अब नींद उड़ चुकी थी , बेटे के साथ खेल रहा था, कि सुबह लगभग 6 :30 बजे
हरेंद्र धर्रा जी(
ये भी ब्लॉगर है ) का फोन आया , कि वो ,
सचिन जांगड़ा पानीपत वाले और इंदौर वाले
डॉ सुमित शर्मा जी (
ये भी ब्लॉग लिखते है )के साथ झाँसी से बस पकड़ कर सीधे ओरछा आ गए है। मैंने पांच मिनट में आने का बोला। अब समस्या ये कि अनिमेष को सँभालने की , तो सोचा कार से इसको भी घूमा दूँ , फिर सूरज को जगाया और हम ढाई लोग ( एक मैं , एक सूरज और आधा अनिमेष ) पहुँच गए ओरछा बस स्टैंड। बस स्टैंड के पहले ही रामराजा मंदिर चौराहे पर ही तीनों लोग मिल गए। सबसे गले मिले।
इनमे से डॉ सुमित शर्मा , इंदौर वाले से एक बार पहले भी इंदौर में पिछले साल मार्च में मिल चूका था। उस समय मैं मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित राज्य सेवा परीक्षा का साक्षात्कार देने इंदौर गया था। डॉ साहब से कुछ दिन पहले ही व्हाट्स अप्प ग्रुप घुमक्कड़ी दिल से में परिचय हुआ , और इंदौर में इतनी आत्मीयता देखकर मैं अभिभूत था। साक्षात्कार से पहले हम कमला नेहरू पार्क , इंदौर में मिले। फिर साक्षात्कार के बाद डॉ साहब ने सीधे अपने पर भोजन पर न्यौता दे दिया। हालाँकि पहली मुलाकात में इतनी आत्मीयता और इस न्योते से मन में एक झिझक तो थी, लेकिन डॉ साहब के प्रेम ने मजबूर कर दिया , क्योंकि वो साक्षात्कार के बाद सीधे मुझे लेने मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग ही अपनी बुलेट लेकर पहुँच गए। अब मना करने का विकल्प भी नही था , क्योंकि एक भला मानुस अपनी क्लीनिक बंद करके एक आभासी मित्र को अपने प्रेम से वास्तविकता के धरातल पर मूर्त रूप दे रहा था। अब अपने राम चल दिए डॉ साहब की सेल्फ स्टार्ट बुलेट पर बैठकर उनके आशियाने तक। पहुँच गए। घर में उनकी माता जी का आशीर्वाद लिया , भाभी जी को नमस्ते करके फर्श पर पालथी मरकर बैठ गए ( हालाँकि पेट बढ़ने के कारण पालथी मारने में कुछ परेशानी होने लगी है। ) डॉ साहब ने शुद्ध मालवी भोजन बनवाया था , जिसमे दाल-बाफले , लड्डू आदि विशेष थे। इंदौर में डॉ साहब घर के बने भोजन ने जहाँ पेट को तृप्त किया , वहीँ प्रेम ने मन को ही नही आत्मा को भी तृप्त कर दिया। इस बार हम दोनों के साथ एक अजब संयोग हुआ। मैं जब इंदौर गया था , तो मेरे घर में खुशखबरी आने वाली थी , और डॉ साहब जब ओरछा आये तो उनके घर खुशखबरी आने वाली है। वैसे डॉ साहब का आना भी किसी चमत्कार से कम नही था। क्योंकि डॉ साहब ओरछा आने से पहले बाइक से अपनी थार मरुस्थल की यात्रा प्रसिद्द ब्लॉगर
नीरज जाट के साथ पूरी कर के लौटे थे। इस लंबी यात्रा के बाद घर जाना फिर इंदौर से ट्रैन से झाँसी आना बड़ा मुश्किल काम था। डॉ साहब के आने पर मेरा खुश होना लाज़िमी था। हरेंद्र धर्रा और सचिन जांगड़ा जी इन दोनों हरयाणे के धुरंधरों से मेरी पहली मुलाकात थी। सचिन जांगड़ा जहाँ जबरदस्त बाइकर है , तो हरेंद्र एक सीधे साधे से लुहार-किसान है। इन तीनो को लेकर जब होटल ओरछा रेजीडेंसी पहुंचा तो होटल बंद था। तो फिर होटल के मैनेजर पंकज राय को कॉल किया , तब होटल खुला। सबको उनके कमरे में पहुंचा कर मैं और सूरज मेरे घर लौट आये। क्योंकि हमने अभी तक मुँह भी नही धोया था। और हमारे अनिमेष बाबु को भी घर छोड़ना था।
घर आने के बाद नित्यक्रिया आदि से निवृत होकर चाय पी ही रहे थे , कि एडमिन संजय कौशिक जी का कॉल आ गया , कि उनकी ट्रैन झाँसी पहुचने वाली है। उसी समय प्रकाश यादव जी और आर डी प्रजापति भी अपनी ट्रैन से झाँसी पहुचने वाले है। इन दोनों ट्रेनों से काफी सदस्य आने वाले थे, इसलिए मैंने अपने ड्राइवर जगदीश बाथम और पंकज राय को अपनी अपनी बोलोरो झाँसी स्टेशन लाने को बोल मैं अकेले ही अपनी कार से झाँसी के लिए निकल पड़ा। सूरज को घर पर इसलिए छोड़ दिया कि ज्यादा सदस्य हो जाने के कारन तीन वाहनों में भी जगह काम पड़ सकती है। मैं और जगदीश अपने वाहनों से जब झाँसी स्टेशन पहुंचा तो एक ख्वाब सच होने जा रहा था। सचमुच विश्वास ही नही हो रहा था , कि देश के अलग अलग राज्यों से इतने सारे घुमक्कड़, फोटोग्राफर और ब्लॉगर से एक साथ , एक जगह पर मिल रहा हूँ। वो भी मेरी मेजबानी में ! अहो भाग्य ! जो रामराजा ने मुझ पर ये कृपा की। समझ में नही आ रहा था, किससे किस तरह मिलूं ?
मेरे सामने संजय कौशिक सपरिवार (सोनीपत , हरियाणा ), रितेश गुप्ता सपरिवार ( आगरा) , रूपेश शर्मा ( ग्रेटर नॉएडा ), सुशांत सिंघल ( सहारनपुर, उत्तर प्रदेश ) , रमेश शर्मा ( उधमपुर, जम्मू और कश्मीर ) , प्रकाश यादव सपरिवार ( रायगढ़ , छत्तीसगढ़ ) , रामदयाल प्रजापति ( जमशेदपुर , झारखण्ड ) , बीनू कुकरेती ( श्रीनगर, उत्तराखंड ), कमल कुमार नारद ( वाराणसी /दिल्ली ) , नरेश सहगल (अम्बाला, हरियाणा ), संजय सिंह ( आरा, बिहार ) , हेमा सिंह सपरिवार ( रांची , झारखण्ड ) साक्षात् खड़े हुए थे। मेरी स्थिति गूंगे के गुड़ जैसी हो गयी। इस आनंदमयी क्षण के लिए कोई शब्द नही है। ( हालाँकि इस पंक्ति पर कुछ लोगो को आपत्ति हो सकती है . पर सत्य यही है। ) अपने आप आपको किसी तरह सँभालते हुए सबसे मिला , लगभग सभी पुरुष सदस्यों से गले मिला। महिलाओं से हाथ जोड़ नमस्ते की। वैसे भी कभी मुलाकात हो पाने के कारण महिलाओं को पहचानता भी नही था। खैर कुशलक्षेम पूछने के बाद सबसे पहले महिलाओं , बच्चों और बुजुर्गों को अपनी कार और बोलेरो में बैठाया। चूँकि इतने में सब आ नही पाए तो मैं वही रुक गया। अपनी कार की चाभी और होटल में कमरे आवंटन की व्यवस्था रूपेश शर्मा जी को सौंप दिया। साथ में रितेश गुप्ता जी भी कार में बैठे। बोलेरो में सुशांत सिंघल जी महिलाओं और बच्चों की जिम्मेदारी लेकर बैठे। अब तीसरे वाहन बोलेरों के इन्तजार में हम सब कौशिक जी, प्रकाश जी, रमेश जी, संजय सिंह जी , कमल जी, बीनू जी, प्रजापति जी , नरेश जी रुक गए। तभी डॉ प्रदीप त्यागी कॉल आया उनकी ट्रैन भी झाँसी पहुंचने वाली है। हम सब वहीँ स्टेशन के पास एक गुमटी पर चाय पीने लगे, तब तक डॉ त्यागी भी आ पहुँचे जो अपरिहार्य कारणों से बाकि लोगों से आगरा में ट्रैन में चढ़ने से चूक गए थे। इसका विशेष मलाल बीनू भाई और कमल भाई को हुआ . झाँसी स्टेशन के बाहर ही कमल कुमार सिंह उर्फ़ नारद जी ने सबके सामने ही डॉ त्यागी जी को अपना गुरु मानने की घोषणा की। अब इंतहा हो गयी इन्तजार की ... मैं पंकज को बार बार कॉल कर रहा था, वो बस ओरछा से निकलने की बात कर रहा था। हमें इन्तजार करते हुए लगभग एक घंटे से ज्यादा समय हो गया था। मेरी खीज बढ़ रही थी , क्योंकि इससे अच्छा जगदीश से ही बोल देते तो वो भी उन लोगो को छोड़ कर आ गया होता। मुझे कुछ गड़बड़ होने की आशंका सी होने लगी। सबसे बड़ी दिक्कत तो मेरा बनाया कार्यक्रम देरी की वजह से गड़बड़ हो रहा था। लेकिन सबसे अपनी खीज छुपाकर मुस्कुराकर बात कर रहा था। इनमे से अभी तक दिल्ली में कौशिक जी, बीनू भाई , कमल भाई से मिल चुका था , जबकि संजय सिंह से अपनी
सासाराम -गुप्तेश्वर यात्रा में मिल चूका था। कमल भाई से तीसरी बार ( ओरछा, दिल्ली) मिल रहा था।
लगभग डेढ़ घंटे के इन्तजार के बाद आखिरकार पंकज अपनी बोलेरो लेकर आ ही गया। वो अपने दोस्त प्रदीप के लिए रुक गया था। खैर देर आये दुरस्त आये। बोलेरो के आने के बाद भी लोग ज्यादा हो रहे थे, मैंने दूसरी गाड़ी बुलाने को कहा था , तो कौशिक जी ने मना कर दिया था। खैर अब जाना तो सबको था , इसलिए सामान के साथ एक ऑटो में कमल, बीनू भाई और डॉ प्रदीप त्यागी जी के साथ प्रदीप राजपूत बैठे। बाकि लोग बोलेरो में बैठे। चूँकि लोग ज्यादा थे, और अगर मैं गाड़ी में और कहीं बैठता तो किसी न किसी को दिक्कत तो होती ही , कसी को अगर न होती तो मुझे तो होनी ही थी। इसलिए अपनी अकल लगाते हुए इन घुमक्कड़ों का सारथि बनने में ही भलाई समझी।
अब तक धुप भी खिल चुकी थी , मौसम से सर्दी विदा ले चुकी थी। ओरछा का सफर शुरू हो चूका था। महामिलन का आगाज़ होने जा रहा था। दिल में गुदगुदी सी हो रही थी। 18 किमी का सफर बातों -बातों में कब कट गया , पता ही नही चला। होटल पहुँचने तक नाश्ता तैयार हो चूका था। अतः सबको सीधे नाश्ते के लिए ले जाया गया। जो लोग पहले आ गए थे , वो नहा -धोकर तैयार हो चुके थे। नाश्ते में मध्य प्रदेश के इंदौर-मालवा का प्रसिद्ध नाश्ता पोहा और ओरछा की प्रसिद्ध रसभरी गुजिया बनी ही। साथ में चाय-काफी की भी व्यवस्था थी। खाने-पीने का मेनू चुनते करते समय मैंने स्थानीयता के साथ ही स्वाद और पौष्टिकता का भी ध्यान रखा था। खैर नाश्ता करने के बाद सबको तैयार होने को कहा ताकि इसके बाद भगवान रामराजा के दर्शन हेतु चले। इतने में खबर मिली कि इंदौर से वाया ग्वालियर होकर भालसे परिवार भी आने वाला है। उनसे मोबाइल से बात हुई तो वो लोग झाँसी पहुँचने वाले थे , उन्हें लाने के लिए मैंने अपने दूसरे ड्राइवर कैलाश यादव के साथ हरेन्द्र धर्रा जी को भेजा। मुकेश भालसे जी घुमक्कड़ी दिल से ग्रुप के संस्थापक एडमिन होने के साथ ही दोनों पति-पत्नी ( कविता भालसे जी ) यात्रा ब्लोगर है। उनसे मिलने के बाद मैं घर निकल आया , क्योंकि अगर मंदिर जाना है , तो नहाना भी है , और सूरज मिश्र को भी लाना था।
असली रंग अब जमेगा जब ओरछा की सड़को-गलियों में घुमक्कड़ों की फ़ौज निकलने वाली थी।
क्रमश: .......
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झाँसी रेलवे स्टेशन के बाहर यादव,गुप्ता और कौशिक परिवार के साथ कौशिक जी और रितेश जी |
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इसमें रामदयाल प्रजापति जी भी जुड़ गए |
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मेरी कार में बैठे रितेश जी एवं परिवार |
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बांये से रूपेश जी, बीनू जी, रमेश जी, संजय जी, और कमल भाई |
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रूपेश शर्मा जी और कमल कुमार जी चर्चारत |
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इंदौर का पोहा, ओरछा की गुजिया और आगरा का पेठा ; हमारा नाश्ता |
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होटल ओरछा रेजीडेंसी के बाहर पूरा ग्रुप |
आगाज़ ही जब इतना गज़ब है तो अंजाम डबल गज़ब होना निश्चित ही है ।
जवाब देंहटाएंयहाँ भी गूँगे के मुँह में गुड़ आया समझें ।
जय हो राजा राम जी की
संजय कौशिक
जय हो रामराजा सरकार की ।
हटाएंये बेटे के नाम से क्यों कमेंट की जा रही है ?
शानदार,जबरजस्त ....जिंदाबाद ।।
जवाब देंहटाएंआगाज़ ही ऐसा ही ।।।
रामराजा की जय
आभार
हटाएंजय रामराजा
शानदार,जबरजस्त ....जिंदाबाद ।।
जवाब देंहटाएंआगाज़ ही ऐसा ही ।।।
रामराजा की जय
वाह पाण्डेय जी।
जवाब देंहटाएंआपने महामिलन के साथ मे अपना इंदौर वाला छोटा सा नन्हा मुन्हा मिलन भी जोड़ दिया...
पुरानी यादें फिर जीवंत हो गई।
वैसे आभासी दुनिया और घुम्मकड़ी दिल से के मंच से जुड़ने के बाद घुमक्कड़ दोस्तों मे पहली मुलाकात आप से ही होने जा रही थी,मिलने के पहले दिमाग़ में आप की छबि रौबदार अधिकारी की थी,लेकिन नेहरू पार्क मे जब आमने सामने बैठे तो सरल,सोम्य और बेहद प्रतिभाशाली कवि मेरे सामने बैठ मुझ से बतिया रहा था,तो फिर क्या था, हमारा प्रेम बरसाना भी लाज़मी था।
आप से दूसरी मुलाकात औरछा मे एक सुखद संयोग के साथ हुई,यह सुखद संयोग और यह महामिलन जीवनभर याद रहेगा।
महामिलन की बागड़ोर आपने जिस कुशलता के साथ सम्हाली उसकी तारीफ़ कैसे करे, यह समझ नहीं आता..
बस यही कहेंगे...पाण्डेय जी मज़ा आ गया।।
अगले अंक की प्रतीक्षा में....
आभार डॉ साहब
हटाएंवाह,जबरजस्त,शानदार
जवाब देंहटाएंटिप्पणी लिखने भी कंजूसी । आपसे ये उम्मीद न थी ।
हटाएंVery engaging and beautifully penned.
जवाब देंहटाएंThank you anjali mam
हटाएंअब ये तो सचमुच गजब हो गया । हमारे पहुँचने से पहले ही शानदार !जबरजस्त !! जिंदाबाद !!! हो गया , कुछ कम टाईम से ही पर हम भी जैसे तैसे इस महामिलन के यादगार पलों में शामिल हो गए । आपकी लेखनी के मोहजाल में तो सभी फंसे हुये है पांडेजी, सुमित जी के साथ का महामिलन सुनकर अपने आपको इंदौरी कहलाने में गर्व महसूस हो रहा है,इंदौर वासियो को विरासत में मिला है प्रेम और स्नेह जो आज तक मुझ में भी कायम है ।सुमितजी से अब कभी इंदौर प्रवास पर जरूर मुलाकात होगी और हम भी दाल-बफ़ेलो का लुफ्त उठाएंगे ।अगली क़िस्त के इंतजार में ....जय हो राजाराम की -^-
जवाब देंहटाएंबुआ जी, आभार
हटाएंअभी आपकी धमाकेदार एंट्री बाकी है ।
स्वागत है बुआ जी..
हटाएंआ धमकिये कभी भी...।।
स्वागत है बुआ जी..
हटाएंआ धमकिये कभी भी...।।
हमेशा की तरह शानदार लेखन..👍
जवाब देंहटाएंआपकी बेहतरीन मेजबानी ने इस मिलन को और ज्यादा मजेदार बना दिया, सच में ही अपनी व्यस्तताओं के बाबजूद भी आपने सबके लिए इतना अच्छा प्रबंध किया.....सराहनीय ।
आभार डॉ साहब !
हटाएंआपका आगमन भी कम रोमांचक नही था । अब तो आप कमल के कमाल के गुरु हो ☺
शानदार आगाज । वैसे कैलाश के साथ मैं नहीं गया था ।
जवाब देंहटाएंचलिये सुधार करता हूँ ।
हटाएंबढ़िया विवरण चल रहा है मुकेश जी 👍
जवाब देंहटाएंआप से इत्तु से कमेंट की उम्मीद नही थी ।
हटाएंआपके लेख को पढ़ कर सब कुछ फिर से रिवाइंड हो रहा है . बहुत शानदार लिखा है . आपके प्रबंधन के लिए फ़िर से धन्यवाद .
जवाब देंहटाएंलेख पढ़कर लग रहा है जैसे कल की बात हो।इतने मित्रों को साथ देखकर यही हाल हमारा भी था।मन में इतनी प्रसन्नता थी जो शब्दों में बयाँ नहीं की जा सकती।डॉ. साहब (सुमित शर्मा)के बारे में जानकर भी बहुत अच्छा लगा।कुछ ऐसी बातें जो हमें भी पता नहीं थीं,उनसे भी अवगत कराने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।पढ़कर बहुत आनन्दित हैं ।बहुत सुंदर, रामराजा की कृपा आप पर बनी रहे।����
जवाब देंहटाएंआपको तो कल की बात लग रही है , मुझे तो आज की ही बात लग रही है ।
हटाएंसुबह-सुबह गहरी नींद में था,लगा जैसे किसी ने आवाज लगायी फिर रात में 12 बजे का सोया तो आंख भी नहीं खुल रही थी,दरोगा बाबु ने हलके से हिलाया की चलोगे जांगड़ा और डॉक साब आये हुए है रात को हरेंद्र भी पहुच गया था झाँसी :)
जवाब देंहटाएं"ओके चलता हूं " बस मिजति आँखों के साथ अनिमेष को उठाये गाड़ी की अगली सीट पर बैठ गया।
"दारोगा बाबु आज का दिन बहुत थका देने वाला होगा"
दारोगा बाबु सिर्फ मुस्कुराये ।जांगड़ा से दूसरी बार मिला वैसे जांगड़ा को गले लगाने के लिए 2 आदमी 4 हाथों की आवश्यकता पड़ती है , फ़िलहाल जांगड़ा ,हरेंद्र और सुमित जी से औपचारिक मुलाकात के बाद वापस उनके साथ चला आया।
यह घुमक्कड़ी मुलाकात आजीवन याद रहेगी।
वाकई ये महामिलन आजीवन अविस्मरणीय रहेगा ।
जवाब देंहटाएंMene miss kar diya tha 2017 mei hi aap se karenge mulakat
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चन्दन जी.....
जवाब देंहटाएंआपके लेख से फिर से अतीत में जाकर ओरछा भ्रमण कर लिए...
धन्यवाद
चलो एक एक कर सब महारथी पहुँच गए ! मैंने भी कॉल किया था आपको सुबह सुबह जब दिल्ली से लोग पहुँचने वाले थे ! ऐसा अनुभव हो रहा जैसे मैं वहीँ ओरछा में ही हूँ !! चलते रहिये
जवाब देंहटाएंइस लेखन से मुझे वह रात याद आ गयी जब सब अलग अलग जगह से ओरछा आ रहे थे...क्या बेचैनी थी सबसे मिलने की...हम जल्दी न पहुच पाये फिर भी इस लेख को पढ़ कर एक एक लम्हे के साक्षी बन गए...धन्यवाद भी नहीं केह सकते आपके प्यार के लिए...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया.... लेकिन फोटो को आप लार्ज रखें.... कंप्यूटर पर छोटे लग रहे हैं....
जवाब देंहटाएं