेकर छत -खिड़की भी फोटोग्राफर्स के कैमरों की कैद में आने लगे। चतुर्भुज मंदिर में मैंने अपना मार्गदर्शक बनाया , मंदिर में ही ड्यूटी करने वाले लड़के मनोज सेन को। मनोज को इस मंदिर के चप्पे-चप्पे का ज्ञान है , जबकि नए व्यक्ति को इसकी मंजिले भूलभुलैयाँ लगेगी।
जब सब छत पर पहुंचे तो यहाँ से पूरे ओरछा का नजारा देखकर सब विस्मित होने के साथ ही हर्षित भी थे। अब सारे फोटोग्राफर अपने अपने कैमरे लेकर मोर्चा संभाल लिए। कई कैमरों के फ़्लैश एक साथ चमकने लगे। जिनके पास कैमरे नही थे , वो अपने मोबाइल से ओरछा की खूबसूरती कैद करने लगे। तभी सचिन त्यागी जी ( जो दिल्ली से अपने परिवार को लेकर कार से ग्वालियर , दतिया घूमते हुए आ रहे थे )का कॉल आया , कि वो ओरछा बस स्टैंड पहुँच चुके है , उन्हें लेने के लिए मैंने पंकज और प्रवीण को भेज दिया इधर फोटो सेशन के दौरान ही सचिन त्यागी जी सपरिवार शामिल हुए। सचिन जी से मेरी पहली मुलाकात अपने हाल के दिल्ली प्रवास पर हुई थी। सचिन जी अधिकाशतः अपने परिवार के साथ ही घुमक्कड़ी करते है। दिल्ली में भी हमसे मिलने जब कनॉट प्लेस आये तो परिवार भी साथ लेकर आये थे, हालाँकि परिवार को बाजार में शॉपिंग करने छोड़ कर हमसे मिले। सचिन जी भी अपना कैमरा लेकर फोटो खींचने के दंगल में कूद पड़े। तभी हमारे खाना बनाने वाले नत्थू का कॉल अंकज के पास आया , कि खाना तैयार हो चुका आई। बड़ी मुश्किल से सबको खाने की दुहाई देकर चतुर्भुज मंदिर से नीचे उतारा। नीचे उतरने के बाद भी मंदिर के मुख्य द्वार और नीचे बने बाजार में भी फोटो सेशन चलता रहा। खैर हम होटल पहुंचे , और हाथ मुँह होकर खाना खाने बैठे पर अभी एक धमाका बाकी था .......क्रमशः
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सावन -भादो के सामने ग्रुप के सदस्य |
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रामराजा मंदिर प्रांगण में |
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हरदौल बैठक |
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चतुर्भुज मंदिर की भव्यता को कैमरे में कैद करते महारथी |
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चतुर्भुज मंदिर की राहें |
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चतुर्भुज मंदिर की खड़ी सीढियाँ |
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ऊंचाई पर पूरा ग्रुप |
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घुमक्कड़ी दिल से |
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सारे शूटर्स शूट करने को तैयार |
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हम सारे घुमक्कड़ है .. दिल से |
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हम भी किसी से कम नही ( बांये से श्रीमती रितेश गुप्ता , श्रीमती कविता भालसे , श्रीमती नयना यादव, श्रीमती संजय कौशिक , श्रीमती हेमा सिंह ) |
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चिल्लर पार्टी के संग मम्मी पार्टी
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अद्भुत (और शब्द नहीं हैं कहने के लिए)👌
जवाब देंहटाएंआभार मित्र
हटाएंBahut shandar, aap ke arrangements ke charche tho ab kitne pradeshon mei ho rahe hain
जवाब देंहटाएंआभार सर,
हटाएंचर्चे ज्यादा नही 14-15 राज्यों में ही हो रहे है ।
बहुत उम्दा जानकारी बहुत उम्दा शैली में देने का आपका अंदाज़ बहुत उम्दा है ये बात इस उम्दा ओरछा मिलन कार्यक्रम के दौरान कई बार बड़े उम्दा तरीके से मेरे सम्मुख प्रकट हुई।
जवाब देंहटाएंहाँ, ये सच है कि मुझे बिना रेलिंग की मुंडेर पर चढ़ने में फोबिया जैसा कष्ट होता है। फोटोग्राफी के प्रति पागलपन होने के बावजूद जब दूसरी मंजिल से मुझे किसी ने झाँक कर आवाज़ लगाईं और कहा कि मुकेश जी ऊपर बुला रहे हैं तो मैं चाह कर भी हिम्मत नहीं बटोर सका।
सावन भादों की मीनारों तथा हरदौल - कुंजावती की कहानी हमारी लोककथाओं को समृद्ध करती हैं और करती रहेंगी।
अगली किश्त में भूकंप आने वाला है ना? आखिर बुआ, विनोद और प्रतीक जो आने वाले हैं।
बहुत ही उम्दा तरीके से आपका प्रोत्साहन । नतमस्तक हूँ आदरणीय ! जी अगली क़िस्त से बम्बइया भूकंप आएगा ।
हटाएंआपका लेखन लाज़वाब होता है और ओरछा के समृद्ध इतिहास की जानकारी में आपका कोई सानी नही है...इससे पहले भी ओरछा घूमा है पर जो जानकारियां आपसे मिली वो पहले ना थी...👍
जवाब देंहटाएंसादर आभार ! डॉ साहब
हटाएंSahi kaha
हटाएंजबरजस्त !कथानक तो ओरछा यात्रा महामिलन से भी जोरदार निकला!काश की ये महल देख पाती खेर, दोबारा आने के लिए कुछ तो बहाना होना चाहिए । आपकी धमाकेदार लेखनी से अगले धमाके का इंतजार।
जवाब देंहटाएंआपके पुनः आगमन की प्रत्याशा में
हटाएंहम लोग कही भी घूमने जाते है तो उस स्थान की जानकारी से पूर्ण पुस्तक जरूर खरीद लेती हूँ।पर ओरछा में बिलकुल समय नहीं मिला मन दुखी हो गया तो भालसे जी ने कहा मुकेश जी से कह देंगे वो कोरीयर कर देगे ।पर ऐसी नोबत नहीं आई आपने इतनी खूबसूरती से ओरछा की जानकारी दी की पढ़कर मन ख़ुशी से नाच उठा। आगे के लेखन का इन्तजार।
जवाब देंहटाएंआप पता दीजिये कोरियर कर देंगे । आभार
हटाएंजैसे ही सुबह औरछा पहुँचे उसके बाद बस महामिलन मे खो गया,कई मित्रो से पहली बार मिल रहे थे,लेकिन किसी को भी किसी का परिचय बताने की जरूरत नहीं पढ़ी,ये होती है बॉन्डिंग।
जवाब देंहटाएंउसके बाद जब औरछा घुमने निकले तो मेरा मन न तो फ़ोटोग्राफ़ी मे लगा,नाही इतिहास जानने मे दिलचस्पी रही,बस उस माहौल में ही रम गया।
फोटोग्राफी और ओरछा घुमना तो फिर कभी होता रहेगा....
जैसे ही सुबह औरछा पहुँचे उसके बाद बस महामिलन मे खो गया,कई मित्रो से पहली बार मिल रहे थे,लेकिन किसी को भी किसी का परिचय बताने की जरूरत नहीं पढ़ी,ये होती है बॉन्डिंग।
जवाब देंहटाएंउसके बाद जब औरछा घुमने निकले तो मेरा मन न तो फ़ोटोग्राफ़ी मे लगा,नाही इतिहास जानने मे दिलचस्पी रही,बस उस माहौल में ही रम गया।
फोटोग्राफी और ओरछा घुमना तो फिर कभी होता रहेगा....
जैसे ही सुबह औरछा पहुँचे उसके बाद बस महामिलन मे खो गया,कई मित्रो से पहली बार मिल रहे थे,लेकिन किसी को भी किसी का परिचय बताने की जरूरत नहीं पढ़ी,ये होती है बॉन्डिंग।
जवाब देंहटाएंउसके बाद जब औरछा घुमने निकले तो मेरा मन न तो फ़ोटोग्राफ़ी मे लगा,नाही इतिहास जानने मे दिलचस्पी रही,बस उस माहौल में ही रम गया।
फोटोग्राफी और ओरछा घुमना तो फिर कभी होता रहेगा....
सदैव स्वागत है ! जय रामराजा सरकार
हटाएंमुकेश जी....
जवाब देंहटाएंओरछा का इतिहास और उसकी गाथा में हम भी उसी समय पूरी तरह से रम गये थे... | चंदन कटोरा, हरदौल का मंदिर, पालकी महल , राजा राम मंदिर , फूल बाघ और चतुर्भुज मंदिर को सानिध्य में देखकर धन्य हो गये |
हम भी पहली बार सभी से मिले थे....मिलकर लगा ही नही की पहली बार मिल रहे है ... यही हमारे ग्रुप की सबसे बड़ी उपलब्धि रही ...घुमक्कड़ी दिल से
आपका लेख हमेशा की तरह सुहाना लगा .....अगले लेख पढने की आतुरता में धन्यवाद आपको ...|
जय राजा राम की
जय रामराजा सरकार की
हटाएंबिल्कुल सही कहा सुमित भाई ने, सब मिलने के बाद तो कहाँ फोटो और किसके फोटो. सचमुच विवाह का सा माहौल हो गया था. वहां होते हुए भी वहां नहीं थे. सचमुच किसी को किसी का इंट्रो नहीं देना पड़ रहा था, एहसास ही नहीं था कि कई लोग पहली बार मिले हैं. पाण्डे जी एक सचमुच समझ नहीं आ रहा तारीफ़ ओरछा की करें या आपकी ;) एक से बढ़कर एक .... गज़ब....
जवाब देंहटाएंतारीफ़ उस पल की कीजिये , जिस पल रामराजा ने हम सबको मिलने के लिए प्रेरित किया । हम तो बस माध्यम बने । वरना मौसम का ठीक होना, ट्रेनों का समय से चलना , रूपेश जी, बुआ जी ऐन मौके पर तैयार होना आदि कई अवसर थे, जो हमारे हाथ में नही थे ।
हटाएंजय रामराजा सरकार
घुमक्कड़ लोग जब भी और जहां भी मिलेंगे , इस महामिलन की चर्चा जरूर होगी ! ये मिलान एक मील का पत्थर बन चूका है घुमक्कड़ी के इतिहास में !!
जवाब देंहटाएंसच कहा आपने ! आगे और भी महामिलन होंगे, इससे से बेहतर हो सकते है , मगर सबसे पहले तो ओरछा ही याद आयेगा । पहला तो पहला ही होता है । सब पहले को ही याद रखते है । घुमक्कड़ी महामिलन की शुरुआत और गिनती ओरछा से ही शुरू होगी ।
हटाएंचन्दन जी ने जितना गहन और जीवंत वर्णन किया वो तारीफ के काबिल है।सचमुच चन्दन जी ज्ञान का भंडार हैं,ये कहने में कोई संकोच नहीं।ओरछा महामिलन एक यादगार पहल बना है।ये मिलना आगे भी यूँ चलता रहे बस यही दुआ है।मुझे तो सोते जागते ओरछा ही दिखाई देता है।सभी मित्रों से बातें होती हैं।ये अपनापन ही हम सबको एक दूसरे के करीब लेकर आया।सबसे बड़ी कृपा राम राजा की रही����
जवाब देंहटाएंजय रामराजा सरकार की
हटाएंमहामिलन के साथ साथ यहाँ के इतिहास और वर्तमान का जबरदस्त लेखांकन !
जवाब देंहटाएंपढते-पढते मै कल्पनाओ मे खो जाता हूँ और ऐसा महसूस होता है कि मै भी उन्ही लोगों के बीच हूँ। मै भी कैमरा से क्लिक कर रहा हूँ पर फोटो कैमरे के मेमोरी कार्ड मे कैद न होकर, मेरे दिलो-दिमाग मे कैद हो रहे है ।
अगली लेख का बेसब्री से इंतजार है !
आपके इस कमेंट से मेरा लिखना सार्थक हो गया । इसे लिखने का एक उद्देश्य ये भी था, कि जो किसी कारण वश नही आ पाए वो भी उन पलों को जी सके ।
हटाएंkaash hum subah hi pahuch jaatee
जवाब देंहटाएंजय रामराजा सरकार की
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (15-01-2017) को "कुछ तो करें हम भी" (चर्चा अंक-2580) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
मकर संक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार शास्त्री जी
हटाएंचन्दनजी,
जवाब देंहटाएंओरछा जाने की भावना बरसों से मन में बनी हुई है। यह भावना अब पेट की मरोड बन गई है। फरवरी में जाने की इच्छा है। ओरछाा पर आपकी यह श्रंखला पढना श्ुाुरु कियाा। रामजी के विग्रह के मन्दिर में स्थापित न हो पाने वाला अंश मुझे नहीं मिल रहा है। मैं 'क्या मधुकरशाह का मन पिघला?' पर अटक गया हूं। अगली कडी तलाश नहीं कर पा रहा हूं।
आपके लिए सम्भव हाेे और आप चाहें तो क़पया वांछित कडी की लिंक मुझे मेरे ई-मेल पतेे bairagivishnu@gmail.com पर उपलब्ध कराने की क़पा करें।
अग्रिम धन्यवाद और आभार सहित।
-विष्णु बैरागी, रतलाम (म.प्र्.)
अहो भाग्य ! मेरा
हटाएंपांडेय जी नमस्कार। जब राजा राम ने बुलाया था तो सपरिवार तो आना ही था। ओरछा आकर आप लोगो से मिलना वाकई एक चमत्कार था। समय अवाभ के कारण ओरछा के कई दर्शनीय स्थल नहीं देख पाया लकिन वो सब आपके ब्लॉग के माध्यम से देख ही लेंगे। फोटो देखकर वो पल आज जीवित हो उठा है। वो ख़ुशी जो आप लोगो से मिलकर हुई आज भी दिल में बसी है। धन्यवाद पांडेय जी
जवाब देंहटाएंआभार सचिन जी
हटाएंसच कहूँ तो ओरछा के बारे ऐसा मैंने कहीं भी आज तक लिखा नही देखा है... विकिपीडिया में भी नही....
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंBhaut shandar adarniy
जवाब देंहटाएं