
विचारों की रेल चल रही .........चन्दन की महक के साथ ,अभिव्यक्ति का सफ़र जारी है . क्या आप मेरे हमसफ़र बनेगे ?
मंगलवार, 25 अक्टूबर 2011
दिवाली : एक पर्व और उद्देश्य

शनिवार, 22 अक्टूबर 2011
दिल्ली : नाम बड़े और दर्शन छोटे ...!!



स्वागतम दिल्ली !!!

नमस्कार मित्रो ,
पिछले ५-६ दिनों से दिल्ली प्रवास पर हूँ । इसके पहले सिर्फ एक बार ही कुछ घंटो के लिए ही दिल्ली आया था । इसलिए दिल्ली की वही तस्वीर मन में बसी थी , जो टी ० वी ० और फिल्मो में ही देखी थी । जब पहली बार आया था , तो निजामुद्दीन स्टेशन से मुखर्जी नगर तक ही गया था । रस्ते में राजघाट आदि होते हुए ही सुन्दर दिल्ली ही दिखी थी । मगर इन ५-६ दिनों में दिल्ल्ली की दूसरी ही तस्वीर दिखी है .....
चमचमाती इमारतों के पीछे बिलबिलाते झुग्गियो के लोग ............... सड़ांध मारते अतिक्रमित नाले -नालियां ......... दिन भर की भाग दौड़ के बाद रात भर पानी आने का इंतजार करते लोग ............. दिल्ली जल बोर्ड के टेंकरों के सामने पानी के लिए लड़ते झगड़ते लोग .................मेट्रो का सुख तो है , मगर रिक्शोवालो के सूखते कंठ भी है..........
वाह री ....... दिल्ल्ली
शुक्रवार, 21 अक्टूबर 2011
खींचो अब प्रत्यंचा .....


जब-जब घायल हुआ, धर्म का सांचा
तब-तब थामी किसी ने प्रत्यंचा
जब रावण का बढ़ रहा था अत्याचार
तब धर्म होने लगा बेबस और लाचार
ज्यो ही सीता का हुआ अपहरण, कराही प्रकृति
तब हुंकार भरी राम ने , झूम उठी धरती
धूमिल हुआ दशानन, कोई अधर्मी न बचा
अधर्म के विरुद्ध, जब राम ने खींची प्रत्यंचा
द्वापर में कौरवों ने पांडवों पर कहर ढहाया
सत्य- धर्म पांडवों का , दुर्योधन को न भाया
यूं ही बढती गयी, नित अधर्म की पराकाष्ठा
पर डिग न पाई , पांडवो की धर्म में आस्था
कुरुक्षेत्र के रण में , कृष्ण ने महाभारत रचा
सुन गीता का उपदेश, अर्जुन ने खींची प्रत्यंचा
आज भी अधर्ममय हो गया है सकल राष्ट्र
हर ओर रावण, कंस , दुर्योधन और ध्रतराष्ट्र
नित बढ़ता जा रहा है, अधर्म का अत्याचार
क्यों चुप हैं हम, आओ मिलकर करें विचार
कब तक करेंगे राम-कृष्ण, अर्जुन की प्रतीक्षा
जागो,उठो और खींचो अब ........प्रत्यंचा
बुधवार, 12 अक्टूबर 2011
मैं और जिन्दगी ........!!!!!!!


जिन्दगी ने मुझसे कहा- तू चाहता क्या है ?
मैंने कहा- तू ही मेरी चाहत , तुझसे दिल लगाना चाहता हूँ
तू औरो को आजमाती है, मैं तुझे आज़माना चाहता हूँ
जिन्दगी- इतनी आसान नही मैं, जितना तुम समझ बैठे
मेरी चाहत में न जाने कितने , मौत को गले लगा बैठे
मैं- गर तू आसन होती , तो मेरी चाहत न होती
मौत तो मिलेगी ही, उससे कहाँ राहत होती ?
मौत तो मंजिल है , मगर सफ़र तो तू है
दिल्लगी न समझना , ये इश्क की खुशबू है
जिन्दगी- मेरे सफ़र में, सब इश्क जाओगे भूल
कोई खुशबु नही यहाँ , न ही कोई है फूल
मैं- होगा ये तुम्हारा नजरिया ,पर तुम बहुत खूबसूरत हो
लाख समझाओ मुझे, पर तुम मेरी जरुरत हो
जिन्दगी- मैं असीम हूँ, जैसे कोई सागर
मिल भी गयी , तो करोगे क्या मुझे पाकर
मैं-तुम्हारे सहारे, बहुत से नज़रिए बदलने है
बहुतो की जिन्दगी में , "चन्दन " के फूल खिलने है !
सोमवार, 10 अक्टूबर 2011
चिर ऋणी रहूँगा गुरुवर का ....
मंगलवार, 4 अक्टूबर 2011
बूँद


कौन कहता है ,कि बूँद छोटी होती है
वो अपने अन्दर सागर समेटे होती है
जीवन की शुरुआत बूँद से ही होती है

बूँद से बादल, बादल से वर्षा होती है
वर्षा की बूँद, बीजों में जीवन बोती है
करते श्रम तो पसीने की बून्द निकलती है
बूँद जीवन का सत्य लेकर मचलती है
छोटी होकर बड़ा होना , बूँद सिखलाती है
संगठन ही जीवन है, ये बूँद दिखलाती है

orchha gatha
बेतवा की जुबानी : ओरछा की कहानी (भाग-1)
एक रात को मैं मध्य प्रदेश की गंगा कही जाने वाली पावन नदी बेतवा के तट पर ग्रेनाइट की चट्टानों पर बैठा हुआ. बेतवा की लहरों के एक तरफ महान ब...

-
जटाशंकर और भीमकुण्ड की रोमांचक यात्रा नमस्कार मित्रो, बहुत दिनों बाद ब्लॉग पर पोस्ट लिखने का मन हुआ है. कारण कार्य की व्यस्तता और फेस...
-
ब्राह्मणों की कहानी अपनी एक पुरानी पोस्ट में ब्राह्मणों के बारे जानकारी दी थी, जिसे पाठकों द्वारा जबरदस्त प्रतिसाद मिला । मित्रों, ...
-
बुंदेलखंड भारत के इतिहास में एक उपेक्षित क्षेत्र रहा है, जब हम भारतीय इतिहास को पढ़ते हैं ,तो हमें बुंदेलखंड के बारे में बहुत कम या कहें...