बुधवार, 13 जून 2018

दतिया का ऐतिहासिक वीरसिंह महल

मध्य प्रदेश का सबसे छोटा जिला दतिया है।  यह मध्यकाल में बुंदेला शासको की रियासत का महत्वपूर्ण भाग ही नहीं रहा बल्कि राजधानी भी रहा है।  आज भी दतिया में उस समय के महल , छतरियां और स्मारक उस गौरवपूर्ण काल की याद दिलाते  है। मगर आज दतिया भारत में माँ पीताम्बरा शक्तिपीठ के कारण प्रसिद्द है।  भारत में कामाख्या शक्तिपीठ के बाद सबसे ज्यादा तांत्रिक इसी मंदिर में जुटते है।  इसी मंदिर परिसर में माँ धूमावती के मंदिर में तांत्रिक अनुष्ठान लगातार चलते रहते है।  धूमावती माता तामसिक देवी होने के कारण  उन्हें भोग में मीठा की जगह नमकीन खाद्य पदार्थों का लगाया जाता है।  सौभाग्यवती स्त्रियों को उनका दर्शन वर्जित है।  दिन में उनका मंदिर मात्र कुछ देर के लिए खुलता है , जबकि शनिवार के दिन पुरे दिन मंदिर खुले होने की वजह से दूर-दूर से लोग दर्शनों के लिए आते है , इसी कारण  बड़ी लम्बी लाइन लगती है।  कहते है , कि पंडित जवाहर लाल नेहरू भी भारत-चीन युद्ध के लिए दतिया आये थे।  खैर वर्तमान में सिंधिया परिवार , छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह , महाराष्ट्र के मुख्य मंत्री विलासराव देशमुख हाल ही में मंदिर आये थे।  अन्य चर्चित शख्शियत भी समय -समय पर माता के दरवार में हाजिरी लगाते है।  
                                                             खैर दतिया से सिर्फ 45 किमी की दूरी पर पदस्थापना होने के कारण मैं कई बार दतिया माता के दरबार में हाजिरी लगा चुका हूँ , मगर दतिया के ऐतिहासिक स्थलों को देखने से हर बार ही चूक गया।  मेरे ही मित्र जो दतिया में पदस्थ है, उनके अनुसार दतिया के महल ओरछा से अच्छे नहीं है।  यही बात सुनकर वापिस लौटना पड़ा।  लेकिन इस बार जब मेरा छोटा भाई अभिषेक मेरे पास ओरछा आया तो दतिया के ऐतिहासिक महल वीरसिंह महल देखने की ठानी।  22 मई 2018 को हम सपरिवार ओरछा से अपनी कार से निकले।  धूप बहुत तेज थी , मगर हम निकल पड़े एक घंटे बाद हम वीरसिंह महल के पीछे थे।  महल तो दिख रहा था , मगर पहुंचने का रास्ता समझ ही आ रहा था।  फिर पूछने पर पता चला हम महल के दूसरे हिस्से में आ गए और रास्ता दूसरी तरफ से होकर जाता है।  खैर रिवर्स गियर डाल वापिस हुए , तो एक मैरिज गार्डन से रास्ता मिला , महल के लिए कोई साइन बोर्ड नहीं लगा था , रास्ता बस्ती की गलियों में जा रहा था , खैर आगे पूछने पर ऊपर जाती गली की ओर इशारा मिला।  जैसे ही गली में ऊपर की ओर बढे तो सामने से ट्रेक्टर महोदय धुंआ उगलते उतर रहे थे , तो हमारी छोटी सी कार ने सम्म्मान में पीछे हटकर उन्हें रास्ता दिया।  फिर हम आगे बढे एक तो संकरी गली , दूसरी चढ़ाई , तीसरी आफत लोगों ने अपने घरों के सामने बेतरतीब तरीकों से दुपहिया वाहन सजा रखे थे।  तपती दुपहरी में लोग अपने घरो में कूलर के सामने पड़े थे , और हमारी कार चीख चीखकर हलाकान हुई जा रही थी।  हमारा हॉर्न सुनकर गलियों अपना पुश्तैनी ठिकाना बनाये बैठी गौमाता भी सिर्फ कान हिलाकर पुनः अपनी पुरातन परंपरा जुगाली करने में मस्त हो जाती।  हमें तो ये लगने लगा कि कार यही खड़ी कर पैदल ही निकल ले तो ज्यादा अच्छा रहेगा।  परन्तु मेरे दो वर्षीय सुपुत्र और आसमान में चमकते सूर्य देव को देख कार में ही बैठने का फैसला लेना पड़ा।  हमारी किस्मत इतनी बुरी भी न थी , और हमारी कार किसी तरह रेंगती हुई महल तक पहुंचने में सफल हो गयी।  वही एक मंदिर के सामने जगह न होने पर मंदिर के पुजारी जी ने कार खड़ी करने को कहा।  खैर कार पर मध्य प्रदेश शासन लिखा होने से हम निश्चिन्त होकर आगे बढे।
                                                आगे कही टिकट काउंटर जैसी व्यवस्था नहीं दिखी।  तो नीचे महल के एक दबड़े नुमा कमरे में प्रवेश किया तो चार-पांच नर गुटखा चबाते ऊंघते -अधलेटे से दिखे।  टिकट का पूछने पर एक जीर्ण-शीर्ण हो चुके रजिस्टर की ओर इशारा पाकर हम समझ गए कि टिकट की जगह सिर्फ इसी पुरातात्विक अभिलेखीय प्रविष्टि से काम चल जायेगा।  रजिस्टर में एंट्री करने के बाद पीछे से अधलेटी मुद्रा वाले सज्जन की आवाज आई - यहां कोई गॉइड नहीं मिलेगा , अगर चाहे तो जानकारी के लिए किसी को भेज दें।  मेरी स्वीकृति मिलते ही उन्होंने एक केवट (नाम भूल गया ) उपनाम के व्यक्ति को हमारी नैया पार करने भेज दिया।  
केवट भैया अपने काम में निपुण से लगे।  वीरसिंह जूदेव का परिचय जब देने लगे तो मैंने बताया कि मैं ओरछा से आया हूँ , तो संक्षिप्त परिचय के बाद आगे बढे।  
                                   दतिया के वीरसिंह महल का निर्माण प्रसिद्द बुंदेला शासक वीरसिंह जूदेव द्वारा सन 1620 में कराया गया था।  बुन्देलाओं द्वारा राजपूत और मुग़ल स्थापत्य शैली के मिश्रण से एक नई शैली बुंदेला स्थापत्य शैली की शुरुआत की गयी।  इस शैली के महल दतिया के अलावा ओरछा ,मऊसहानियां , छतरपुर, पन्ना , टीकमगढ़ और झाँसी आदि स्थानों पर बने है।  यह एक पांच मंजिला महल है , जिसके बारे में कहा जाता है , कि  मंजिल जमीं के नीचे है , अतः यह सात मंजिल  का है। मंदिर इस तरीके से बनाया कि ऊपर से देखने पर यह स्वास्तिक आकार का दिखता है।  बिलकुल इसी की तरह का महल ओरछा में जहांगीर महल है।  इन दोनों महलों को भाई-भाई भी कहा जाता है। इन दोनों महल की नकल में गुजरात के मांडवी में भी विजय पैलेस बनाया गया।  वीरसिंह महल को नृसिंह महल या पुराना महल भी कहा जाता है। 
                                         खैर अपने गाइड के साथ महल में प्रवेश किये तो स्वागत चमगादड़ो की तीखी गंध से हुआ।  जैसे तैसे नाक पर रुमाल रख अगली मंजिल पर पहुंचे तो पुरे दतिया शहर का विहंगम दृश्य से रु-ब-रु हुए , सामने एक पहाड़ी पर गोविंददेव महल दिख रहा था , जो राजा के वर्तमान वंशज के अधिपत्य में है , और आम जनता के लिए बंद रहता है।  महल के पास ही एक खंडहर सी ईमारत दिखी तो गाइड जी ने बताया कि ये फाँसीघर था।  अब हम महल में आगे बढे तो एक मंजिल पर गाइड महोदय ने बताया कि इस जगह पर राजा और राजपरिवार के लोग नृत्य -संगीत का लुत्फ़ लेते थे।  बीचोबीच एक रंगमंच सा बना हुआ था।  और उसके ठीक ऊपर छत पर गोलाकार में नर्तक-नर्तिकयों की नृत्यरत खूबसूरत मुद्राएं बनी हुई थी।  छत पर इतनी आकर्षक शिल्पकृति बरबस उस समय के कलाकारों को नमन करने को प्रेरित करती है।  रंगमंच के एक तरह राजा और दूसरी तरफ रानियों और राजपरिवार के लोगों के बैठने की जगह बनी थी। 
                                         अब गाइड के पीछे -पीछे चले जा रहे थे , एक बंद दरवाजे की तरफ इशारा करते हुए केवट जी बोले - यह महारानी का कमरा था।  जर्जर होने की जद्दोजहद वाले दरवाजे से झांककर जब कमरे में देखा तो बहुत ही सुन्दर भित्तिचित्र नजर आये , कैमरे से फोटो खींचने का सफल प्रयास किया।  फिर केवट जी से पूछा - कि ये दरवाजा खुल नहीं सकता।  तो केवट जी मुस्कुराते हुए बोले - बिलकुल खुल सकता है। हमने सोचा कि शायद ताले की चाबी उनके पास हो  लेकिन इधर तो नई तकनीक का इस्तेमाल हुआ।  केवट जी ने दरवाजे का एक पल्ला उठाया और उसे साइड में करते हुए अब आप अंदर जा सकते है।  हम जब अंदर गए तो आश्चर्य चकित रह गए , बहुत ही खूबसूरती से महारानी के कमरे की दीवारों को खूबसूरत डिजायन से सजाया गया था।  हमने भी खूब फोटो खींचे।  फिर बाहर आ गए। अगली मंजिल से गलियारों की खूबसूरती देखने लायक थी।  पत्थर की खूबसूरत जालियों की डिजायन देखते बनती थी।  महल के पीछे की तरफ एक तालाब बना हुआ था , तालाब के उस पार एक पुराना मंदिर भी बना था।  अब गर्मी अपने चरम पर पहुँच रही थी , तो हम सबसे ऊपरी मंजिल देख वापिस लौटे।  केवट जी धन्यवाद सहित उनका मेहनताना (जो उन्होंने माँगा नहीं था ) देकर महल से कई खूबसूरत यादें लेकर लौटे।  
दतिया ग्वालियर - झाँसी  रेल खंड में एक रेलवे स्टेशन है।  इसके दोनों तरफ झाँसी और ग्वालियर जैसे बड़े शहर है।  दतिया  झाँसी , खजुराहो , ओरछा , ग्वालियर से सड़क मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।  दतिया में अब हवाई पट्टी बन गयी है।  दतिया के आसपास घूमने लायक जगहों में गुजर्रा में सम्राट अशोक के नाम वाले शिलालेख है , उनाव -बालाजी में सूर्य मंदिर , रतनगढ़ में देवी जी का प्रसिद्द मंदिर है।  इसके अलावा आप ग्वालियर के दर्शनीय स्थल , झाँसी का किला , ओरछा के दर्शनीय स्थल , खजुराहो के मंदिर , माधव राष्ट्रिय उद्यान शिवपुरी  आदि है। दतिया में रुकने के लिए कई होटल भी है , मध्य प्रदेश पर्यटन निगम का भी एक होटल है , परन्तु पर्यटक दतिया की अपेक्षा ग्वालियर , झाँसी या ओरछा रुकना पसंद करते है।  अब आप चित्रों का आनंद लीजिये हम मिलेंगे फिर किसी मोड़ पर...... 
बुंदेलखंड के अन्य दर्शनीय स्थलों पर दी गयी लिंक पर क्लिक कर मेरी पोस्ट पढ़िए -   
 , ओरछा ,  

वीरसिंह महल का प्रवेश द्वार 
प्रवेश द्वार पर लगी महल की जानकारी 
प्रवेश करते ही नजर आता हिस्सा 
शहर के दूसरे हिस्से में नजर आता गोविंददेव महल और बीच में फाँसीघर नजर आ रहा है।  
महल के दूसरे हिस्से से दिखता तालाब 
मुगलिया शैली की डिजायन 
नृत्यशाला की मनोरम छत 
महल के गलियारे 
बंद दरवाजे से जब पेंटिंग पसंद आयी तो फिर दरवाजा खुलवाया 
महारानी के कमरे की नक्काशी और चित्र 
खूबसूरत चित्र 
मनमोहक डिजायन 
खूबसूरत पत्थर की जालियां 
छत भी कम खूबसूरत नहीं है।  
रंग ऐसे जैसे कल ही रंगाई हुई हो 
सबसे ऊपरी मंजिल 
मयूर अंकन 
पास के तालाब में अठखेलियां करते युवा 
हमें विदा करते किंगफिशर जी 

28 टिप्‍पणियां:

  1. वाह प्रभु... बहुत ही बढ़िया लेख है।

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    1. शानदार श्रीमान जी जैसे मै खुद इनसब को वह जाकर देखकर आया हूँ आपने पतियक्ष ओर सजीव मानवीय चित्रण किया है

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  2. रानी महल में भित्ती चित्रों की सजावट अच्छी दिखाई दे रही है। और चित्र देखने का मन है।

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  3. बहुत खूब. इसका मतलब ओरछा के आस-पास और भी बहुत कुछ है जिसे देख-रेख की जरूरत है. मध्य प्रदेश सरकार अपनी धरोहरों के प्रति गंभीर नहीं है. यदि सलीके से सँवारे इन्हें तो पर्यटन को नया आयाम मिल सकता है. दतिया से रूबरू कराने का शुक्रिया ��

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  4. हमने तो दूर से ही देखा था। आपने बढ़िया जानकारी दे दी।

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    1. चार साल से हम भी दूर से ही देख रहे थे । आखिरकार अबकी बार ठान ही लिया कि ये महल जरूर देखेंगे ।

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  5. सबसे पहले तो आपकी हिम्मत और हौसले को दाद देनी बनती है, जो गर्मी के प्रचंड मौसम में भी सपरिवार किला देखने निकल पड़े ! 😊
    और जब पहुँच ही गए तो फिर भरपूर नज़ारा किया ! किले का रास्ता इतनी तंग गलियों से होकर क्यूँ है, यह जानना दिलचस्प होगा ! शायद इसी में इसकी गुमनामी और उपेक्षा का राज छिपा है ! अन्यथा राजस्थान में ऐसे अनेक किले अच्छी खासी संख्या में देसी विदेसी पर्यटकों को आकर्षित कर रहे हैं। खैर, आपने अच्छा शब्द चित्र खींचा है, महारानी के कमरे की नक्काशी और उनमे भरे रँग आज भी चटक भरे लग रहे हैं।
    उम्मीद है कि आपके माध्यम से ही सही, शायद ओरछा की ही तरह दतिया के इस किले के भी दिन बदलें 😊
    अंत मे बस एक जिज्ञासा है कि क्या ओरछा की तरह दतिया में छतरियाँ नही हैं ?

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    1. दतिया में भी छतरियां है । बस इस किले की तरह उपेक्षित है । यह काफी समय तक राजा का निजी किला रहा, जिसके चारों तरफ बस्ती बस गयी । अब उसे उजाड़ना आसान नही है ।

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  6. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जन्म दिवस - अभिनेत्री सुरैया और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  7. बहुत सुंदर विवरण भाई जी. ये महारानी का कमरा मैं नहीं देख पाया था. यह संभवतः बंद ही रहता है.

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    1. यह कमरा हमारे लिए भी बन्द ही था। अगर हमारे गाइड ये युक्ति न निकालते ।

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  8. गज़ब की घुमक्कड़ी ! लेकिन मैं फाँसीघर से परिचित नहीं था , कुछ फोटो अगर आपके पास हों तो शेयर करियेगा और उसकी कहानी भी

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  9. चन्दन जी बहुत ही सुंदर चित्रण किया है आपने दतिया का अब तो मुझे भी वहां घूमने की इच्छा हो रही है ।

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  10. वाह ..मुकेश भाई बढ़िया जानकारी देता लेख

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  11. बहुत ही बढिया जानकारी के लिए धन्यवाद

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    1. हार्दिक आभार ! टिप्पणियां लेखक के लिए उत्साह वर्धक का कार्य करती है । साथ ही लेखक को उसकी मेहनत के बारे में पता चलता है ।

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  12. बढ़िया लेख भैया,पढ़ने के दौरान काल्पनिक दर्शन कर लिए हमने‌ भी। हालांकि बाद में तस्वीरों ने भी खूब मन मोहा।😍😊

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  13. सर जी, सुन्दर छाया चित्रों के साथ रोचक लेखन शैली में सुन्दर वर्णन 👌👌

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ab apki baari hai, kuchh kahne ki ...

orchha gatha

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