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अभी तक आप लोगों ने ओरछा महामिलन की दो दिवसीय कार्यक्रम में तुंगारण्य में वृक्षारोपण कार्यक्रम तक पढ़ा। अब सभी ओरछा अभ्यारण्य में स्थित पचमढ़िया पहुँच चुके थे। पचमढ़िया ओरछा अभ्यारण्य के अंदर स्थित पुराने राजशाही ज़माने की पांच छोटे-छोटे मंदिर है , जिन्हें स्थानीय भाषा में मढिया कहा जाता है। पांच मढिया होने के कारण इस स्थान का नाम पचमढ़िया पढ़ा। ये मढिया जामनी नदी की एक धार में बने टापूओं पर बनी है। वैसे पूरा ओरछा अभ्यारण्य भी बेतवा और जामनी नदी के संगम पूर्व बने टापू में ही बना है। इस अभ्यारण्य में पुराने ज़माने के शिकारगाह भी बने है। जहाँ कभी राजा अपने सिपाहियों के साथ डेरा डालते थे , और जब जंगली जानवर पानी पीने आते होंगे तो उनका शिकार किया जाता था। इसके अलावा अभ्यारण्य में जंगली जानवर देखने के लिए जन्तुर टावर भी बना है , जिस पर से जामनी नदी की खूबसूरती बड़ी प्यारी दिखती है। ओरछा अभ्यारण्य में वैसे बड़े और हिंसक जानवर तो नही है , लेकिन हिरन, सांभर , नीलगाय , सियार , भेड़िया , बन्दर , लंगूर जैसे जानवर आसानी से देखे जा सकते है हालाँकि यह अभ्यारण्य अपने पक्षी परिवार के लिए प्रसिद्द है। यहाँ भारतीय उपमहाद्विप में मिलने वाले लगभग सभी पक्षी पाए जाते है। और चार प्रजाति के विलुप्ति के कगार पर पहुँच चुके गिद्ध प्रचुर संख्या में है। वैसे गिद्ध अभ्यारण्य से ज्यादा आसानी से छतरियों , जहांगीर महल और चतुर्भुज मंदिर के शिखरों पर देखे जा सकते है। गिद्धों के लिए वन विभाग द्वारा वल्चर रेस्टोरेंट बनाने की योजना है , जिसमे किसी एक निश्चित जगह पर आसपास के गांवों में मरे हुए पशुओं के शव को लेकर रखा जायेगा।
तो अब वापिस लौटते है , अपने महामिलन की ओर.... महिलाएं और बुजुर्ग ( हालाँकि ये खुद को जवानों की श्रेणी में ही मानते है ) गाड़ियों से , कुछ लोग पैदल ही पचमडिया की ओर निकल पड़े। चूँकि हमारे कैटरर्स नत्थू कुशवाहा पहले से ही पचमढ़िया पहुंचकर अपने काम में लग चुके थे . मेरे पहूँचने तक महिलाएं और बच्चे नदी के धार में छलांग लगाने से नही रोक पाए। लेकिन अभी तक पुरुष खुद को संभाले हुए थे। मैं हमारे ग्रुप के सम्मानित और बड़े फोटाग्राफर -ब्लॉगर सुशांत सिंघल जी को पचमढ़िया से थोड़ी दूर शिकारगाह की तरफ ले गया , ताकि वो आराम से बिना किसी व्यवधान के शिकार कर सके। हालांकि सुशांत जी के एक कान से कम श्रवण शक्ति के कारण मुझे थोड़ी सी झल्लाहट हुई , कि मैं जबसे अपनी बकबक करते जा रहा हूँ , और ये उसे बार बार अनसुना कर रहे है। खैर बाद में जब उन्होंने अपनी इस समस्या को बताया तो मुझे खुद की सोच पर शर्मिंदगी हुई। खैर यहां शिकारगाह और आसपास सुशांत जी ने अपने बड़े से कैमरे से खूब शिकार किये। मुझे वही एक नन्हा सा मोरपंख मिल गया , जिसे मैंने अपनी शर्ट में लगा लिया। सुशांत जी तल्लीनता से अपने शिकार कर रहे थे। तभी दूसरी ओर से आवाज़ें सुनने को मिली , तो देखा दूसरी तरफ बीनू कुकरेती जी , कमल भाई , डॉ त्यागी और पंकज शर्मा जी अपने-अपने हथियार (कैमरे ) लेकर शिकार खोज रहे है। तो मैंने उन्हें नदी की धारा पार कर दूसरी तरफ आने को कहा। बीनू भाई तो जैसे -तैसे पार कर के आ गए। बाकि लोगों को दिक्कत हो रही थी, तो कमल भाई और डॉ त्यागी नल-नील की भूमिका में आ गए। और पत्थरों से एक छोटा सा सेतु ( इसे रामसेतु तो नही प्रेमसेतु कह सकते है ) बना डाला। शीघ्र ही पंकज शर्मा जी , रमेश शर्मा जी भी नदिया के पर आ गये। नदिया के उस पार एक और बेहतरीन शिकारी प्रकाश यादव जी भालसे दंपत्ति को अपने कैमरे में कैद कर रहे थे। संजय कौशिक जी के सुपुत्र युवराज भी एक बढ़िया फोटोग्राफर की तरह अन्य लोगों की यादों को अपने कैमरे में संजो रहा था। मैं नदिया के इस पार आ गया ,इस पार आकर सबसे पहले भोजन का जायजा लिया, जो लगभग चरम सीमा पर था। भोजन को स्थानीयता का पुट देने के लिए दाल-बाटी-भर्ता , चूरमा के लड्डू विशेष तौर पर बनवाये गए थे। नदिया के दोनों तरफ लोग नहाने का मजा ले रहे थे। शिकारगाह से थोड़ी दूर पर प्राकृतिक तरणताल में पुरुष सदस्य पूरी मस्ती से नहा रहे थे। जिसमे सबसे उम्रदराज सदस्य रमेश शर्मा जी सबसे अधिक सक्रियता से नहाने का मजा ले रहे थे। कमल भाई तो नदी के पानी में एक लाश की तरह शवासन कर रहे थे , तो रूपेश शर्मा जी, सचिन जांगड़ा जी, नरेश सहगल जी , कौशिक जी , विनोद गुप्ता जी , नटवर भार्गव जी , रजत शर्मा जी, आरडी प्रजापति जी , संजय सिंह जी भी किसी तरह मस्तीखोरी में पीछे नही रहे।
हरेंद्र धर्रा जी इन सब से दूर शिकारगाह के पास जमीन पर ही पेड़ की ठंडी छाँव में नींद का मजा ले रहे थे, वो तो एक गौमाता ने उनकी नींद को भंग कर दिया। इधर मैंने पंकज राय के साथ बाइक से सुशांत सिंघल जी और पंकज शर्मा जी को फोटोग्राफी करने जन्तुर टावर की ओर भेज दिया। मैं खुद परसो से लगातार चली आ रही भागदौड़ से थक गया था , तो अपनी कार में ही झपकी लेने की सोच रहा था , कि हमारे एक सहकर्मी आबकारी उपनिरीक्षक सियाराम चौधरी जी का कॉल आ गया , कि वो टीकमगढ़ से ओरछा पहुँचने वाले है। सियाराम जी का परिचय कमल भाई से मैंने उनकी शिमला -मनाली यात्रा के लिए कराया था। इसलिए वो कमल भाई से मिलने आ गए। तो उन्हें स्नानरत कमल भाई लोगों से मिलवाया , चूँकि वो अपनी फॅमिली के साथ आये थे , इसलिए ज्यादा देर नही रुके और चले गए। इतने में टीकमगढ़ जिले के पुलिस अधीक्षक श्री निमिष अग्रवाल जी अपने किसी परिचित को पचमढ़िया घूमने ले आये , खैर उनसे जय हिन्द कर हम किनारे हो लिए। अब स्नान -ध्यान सबका हो चुका था , थोड़ी थोड़ी भूख सबको लगने लगी थी , इधर महिला मंडली ने चूरमा के लड्डुओं पर हाथ साफ करने में देर नही की। खैर उनकी ये चोरी सुशांत जी के कैमरे ने पकड़ ली। सबसे पहले बच्चो को भोजन से निवृत कराया गया। कुछ लोगों ने इससे पहले बाटी नही खायी थी , इसलिए उन्हें इसे देखकर शंका थी , तो उनकी फरमाइश पर कुछ रोटियां भी सिंकवा ली गयी थी।
पचमढ़िया में शुद्ध प्राकृतिक वातावरण में पत्तों से बनी पत्तलों और दोनों में भोजन प्रारम्भ हुआ। तभी ग्रुप के संस्थापक एडमिन किशन जी ( कोल्कता से ) के आने की सूचना मोबाइल पर मिली। सभी के चेहरे पर एक मुस्कुराहट दौड़ गयी। क्योंकि पहली बार ग्रुप के चारों एडमिन एक साथ एक जगह पर मिलने वाले थे। उनका भोजन में साथ देने के लिए मैं , कौशिक जी और अन्य एक दो लोग भोजन करने के लिए रुक गए. मजे की बात ये रही कि भोजन करने बैठे जो लोग पहली बार बाटी से रु-ब-रु हो रहे थे , उन्हें ये छोटा सा गोल-गोल सा व्यंजन किस तरह से खाया जाये समझ ही नही आ रहा था। खैर एक दूसरे की देखा देखी और पूछ कर सबने प्रेम से इस वनभोज का लुत्फ़ उठाया। इधर मुझे सबको इतने प्रेम से खाता देख किसी बेटी का व्याह करने वाले पिता जैसा भाव महसूस हो रहा था जिन लोगों ने अपने लिए अलग से रोटियों की फरमाइश की थी , वो भी बाटियों के स्वाद के आगे आधी से ज्यादा रोटी न खा पाए। हमारे सूरज मिश्र जी को तो परोसने वाले बिना पूछे ही परोस रहे थे। खाने के साथ ही हंसी -मजाक का दौर जारी रहा।लंबे समय के बाद जीवन में हंसी-ठहाको का लंबा दौर चला था। प्रकाश जी की पत्नी नयना भाभी अपने हाथ से बनाकर कुछ मिठाई रायगढ़ से लेकर आयी थी , तो रूपेश जी ग्रेटर नॉएडा से बालूशाही लेकर आये थे , जिसे उन्होंने सबको प्रेम से भोजन के साथ ही खिलाया।
अब खाने के बाद हम बड़ों की मस्ती के बीच बच्चों की प्रतिभा छूट रही थी , तो सर्वसम्मति से बच्चों के हुनर को सामने लाने के लिए अगला सेशन बच्चो का ही रखा गया। इसमें बच्चों ने गीत, कविता , नृत्य के माध्यम से अपने अपने हुनर को सबके सामने रखा। इन सबमे हेमा जी की प्यारी सी बिटिया साक्षी ने अपनी कवितायेँ सुनाकर सबका दिल जीत लिया , तो होनहार युवराज कौशिक ने हास्य कविता सुनाकर सबको लोट-पोट कर दिया। बच्चों को इनाम मिलता देख हमारे विनोद गुप्ता जी भी कविता सुनाने को तत्पर हो गए , लेकिन जब पता चला कि इनाम सिर्फ बच्चो के लिए है , तो अपना कदम पीछे खींच लिया। बच्चो के बाद बड़ों की भी परीक्षा होनी थी, जिसका किसी को भी नही पता था , मास्टरनी बनी नयना यादव भाभी जी ने झट से मदारी की तरह अपने झोले में से प्रश्न पत्र निकले। इस प्रश्न पत्र के सभी सवालों के जवाब ध अक्षर से देने थे। अब लगभग 20 प्रश्नों के उत्तर एक मिनट में देने थे। मैंने लगभग सभी प्रश्नों का जवाब सही दिया। सबसे आखिरी में प्रश्न था , इस प्रश्न पत्र देने के बाद आप देंगे-----सभी ने इसका जवाब धन्यवाद लिखा , लेकिन मैंने ध से धमकी लिखा। (अब वर्दी वाला धन्यवाद तो देने से रहा ) खैर अब सब परीक्षा देने के बाद परिणाम का इंतजार करने लगे।
तभी किशन बाहेती जी का तूफानी आगमन हुआ. और मैं , कौशिक जी , रितेश जी , भालसे जी उनका स्वागत करने दौड़ पड़े। किशन जी आना भी इस महामिलन की एक बहुत बड़ी सफलता रही। क्योंकि जब किशन जी को किसी ट्रेन में रिजर्वेशन नही मिल रहा था , तो उन्होंने राजधानी में सीट बुक की , जो झाँसी नही रूकती थी, इसलिए उन्होंने कानपूर तक का रिजर्वेशन करवाया। वापिसी भी कानपूर से 25 की रात को राजधानी से ही थी। मतलब सिर्फ सबसे मिलने अपनी नई दुकान की दुकानदारी छोड़कर कुछ घंटों के लिए ही किशन जी का आना , इस ग्रुप के आपसी प्रेम का परिणाम था। अब जिन सज्जनों के भोजन नही किया था, वो किशन जी के साथ पत्थरों पर बैठकर खाने बैठे , सूरज मिश्र जी दुबारा साथ देने बैठ गए पंकज शर्मा जी और किशन बाहेती जी इन दोनों महानुभावों ने अपनी हर यात्रा में अलग ही लुक अपनाया। इसलिए इन्हें आसानी से पहचान नही सकते थे. खैर मस्ती भरे माहौल में हमारी मास्टरनी जी यानि नयना भाभी जी अपने काम में लगी थी , और परीक्षा परिणाम तैयार हो गया। अब परीक्षार्थियों की दो श्रेणी बनाई गयी , होशियार और सामान्य। मुझे गलती से होशियार वाली श्रेणी में पटक दिया गया। अब सामान्य श्रेणी के परिणाम घोषित पहले किये गए। इस में कई महानुभाव बड़े मजेदार निकले। हमारे विनोद बाबू सबसे टॉप पर रहे (पीछे से ) इन्होंने सिर्फ उसी सवाल का जवाब सही दिया , जो उदहारण के तौर पर बताया गया था। सिविल सेवा की तैयारी कर रहे सूरज मिश्रा जी ने महाभारत के पात्र का नाम धंधारी लिखा ( वो भी किसी की नक़ल कर के ) , इस श्रेणी में टॉप करने लायक हमारी मास्टरनी जी को कोई न मिला। अब दूसरी श्रेणी यानि होशियारों की श्रेणी का परिणाम आया तो जिंदादिल बाइकर सचिन जांगड़ा जी सबसे आगे निकल गए। उनके पीछे उपविजेता के रूप मुझे चुना गया। एक प्रश्न पत्नी को क्या कहते है ? के जवाब में मेरा जवाब घरनी गलत माना गया। मास्टरनी जी का कहना था , कि घरनी कोई शब्द ही नही है , तो मैंने उसकी उत्पत्ति और तत्सम-तद्भव सब बताया। तब उसे सही शब्द माना गया। लेकिन जवाब तो ध से लिखना था , न कि घ से। और मेरे आखिरी जवाब धमकी को भी गलत मान लिया गया। जांगड़ा जी विजेता बनकर खुश , तभी कमल कुमार सिंह जी ने रहस्योद्घाटन किया , कि जांगड़ा जी को जवाब उन्होंने बताये है। और मेरा सिल्वर मैडल अब गोल्ड में बदल गया। खैर अब सूरज ढलने के लिए मचल उठा था , और हमने भी अपना बोरिया बिस्तर बांध लिया।
तभी विनोद गुप्ता जी थाईलैंड -थाईलैंड चिल्लाते हुए कौशिक जी के चक्कर काटने लगे। ( दरअसल ग्रुप में एक बार कौशिक जी ने बताया था, कि वो घरवालों को गुजरात घूमने का बताकर थाईलैंड घूम चुके है , और विनोद भाई इसी रहस्य को श्रीमती कौशिक जी को बताना चाहते थे ) अंततः विनोद जी ने श्रीमती नीलम कौशिक को जब थाईलैंड वाली बात सुनाई तो पूरा ग्रुप अपनी सांसे थामे आगे होने वाले तूफान के इंतजार में इन दोनों के चेहरे को देख रहा था। नीलम भाभी ने बड़ी ख़ुशी से बताया कि कौशिक जी के साथ वो भी थाईलैंड गयी थी। अब विनोद भाई का चेहरा देखने लायक था और पूरे ग्रुप ने ठहाको से जंगल गुंजा दिया। कौशिक जी बोले - मैंने घरवालों को गुजरात जाने का कहा था, घरवाली को नही। विनोद भाई बड़ी ही मासूमियत से बोले - ये वाले एडमिन पूरी बात नही बताते। तो हाजिर जवाब कौशिक जी ने कहा - ऐसे ही थोड़े किसी को एडमिन बना देते है।
अब सब लोग वापिसी को तैयार ... महिलाएं और बच्चे पहले गाड़ियों से निकल गए , इन्हें छतरियों के पास मिलने को कह दिया था। बाकि लोग पैदल ही चल पड़े , गाड़ियां जब वापिस लौटी तो उनमे बचे लोग भी सवार हो गए। यहां एक गफलत ये हुई कि जो लोग पैदल आगे निकल गए थे, तो उन्हें छतरियों के पास मिलने की बात नही पता थी , इसलिए वो सीधे होटल ही पहुँच गए। अब सूरज डूब चूका था , सबसे बाद में मैं , कौशिक जी, किशन जी , प्रकाश जी , रितेश जी और रूपेश जी आदि पहुचे। तो मैंने समय को देखते हुए चाय पीने का सुझाव रखा। अतः छतरियों के पास ही स्थित लग्जरी होटल ओरछा रिसोर्ट के कॉन्फ्रेंस हाल के पास पहुचे। बाकी जो लोग छतरियों और होटल में थे , उन्हें भी खबर कर दी गयी। जो लोग छतरियों के पास थे , उन्हें पहुचने में ज्यादा समय नही लगा। चाय और कुकीज़ के आने तक सबने कॉन्फ्रेंस हॉल में फोटो सेशन कराया। होटल वालो में कुछ लोग थकावट के कारण नही आ पाए। जो आये तब तक चाय -कुकीज़ निपट चुके थे। अब विदाई का दौर चालू होने वाला था। किशन जी को फिर से कानपूर से राजधानी एक्सप्रेस पकड़नी थी। अब समस्या ये थी, कि कानपूर तक अगर बस से जाया जाये , तो ट्रैन छूट सकती है , और टैक्सी वाले 6000 रूपये मांग रहे थे, जो बहुत ज्यादा थे। जब कोई व्यवस्था न बन पायी तो फिर मैंने अपने ड्राइवर कैलाश को बोला मेरी फोर्ड फिगो कार से किशन को सकुशल कानपूर छोड़कर आये। इधर रितेश जी , कौशिक जी और दिल्ली पार्टी भी झाँसी निकलने की तैयारी करने लगे। अभी प्रकाश यादव और उनका परिवार , कमल भाई , बीनू कुकरेती जी और डॉ प्रदीप त्यागी को छोड़कर बाकी सभी लोग ओरछा महामिलन की यादें अपने साथ लेकर निकल पड़े , फिर मिलने का वादा करके .......
छूटी बात :-
पिछले भाग में बताना भूल गया कि मथुरा से नीरज चौधरी अपनी मोटर साइकिल से आये , उनके साथ एक और बड़े घुमक्कड़ धौलपुर से सत्यपाल चाहर भी आये , परंतु जल्द ही लौट गए , इसलिए उनका जिक्र नही हो पाया। ग्रुप के एडमिन संजय कौशिक जी पुरे ग्रुप की तरफ से मेरे पुत्र अनिमेष के लिए बड़ी प्यारी सी शेरवानी लेकर आये थे। जिसे बुआ जी ने घर आकर मेरी श्रीमती जी को दी । इसके अलावा जो लोग सपरिवार आये थे, वो अनिमेष के लिए नेग के तौर पर 100 -100 रूपये देकर गए। यहां बात पैसों की नही , बल्कि वो सम्मान और प्यार की है, जो आजकल अपने सगों में भी कम होता जा रहा है। और यहां एक आभासी कहे जाने वाले माध्यम से जुड़े लोग अब एक परिवार के सदस्य की तरह हो गये। ये महामिलन भले किसी इतिहास की किताब में दर्ज न हो, पर हमारे दिलों में हमेशा के लिए अंकित हो गया।
इस महामिलन की सफलता आये हुए सभी लोगों का महत्वपूर्ण योगदान तो है ही , पर कई लोग जो ओरछा नही भी आये उनका भी परदे के पीछे सहयोग रहा ललित शर्मा जी, नीरज जाट जी , संदीप पंवार जाटदेवता जी , मनुप्रकाश त्यागी जी , अरविन्द मिश्र जी , अवतार सिंह पाहवा जी , देवेंद्र कोठारी जी , अमित गौड़ा जी , अनिल दीक्षित जी , योगेश्वर सारस्वत जी , महेश सेमवाल जी , सुशील कैलाशी जी , प्रेम सागर तिवारी जी , अमित तिवारी जी ,ओरछा से हेमंत गोस्वामी जी , अमित चतुर्वेदी जी , पुष्पेंद्र गौर जी और भी कई नाम जिनका महत्वपूर्ण सहयोग रहा , परंतु किसी कारणवश मैं उनका नाम भूल रहा हूँ , तो उन सभी ज्ञाताज्ञात , चराचर , जड़-चेतन सभी कोटिशः आभार। सबसे पहले श्री 1008 अनंत विभूषित सकल ब्रम्हांड राजाधिराज ओरछा के अधिपति श्री रामराज सरकार को आत्मिक आभार जिन्होंने आद्योयान्त आशीर्वाद बनाये रखा।
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पचमढ़िया में अर्धवृत्त में सदस्य गण बांये से - कमल जी, आरडी जी, भालसे जी, कौशिक जी, जांगड़ा जी, हरेंद्र जी, रमेश जी , रजत शर्मा , विनोद गुप्ता जी , सूरज मिश्र |
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द्वितीय अर्धवृत्त में सदस्य बांये से - पंकज शर्मा जी, संजय सिंह जी, कमल कुमार, आरडी प्रजापति जी , भालसे जी , कौशिक जी , जांगड़ा जी , हरेंद्र जी और रमेश शर्मा जी |
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सेल्फी टाइम- पंकज शर्मा, सुमित शर्मा , सत्यपाल चाहर , संजय सिंह , नरेश सहगल, नरेश चौधरी, सहीं जांगड़ा रितेश गुप्ता , विनोद गुप्ता |
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दो प्यार करने वाले जंगल में खो गए (भालसे दम्पति ) |
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कल कल बहता नीर |
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बैठे हुए (बांये से )- रजत शर्मा, विनोद गुप्ता , रूपेश शर्मा और मुकेश पांडेय , पहली पंक्ति में खड़े (बांये से ) - सचिन जांगड़ा, डॉ सुमित शर्मा , सूरज मिश्र , किशन बाहेती , संजय कौशिक , हरेंद्र धर्रा , नरेश सहगल, प्रकाश यादव और नटवर भार्गव , पीछे खड़े (बांये से ) - बीनू कुकरेती , कमल कुमार , रितेश गुप्ता , रमेश शर्मा , पंकज शर्मा और सुशांत सिंघल |
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शिकारगाह को जाती राह : राह के उस पार कुछ शिकारी |
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जन्तुर टावर के पास शिकार की खोज में सबसे बड़ा शिकारी |
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पानी में बच्चो और महिलाओं की मस्ती |
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प्रेमसेतु का निर्माण करते हुए नारद जी |
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छोटे शिकारी युवराज कौशिक ने भी सबके कान काटे हुए थे |
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रोटी भी बिलकुल देशी अंदाज में |
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नयना यादव भाभी बाटी सेंकते हुए |
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ये रहा हमारा भोजन - दाल-बाटी-भर्ता , चूरमा के लड्डू ,सलाद और अन्य मिठाई |
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और इस तरह यादें संजोई गयी |
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बांये से - नीलम कौशिक, हेमा सिंह, नयना यादव , रश्मि गुप्ता और आधी कविता भालसे |
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अर्धवृत्त में |
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पेट पूजा शुरू हो गयी ...... |
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वन्य प्राणियों की रक्षा करे |
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बीच जंगल में पत्थरो पर बैठकर खाने का मजा ही कुछ और है |
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ये भी मिली |
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किशन के आने के बाद भोजन की दूसरी सभा |
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बीएसएनएल के इंजिनियर सहगल साहब शायद सिग्नल ढूंढ रहे है। |
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फिर शाम ढलने लगी |
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होटल ओरछा रिसोर्ट के लॉन में - घुमक्कड़ी दिल से |
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कॉन्फ्रेंस हॉल में बांये से - नटवर भार्गव, नरेश सहगल, किशन बाहेती , मुकेश पांडेय और पंकज शर्मा |
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नारी शक्ति : घुमक्कड़ी दिल से |
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बांये से - रितेश गुप्ता , मुकेश पांडेय, नरेश सहगल, सुशांत सिंघल और रमेश शर्मा |
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विदाई की बेला - बांये से : पंकज शर्मा, नरेश सहगल, रमेश शर्मा, नटवर भार्गव, प्रकाश यादव, रजत शर्मा, संजय कौशिक, मुकेश पांडेय, किशन बाहेती , सुशांत सिंघल, विनोद गुप्ता , रितेश गुप्ता , रूपेश शर्मा ,सुमित शर्मा और कमल सिंह |
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अच्छा तो अब चलते है ...... फिर से मिलने के लिए |
मिलेंगे फिर से
घुमक्कड़ी दिल से
फिर वही दृश्य याद आ गया
जवाब देंहटाएंक्या क्या याद आया ?
हटाएंक्या याद आ गया विनोद जी?
हटाएंथाईलैंड !
हटाएंथाईलैंड !
हटाएंधन्यवाद मूकेश भाइ, यादो को सहेजने के लिऐ :)
जवाब देंहटाएंधन्यवाद तो आप लोगों का जो इतनी प्यारी यादें मिली ।
हटाएंधन्यवाद तो आप लोगों का जो इतनी प्यारी यादें मिली ।
हटाएंहौसला अफ़ज़ाई के लिए शुक्रिया अंकल जी पर कान काटना तो आप जैसे धुरंधरों कद चरण स्पर्श कर पाया ये भी मेरे लिए सौभाग्य की बात है ।
जवाब देंहटाएंआप सब का बहुत बहुत आभार
युवराज कौशिक
स्नेहाशीष युवराज , खूब आगे बढ़ो !
हटाएंबेटी के बाप की तरह भावना । वाह पांडेय जी ।
जवाब देंहटाएंऔर आपके ' घरनी ' वाले उत्तर को तो अब भी गलत मानता हूँ क्योंकि जवाब 'ध' अक्षर से ही देने ने घ से नहीं । और ये मिलन शानदार था इसमें तो कोई दो राय नहीं है ।
हरेंद्र भाई , घरनी को मैंने भी गलत जवाब माना है । हाँ घरनी शब्द सही है , ये मैंने बताया । आभार
हटाएंखट्टी-मिठ्ठी यादें लिए, एक घुमक्कड महामिलन सम्पूर्ण हुआ। बढिया पांडेय जी
जवाब देंहटाएंअभी आपके शब्दों की जादूगरी का इंतजार है, इस मिलन के लिए ...
हटाएंप्रतीक्षारत हूँ , सचिन जी
अभी आपके शब्दों की जादूगरी का इंतजार है, इस मिलन के लिए ...
हटाएंप्रतीक्षारत हूँ , सचिन जी
आभार आदरणीय
जवाब देंहटाएंफिर से खाने बैठने का उद्देश्य सबका साथ देना आपने हाई लाइट कर दिया :) यादगार दिन
जवाब देंहटाएंआप तो पहली पोस्ट से ही हाईलाइट है ।
हटाएंआप तो पहली पोस्ट से ही हाईलाइट है ।
हटाएं"मिलेंगे फिर से और घुमक्कड़ी दिल से" के साथ "ऐसे ही कोई एडमिन नहीं बना देता" भी ओरछा महामिलन के दो नए अमर वाक्य के रूप में उभर कर आये ।
जवाब देंहटाएंपांडे जी पोस्ट पढ़ते पढ़ते बिल्कुल एक एक पल पुनः जीवन्त हो उठा ।
2 दिन 2 घण्टे से बीत गए और दुसरे तो पता नहीं पर इस पूरे जन्म के लिए ये महामिलन "इतिहास" में दर्ज हो गया और आपके बिना ये असंभव था ।
आपको भी मेरी तरफ से, परिवार की तरफ से और एडमिन होने के नाते म्हारे घुमक्कडी परिवार की तरफ से, कोटि कोटि धन्यवाद "दिल से"
आभार दिल से
हटाएंआभार दिल से
हटाएंवाह क्या जबरदस्त लेखन...हम इस हिस्से में नहीं थे पर इस हिस्से को आपके द्वारा जी लिए....चन्दन जी सबको सहेज कर हर एक छोटी छोटी चीज़ को ध्यान से लिखना बेहद दिल को छु लिया...मिलेंगे फिर से
जवाब देंहटाएंये श्रृंखला भी विशेषतः उन्ही लोगों के लिए लिखी गयी, जो इसमें शामिल न हो पाए ।आभार प्रतीक भाई
हटाएंवाह क्या जबरदस्त लेखन...हम इस हिस्से में नहीं थे पर इस हिस्से को आपके द्वारा जी लिए....चन्दन जी सबको सहेज कर हर एक छोटी छोटी चीज़ को ध्यान से लिखना बेहद दिल को छु लिया...मिलेंगे फिर से
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "तीन सवाल - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंआभार मित्र
हटाएंबहुत बढ़िया पोस्ट पांडेय जी । ओरछा महामिलन के एक एक पल को आपकी पोस्ट के जरिये फिर से जी लिया ।
जवाब देंहटाएंज्यादा कुछ नही कहूंगा , बस मिलेंगे फिर से, घुम्ककड़ी दिल से ।
धन्यवाद दिल से ।
रीतेश जी , अभी आपने कुछ कहा ही कहाँ ? आपके ब्लॉग पर आपके कुछ कहने का इंतजार है ।
हटाएंशुक्रिया
बढ़िया पोस्ट पांडेय जी ।यादें ताजा कर दी ।
जवाब देंहटाएंआभार सहगल साहब
हटाएंहर बार की तरह शानदार लेख, बड़ा मज़ा आया पढ़कर लेकिन दुःख इस बात का है की ये आखिरी किश्त है. बहुत रोमांचित किया इस श्रंखला ने. आपका बहुत बहुत धन्यवाद. आपने अपने ब्लॉग के जरिये ओरछा की स्मृतियों को अमर कर दिया है. जब कभी भी इस महा मिलन की याद आएगी आपके इस ब्लॉग को खोलकर बैठ जाएंगे.
जवाब देंहटाएंअब चूँकि ये आखिरी किश्त है तो ये जानना चाहता हूं की अगला मिलन कब और कहाँ होगा. साल में एक बार हम सब मिलते रहें तो बड़ा मज़ा आएगा.
धन्यवाद, आपका स्नेही.
मुकेश
भालसे जी, जितना दुःख आपको पढ़ते समय उससे ज्यादा मुझे लिखते समय हुआ । इसलिए इस पोस्ट को लिखने में ज्यादा समय लगा । खैर हम बिछड़े भी है, फिर मिलने के लिए
हटाएंओरछा महामिलन की गाथा कभी शेष नहीं हो सकती ,हां एक अल्पविराम लग सकता है ।
जवाब देंहटाएंआज इस पोस्ट को पढ़कर फिर से इस हसीन और यादगार लम्हे में खो गया । आप सभी मित्रो से गले मिलना ही अपने आप में अद्भुत अनुभूति थी । इतने शानदार स्वागत के लिए सबका धन्यवाद ।
एक ओरछा की संछिप्त गाथा या सारांश का इंतजार रहेगा ।
मिलेगे फिर से घुमक्कडी दिल से
राजा राम जो जय
आपके समर्पण के आगे नतमस्तक हूँ । आपका आदेश सर माथे जल्द ही इन यादों को समेटकर एक ही पोस्ट में लिखने का प्रयास करूँगा ।
हटाएंजय रामराजा सरकार की
सदैव की भांति शानदार लेखन 'चन्दन' जी..अमर कर दिया आपने इस मिलन समारोह को ब्लॉग का रूप देकर, आपके बिना असंभव था ये सफल आयोजन, आपको कोटि कोटि साधुवाद.....मेरा दुर्भाग्य के मैं पचमढिया के गेट के बस आधा km अंदर जाकर ही वापस आ गया और सारे आयोजन का हिस्सा ना बन सका....पर मेरे वहां उपस्थित ना होने के बाद भी आपने मुझे वहां पाया ये आपका स्नेह है मेरे लिए ...
जवाब देंहटाएंडॉ साहब ,किसने कहा कि आप अनुपस्थित थे, आज भी आपकी यादें जेहन में ताजा है । रही बात सफल आयोजन की तो इसके सूत्रधार से लेकर संचालन सब रामराजा की कृपा से हुआ है ।
हटाएंबहुत ही मर्मस्पर्शी कथा लिखे है ।हम पाठको को महसूस हो रहा है कि हम भी ओरछा के उन अभारण्य और एतिहासिक महलो मे घूम रहे है । पल पल रोम रोम को स्पर्श करता हुआ लेख ।
जवाब देंहटाएंमेरा मर्म को अभी आया ही नही, आपकी कमी भी हमे महसूस हुई थी । जल्द ही कही किसी मोड़ पर मिलेंगे ।
हटाएंआभार
जी । राजा राम जी जल्द ही ऐसा अवसर देंगे कि आप सब से भेट हों ।
हटाएंचंदन जी ,आपकी लेखनी पर टिप्पणी करना सूर्य को दीपक दिखाने जैसा है।एक एक पल को जिस अंदाज में आपने बयाँ किया है उसका क्या कहना।अभी मन में बस एक ही बात आ रही है जो मेरे लिए बाकि वाक्यों की तरह अमर है दिल से..."यूँ ही तो कोई चंदन नहीं बन जाता।"आपने उन पलों को पुनः जीवंत कर दिया।ये मिलन और आपके द्वारा किया गया आयोजन इतिहास में ना सही हमारे दिल में हमेशा के लिए बस गया है।ओरछा जो मेरे लिए कोई अंजान सी जगह थी कभी। आपके कारण और श्री राम राजा के आशीर्वाद से बहुत महत्वपूर्ण और अपनी बन गयी।ओरछा की यादें ताउम्र के लिए इस जहन में बस गयीं।जय श्री राम।
जवाब देंहटाएंरूपेश जी , इतनी ऊंचाई न दे कि जमीन पर बैठ न सकूँ । सब रामराजा की कृपा रही । ये सच है, कि इस महामिलन की यादें इस जन्म में तो नही जाने वाली है ।
हटाएंबढ़िया पोस्ट. सुन्दर चित्र.
जवाब देंहटाएंआभार ओमकार जी । स्नेह बनाये रखियेगा ।
हटाएंअब विनोद भाई का चेहरा देखने लायक था और पूरे ग्रुप ने ठहाको से जंगल गुंजा दिया। कौशिक जी बोले - मैंने घरवालों को गुजरात जाने का कहा था, घरवाली को नही। विनोद भाई बड़ी ही मासूमियत से बोले - ये वाले एडमिन पूरी बात नही बताते। तो हाजिर जवाब कौशिक जी ने कहा - ऐसे ही थोड़े किसी को एडमिन बना देते है। जबरदस्त आनंद उठाया आप लोगों ने ! आपको जानबूझकर होशियार वालों की श्रेणी में रखा होगा ! होशियार जो हैं आप
जवाब देंहटाएंआभार योगी जी !
हटाएंअसली मजा तो सबके साथ आता है !
Hi Mukesh ji
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट आज ही पढ़ी। देर से इसलिए ताकि भागमभाग में सरसरी तौर पर ही आँखों के आगे से गुजर जाए ! यूँ भी यह इस श्रंखला की समापन क़िस्त थी तो जाहिर है कि इससे उम्मीदों का भी बहुत अधिक होना! फिर शुरू में ही 'मुसाफिरनामा'में अपने ऐतिहासिक कमेंट से ओम भाई ने भी इसके प्रति उत्कंठा को नए आयाम दे दिए।
ऊपर के सभी कमेंट्स पढ़ कर आया हूँ, सो यकीन जानिए कि आपने इस छोटे से समय में ही सभी का जो सम्मान और विश्वास कमाया है, उसे देखते हुए मेरा अब कुछ भी कहना बेमानी सा ही लग रहा है!
एक शानदार और सफल आयोजन के कुशलतापूर्वक समापन के पश्चात उसकी यादों को संजोते हुए लिखी जा रही पोस्ट का भी समापन करना, निश्चित ही भावुकता से भरा हुआ पल रहा होगा आपके लिए ! आपने दोनों जिम्मेवारियाँ बखूबी निभाई है, जिसके लिए आपको बहुत बहुत बधाई ��
मेरे जैसे तमाम अन्य लोग जो इस मिलन के शारीरिक रूप से साक्षी नही थे, उन्होंव भी आपके द्वारा लिखे गए सजीव लेखन के द्वारा वहाँ की ऊर्जा और प्रेम को महसूस किया !
एक बार पुनः बधाई और धन्यवाद इसे इतनी शीघ्र सभी तक पहुँचाने के लिए ����
पाहवा जी, मैं ही क्या कोई भी अकेला व्यक्ति इतने बड़े आयोजन को सफल नही बना सकता था । सब रामराजा और माँ बेतवा की कृपा थी ।
हटाएंयदा यदा ही ओरछा ... तब तब ये महामिलन की गूँज सुनाई देगी , इसकी तुलना होगी ! इस महामिलन की बातें होंगी ! पांडेय जी , एक शानदार प्रयास रहा ये और मैं इसके लिए आप के साथ साथ उन सभी तक अपनी बधाई पहुँचाना चाहता हूँ जो इस प्रयास में शामिल हुए ! विशेष रूप से किशन जो को जो इतनी दूर से सिर्फ आप लोगों से मिलने आये !! आशा ये ये मिलन निरंतर बना रहे
जवाब देंहटाएंहर किसी से ...हर किसी का मिलन लिखा हुआ है ...अगली बार मैं भी होऊँगा बाबा ...अमन मल्लिक...
जवाब देंहटाएंउम्मीद करते है कि अगले बार के महामिलन में मैं भी रहूँगा ............... [सबसे आखिरी में प्रश्न था , इस प्रश्न पत्र देने के बाद आप देंगे-----सभी ने इसका जवाब धन्यवाद लिखा , लेकिन मैंने ध से धमकी लिखा। (अब वर्दी वाला धन्यवाद तो देने से रहा ) खैर अब सब परीक्षा देने के बाद परिणाम का इंतजार करने लगे। ]
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