पता नहीं क्यों आज एक साल हो गया , लेकिन कई बार चाह कर भी बाबा गुप्तेश्वर नाथ की यात्रा और दर्शन लिख नहीं पाया इसकी शुरुआत पिछले साल ही कर दी थी , लेकिन शुरूआती दो भाग लिखने के बाद जब तीसरा बाबा गुप्तेश्वर नाथ के बारे में बताने की बारी आती , तो कुछ न कुछ विघ्न आ जाते थे। जैसे बाबा गुप्तेश्वर नाथ से लौटते समय ही झरने में नहाते समय मोबाइल से फोटो लेने के कारण मोबाइल में पानी चला गया , और मोबाइल ख़राब हो गया। अच्छा ये रहा कि मोबाइल ख़राब होने के पहले ही मैंने फोटो संजय सिंह जी और अनुज मोनू को फोटो शेयर कर दिए थे। बाद में मोबाइल होने से वो फोटो गायब हो गए। और भी कई बाधाएं आती रही और बाबा गुप्तेश्वर नाथ जी गुप्त ही बने रहे। खैर ठीक एक साल बाद सावन के महीने में पहले सोमवार को ये पोस्ट लिखने बैठा हूँ . इससे पहले की राम कहानी आप इन लिंक को क्लिक करके पढ़ सकते है।
अगर आप इस यात्रा को शुरू से पढ़ना चाहते है , तो इन लिंक्स पर क्लिक करके पढ़ सकते है। (वैसे मजा तो तभी आएगा जब आप इस यात्रा को शुरू से ही पढ़े। आगे आपकी की मर्जी।
गुप्ता बाबा की यात्रा की शुरुआत (पहला भाग )
माँ ताराचंडी और महाभारतकालीन शिव जी (दूसरा भाग )
अपनी यात्रा पर ले चलने के पहले आपको गुप्तेश्वर धाम के बारे में कुछ जानकारी बता दूँ
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गुप्ता बाबा की यात्रा की शुरुआत (पहला भाग )
माँ ताराचंडी और महाभारतकालीन शिव जी (दूसरा भाग )
अपनी यात्रा पर ले चलने के पहले आपको गुप्तेश्वर धाम के बारे में कुछ जानकारी बता दूँ
बिहार के रोहतास जिले (सासाराम) के गुप्तेश्वर धाम (गुप्ता धाम) गुफा में स्थित शिवलिंग की महिमा का बखान आदिकाल व पौराणिक है। मान्यता है कि इस गुफा में जलाभिषेक करने से भक्तों की सभी मन्नतें, मनोकामनाएं पूरीं हो जाती हैं।
पुराणों में वर्णित भगवान शंकर व भस्मासुर से जुड़ी कथा को जीवंत रखे हुए ऐतिहासिक गुप्तेश्वरनाथ महादेव का गुफा मंदिर आज भी रहस्यमय बना हुआ है। देवघर के बाबाधाम की तरह गुप्तेश्वरनाथ यानी गुप्ताधाम बेहद श्रद्धा व शक्ति संपन्न है।
यहां रामायण कालीन धार्मिक नगरी बक्सर (जहां राम-लक्ष्मण को विश्वामित्र यज्ञ रक्षा के लिए ले गए थे) से पवित्र गंगाजल लेकर शिवलिंग पर चढ़ाने की परंपरा है। रोहतास में अवस्थित विंध्य पर्वत श्रृख्ला की कैमूर पहाड़ी के जंगलों से घिरे गुप्ताधाम गुफा की प्राचीनता के बारे में कई पुरानी सूचनाएं हैं। हालांकि, इसकी बनावट को देखकर पुरातत्वविद् अब तक यह तय नहीं कर पाए हैं कि यह गुफा मानव निर्मित है या प्राकृतिक।
कई पुस्तकों के लेखक इतिहासकार श्याम सुंदर तिवारी कहते हैं कि गुफा के नाचघर व घुड़दौड़ मैदान के बगल में स्थित पाताल गंगा के पास दीवार पर उत्कीर्ण शिलालेख, जिसे श्रद्धालु ब्रह्मा के लेख के नाम से जानते हैं, को पढ़ने से संभव है, इस गुफा के कई रहस्य खुल जाएं।
गुफा में गहन अंधेरा होता है, बिना कृत्रिम प्रकाश के भीतर जाना संभव नहीं है। पहाड़ी पर स्थित इस पवित्र गुफा का द्वार 18 फीट चौड़ा एवं 12 फीट ऊंचा मेहराबनुमा है। गुफा में लगभग 363 फीट अंदर जाने पर बहुत बड़ा गड्ढा है, जिसमें सालभर पानी रहता है। इसे पातालगंगा कहा जाता है।
गुफा के अंदर प्राचीन काल के दुर्लभ शैलचित्र आज भी मौजूद हैं। इसके कुछ आगे जाने के बाद शिवलिंग के दर्शन होते हैं। गुफा के अंदर अवस्थित प्राकृतिक शिवलिंग पर हमेशा ऊपर से पानी टपकता है। इस पानी को श्रद्धालु प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं।
शिव ने यहीं ली थी भस्मासुर से बचने के लिए शरण
इस स्थान पर सावन के महीने के अलावा सरस्वती पूजा और महाशिवरात्रि के मौके पर मेला लगता है। जनश्रृतियों के मुताबिक, कैलाश पर्वत पर मां पार्वती के साथ विराजमान भगवान शिव ने जब भस्मासुर की तपस्या से खुश होकर उसे सिर पर हाथ रखते ही भस्म करने का वरदान दिया था।
भस्मासुर मां पार्वती के सौंदर्य पर मोहित होकर शिव से मिले वरदान की परीक्षा लेने के लिए उन्हीं के सिर पर हाथ रखने के लिए दौड़ा। वहां से भागकर शंकरजी यहां की गुफा के गुप्त स्थान में छुप गए।
भगवान विष्णु से शिव की यह विवशता देखी नहीं गई और उन्होंने मोहिनी रूप धारण कर भस्मासुर का नाश किया। उसके बाद गुफा के अंदर छुपे भोले बाहर निकले।
सासाराम के वरिष्ठ पत्रकार विनोद तिवारी कहते हैं, शाहाबाद गजेटियर में दर्ज फ्रांसिस बुकानन नामक अंग्रेज विद्वान की टिप्पणियों के अनुसार, गुफा में जलने के कारण उसका आधा हिस्सा काला होने के सबूत आज भी देखने को मिलते हैं।
सावन में एक महीने तक बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और नेपाल से हजारों शिवभक्त यहां आकर जलाभिषेक करते हैं। बक्सर से गंगाजल लेकर गुप्ता धाम पहुंचने वाले भक्तों का तांता लगा रहता है।
(साभार -वेब दुनिया और अन्य स्रोत )
अब अपनी रामकहानी शुरू
तो अभी तक आपने पढ़ा था , कि हम लोग सासाराम और ताराचंडी देवी के दर्शन के बाद सासाराम रेलवे स्टेशन के माइक्रो वेब के ऑफिस में संजय कुमार सिंह जी का इंतजार कर रहे थे, तभी बड़ी जोर की बारिश होने लगी थी। रात के लगभग 10 बजे संजय जी आये और हम लोग निकल पड़े अपनी फोर्ड फिगो कार से सासाराम से बाबा गुप्तेश्वर नाथ धाम की ओर। शहर के बाहर होने पर संजय ने मुझे अपनी गाड़ी के ऊपर जल रही नीली बत्ती बंद करने का आग्रह किया, क्यूंकि अब हम नक्सली क्षेत्र की ओर जा रहे थे। और नीली बत्ती उस क्षेत्र में खतरनाक हो सकती थी। इधर रात गहरा रही थी, और मेरा रोमांच भी बढ़ता जा रहा था। भीगी रात में गांव की सड़क पर पुराने सदाबहार गानों के साथ ही हमारी कार आगे बढ़ रही थी। एक तो गांवों में लोग जल्दी सो जाते है , और बारिश हो जाने के कारण हमें गांव सन्नाटे से भरे ही मिल रहे थे, और इन सन्नाटों को चीर कर हमारी कार आगे बढ़ रही थी। मैं खुद कार ड्राइव कर रहा था , मेरे बगल में बैठकर संजय जी मार्गदर्शक की भूमिका में थे। बारिश हो जाने से सड़क के आस पास के खेत पानी से लबालब भरे थे , चूँकि ये धान का क्षेत्र था, इसलिए ये पानी धान के लिए बढ़िया था। रास्ते में भी कई जगह नाले भरे मिले , जिन्हे अपनी कार से पार करना पड़ा। कई बार रास्तें को लेकर भ्रम की स्थिति निर्मित हुई , लेकिन संजय जी के आत्मविश्वास पर विश्वास कर बम भोले कर निकल पड़े। हालाँकि कई जगह संजय जी भी रात होने के कारण डगमगाए मगर इतनी रात को कोई बताने वाला भी नहीं था। बीच में एकाध टेम्पो वाले मिले जो सासाराम से बम लेकर पनियारी (गुप्तेश्वर धाम का बेस कैंप ) जा रहे। इन टेम्पो को देखकर हमारी भी जान में जान आई , और हम भी तेजी से बोल बम का नारा लगाकर निकल पड़े। भोले के भरोसे हम रात के लगभग एक बजे पनारी पहुंचे। चेनारी वाला रास्ता बरसात की वजह से अभी बंद रहता है। इसलिये पनारी से दो पहाड़ पार कर लम्बे रस्ते से पैदल ही जाना पड़ता है। चेनारी वाले मार्ग से ट्रेक्टर आदि से लोग शिवरात्रि के समय जाते है। यहाँ हमें चहल-पहल मिली। लोग प्रसाद और रसद की दुकानों में सो रहे थे , कुछ बरसाती नालें में नहा रहे थे , तो कुछ झोला उठाकर बाबा गुप्तेश्वर से मिलने निकल पड़े थे। हमने भी गाड़ी पार्किंग में लगाई , और साठ रूपये की पार्किंग की रसीद कटवाई। कहते है , यहां सारी व्यवस्था नक्सली ही करते है। हमें भी यहां बिहार सरकार का कोई नुमाइंदा नजर नहीं आया। मैंने सबसे पहले अपनी कार से नीली बत्ती निकालकर गाड़ी के अंदर रखी।
अब संजय जी की सलाह थी , कि कुछ देर आराम किया जाये फिर सुबह चार बजे के लगभग चढ़ाई शुरू की जाये। जबकि मेरा मानना था, कि अगर सोये तो खोये। फिर सुबह धूप भी हो जाएगी , तो चढ़ाई मुश्किल होगी। अभी आलस भी नहीं है। सबने मेरे विचार का समर्थन किया , और ऊपर पहाड़ी पर कुछ टोर्च की रौशनी भी दिख रही थी , अतः हमारा भी मनोबल बढ़ा। फिर सबने अपने कपडे निकालकर गाड़ी में रखे और बोल बम वाले गेरुए वस्त्र धारण कर बम बन गए। पास ही एक दुकान से चीन वाली टॉर्च खरीदी और चल पड़े बाबा गुप्तेश्वर नाथ से मिलने। दो नाले पार कर चढ़ाई शुरू हुई। शुरुआत ही खड़ी चढ़ाई से हुई। अँधेरे में खड़ी चढ़ाई देखकर मन डोलने लगा। तभी हमारे पीछे से महिलाओं का एक दल चढ़ाई करते हुए निकला , जिनमे कुछ बुजुर्ग महिलाएं भी थी। अब चूँकि खड़ी चढ़ाई थी, और रास्ता संकरा था। इसलिए हमें महिलाओं को आगे निकलने देने के लिए खड़ा होना पड़ा। तो टार्च की रौशनी में बुजुर्ग महिलाओं का जोश देखकर हम भी जोश में आ गए। और बोल बम का जयकारा लगाकर तीखे-नुकीले पत्थरों के संकरे खड़ी चढ़ाई वाले रस्ते पर अँधेरे में टॉर्च की रौशनी में आगे बढ़ने लगे। पहले तो चढ़ाई चढ़ने में मजा आ रहा था , लेकिन एकाध किलोमीटर चढ़ने के बाद थकावट लगने लगी। अतः छह लोगो के दल में मैं और संजय जी सबसे पीछे हो गए। रास्ते में जब चढ़ाई के बाद समतल मैदान आया तो कुछ आराम मिला। हालाँकि हम मैदान में नहीं बल्कि पहाड़ के ऊपर चल रहे थे। रास्ते में छोटे छोटे नाले और झरने मिल रहे थे। अचानक एक बांध मिला जिसके आगे रास्ता ही समझ नहीं आ रहा था। फिर कुछ देर इंतजार करने पर पीछे से कुछ और लोग आये तब उनके पीछे पीछे हम भी आगे बढे। तभी एक काला सा बड़े आकार वाला बिच्छू दिखा , जिसे पहले रास्ता पार करने दिया। उसके बाद हम आगे बढ़े। तीन-चार किलोमीटर चलने के बाद कुछ चाय-नाश्ते की दुकानें मिली। हालाँकि दूध न मिलने के कारण यहाँ नींबू वाली चाय (ब्लैक टी ) मिल रही थी। यहां चाय पीकर कुछ देर सुस्ताये और फिर चल दिए। आगे बढ़ने पर एक तालाबनुमा संरचना मिली , जिसके किनारे सीमेंट से पक्के बने थे। सीमेंट की उस पट्टी पर से हम लोग पार कर आगे बढे। लग रहा था, कि ये रात ख़त्म ही नहीं होगी। जैसे -जैसे आगे बढ़ते जा रहे थे, वैसे-वैसे शरीर पर थकान और नींद हावी हो रही थी। खैर आगे एक जगह चट्टानों पर मैं पसर ही गया। मुझे पसरा देखकर बाकी लोग भी मजबूरन वही रुक गए। खुले आसमान की रजाई और नीचे चट्टानों का बिछौना पाकर तुरंत नींद आ गयी।
लेकिन एक घण्टे भी न हुए थे , और आसमान से पानी टपकने लगा। अब जागना मज़बूरी थी। हालाँकि अब सुबह का उजाला होने लगा था। ठंडी ठंडी बयार चल रही , पानी की बूंदे गाल सहला रही थी। झोला उठाकर चल पड़े। आगे दूसरे पहाड़ और उनके बीच की खाई स्पष्ट दिख रही थी। लेकिन खाई में रुई के फाहे से बादल जब टहलते नजर आये तो मन झूम उठा। मैंने दौड़कर उनकी फोटो खींची। सुबह इतनी शानदार होगी सोचा न था। आगे फिर एक चाय की दुकान पर नींबू वाली सबने चाय पी . चाय की दुकान के आगे लाल मुंह के बन्दर और काले मुंह वाले लंगूर एक साथ झुण्ड में बैठे थे। सामान्यतः लंगूर और बन्दर एक साथ नहीं मिलते। खैर दुकानदार ने इनसे सतर्क रहने को कहा था। हमारे सामने ही एक व्यक्ति से बिस्कुट छीन कर बन्दर भागे थे। हम लोगो ने इनसे बचने के लिए अपने हाथों में लकड़ियां उठा ली। इन बंदरों और लंगूरों के बच्चे अपनी अपनी माँओं के सीने से चिपके हुए थे। वैसे बच्चे किसी भी जीव के हो ,बहुत प्यारे लगते है। मैं भी तो अपना तीन माह का बच्चा घर छोड़कर आया था। सुबह के सुहावने मौसम से थकान दूर हो गयी गयी थी , इसलिए कदम तेजी से आगे बढ़ रहे थे। अब सीधी मगर खतरनाक उतराई चालू हो गयी थी। सामने सफ़ेद बादल मस्ती में घूम रहे थे। मैंने सोचा अब उतरने के बाद ठौर मिल जायेगा। मगर मोहि कहाँ विश्राम...असली रोमांच बाकी था।
रास्ते में इस तरह मिनरल वाटर का आनंद लेते चले । |
ऊंची नीची है डगरिया... |
सीधी और खतरनाक उतराई |
बांये से संजय जी , चाचा जी , अखिलेश जी , मोनू, टिंकू और मैं |
बम भोले |
रास्ते के मनमोहक नजारे |
बन्दर और लंगूर एक साथ |
आवारा बादल |
अगली पोस्ट में दर्शन कीजिये बाबा गुप्तेश्वर नाथ के और एक ऐसे नजारे के जो हम लोगो के लिए भी सरप्राइज था। बम भोले
जय भोले
जवाब देंहटाएंरास्ता वाकई दुरूह है, यह दिन के उजाले में भी तय करना चुनौती है और लोग इसे रात्रि के घुप्प अंधकार में भी तय कर रहे थे ! वाकई, आस्था एक बहुत बड़ी प्रेरक शक्ति है !
जवाब देंहटाएंआज की इस पोस्ट से पुराने वाले पाण्डे जी वापिस मिल गए, भाषाई अलंकारिता जिनकी पहचान भी है और कलम की ताकत भी...पर दिल्ली वाली सीरीज में कुछ अनमने से लग रहे थे 😊
आभार पाहवा जी ।
हटाएंशानदार यात्रा वृतांत और साहसिक यात्रा। मेरे लिए एक नए स्थान की जानकारी है।
हटाएंबधाई आपको
बढ़िया आलेख, हर हर महादेव।
जवाब देंहटाएंहर हर महादेव ।
हटाएंबहुत सुन्दर विवरण, पढ़कर अच्छा लगा, आज भष्मासुर के डर से भगवान शिव के छुपने के स्थान के बारे में भी जान गए , भोले के भक्त के लिए रात दिन एक जैसा होता है और आपने रात में चढ़ाई की , दो पहाड़ों के बीच जब बादल आते है वो भावविभोर कर ही देते हैं , अगले भाग की प्रतीक्षा में...
जवाब देंहटाएंआभार अभयानंद जी
हटाएंजिस फोटो का कैप्शन "रास्ते के मनमोहक नजारे" लिखा है बहुत बढ़िया लगा
जवाब देंहटाएंअब क्या बताये ? ऐसी और भी बहुत सी फ़ोटो और नजारे थे, मगर अब सिर्फ अफसोस ही बचा ।
हटाएंबाद मुकेश जी। बढ़िया।
जवाब देंहटाएंजी आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर यात्रा वृतांत लिखा आपने, तस्वीरें बहुत ही मनमोहक हैं, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
रामराम ताऊ !
हटाएंआभार
सुंदर लेख। हर हर महादेव
जवाब देंहटाएंबम भोले
हटाएंबम भोले
हटाएंबम भोले
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (12-07-2017) को "विश्व जनसंख्या दिवस..करोगे मुझसे दोस्ती ?" (चर्चा अंक-2664) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार शास्त्री जी
हटाएंसुन्दर नज़रों के साथ सुन्दर वर्णन मुकेश जी ...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया गौरव जी
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंखराब मौसम, नक्सली, बिच्छू,घुप्प अंधेरा भी आप लोगों को यात्रा पूरी करने से नही रोक पाए, वाह। यात्रा का वर्णन भी बहुत सुंदर शब्दों में मज़ेदार तरीके से किया आपने। फोटोज़ भी बहुत बढ़िया लिए आपने। शानदार पोस्ट पांडेय जी।
जवाब देंहटाएंसब भोले बाबा की कृपा थी ।
जवाब देंहटाएंरात को भीगी सड़क पर सदाबहार गानो के साथ कार में घूमने का आनंद ही अलग है चंदन जी
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहा प्रतीक भाई।
हटाएंबिल्कुल सही कहा प्रतीक भाई।
हटाएंबेहतरीन series मुकेश जी
जवाब देंहटाएंमन प्रसन्न हो गया
शुक्रिया साँझा करने के लिए
आभार Stone जी । आपका नाम स्टोन पढ़ कारण जानने की जिज्ञासा जाग गयी है ।
हटाएंइस के पीछे १ boring और बचकानी कहानी है, फिर कभी मिलने पर सुनाएंगे दरोगा जी
हटाएं:-)
चलों, कहानी फिर सुन लेंगे । अपना असली नाम तो बता दीजिए
हटाएंसंदीप भास्कर
हटाएंबहुत बढ़िया लेख पाण्डेय जी ...
जवाब देंहटाएंचित्रों से मार्ग की कठिनाई का अहसास हो रहा है ....
नमस्कार पाण्डेय जी, बाबा गुप्तेश्वरनाथ जी की वजह से आज दो अन्जान बाबा के भक्त साथ हो लिये । हमने अपनी यात्रा चेनारी के रास्ते उगहनी घाट सीधी चढ़ाई से की था करीब पौने आठ बजे रात्रि को हम चार बमों के साथ अपनी यात्रा शुरूकी। चुकि, और बम पहले भी हो आये थे पर मैं पहली बार जा रहा था तो ज्यादा उत्साहित था। दर्शन और यात्रा बहुत अच्छी रही, पर मौसम ने बहुत सताया। हम रात को यह सोच कर चले की सुबह काफी समय मिलेगा आस-पास घुमने और मनमोहक दृश्यों के तस्वीरों को कैमरे में कैद करने का, पर मूसलधार बारिश और उफनता बरसाती नदियों ने ऐसा करने में बाधा डालने में कोई कोताही नहीं बरती । हालात जान बचा कर निकलने वाली हे गयी थी हम लोग सात घंटों तक बाढ़ में बंधक बने रहे जैसे तैसे उफनती नदी दुर्गावती और अन्य बरसाती नदियों को बड़े बड़े लकड़ियों के सहारे बह कर, तैर कर नहीं कहूंगा क्योंकि मुझे तैरना नहीं आता, बाबा के कृपा से पार किया । बहुत अविस्मरणीय यात्रा रही हमारी । मित्र अभयानन्दजी ने आपके मोबाइल फोन के खराब होने और तस्वीरों के खराब होने की बात बतायी बड़ा अफसोस हुआ क्योंकि यात्रा पर ली गयी तस्वीरें ही तो बहुमूल्य खजाना होती हैं एक घुमक्कड़ के लिए । मैनें भी कैमरे को पानी से बचाने की ख़ातिर कम ही फोटो लिये थे ।
जवाब देंहटाएंनमस्कार बीरेंद्र जी, उस समय जरूर ये सब मुसीबत लगता है, लेकिन बाद में यादगार हो जाता है । जय गुप्ता बाबा
हटाएंनमस्कार बीरेंद्र जी, उस समय जरूर ये सब मुसीबत लगता है, लेकिन बाद में यादगार हो जाता है । जय गुप्ता बाबा
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