अभी एक मेरी दिल्ली यात्रा में दो भाग पढ़ चुके है। (जिन्होंने नहीं पढ़ा वो दी गयी लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते है - लाल किले की ओर
छतरपुर में बहन जी के घर जाकर दिल्ली की दिवाली का लुत्फ़ उठाया मैंने पहली बार किसी पर्व को दिल्ली जैसे महानगर में मनाया । रात में चारो तरफ आतिशबाजी हो रही थी , पटाखों का शोर था। अमावस्या की घनघोर अँधेरी रात्रि में तारों की जगह धुंए का गुबार दिख रहा था। खैर खुली हवा में साँस लेने आदी हम जल्द ही इस दमघोंटू माहौल से आज़ादी पाने के लिए सो गए। दिल्ली आगमन से ही आ रहे बुखार ने फिर आगोश में ले लिया। अमित तिवारी जी तो अपने बच्चों को लेकर राजस्थान भ्रमण पर निकल गए ताकि दिल्ली के इस प्रदुषण से बचा जा सके।
अगली सुबह यानि 31 अक्टूबर 2016 को नींद सोनीपत निवासी घुमक्कड़ मित्र संजय कौशिक जी के कॉल ने अलार्म का काम किया और हम सोकर उठे। अपने दिल्ली और आसपास के घुमक्कड़ दोस्तों से मिलने की प्लानिंग शुरू। अब मिलने के लिए किस जगह इकठ्ठा हुआ जाये , इस को लेकर चर्चा चल रही थी। क्यूंकि कुछ लोग सोनीपत , गुरुग्राम से आने वाले थे , कुछ नॉएडा , ग़ज़ियाबाद से तो कुछ दिल्ली से ही आ रहे थे। दिवाली के कारण ऑटो, कैब कम ही उपलब्ध थी , अतः मेट्रो ही एक सहारा थी। इसलिए ऐसी जगह चुननी थी जो सबको पास पड़े। खैर जगह फाइनल की गयी , कनॉट प्लेस का सेंट्रल पार्क। खैर मैं पहुँच गया , छतरपुर मेट्रो स्टेशन , जहाँ सोनीपत से संजय कौशिक जी , गुरुग्राम से महेश सेमवाल जी तो करावल नगर से अनिल दीक्षित जी अपनी इनोवा से आने वाले थे। मिलने की उत्सुकता इतनी ज्यादा थी, कि समय से पहले ही पहुंच गया था। अब इंतजार की घड़ियां काटे न कटे। अंततः प्रतीक्षा समाप्त हुई , और वो आये .... इन सभी से पहली बार मिल रहा था . देखते ही गले लग गए .. जैसे कबके बिछड़े .. यहाँ आके मिले । फिर सेमवाल जी के सुझाव पर सरोजनी नगर की ओर इनोवा से निकल पड़े , वहां के प्रसिद्द पकोड़े खाने के लिए। पकोड़े वाकई स्वादिष्ट थे। यहां लहसुन, प्याज ,अदरक के अलावा भी कई तरह के पकोड़े मिल रहे थे। पकोड़ो की दुकान पर जब चर्चा हुई , कि लग ही नहीं रहा , हम पहली बार मिल रहे। ये सुनकर कौशिक को पहली बार मिलने का आभास हुआ , तो फिर से गले मिले। खैर कई तरह की बातें हुई। कौशिक जी और अनिल भाई को अपनी ड्यूटी पर जाना था। इसलिए सेमवाल जी और मैं वही रुक गया और अनिल भाई अपनी इनोवा में कौशिक जी को लेकर ड्यूटी पर निकल लिए। मैं और सेमवाल जी मेट्रो से राजीव चौक स्टेशन उतरे , फिर सेंट्रल पार्क पहुंचे .. लेकिन मायूसी हाथ लगी। आज बुधवार के दिन पार्क मेंटेनस के लिए रहता है। तभी बीनू कुकरेती उर्फ़ विजय कुकरेती उर्फ़ रमता जोगी जी का कॉल आया कि वो भी कुछ देर में सेंट्रल पार्क पहुँच रहे है। तो थोड़ा इंतजार किया , कि छरहरे शरीर वाले गढ़वाली पंडित रमता जोगी जी आ ही गए। अब भरत-मिलाप के बाद निर्णय लिया गया , कि पालिका बाजार के पार्क पर डेरा जमाया जाये।
अब हम पास ही बने पालिका बाजार के ऊपर बने पार्क में पहुँच गए। पालिका बाजार भारत का पहला भूमिगत बाजार है। फ़िलहाल ये बाजार अपने सस्ते सामानों के लिए विख्यात है। इसका एक कारण चोरी का माल यहां बिकना भी है। खैर मेरे लिए अभी अपने घुमक्कड़ मित्रो से मिलना जरुरी था , इसलिए पालिका बाजार से नजरे दो-चार न हो सकी। पालिका बाजार में डेरा ज़माने के बाद एक -एक करके कमल कुमार सिंह , रुपेश शर्मा जी (ग्रेटर नॉएडा से ) , सचिन त्यागी जी ( गाजियाबाद से ) आ गए। सेमवाल जी ने पालिका बाजार से ही एक गोल टावर नुमा ईमारत को बताते हुए बताया , कि ये भारत का पहला घूमता हुआ रेस्टोरेंट है , फ़िलहाल इसमें कम ही रौनक है। अब जब सब लोग इकट्ठे हो ही गए तो चर्चाएं घुमक्कड़ी की चलने लगी। मन बड़ा ही प्रसन्न था , आखिर एक दूसरे से अनजान लोग जब किसी आभासी माध्यम (सोशल मीडिया ) से परिचित हो तो ख़ुशी कुछ और ही होती है। रुपेश जी अपने इलाके की प्रसिद्द बालूशाही लेकर आये थे, सचिन की अलग मिठाई लेकर आये थे। बीनू भाई अपने सोनी के कैमरे से इस यादगार पल को कैद कर रहे थे। हमारी पृष्ठभूमि में सेंट्रल पार्क का विशालकाय राष्ट्रिय ध्वज तिरंगा माहौल को एक अलग ही रंग भर रहा था। सबसे मिलने पर किसी को भी नहीं लग रहा था , कि हम पहली बार मिल रहे है। मेरे मन में तो अलग ही ख़ुशी थी, कि पहले भी दिल्ली आया तो रिश्तेदारों से मिला। अबकी बार नए रिश्ते बने। मिलने के बाद बिछड़ना भी तो पड़ता , आखिरकार फिर से जो मिलना है। खैर चर्चाओं के बाद सब अपने अपने धाम के लिए निकल पड़े ....
अब हम तीन लोग बचे मैं मेरी इस दिल्ली यात्रा में छाये रहे कमल कुमार जी और बीनू भाई। तो कमल भाई अपनी आदतानुसार एक बार में हमे ले गए जो उनके एक पहाड़ी मित्र का था। फिर कमल भाई जो खमीर उठे जौ के रस में सराबोर हुए तो महफ़िल उठने का नाम ही ले। जैसे तैसे बीनू भाई और मैंने उन्हें वहां से बाहर लेकर आये तो ऑटो से रात में मुझे इंडिया गेट और सचिवालय की सैर कराने ले आये . रस्ते भर उनकी गजल गायकी सुनते आये . बड़ी मुश्किल से मुझे छतरपुर छोड़ा , फिर बहन के यहाँ खाना खाया , और शादीपुर के लिए निकला , क्यूंकि सुबह साढ़े छह बजे नई दिल्ली स्टेशन से झाँसी के लिए शताब्दी एक्सप्रेस पकड़नी थी। सुबह ध्रुव के साथ जब शादीपुर मेट्रो स्टेशन पहुंचा तो इतनी सुबह कोई मेट्रो नहीं थी। मजबूरन एक ऑटो किया और स्टेशन पहुंचकर शताब्दी एक्सप्रेस में सवार हो गया अपने साथ कई अनूठी यादें लेकर .......
हाँ , इस यात्रा ने एक नई यात्रा का बीज बो दिया था , जहाँ एक जगह पर इससे भी ज्यादा घुमक्कड़ मित्रों को मिलना था जानने के लिए आगे दी गयी लिंक पर क्लिक कीजिये। ........ महामिलन की पूर्वकथा ; असंभव से संभव तक
पकोड़ों का आनंद लेते हुए हम लोग |
सेंट्रल पार्क में लहराता हमारा तिरंगा |
लो पहुँच गए पालिका बाजार |
बांये से सचिन त्यागी, कमल सिंह, रुपेश शर्मा , महेश सेमवाल और मैं |
अब चलने की तैयारी |
फिर मिलेंगे चलते-चलते |
अरे वाह हमरे बालम दरोगा , एक हमें ही खबर न हुई , सारे जमाने को खबर थी | अगली बार का पक्का वादा करिए अभी के अभी , अगली बार रूबरू होंगे आपसे | बढ़िया घुमक्कड़ी
जवाब देंहटाएंअजय भाई, हो सकता इस रक्षा बंधन में ही दिल्ली आने का प्लान बन जाये । आपको भी खबर करेंगे ।
हटाएंबढ़िया ! यह मुलाकात तो हमारी बीमारी की भेंट चढ़ गई :( शायद संयोग ही नही था। पर आप बाकी मित्रों से मिल लिए, यह सुखद रहा :)
जवाब देंहटाएंबीनू और सोनी का कैमरा ! यह तो अब रूपक ही हो गया है :)
शेष मिलने पर....
जल्द मिलेंगे पाहवा जी
हटाएंवाह, बहुत ही रोचक और सुंदर तस्वीरें, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
राम राम ताऊ
हटाएंतिरंगा और यार दोनो दिल से जुडे है ।
जवाब देंहटाएंसच कहा किशन जी
जवाब देंहटाएंआपसे मिलने का सपना मन में संजोये हुए थे।और ये तो कहावत है ही कि आप जो काम दिल से सोचो तो ईश्वर भी उसे पूरा करा ही देते हैं।आपसे मिलने के कई प्रोग्राम बने कई धराशायी हुए।अंततः सब कुछ सही हुआ,आपसे मिलकर आपके गले लगकर जो सुखद एहसास हुआ उसका शब्दों में वर्णन करना कठिन है।"तेरा मुझसे है पहले का नाता कोई, यूँ ही नहीं दिल लुभाता कोई"आप वाकई मित्रता के "चन्दन"हो जिसकी हर तरफ महक है।
जवाब देंहटाएंआभार रुपेश भाई!
हटाएंवाह मुकेश जी, फिर से उसी दिन में ले जाने के लिए शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया बीनु भाई
जवाब देंहटाएंगजल तो हमको भी सुनाते कमल सिंह, लेकिन बच गए, क्योंकि हम ही गजल सुनाने के मुड में थे। बाकी जो है सो तो हैइए हैं। :)
जवाब देंहटाएंअब आपकी बात ही अलग है , महाराज
हटाएंअब आपकी बात ही अलग है , महाराज
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंकब बिछडे आज यहां आके मिले
जवाब देंहटाएंएक यादगार मिलन
आज पता चला कि रमता जोगी, विनय कुररेती और बीनू कुकरेती एक ही हैं
विनय नही विजय है ।
हटाएंहमारे ब्लॉग पर आते रहिये कुछ न कुछ पता चलता रहेगा । ;-)
आभार जी
कब बिछडे आज यहां आके मिले
जवाब देंहटाएंएक यादगार मिलन
आज पता चला कि रमता जोगी, विनय कुररेती और बीनू कुकरेती एक ही हैं
Nice घुमक्कड़ मिलन
जवाब देंहटाएंजी, आभार
हटाएंशुरुआत आपसे ही हुई थी
यादें ताजा हो गई पांडेय जी,,, यह घुमक्कड मिलन बेहद शानदार रहा।
जवाब देंहटाएंजी सही कहा
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (10-07-2017) को "एक देश एक टैक्स" (चर्चा अंक-2662) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार शास्त्री जी
हटाएंवाह दिल्ली के दिल वालों से बढ़िया भेट...
जवाब देंहटाएं👍👍👌👌
आभार डॉ साहब
जवाब देंहटाएंआभार डॉ साहब
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर पांडेय जी।
जवाब देंहटाएंमिलने के नाम पर जो मन मे लड्डू फूटते है उसकी कल्पना से ही सुखद अहसास होता है।बढ़िया लेखन।
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जवाब देंहटाएंरूबरू होने सपना पता नहीं कब पूरा होगा लेकिन जब भी मिले घुमक्कड़ी तो जरूर होगी
जबरदस्त मिलन ! दिल्ली में आपने टूरिस्ट प्लेस तो देखे ही , मित्रों से भी खूब मिलन हुआ !!
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