भैंस चालीसा महामूर्ख दरबार में, लगा अनोखा केस फसा हुआ है मामला, अक्ल बङी या भैंस अक्ल बङी या भैंस, दलीलें बहुत सी आयीं महामूर्ख दरबार की अब,देखो सुनवाई मंगल भवन अमंगल हारी- भैंस सदा ही अकल पे भारी भैंस मेरी जब चर आये चारा- पाँच सेर हम दूध निकारा कोई अकल ना यह कर पावे- चारा खा कर दूध बनावे अक्ल घास जब चरने जाये- हार जाय नर अति दुख पाये भैंस का चारा लालू खायो- निज घरवारि सी।एम. बनवायो तुमहू भैंस का चारा खाओ- बीवी को सी.एम. बनवाओ मोटी अकल मन्दमति होई- मोटी भैंस दूध अति होई अकल इश्क़ कर कर के रोये- भैंस का कोई बाँयफ्रेन्ड ना होये अकल तो ले मोबाइल घूमे- एस.एम.एस. पा पा के झूमे भैंस मेरी डायरेक्ट पुकारे- कबहूँ मिस्ड काल ना मारे भैंस कभी सिगरेट ना पीती- भैंस बिना दारू के जीती भैंस कभी ना पान चबाये - ना ही इसको ड्रग्स सुहाये शक्तिशालिनी शाकाहारी- भैंस हमारी कितनी प्यारी अकलमन्द को कोई ना जाने- भैंस को सारा जग पहचाने जाकी अकल मे गोबर होये- सो इन्सान पटक सर रोये मंगल भवन अमंगल हारी- भैंस का गोबर अकल पे भारी भैंस
मित्रो ये मेरी रचना नही है , इसे किसी मित्र ने ही मुझे ऑरकुट पर स्क्रैप किया था , मुझे लगा की आप सभी को इससे रु-ब-रु करू। कैसी लगी जरुर बताना ।
विचारों की रेल चल रही .........चन्दन की महक के साथ ,अभिव्यक्ति का सफ़र जारी है . क्या आप मेरे हमसफ़र बनेगे ?
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orchha gatha
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मज़ेदार
जवाब देंहटाएंइस रचना को पढ़कर ये समझा जा सकता है कि कुछ लोग कितने रचनात्मक और फ़ुरसतिया होते हैं...
जवाब देंहटाएंजिसकी भी रचना हो..बहुत इत्मिनान से रची है. मस्त!!
जवाब देंहटाएंमुकेश जी,
जवाब देंहटाएंआपकी ईमानदारी को मै प्रणाम करता हूँ|
आज से लगभग पाँच साल पहले,जिस दिन मुझे इस रचना के लिये महामूर्ख पुरस्कार से सम्मानित किया गया था,उसके अगले दिन कई समाचारपत्रों ने इस रचना की ही कुछ पंक्तियों को इस समाचार की हेडिंग मे दिया था| ये रचना आप तक अधूरी पहुँची है, पूरी रचना "हँसते रह जाओगे" पुस्तक मे मिलेगी, जो कि मेरे समेत कई हास्य कवियों का एक संकलन है|
`दुष्यन्त कुमार चतुर्वेदी`