ताजमहल की छत पर आइंस्टीन
भारत में लगभग हर घुमक्कड़ या पर्यटक का सपना होता है , कि वह अपनी जिंदगी में एक बार ताजमहल जरूर देखे। यहां तक विदेशी पर्यटक भी भारत घूमते वक़्त ताजमहल घूमना चाहते है। विदेशी राजप्रमुख भी अपने व्यस्त दौरे में ताजमहल के लिए समय निकल ही लेते है। तो इसी तरह से हमारी भी बचपन से इच्छा थी, कि हम भी ताजमहल के दीदार करे। जब 2007 में दुनिया के नए अजूबों के लिए प्रतियोगिता चल रही थी , तो हमने भी ताजमहल के समर्थन के लिए ताबड़तोड़ सात कवितायेँ लिख डाली और दैनिक भास्कर में भेज भी दी , अब सात कवितायेँ तो नहीं छपी , हाँ एक कविता की चार लाइन जरूर छाप गयी थी। वही दूसरी तरह टुच्चे से लोग अपनी ताजमहल के साथ फोटो भेज दें तो तुरंत छप रही थी। खैर " वक़्त के गाल पर ठहरे हुए आंसू " (गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर ने ताजमहल के लिए कहा था ) के लिखी कविताओं के लिए हमने भी गाल पर आंसू बहा लिए। ये तो हुई पुरानी बातें अब आते है , ताजमहल की वर्तमान यात्रा के सन्दर्भ के बारे में ... तो मेरे बेटे अनिमेष के दूसरे जन्मदिन (25 अप्रैल ) पर मेरे साढ़ू और बड़ी साली आने वाले थे, और उन्हें ताजमहल देखने जाना था। हालाँकि मेरा मन नहीं था ,क्यूंकि गर्मी अपने चरम पर थी, और आगरा में गर्मी भी भीषणतम रूप में पड़ रही है। लेकिन जब ससुराल पक्ष से प्रस्ताव आया तो मन मारकर भी जाना ही पड़ेगा। खैर जन्मदिन के बाद आनन -फानन में कार्यक्रम बनाया। आगरा में गॉइड मित्र आशीष कुमार के माध्यम से होटल में रूम बुक कराया। उस दिन विवाह के लग्न अधिक होने से बड़ी मुश्किल से कमरे मिले , और इधर ओरछा में बड़ी मुश्किल से इनोवा। अब 28 अप्रैल को हम चल पड़े 6 व्यस्क और 3 बच्चे आगरा की ओर...... झाँसी , दतिया , ग्वालियर , मुरैना , धौलपुर होकर आखिरकार 6 घंटे में आगरा पहुँच ही गए।
आगरा पहुंचकर होटल सीरीस 18 में चेक इन किया , होटल बढ़िया था। हमारे होटल पहुँचने के कुछ देर बाद ही हमारे मित्र आशीष भाई भी सपरिवार आ गये, साथ आगरा का मशहूर पंछी पेठा लेकर आये थे । आशीष भाई का अधिकार पूर्वक आग्रह था , कि आज का रात्रिभोज उनकी तरफ से होगा। हम न भी नहीं कर सकते थे , आखिर इलाहबाद में हमारे संघर्ष के साथी का जो आग्रह था। हम लोग फ्रेश होने के बाद फतेहाबाद में ही केसर रेस्टोरेंट आशीष भाई के साथ पहुँचे। आशीष भाई की पत्नी यानि हमारी भाभी जी और उनके बच्चो से हम पहली बार मिल रहे थे , मगर लगा ही नहीं कि पहली मुलाकात है। उसी दौरान आगरा में रहने वाले एक और मित्र रितेश गुप्ता जी को भी कॉल किया , तो वे भी अपनी बाइक से केसर रेस्टोरेंट आ गए और रितेश जी भी हमारे लिए पेठा लेकर आये । रितेश जी सोशल मीडिया का एक जाना-माना नाम है। रितेश जी
सफर है सुहाना नाम से एक यात्रा ब्लॉग भी लिखते है।
घुमक्कड़ी दिल से फेसबुक ग्रुप के एडमिन भी है। इस ग्रुप में देश-विदेश के लगभग 14 हजार से भी ज्यादा सदस्य है। खैर आज का दिन का सफर हमरे लिए दिल से सुहाना हो गया था। भोजन पश्चात् हम होटल वापिस हुए। आशीष भाई से सुबह 6 बजे तैयार मिलने का कहकर विदा लिया।
29 अप्रैल की सुबह हम दुनिया के सात आश्चयों में से एक आश्चर्य को देखने 6 बजे तैयार हो गए। आशीष भाई के आते ही हम निकल पड़े। आशीष भाई ने कल ही बता दिया था , कि ताजमहल में कोई भी खाने-पीने की सामग्री अन्य अतिरिक्त सामान न रखे , क्यूंकि शुरुआत में ही सिक्योरिटी चेक में सब बाहर ही रखवा दिया जायेगा। तब भी हमारी श्रीमती जी पेठा अपने बैग में डालकर आ गयी। सिक्योरिटी चेक में ही पेठा बाहर निकलवा दिया गया , उसे फेंकने से अच्छा हम लोगों ने उसे खा लिया। एक चीज और बताना चाहूंगा , जितने भी लोग ताजमहल देखने जा रहे हो , टिकट लेते समय सबका परिचय पत्र अवश्य साथ रखे। हमारे साथ तो आशीष भाई थे, तो कोई दिक्कत नहीं हुई। वरना कई बार बिना परिचय पत्र के टिकट ही नहीं देते। आतंकवादियों की हिटलिस्ट में होने के कारण ताजमहल में सिक्योरिटी के इतने चोचले है। खैर सुरक्षा भी जरुरी है। ताजमहल के बाहर ही जुते-चप्पलो का कवर मिलता है , क्यूंकि आप सीधे जुते चप्पल पहने ताजमहल के अंदर नहीं जा सकते। हमने भी बाहर ही शू कवर खरीद लिए , क्यूंकि अंदर महंगे भी मिलते है। अब हम चल पड़े दीदारे ताज के लिए ------सबसे पहले शाही दरवाजे से ताज का हल्का -हल्का दीदार होने लगा। दरवाजे के पास हमने एक ग्रुप फोटो खिंचवाई फिर दरवाजे में से प्रवेश किया। अंदर घुसते ही लोगों का सैलाब दिखा , हर तरह लोग मोबाइल और कैमरा लेकर ताज के साथ खुद को कैद करने में लगे थे। जिन जगहों से ताजमहल की अच्छी फोटो आ सकती है, वहां कतारबद्ध होकर इंतजार करना पड़ता था। कई बार तो जबरन भीड़ में घुस कर जगह बनानी पड़ती थी। हमने भी घुसते ही भीड़ में घुसकर जगह बनाई और फोटो खिंचवाई। ग्रुप फोटो आशीष भाई खींच रहे थे।
शाही दरवाजे से अंदर आने के बाद हम चारबाग में आ चुके थे। ये बाग मुख्य मकबरे और मुख्य द्वार के मध्य बनाया गया है। इसके बीचोबीच एक नहर बनी है , जिसमे फब्बारे लगे है। नहर के पानी में ताजमहल का सुन्दर प्रतिबिम्ब दिखता है। नहर के किनारे कतारबद्ध पेड़ लगे हुए है। ये बाग फ़ारसी बाग की तर्ज पर बने है , जिसका भारत में पहली बार प्रयोग बाबर ने किया था। सामन्यतः मुग़ल बागों के मध्य में मंडप या मकबरा बाग के बीचोबीच बने है , जबकि इसके उलट ताजमहल में मकबरा बाग के आखिर में बना है। हालाँकि यमुना के दूसरी तरफ मेहताब बाग होने से वास्तुकार यमुना और मेहताब बाग को शामिल कर ताजमहल को बीच में ही मानते है। वर्तमान में जो बाग में पेड़-पौधे लगे है , मुगल शैली के नहीं बल्कि ब्रिटिश शैली के है। जी हाँ , अंग्रेजो ने अपने शासन के दौरान जीर्ण - शीर्ण हो चुके बाग़ की जगह ब्रिटिश शैली का बाग लगवाया। अंग्रेजो से एक इतिहास में पढ़ा किस्सा याद आया। अंग्रेज खुद को दुनिया में सर्वश्रेष्ठ मानते थे , तो वे ये कैसे स्वीकार कर सकते थे , कि दुनिया की सबसे सुन्दर ईमारत अंग्रेजो ने नहीं मुगलो ने बनाई। तो उन्होंने ताजमहल को नीलाम करने का ठान लिया। सौभाग्य से ताजमहल को खरीदने वाला कोई खरीददार नहीं मिला। और ताजमहल बिकने से बच गया। खैर अंग्रेजों ने ताजमहल से भी खूबसूरत इमारत भारत की तात्कालिक राजधानी कोलकाता में बनवाना शुरू की , संगमरमर से बनी ये ईमारत खूबसूरत तो बनी , लेकिन ताजमहल से खूबसूरत न बन सकी। अंग्रेजों ने अपनी इस खूबसूरत ईमारत का नाम अपनी महारानी विक्टोरिया के नाम पर विक्टोरिया मेमरियल नाम रखा। आज ये कोलकाता में है।
अब ताजमहल के बारे में कुछ परिचयात्मक जानकारी दे दूँ , हालाँकि ताजमहल किसी परिचय का मोहताज नहीं है। फिर भी एक सैलानी या घुमक्कड़ को एक जिज्ञासा तो रहती ही है। वर्तमान में ताजमहल को हिन्दू या मुस्लिम ईमारत होने पर चर्चा गरम है। लेकिन इस चर्चा को इतिहासकारों और वास्तुकारों के लिए छोड़ उन जानकारियों की चर्चा करेंगे जो अभी तक सर्वमान्य है। अभी तक इसलिए क्यूंकि इतिहास भी नई नई खोजों के हिसाब से बदलता रहता है। जैसे 1921 के पहले भारत का इतिहास सिर्फ ऋग्वैदिक काल (1500 ईसापूर्व ) तक ही सिमटा था , लेकिन रायबहादुर दयाराम साहनी की सिंधु घाटी सभ्यता की खोज ने भारतीय इतिहास को 5000 वर्ष पीछे ही नहीं धकेला बल्कि दुनिया को ये बताया कि जब दुनिया में लोग अभी जंगली अवस्था में थे , तब हम भारतीय नगरीय सभ्यता का निर्माण कर चुके थे। अब आप सोच रहे कि मैं ताजमहल से कहाँ सिंधु घाटी पहुँच गया ! तो आपको बता दूँ, कि ताजमहल भी उसी तरह नदी के किनारे बना है , जिस तरह से सिंधु घाटी के लोग अपनी इमारतें बनाते थे। वैसे इतिहास की किताबों में मैंने लाजबर्द मणि के बारे में सिंधु घाटी और ताजमहल में प्रयोग होते पढ़ा है। खैर अब सीधी बात नो बकवास !
जैसा कि सभी जानते है , कि ताजमहल का निर्माण मुग़ल बादशाह शाहजहां ने अपनी प्रिय बेगम मुमताज महल के मरने के बाद उसकी याद में किया था। हालाँकि मुमताज महल की मौत प्रसव पीड़ा के दौरान वर्तमान मध्य प्रदेश के बुरहानपुर नामक जगह पर हुई थी। उपेक्षा के कारण बुरहानपुर ताजमहल खंडहर सा पड़ा है। अब वापिस आगरा लौटते है, शाहजहां को जहाँ इमारतों को बनवाने का शौक था , वही उसे संगमरमर बहुत प्यारा लगता था , उसने संगमरमर की इमारतों का निर्माण तो करवाया ही था , साथ ही पहले से बनी इमारतों पर संगमरमर की परतें भी चढ़वाई थी। जैसे अपने पिता जहांगीर द्वारा बनवाई मोती मस्जिद पर संगमरमर चढ़वाया था। तो ताजमहल बनवाने के वक़्त भी उसने संगमरमर को चुना। मुमताज ने अपने पिता एतमाद-उल्ला के मकबरे में पिट्रा ड्यूरे शैली
Jump to navigationJump to searchपोप क्लेमेण्ट अष्टम, पीट्रा ड्यूरे में
(पीट्रा ड्यूरे या पर्चिनकारी, दक्षिण एशिया में, या पच्चीकारी हिन्दी में), एक ऐतिहासिक कला है। इसमें उत्कृष्ट पद्धति से कटे, व जड़े हुए, तराशे हुए एवं चमकाए हुए रंगीन पत्थरों के टुकड़ो से पत्थर में चित्रकारी की जाती है। यह सजावटी कला है। इस कार्य को, बनने के बाद, एकत्र किया जाता है, एवं अधः स्तर पर चिपकाया जाता है। यह सब इतनी बारीकी से किया जाता है, कि पत्थरों के बीच का महीनतम खाली स्थान भी अदृश्य हो जाता है। इस पत्थरों के समूह में स्थिरता लाने हेतु इसे जिग सॉ पहेली जैसा बानाया जाता है, जिससे कि प्रत्येक टुकडा़ अपने स्थान पर मजबूती से ठहरा रहे। कई भिन्न रंगीन पत्थर, खासकर संगमरमर एवं बहुमूल्य पत्थरों का प्रयोग किया जाता है। यह प्रथम रोम (इटली) में प्रयोग की दिखाई देती है 1500 के आसपास। ) का सुन्दर प्रयोग किया था। भारत में सबसे पहले इस शैली का प्रयोग मुमताज बेगम के अब्बाजान के मकबरे में ही हुआ। उसी शैली का प्रयोग ताजमहल में भी किया गया। ताजमहल की बाहरी दीवारों में इस्लाम में वर्जित मानवाकृति के अंकन का प्रयोग न करके सिर्फ विभिन्न ज्यामितीय आकारों को उकेरा गया है। ऊपरी हिस्से में कुरान की आयतों को लिखा गया है। ये आयतें फ़ारसी लिपि में अमानत खां द्वारा संगमरमर पर जैस्पर से लिखा गया है। जैसे ही हम ताजमहल के अंदर करते है , तो प्रवेश द्वार पर जो आयात लिखी है , उसका अर्थ है -
हे आत्मा ! तू ईश्वर के पास विश्राम कर। ईश्वर के पास शांति के साथ रहे तथा उसकी परम शांति तुझ पर बरसे।
जाहिर है , ये आयत मुमताज बीबी के लिए लिखवाई गयी होंगी। खैर हम जब अंदर प्रवेश करते है , तो शांति तो नहीं , बल्कि उमस भरी गर्मी जरूर हम पर बरसी। कारण अंदर कम जगह में अधिक भीड़ होना था। लेकिन शाहजहां और मुमताज की नकली कब्रों की पच्चीकारी देखकर मुंह खुला का खुला रह गया। अंदर एक अटेंडेंट एक पत्थर पर टॉर्च से रौशनी डाल रहा था , और वह पत्थर चमक उठा। शाहजहां और मुमताज की असली कब्रे नीचे के तल में है , जो साधारण ही है , क्यूंकि इस्लाम में कब्रों पर ज्यादा नक्काशी की मनाही है। मतलब हमने जो कब्रें देखी वो नकली थी , और सिर्फ दिखाने के लिए बनवाई गयी थी। खैर भीड़ और गर्मी से हलाकान होकर हम पीछे की तरफ से बाहर आये। बाहर आते ही आशीष भाई ने गुम्बद की डायमंड कटिंग के साथ ही गुम्बद पर कुछ अलग ही दिखाया। जी हाँ गुम्बद पर एक आकृति 20 सदी के महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन के चेहरे जैसी लग रही थी। (क्रमशः अगले भाग में जारी )
तब तक आप चित्रों का आनंद लीजिये
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ताजमहल का प्रवेश द्वार |
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ताजमहल का पहला दीदार |
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ताजमहल का पूरा दीदार |
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प्रवेश द्वार का प्रतिबिम्ब |
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ताज की एक मीनार सूरज के सामने |
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ताज का एक अलग एंगल |
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ताज की छत पर हमे आइंस्टीन का चेहरा भी नजर आया |
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ताज अलग नजर से |
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ताज की मुंडेर पर हमें बाल जटायू (इजिप्शियन वल्चर ) भी दिख गए |
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हमारा घुमक्कड़ी दल |
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हमारे मित्र और हम |
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ताजमहल का प्रतिबिम्ब |
बहुत बढ़िया भाई। मुमताज इधर मेरे बाजु की ही थी आज पता चला ।
जवाब देंहटाएंमुमताज आपके बाजू की नही थी, हां मरी जरूर आपके बाजू में थी ।
हटाएंअलबर्ट आंइस्टीन... इसमें कुछ राज छुपा है क्या
जवाब देंहटाएंफ़ोटो देखो भाई
हटाएंबहुत बढ़िया लेख ।
जवाब देंहटाएंमेने सुना है की मुमताज़ बुरहानपुर की थी (मायका)
बुरहानपुर में तो मुमताज की मृत्यु हुई थी । थी तो आगरा की ही । पिता का नाम एत्माद्दौला था ,माँ नूरजहां की खिदमत में थी । पहले पति का नाम शेर ए अफगान था । जिसे मरवाने के बाद शाहजहाँ ने दूसरी शादी की ।
हटाएंBahut khoob Viviran diya hai.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया जी
हटाएंआपकी ताजमहल गाथा बहुत अच्छी लगी.....ताजमहल का दीदार आप किसी भी तरफ या दिशा से कीजिये हर कोण से आप इसके सौन्दर्य को आलग ही पाएंगे..... ताजमहल तो बचपन से देखते आये....
जवाब देंहटाएंआगरा में आपसे मिलना बहुत ही शानदार रहा ...
धन्यवाद लेख और चित्रों के लिए....
बिल्कुल सही कहा । हमे भी आपसे मिलना यादगार रहा ।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (01-07-2018) को "करना मत विश्राम" (चर्चा अंक-3018) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार शास्त्री जी
हटाएंअदभुत तस्वीरे और आह ताज वाह ताज😊😊
जवाब देंहटाएंआभार रंजना जी । स्नेह बनाये रखियेगा ।
हटाएंताजमहल का इतना सूक्ष्म निरीक्षण तो खुद शाहजहां ने नही किया होगा।
जवाब देंहटाएंशानदार जानकारी के साथ शानदार यात्रा वर्णन।
आभार सर
हटाएंबहुत सुन्दर। क्रमशः से परेशानी होती है।
जवाब देंहटाएंगजब की लेखनी है मजा आ गया मैं आगरा ताज के अलावा बाकी कुछ नही देखी हूँ लगता है दोबारा जाना पड़ेगा फ़ोटो एक से सुंदर एक फोटो,,,,,,,,
जवाब देंहटाएंआभार दी , अभी इसकी अगली पोस्ट बाकी हैं ।
हटाएंअदभुत घुमक्कड़ी
जवाब देंहटाएंबहुत ही रोचक अंदाज़ में लिखा है आपने और अंग्रेज़ों ने इसे बेचने की कोशिश की थी ? ये मालुम नहीं था !! विक्टोरिया पैलेस तो ताजमहल के मुकाबले कहीं भी नहीं ठहरता
जवाब देंहटाएंवो सात कविताएं यहां तो रखी जा सकती थी। या अब आप भी संम्पादक की नजर रखने लगे हैं।
जवाब देंहटाएंaapne bahut achhi jankari share ki hai
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