नमस्कार मित्रों ,
पिछले साल दिवाली के समय ओरछा में अकेला ही था , श्रीमती जी मायके गयी हुई थी। तो अब दीपावली जैसा महापर्व अकेले कैसे मनाया जाये। घर ( बक्सर, बिहार ) जाने के लिए काम से काम एक हफ्ते की छुट्टी चाहिए। इसलिए इस बार दिवाली के शुभ अवसर पर दिल्ली में अपनी इकलौती बहन निक्की के यहाँ जाने का ख्याल मन में आया। इस ख्याल में दिल्ली में रहने वाले घुमक्कड़ दोस्तों से मिलने का लालच भी था। ये सामान्य दोस्त नहीं है , इनसे जान-पहचान इंटरनेट की दुनिया के दो सशक्त प्लेटफॉर्म फेसबुक और व्हाट्सएप्प के माध्यम से हुई थी। इनमे सभी आला दर्जे के घुमक्कड़ तो थे ही , कुछ लोग ब्लॉग भी लिखते है। इनमे से अधिकांश लोगों से इंटरनेट माध्यम से ही जुड़ा था। वास्तव में मुलाकात का संयोग सिर्फ मनु प्रकाश त्यागी जी, संदीप पंवार जी उर्फ़ जाटदेवता और कमल कुमार सिंह उर्फ़ नारद से ही इसलिए संभव हो पाया , क्यूंकि ये लोग ओरछा आये थे। दिल्ली के लिए निकलने के पहले ही मैंने व्हाट्स एप्प ग्रुप पर पहले ही घुमक्कड़ मित्रो को सूचित कर दिया था।
अब अपने जिला अधिकारी से छुट्टी ली और निकल पड़ा दिल्ली की ओर...... झाँसी स्टेशन से एक समय भारत की सबसे तेज ट्रैन रही हबीबगंज ( भोपाल ) -नई दिल्ली शताब्दी एक्सप्रेस से 28 अक्टूबर की शाम को निकल पड़ा। चूँकि व्हाट्स एप्प ग्रुप पर भी मित्रों को अप डेट्स मिल रही थी। दिल्ली पहुँचने के कुछ देर पहले ही प्रसिद्द घुमक्कड़ ब्लॉगर नीरज जाट जी का कॉल आया , दिल्ली में आखिरी मेट्रो के बारे में बताया। ( नीरज जी स्वयं दिल्ली मेट्रो में कार्यरत है। ) लेकिन मेरी सबसे तेज ट्रैन परम्परानुसार विलम्बित होकर मुझे अंतिम मेट्रो से वंचित कर गयी। नीरज जी ने इतनी रात को ऑटो की बजाय कैब से जाने की सलाह दी। क्यूंकि दिल्ली के ऑटो रात के सफर के लिए सुरक्षित नहीं है। और ये भी कहा कि अगर दिक्कत न हो तो उनके घर भी आ सकता हूँ . खैर दिल्ली में ही रहकर संघ लोकसेवा आयोग (upsc ) की तैयारी कर रहा मेरा बड़ा साला ध्रुव तब तक नई दिल्ली स्टेशन पहुँच चुका था। ध्रुव से मिलने के बाद मैंने नीरज जी को अपनी कुशल क्षेम बताई। दिवाली के अवसर पर नई दिल्ली स्टेशन रौशनी से नहाया हुआ था। स्टेशन पर दिवाली और छठ पर घर जाने वाले पूर्वांचल के बटोही लोग भरे पड़े थे। अब मैं और ध्रुव एक ऑटो पकड़ कर (कैब की अनुपलब्धता कारण ) शादीपुर स्थित ध्रुव के कमरे के लिए निकल पड़े। ऑटो वाला बिहारी ही निकला तो बोलते बतियाते कब पहुँच गए पता ही नहीं चला। जब ऑटो के बारे आशंका हो तो उसके बारे जाँच -परख करना ठीक होता है। अब वर्दी वाला दिमाग तो चलेगा ही।
29 की सुबह ध्रुव के साथ मेट्रो से छतरपुर के लिए बहन निक्की से मिलने झोला उठा के चल पड़े। सफर की थकान या दिल्ली के असर से रात में बुखार आ गया था। इसलिए बहन के यहाँ खा-पीकर सो गया। तभी कमल जी की कॉल से नींद खुली। उनसे मिलने की बात हुई। सुबह से व्हाट्स एप्प पर कोई अपडेट न पाकर बाकि लोग चिंतित थे। खैर फिर गुरुग्राम वासी अमित तिवारी जी का कॉल आया , वो बताये कि वो , डॉ श्यामसुंदर , नीरज अवस्थी जी के साथ छतरपुर मेट्रो स्टेशन आ रहे है। कमल भाई को भी मैंने वही आने का बोला। फिर हम लोगों की मुलाकात छतरपुर मंदिर के बाहर हुई। उसके बाद आसपास कोई बैठने या बतियाने का उपयुक्त स्थान होने के कारण हम लोग मेट्रो से ही गुरुग्राम पहुंचे। वहां मेट्रो स्टेशन के बाहर अमित जी की सिफारिश पर एक ठेले पर हम लोगों ने स्वादिष्ट लीटी-चोखा का आनंद लिया। शाम तक हम लोग यूँ ही जल-पान करते हुए घूमते रहे। बाकि मित्रों ने खमीर उठे हुए जौ के रस का लुत्फ़ उठाया। मैं इस विभागीय पेय से दूर रहा। बातों -बातों में पता ही नहीं चला कि कब अँधेरा हो गया। अभी तक आभासी दुनिया के मित्रों से प्रत्यक्ष मिलने पर लगा ही नहीं कि हम पहली बार मिल रहे है। फिर सब अपनी अपनी राह पकड़ कर आशियाने की ओर चल पड़े। जाते समय डॉ श्याम सुन्दर जी ने पतंजलि के रसगुल्ले और अमित तिवारी जी ने डेरी मिल्क का सेलिब्रेशन पैक दिया। छतरपुर पहुँचने पर बहन जी की प्यार भरी झिड़की की आशंका पर भांजी के प्यार ने पानी फेर दिया। इधर व्हाट्सएप्प ग्रुप पर दिल्ली और आसपास के मित्रों द्वारा मुझसे मिलने का प्रोग्राम बन रहा था। खैर बहन जी से कुछ देर बतियाने के बाद खा-पीकर सो गया , फिर से बुखार की आगोश में।
अगली सुबह यानि दीपावली का दिन इसलिए किसी से मिलने की उम्मीद काम ही थी , तो सोचा कि आज का दिन बहन और भांजी के साथ ही आराम से रहेंगे। परन्तु मोहि कहाँ विश्राम .. दिल्ली में हमारे अज़ीज दोस्त कमल कुमार सिंह जी तो हमे दिल्ली दर्शन का बीड़ा प्रेम से उठाये हुए थे। तो सुबह सुबह कॉल किया। और हम बिना नाश्ता किये चल पड़े , मेट्रो की ओर। आज क़ुतुब काम्प्लेक्स , रायसीना हिल्स ( इंडिया गेट, संसद भवन, राष्ट्रपति भवन, सचिवालय ), रेल म्यूजियम , लाल किला आदि देखने का कार्यक्रम था। अब कमल भाई से हमारी मुलाकात कुतुबमीनार मेट्रो स्टेशन पर हुई। कमल भाई की मोहब्बत भी गजब की थी , इससे पहले हम सिर्फ एक बार इस १५ अगस्त को ओरछा में मनु प्रकाश त्यागी जी के साथ मिले। तब मैं कमल भाई को लगभग न के बराबर ही जानता था। हाँ , ब्लॉगिंग के सुनहरे दिनों में नारद आम से लिखे इनके ब्लॉग पोस्ट्स को जरूर पढ़ा था , पर ये नहीं जनता था, कि कमल भाई ही नारद थे। खैर जब नारद से मिल ही लिए तो नारायण-नारायण होना तय था। अब क़ुतुब काम्प्लेक्स में सुबह का नाश्ता किया। फिर निकल पड़े क़ुतुब मीनार के दर्शन करने के लिए ... क़ुतुब मीनार के बारे में अभी तक किताबों में ही पढ़ा था। आज देखने का मौका मिला। चूँकि आयोग की परीक्षाओं में इतिहास का विद्यार्थी होने के नाते क़ुतुब मीनार के बारे में बहुत कुछ पढ़ा था , जैसे क़ुतुब मीनार कुतुबुद्दीन ऐबक ने नहीं बनवाई थी , बल्कि उसने तो उस पर मुस्लिम बाना चढ़ाकर उसे क़ुतुब मीनार ( सूफी संत कुतुबुद्दीन काकी के सम्मान में ) नाम दिया। तो इस मीनार को देखने की रूचि इसलिए भी ज्यादा थी। जब क़ुतुब मीनार प्रांगण में प्रवेश किया तो चारो तऱफ हिन्दू स्थापत्य के ध्वंष बिखरे पड़े थे , और इन सबके बीच ठीक क़ुतुब मीनार के बगल में लौह स्तम्भ सीना ताने खड़ा था। चौथी सदी में बने इस अद्भुत धातु शिल्प पर आज का विज्ञान भी अचंभित है। किसी चंद्र नामक शासक ( जिसकी साम्यता गुप्त शासक चन्द्रगुप्त द्वितीय से की जाती है। ) ने इस स्तम्भ को बनवाया था। सदियों से खुले में खड़े इस लौह स्तम्भ पर जंग न लगना सचमुच प्राचीन भारतीय धातु विज्ञान का चमत्कार था। इस पर किसी प्रकार इस्लामिक मुलम्मा ही चढ़ पाया , इसलिए यह सुरक्षित हिन्दू बना रहा। क़ुतुब मीनार के चारो तरफ जिस प्रकार से हिन्दू स्थापत्य बिखरा पड़ा है , इससे यह स्वमेव ही प्रमाणित होता है , कि यह क़ुतुब मीनार बनने से पहले विष्णु स्तम्भ (जैसा कि माना जाता है , कि पृथ्वीराज चौहान ने इसे बनवाया था ) या विजय स्तम्भ रहा होगा। इतिहास में जो कहा जाता है , कि क़ुतुब मीनार का निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक ने प्रारम्भ करवाया था, और इसे इल्लुत्मिश ने पूर्ण करवाया। अब मैंने जितना इतिहास पढ़ा है ( मैं इतिहासकार होने का दावा नहीं कर रहा हूँ ) तो न तो कुतुबुद्दीन ऐबक और न ही इल्तुतमिश को इतनी फुर्सत और शांति - सुकून मिला कि वो किसी ईमारत का निर्माण करवा सके। ये गुलाम शासक आक्रमणकारी के रूप में भारत आये , और इनका समय लूट-पाट के बाद बचे समय में खुद को सुरक्षित करने में लगा। ऐबक ने तो अजमेर (जिसका पुराना नाम अजयमेरु था ) में चौहान शासक (पृथ्वीराज के पूर्वज ) विग्रहराज चतुर्थ के सरस्वती मंदिर को तोड़ कर अढ़ाई दिन मस्जिद बना दिया और नाम दिया - अढ़ाई दिन का झोंपड़ा। इसी तरह इसी क़ुतुब काम्प्लेक्स में कुब्बत-उल-इस्लाम मसजिद , अलाइ दरवाजा जैसे इस्लामिक नमूने भी प्राचीन भारतीय स्थापत्य नींव पर खड़े गए . हालाँकि सच्चाई जो भी हो , सात बार बसी दिल्ली की ये मीनार आज भी महत्वपूर्ण पहचान है। पास ही में हवाई अड्डा होने से इसके ऊपर से हवाई जहाज निकलते रहते है।
क़ुतुब मीनार से फुर्सत होने के बाद कमल भाई ने आर्कियोलॉजिकल पार्क घूमने का प्रस्ताव रखा , जिसे ध्वनिमत से पारित किया गया। पर हाय री ! किस्मत।, भरी दुपहरी में पसीना -पसीना होने के बाद भी हम इस पुरातात्विक उद्यान की दीवाल के चक्कर दिवाली के दिन काटते रहे , पर हमे प्रवेश द्वार न मिला। अगर मिल जाता तो कुछ गड़े मुर्दे हम भी उखाड़ लेते। जब थक गए तो फिर पहुंचे मेट्रो स्टेशन सीधे संसद में शिकायत करने के लिए। पर दिवाली की छुट्टी थी , तो संसद बंद मिली। तो मन मार कर संसद , नार्थ ब्लॉक , साउथ ब्लॉक के सामने फोटो खिचवाये। सामने राष्ट्रपति भवन था, सोचा कोई बात नहीं , महामहिम प्रणब दा से ही मिल आये , परन्तु वहां खड़े सुरक्षा कर्मियों ने तो मुख्य द्वार के पास ही नहीं जाने दिया। हमने अपना आई डी कार्ड भी दिखाया पर ो भी कुछ काम न आया। कुल मिला कर इतने द्वारों से हमें निराश ही लौटना पड़ा। रास्ते में रेल म्यूजियम भी दिवाली की छुट्टी के कारण बंद मिला। अब सोचा एक गेट में और कोशिश कर ली जाये , तो पहुँच गए इंडिया गेट , ये गेट तो खुला मिला मगर इसमें घुसना मना था। तो दूर से फोटो खिंचवाए। प्रथम विश्वयुद्ध में मारे गए भारतीय सैनिको की स्मृति में इसका निर्माण किया गया था। इस गेट की दीवारों पर शहीद सैनिको के नाम लिखे हुए है। बाद में श्रीमती इंदिरा गाँधी जी स्वतंत्रता पश्चात् के शहीदों की स्मृति में अमर जवान ज्योति का निर्माण किया। अमर शहीदों को मन ही मन नमन किया। फिर याद आया कि मेरे बड़े साले ध्रुव का आज जन्मदिन है , इसलिये उसे कॉल करके कनॉट प्लेस बुलाया। तब तक कमल भाई पैदल ही कनॉट प्लेस की ओर मुझे भी ले चले। रास्ते में महाराष्ट्र सदन में बैठे हुए डॉ आंबेडकर जी की मूर्ति दिखाई दी , सामान्यतः हर जगह खड़े हुए , ऊँगली दिखते आंबेडकर जी ही दीखते है। हमने फोटो लेने की कोशिश की , लेकिन बहुत अच्छी फोटो न ले सका। रस्ते में ही उग्रसेन की बावली भी देख आये . हालाँकि कोई बहुत विशेष बावली नहीं है, प्रेमी युगलों का मिलान स्थल ज्यादा है, लेकिन अभी हिंदी फिल्म पीके में दिखाई देने के कारण चर्चित ज्यादा हुई। कुछ देर बाद पदयात्रा करते कनॉट प्लेस पहुंचे। हमसे पहले ध्रुव पहुँच चूका था , लेकिन कुछ देर बाद हम पदयात्री भी पहुँच ये , वही कमल भाई ने क जगह प्रसिद्द वेज विरयानी खिलवाई। अब ओला कैब बुक करके निकल पड़े दिल्ली की शान लाल किला को देखने के लिए ...
लेकिन आज किस्मत पूरी तरह से रूठी हुई थी , दिवाली के दिन हमारे साथ ही ऐसा होना था। जानने के लिए जल ही पढ़िए अगला भाग , तब तक फोटो तो देख ही लीजिये ----
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जगमगाता नई दिल्ली रेलवे स्टेशन |
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लिट्टी-चोखे का आनंद |
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जहाँ चार यार मिले। |
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दिल्ली की पहचान : क़ुतुब मीनार |
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धातुकला का अद्भुत नमूना : लौह स्तम्भ |
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अलाइ दरवाजा |
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क़ुतुब मीनार परिसर में ही हिन्दू स्थापत्य कला के प्रमाण |
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इसके बारे में आपका क्या विचार है ? |
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ये स्पष्टतः हिन्दू स्थापत्य है। |
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हवाई जहाज और क़ुतुब मीनार |
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इंडिया गेट के साथ सेल्फी |
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देश की सबसे बड़ी पंचायत : संसद |
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कमल भाई के साथ |
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नार्थ ब्लॉक : केंद्र सरकार का मंत्रालय |
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इंडिया गेट की दीवाल पर लिखे शहीदों के नाम |
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महाराष्ट्र सदन के बाहर बैठे हुए आंबेडकर जी की मूर्ति |
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उग्रसेन की बावली |
वाह गुरूदेव आनंद आ गया।
जवाब देंहटाएंआभार मित्र !
हटाएंआभार मित्र !
हटाएंवाह आनंद आ गया पढ़कर, कुछ देखा और बहुत कुछ रह गया देखने से। जो रह गया वो कभी अगली बार।
जवाब देंहटाएंआभार मित्र
हटाएंवर्दी वाला दिमाग तो काम करेगा ही, सटीक बात कही मुकेश भाई,
जवाब देंहटाएंजो अधिकतर समय जिस क्षेत्र में कार्य करता हो लगभग हर समय उसी में समाया हुआ होता है। खासकर वर्दी वाले भाईयों को तो ना दिन में चैन लेने दिया जाता है ना रात में।
वर्दी वाली नौकारी बेहद कठिन होती है।
हम जैसे कुर्सी तोडू सिविल लोग आठ घंटे की नौकरी की और घर में मजे करते है।
लेख बढिया रहा, आपके लेख से याद आया कि इसी कुतुबमीनार पर एक लेख अपना भी उधार है जल्दी चुकता करता हूँ।
आभार, आपके लेख का इंतजार रहेगा ।
हटाएंआभार, आपके लेख का इंतजार रहेगा ।
हटाएंबहुत ही अच्छा विवरण है वर्तनी में कुछ गलती हुई है
जवाब देंहटाएंकुछ गलतियां तो जानबूझ के छोड़ देता हूँ ।
हटाएंभाई शुक्रिया
बहुत बढ़िया लेख मुकेश जी।
जवाब देंहटाएंगौरव जी आभार
हटाएंहमेशा की तरह शानदार, धाराप्रवाह, रोचक लेखन...👍
जवाब देंहटाएंफोटो भी बढ़िया हैं क्लियर.....👌
डॉ साहब स्नेह बनाये रखिये । सभी फ़ोटो मोबाइल से ली है ।
हटाएंडॉ साहब स्नेह बनाये रखिये । सभी फ़ोटो मोबाइल से ली है ।
हटाएंBahut sunder post pandey ji...agli post ka intzar rhega☺
जवाब देंहटाएंआभार जी
हटाएंलौह स्तंभ का फोटो सबसे जानदार .... अच्छा लगा बहुत दिनों बाद ब्लॉग पर आकर ।
जवाब देंहटाएंजी, आभार !
हटाएंयूं ही स्नेह बनाये रखिये
ओह्ह, जब मैं मिला आपसे तो मालूम भी नही पड़ा कि आपको बुखार है और आप हम दोनों को आधी रात तक झेलते रहे।
जवाब देंहटाएंबुखार तो मुझे भी चढ गया था,अभी तक उतरा भी नहीं है। 😃
हटाएंजब घुमक्कड़ी का बड़ा बुखार हो तो छोटे मोटे बुखार पता ही नही चलते है ।
हटाएंआपकी नजरों से हमने भी दिल्ली दर्शन कर लिया। बहुत सुन्दर लेख साथ ही ज्ञानवर्धक
जवाब देंहटाएंआभार रूपेश भाई जी
हटाएंबहुत बढ़िया और धारा प्रवाह लेख हमेशा की तरह पाण्डेय जी |
जवाब देंहटाएंआपने छतरपुर का माँ कत्यानी जी के दर्शन किये थे की नहीं ?
धन्यवाद लेख और छवियो के लिए ...
रितेश भाई, अमित तिवारी जी और नीरज अवस्थी जी कात्यानी मंदिर में मिलने आये थे ।
हटाएंआभार
घुमक्कडी जिंदाबाद और घुमक्कड दोस्ती बने रहे और यह सफर भी। पांडेय जी बढिया लेख
जवाब देंहटाएंजय हो सचिन भाई
हटाएंसारी करामात कमल की ही रही। 😃
जवाब देंहटाएंकरामात तो अगली पोस्ट में आएगी ।
हटाएंवाकई घुमक्कड़ दुनिया का प्यार देखने लायक है बहुत बढ़िया पोस्ट चंदन जी
जवाब देंहटाएंइतना प्यार तो अपने रिश्तेदारों से नही मिलता । जितना यहां घुमक्कड़ी परिवार के लोगो से मिला ।
हटाएंशुक्रिया प्रतीक भाई
बहुत अच्छे पांडे जी, अच्छा मिश्रण किए है आप दिल्ली भ्रमण का ! एक ही दिन में सब नाप दिया, वैसे मज़ा आया पढ़कर ! अगले भाग का इंतजार रहेगा !
जवाब देंहटाएंलिखना तो बहुत कुछ था, लेकिन समयाभाव में जल्दी समेट दिया ।
हटाएंआभार प्रदीप जी
लिखना तो बहुत कुछ था, लेकिन समयाभाव में जल्दी समेट दिया ।
हटाएंआभार प्रदीप जी
बहुत बढ़िया दारोग़ा साब। मज़ेदार पोस्ट लगी मुझे ये। "खमीर उठा हुआ जौ का रस" ये सबसे मजेदार लगा😀
जवाब देंहटाएंतो कभी आइए हवेली पर ...☺
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार (25-06-2016) को "हिन्दी के ठेकेदारों की हिन्दी" (चर्चा अंक-2649) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार शास्त्री जी ।
जवाब देंहटाएंआभार शास्त्री जी ।
जवाब देंहटाएंsundar .......alaukik
जवाब देंहटाएंवाह, बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया।
जवाब देंहटाएंदीवाली के दिन तो ये होना ही था..😊
जवाब देंहटाएंजौ का खमीर उठा हुआ पानी !! दिल्ली को फिर से देखना अच्छा लगा पांडेय जी !! रोचकता बनी हुई है पूरी पोस्ट में !!
जवाब देंहटाएं