विचारों की रेल चल रही .........चन्दन की महक के साथ ,अभिव्यक्ति का सफ़र जारी है . क्या आप मेरे हमसफ़र बनेगे ?
मंगलवार, 3 अप्रैल 2012
मील का पत्थर
काफिले गुजरते रहे , मैं खड़ा रहा बनके मील का पत्थर
मंजिल कितनी दूर है, बताता रह उन्हें, जो थे राही-ऐ -सफ़र
आते थे मुसाफिर, जाते थे मुसाफिर, हर किसी पे थी मेरी नजर
गर्मी, बरसात और ठण्ड आये-गये , पर मैं था बेअसर
हर भूले-भटके को मैंने बताया, कहाँ है तेरी डगर
थके थे जो, कहा मैंने - मंजिल बाकी है , थामो जिगर
चलते रहो हरदम तुम, गुजर गये न जाने कितने लश्कर
मुशाफिर हो तुम जिन्दगी में, न सोचना यहाँ बनाने की घर
एक दिन गुजरना है सबको यहाँ, नही है कोई अमर
गर रुक गये तो रुक जाएगी जिन्दगी, चलते रहो ढूंढ के हमसफ़र
एक ही मंजिल पर राह ख़त्म न होगी, ढूंढो मंजिले इधर-उधर
राह काँटों की भी मिलेगी तुम्हे, आते रहेंगे तुम पर कहर
मुश्किलों से न डरना, क्योंकि मिलेगा अमृत के पहले जहर
काफिले गुजरते रहे , मैं खड़ा रहा बनके मील का पत्थर
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orchha gatha
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bahut khub kya bat hain
जवाब देंहटाएंshukriya
हटाएंAasan nahi hota Doosron ko rah dikhana .... Meel ka patthar ban jaana ... Lajawab rachna ...
जवाब देंहटाएंdigambar ji , bahut sahi kaha aapne , shukriya
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