अभी तक आपने ओरछा महामिलन का पहले दिन का विवरण पढ़ा। सभी लोग तय कार्यक्रम के अनुसार निश्चित समय पर रामराजा मंदिर पहुँच चुके थे। आरती शुरू हो चुकी थी, मगर मैं अभी तक घर पर था। जब अनिमेष गोद से उतरने का नाम ही नही ले रहा था , तो उसे साथ ही लेकर कार से मंदिर पहुंचा ...
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अभी तक आपने ओरछा महामिलन का पहले दिन का विवरण पढ़ा। सभी लोग तय कार्यक्रम के अनुसार निश्चित समय पर रामराजा मंदिर पहुँच चुके थे। आरती शुरू हो चुकी थी, मगर मैं अभी तक घर पर था। जब अनिमेष गोद से उतरने का नाम ही नही ले रहा था , तो उसे साथ ही लेकर कार से मंदिर पहुंचा , तो देखा ग्रुप के अधिकांश पुरुष सदस्य रामराजा के दर्शन कर चुके है। हाँ महिलाये जरूर लाइन में लगकर दर्शन की प्रतीक्षा में थी। पुरुष दूर से ही दर्शन बिना लाइन में लगे कर चुके थे। ओरछा के रामराजा मंदिर में यह अच्छी व्यवस्था है, कि अगर आप लाइन में नही लगना चाहते है , तो दूर से मंदिर के आंगन से भी बड़े आराम से दर्शन कर सकते है। दूसरी तरफ वी आइ पी दर्शन की व्यवस्था भी है , इसके लिए मंदिर के पदेन प्रवन्धक यानि टीकमगढ़ कलेक्टर / निवाड़ी एस डी एम /ओरछा के तहसीलदार से अनुमति लेकर दर्शन किये जा सकते है। वैसे स्थानीय प्रशासन में जान-पहचान भी काम आ जाती है। मैं भी सबको वी आई पी दर्शन की फ़िराक में था। पर रामराजा को शायद ये मंजूर न था। अब मंदिर के बाहर सब महिलाओं का इंतजार कर रहे थे , तो कुछ सदस्य मंदिर के बाहर अपने कैमरे का सदुपयोग कर रहे थे। ( मंदिर के अंदर फोटोग्राफी / वीडियोग्राफी प्रतिबंधित है। ) अनिमेष को देखकर डॉ प्रदीप त्यागी जी पास आये , और उसे गोद में उठाकर खिलाने लगे।
अब साउंड एंड लाइट शो का समय होने वाला था। अगर आपको ओरछा घूमने का सही आनंद लेना है , तो पहले साउंड एंड लाइट शो को देखिये , जिससे ओरछा और इसके इतिहास , पुरातत्व और महत्व की जानकारी मिल जाएगी। अब आप बिना गाइड के भी ओरछा में घूम सकते है। क्योंकि ओरछा की महत्वपूर्ण इमारतों और इतिहास के बारे में मोटी -मोटी बातें आपको पता ही चल जाएगी। हाँ अब अगर आपको छोटी-छोटी बातें भी जननी है , तो आप आराम से गाइड कर सकते है। सर्दियों में एक घंटे का हिंदी का शो 7 :45 शाम से शुरू होता है। जब देर होती देखी तो मैंने संजय कौशिक जी को कहा कि जितने लोग दर्शन कर चुके है , वो पहले चले बाकी लोग गाड़ियों से आ जायेंगे। हम अधिकांश लोग पैदल ही रामराजा मंदिर से सीधे राजा महल के बहरी हिस्से दीवान -ए -आम से सटे मैदान में पहुँच गए। सब लोग जो आ चुके थे , उन्हें अंदर बिठाया , तभी मध्य प्रदेश पर्यटन विकास निगम के होटल शीश महल और होटल बेतवा रिट्रीट के प्रबंधक और मेरे मित्र अमित कुमार मिल गए। तो बाकी लोगों का इंतजार करते हुए उनसे गप्पे की। फिर जब सचिन त्यागी जी बाकी बचे हुए सदस्यों को साथ लेकर आये। सबके बैठने के बाद मैंने टिकट कटवाई। ( भारतियों के लिए 100 रूपये और विदेशियों के लिए 250 रूपये ) . मध्य प्रदेश में अभी तक ग्वालियर , खजुराहो के अलावा सिर्फ ओरछा में ही साउंड एंड लाइट शो होता है। जिन लोगों ये तीनो शो देखा है, उनके अनुसार इनमे ओरछा का शो सबसे अच्छा है। क्योंकि इसमें कई कहानियां है। ओरछा के शो में बुन्देलाओं के उद्भव से लेकर उत्कर्ष तक की कहानियाँ बड़े ही सुन्दर तरीके से बताई गयी है। इन कहानियों में ओरछा की स्थापना , रामराजा का अयोध्या से ओरछा आना , वीरसिंह जूदेव की जहांगीर से दोस्ती, उनके यशस्वी कार्य, रायप्रवीण का सौंदर्य और ओरछा की नियति ,हरदौल के लोकदेवता बनने की कथा, बदरुनिशां (औरंगजेब की बेटी ) का चतुर्भुज मंदिर को बचाना , छत्रसाल और बाजीराव पेशवा की विजय आदि बड़े ही रोचक तरीके से बताया गया है। ओरछा में ये साउंड एंड लाइट शो मध्य प्रदेश पर्यटन विकास निगम के हेरिटेज होटल शीशमहल के माध्यम से संचालित होता है। ये राजमहल के दीवान-ए -आम के सामने बने खुले मैदान में होता है। अब मैं अपने आभासी माध्यम (ब्लॉग/फेसबुक ) से बने मित्रो यथा संदीप पंवार जाटदेवता जी , ललित शर्मा जी, मनु प्रकाश त्यागी जी , कमल कुमार सिंह आदि के साथ ये शानदार शो देख चुका हूँ।
मैं चूँकि कई बार ये शो देख चुका था , इसलिए मैं नही गया। मेरे साथ मेरे अनिमेष बाबु भी थे , इसलिए उन्हें लेकर घर छोड़ा। लौटकर अकेला किला परिसर पहुंचा। ( ड्राइवर कैलाश को छोड़ दिया ) इतने में पंकज शर्मा जी का कॉल हुआ। वो झाँसी से ओरछा पहुँच चुके थे। उन्होंने मंदिर चौराहे पर खुद के खड़ा होने की बात बताई , तो मैंने उन्हें खड़े रहने की हिदायत दी। जल्दबाजी में जैसे ही गाड़ी रिवर्स की तो पीछे खड़ी कार से मेरी कार टकराई। तो उसके ड्राइवर से थोड़ी बहस करनी पड़ी , अब चूँकि गलती मेरी थी, तो सॉरी बोलकर निकल पड़ा , क्योंकि टक्कर जोरदार नही थी। खैर मैं मंदिर चौराहे पहुंचा तो पंकज शर्मा जी सड़क किनारे किसी व्यक्ति के साथ खड़े थे। मेरे पहुँचने पर उस व्यक्ति से मिलाया , जो मऊरानीपुर का रहने वाला था , और मुझे जानता था। लेकिन मैं उसे नही जानता था। खैर पंकज जी को लेकर किला परिसर पहुंचा। शो ख़त्म होने वाला ही था। तब तक उनका हाल समाचार प्राप्त किया। पंकज जी का ओरछा आना भी काम रोमांचक नही था। यही हमारे महामिलन की सबसे बड़ी उपलब्धि थी। शो समाप्ति पर सभी जब बहार आये तो पंकज जी से सबका मिलना हुआ।
फिर सब गाड़ियों से होटल वापिस हुए। होटल लौटने पर खाना लग चुका था। परंतु संस्थापक एडमिन मुकेश भालसे जी का आग्रह था , कि खाने से पहले सबका एक बार परस्पर परिचय हो जाये। अतः उनका आग्रह मानकर परिचय प्रारम्भ हुआ। पर भूखे पेट भजन न होय गुसाई। और बच्चों को तो रहा ही नही जा रहा था। अतः मैंने बाकी लोगों का परिचय भोजन पश्चात् करने का निवेदन किया , जिसे सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया। अब भोजन करने के बाद पुनः परिचय शुरू हुआ। परिचय शुरू होते ही सब फ्लैशबैक में चले गए। सचमुच ये बड़ा भावुक क्षण था। सब ग्रुप से जुड़ने और सदस्यों से अपने मिलने -जुलने की बात सुना रहे थे। मुकेश भालसे जी ने ग्रुप की स्थापना की कहानी सुनाई , तो बुआ जी ने अपनी परिवार के बिना अनजान शहर में अनजान लोगों से मिलने के लिए बिना टिकट लिए ही ट्रेन से ओरछा आने की भावुक दास्ताँ सुनाई। सब यादों के झरोखों में खो रहे थे। ग्रुप के प्रति समर्पित प्रतीक गाँधी जी ने बताया कैसे उनकी यात्रा से उनके गांव इ दोस्त भी न केवल घुमक्कड़ बने , बल्कि घुमक्कड़ी दिल से ग्रुप के सदस्य भी बने। मूलतः बंगाली संदीप मन्ना जी ( इन्हें बाइक यात्राएं ज्यादा पसंद है। ) हिंदी में कमजोर होने के बाद भी अपनी कहानी हिंदी में सबसे साझा की। ग्रुप के अन्य एडमिन संजय कौशिक जी , रितेश गुप्ता जी ने भी अपने अनुभव बांटे। सूरज मिश्र , प्रकाश यादव जी, रूपेश शर्मा जी , रामदयाल प्रजापति भाई , कविता भालसे जी , हेमा सिंह जी , संजय सिंह जी , रमेश शर्मा जी , सचिन जांगड़ा जी , सचिन त्यागी जी , हरेन्द्र धर्रा भाई आदि ने भी अपनी रामकहानी बताई। इस बीच प्रतीक जी की विशेष फरमाइश पर एक बार चाय का दौर चल चुका है। रात गहराने लगी थी , सबके चेहरे पर थकान और नींद छा रही थी। अतः अब सभा विसर्जन का निर्णय लिया गया। और सुबह आठ बजे तैयार रहने को कहा गया। ताकि ओरछा अभ्यारण्य में होने वाले दो विशेष और यादगार आयोजन में शामिल हुआ जा सके।
25 दिसंबर 2017 को सुबह नहा धोकर जल्दी ही मैं तैयार होकर 8 बजे होटल ओरछा रेसीडेंसी पहुँचा तो देखा अभी बहुत से लोग तैयार नही हुए है। मुम्बई वाली दर्शन कौर यानि बुआ जी मेरी पत्नी और अनिमेष से मिलना चाहती थी। तो मैं बुआ जी , श्रीमती नीलम कौशिक जी ( सोनीपत , हरियाणा से ) , श्रीमती कविता भालसे ( इंदौर से ), श्रीमती रश्मि गुप्ता जी (आगरा से ) और श्रीमती हेमा सिंह जी (रांची , झारखण्ड से ) को अपने परिवार से मिलाने अपनी कार में बिठाकर अपने शासकीय आवास सह कार्यालय लेकर गया। चूँकि मैंने इसके बारे में अपने घर पूर्व सूचना दी थी , इसलिए जब मैं घर पर पहुँचा तो मेरी धर्मपत्नी निभा पांडेय जी नहा रही थी , और अनिमेष बाबु सो रहे थे। तो मैंने ही अपने अतिथियों को पानी का पूछा। बिना सूचना के अचानक घर लोगो को लाने पर पत्नी का सामना करना पड़े , इसलिए बुआ जी को बागडोर सौपकर मैं निकल लिया। इधर होटल आया तो पता चला कि श्रीमती नयना यादव जी ( रायगढ़ ,छत्तीसगढ़ से ) तो रह ही गयी। तो अपने ड्राइवर जगदीश को इन्हें घर तक पहुँचाने और सभी को वापिस लेकर आने की जिम्मेदारी देकर मैं आगे के कार्यक्रम की व्यवस्था में लग गया। हमारे अगले कार्यक्रम में बुआ जी , प्रतीक गाँधी जी और उनके दो मित्र अलोक जी और मनोज जी ट्रैन से वापिस लौटने वाले थे। ग्रुप में सबका प्रेम देखकर विनोद गुप्ता जी खुद को जाने से रोक लिए और फैसला किये कि 25 दिसंबर का पूरा दिन महामिलन के नाम करेंगे। गाजियाबाद से अपनी कार से सपरिवार आये सचिन त्यागी जी भी इस अविस्मरणीय महमिलन की यादें अपने साथ लेकर लौट रहे थे।
आज हम लोगो को तुंगारण्य में वृक्षारोपण करना था , ये मेरा ही विचार था , कि इतने राज्यों से एक साथ इतने लोग ओरछा आ रहे है , तो वो ओरछा से सिर्फ लेकर न जाये , बल्कि ओरछा को कुछ देकर भी जाये। और किसी भी स्थान को पेड़ों से बढ़कर और क्या दिया जा सकता था ? इसके बारे में मैंने ओरछा अभ्यारण्य के प्रभारी अधिकारी रेंजर श्री आशुतोष अग्निहोत्री जी से पूर्व में ही चर्चा कर ली थी। तुंगारण्य जगह चुनने के पीछे कारण इतना ही था , कि वहां वन विभाग द्वारा इन वृक्षों की देखभाल होती रहेगी। श्री अग्निहोत्री जी ने गुलमोहर , कनक-चंपा , कदंब जैसे वृक्ष लगाने को कहा था अतः मैंने वरुआ सागर की नर्सरी से यही पौधे मंगाए थे।
होटल में सभी सदस्य तैयार हो चुके थे , मेरे घर गयीं महिलाएं भी वापिस आ चुकी थी। और नाश्ता तैयार हो चुका था , अतः सभी ने होटल में ही नाश्ता किया। उसके बाद पूर्व की तरह सभी लोग निकल पड़े तुंगारण्य की ओर। गाड़ी से जाने वाले लोग पहले पहुंचे , लेकिन बिना टिकट के होने के कारण उन्हें तुंगारण्य में प्रवेश नही मिला। तो आदतानुसार बाहर सड़क पर ही फोटोग्राफी होने लगी। अब घुमक्कड़ी दिल से का बैनर भी साथ था। बाद में जब मैं पहुंचा तो तुंगारण्य में सब लोगों ने प्रवेश किया। मेरी रेंजर श्री अग्निहोत्री जी से मोबाइल पर बात हुई तो वो भी दस मिनट में पहुचने की कह रहे थे। उनके आने तक खाली समय का सदुपयोग हमारे धुरंधर फोटोग्राफर्स की प्रतिभा का भरपूर दोहन किया गया। खैर रेंजर साहब के आने के बाद हमारा वृक्षारोपण का कार्यक्रम संपन्न हुआ। मुम्बई वाले विनोद गुप्ता जी ने हमारे ग्रुप के एक सदस्य देवेंद्र कोठारी जी ( जयपुर से ) जो किसी कारणवश ओरछा नही आ पाए , उनसे किये वादे के अनुसार उनके नाम का भी एक पौधा लगाया। ये ग्रुप के सभी सदस्यों का एक दूसरे के प्रति प्रेम और सम्मान ही तो है , जो न आये हुए सदस्य की भी बात पूरी की गयी, जबकि विनोद भाई कभी कोठारी जी से भी मिले भी नही है। खैर हमारे महामिलन के स्मारक के रूप में ये वृक्ष तैयार होंगे। मेरे ख्याल से इस तरह के जिन्दा स्मारक शायद ही किसी घुमक्कड़ समूह ने बनाया होगा। अब मैं ओरछा रहूँ या न रहूँ , कोई भी सदस्य या उनसे जुड़े व्यक्ति कभी ओरछा आये तो उन्हें बताने के लिए हमारे ये जीवित स्मारक विशेष होंगे पौधा रोपण के इस पावन कार्यक्रम में सभी यानि बूढ़े, बच्चे और जवान तन-मन और तन्मयता से लगे थे।
अब वृक्षारोपण के पुनीत कार्य के बाद हम सभी ओरछा अभ्यारण्य में स्थित पचमढ़िया में अपने वनभोज कार्यक्रम के लिए चल पड़े। हमारे कुक पहले ही पहुँच चुके थे। गाड़ी में सबसे पहले बच्चों-महिलाओं और बुजुर्गों को तरजीह दी गयी। मैं अभ्यारण्य के प्रवेश की टिकट कटाने रुक गया था , तो देखा हमारे ग्रुप के नौजवान सदस्य मिसिर जी यानि सूरज मिश्र जी शौचालय की तरफ भाग रहे है। बाद में उन्होंने बताया कि उनके खाने पर लोगों ने नजर लगा दी है। खैर सब लोग इस महामिलन के सबसे यादगार भाग के हिस्सा बनने के लिए पचमढ़िया पहुँच गए थे। वहां का नजारा देख कर सबका दिल बल्लियां उछालने लगा , बच्चों को तो मन मांगी मुराद पूरी हो गयी थी। आखिर पचमढ़ियां में ऐसा क्या हुआ हम जानेंगे इस महामिलन की आखिरी मगर सबसे बेहतरीन किश्त में। .....तब तक के लिए राम -राम
25 दिसंबर 2017 को सुबह नहा धोकर जल्दी ही मैं तैयार होकर 8 बजे होटल ओरछा रेसीडेंसी पहुँचा तो देखा अभी बहुत से लोग तैयार नही हुए है। मुम्बई वाली दर्शन कौर यानि बुआ जी मेरी पत्नी और अनिमेष से मिलना चाहती थी। तो मैं बुआ जी , श्रीमती नीलम कौशिक जी ( सोनीपत , हरियाणा से ) , श्रीमती कविता भालसे ( इंदौर से ), श्रीमती रश्मि गुप्ता जी (आगरा से ) और श्रीमती हेमा सिंह जी (रांची , झारखण्ड से ) को अपने परिवार से मिलाने अपनी कार में बिठाकर अपने शासकीय आवास सह कार्यालय लेकर गया। चूँकि मैंने इसके बारे में अपने घर पूर्व सूचना दी थी , इसलिए जब मैं घर पर पहुँचा तो मेरी धर्मपत्नी निभा पांडेय जी नहा रही थी , और अनिमेष बाबु सो रहे थे। तो मैंने ही अपने अतिथियों को पानी का पूछा। बिना सूचना के अचानक घर लोगो को लाने पर पत्नी का सामना करना पड़े , इसलिए बुआ जी को बागडोर सौपकर मैं निकल लिया। इधर होटल आया तो पता चला कि श्रीमती नयना यादव जी ( रायगढ़ ,छत्तीसगढ़ से ) तो रह ही गयी। तो अपने ड्राइवर जगदीश को इन्हें घर तक पहुँचाने और सभी को वापिस लेकर आने की जिम्मेदारी देकर मैं आगे के कार्यक्रम की व्यवस्था में लग गया। हमारे अगले कार्यक्रम में बुआ जी , प्रतीक गाँधी जी और उनके दो मित्र अलोक जी और मनोज जी ट्रैन से वापिस लौटने वाले थे। ग्रुप में सबका प्रेम देखकर विनोद गुप्ता जी खुद को जाने से रोक लिए और फैसला किये कि 25 दिसंबर का पूरा दिन महामिलन के नाम करेंगे। गाजियाबाद से अपनी कार से सपरिवार आये सचिन त्यागी जी भी इस अविस्मरणीय महमिलन की यादें अपने साथ लेकर लौट रहे थे।
आज हम लोगो को तुंगारण्य में वृक्षारोपण करना था , ये मेरा ही विचार था , कि इतने राज्यों से एक साथ इतने लोग ओरछा आ रहे है , तो वो ओरछा से सिर्फ लेकर न जाये , बल्कि ओरछा को कुछ देकर भी जाये। और किसी भी स्थान को पेड़ों से बढ़कर और क्या दिया जा सकता था ? इसके बारे में मैंने ओरछा अभ्यारण्य के प्रभारी अधिकारी रेंजर श्री आशुतोष अग्निहोत्री जी से पूर्व में ही चर्चा कर ली थी। तुंगारण्य जगह चुनने के पीछे कारण इतना ही था , कि वहां वन विभाग द्वारा इन वृक्षों की देखभाल होती रहेगी। श्री अग्निहोत्री जी ने गुलमोहर , कनक-चंपा , कदंब जैसे वृक्ष लगाने को कहा था अतः मैंने वरुआ सागर की नर्सरी से यही पौधे मंगाए थे।
होटल में सभी सदस्य तैयार हो चुके थे , मेरे घर गयीं महिलाएं भी वापिस आ चुकी थी। और नाश्ता तैयार हो चुका था , अतः सभी ने होटल में ही नाश्ता किया। उसके बाद पूर्व की तरह सभी लोग निकल पड़े तुंगारण्य की ओर। गाड़ी से जाने वाले लोग पहले पहुंचे , लेकिन बिना टिकट के होने के कारण उन्हें तुंगारण्य में प्रवेश नही मिला। तो आदतानुसार बाहर सड़क पर ही फोटोग्राफी होने लगी। अब घुमक्कड़ी दिल से का बैनर भी साथ था। बाद में जब मैं पहुंचा तो तुंगारण्य में सब लोगों ने प्रवेश किया। मेरी रेंजर श्री अग्निहोत्री जी से मोबाइल पर बात हुई तो वो भी दस मिनट में पहुचने की कह रहे थे। उनके आने तक खाली समय का सदुपयोग हमारे धुरंधर फोटोग्राफर्स की प्रतिभा का भरपूर दोहन किया गया। खैर रेंजर साहब के आने के बाद हमारा वृक्षारोपण का कार्यक्रम संपन्न हुआ। मुम्बई वाले विनोद गुप्ता जी ने हमारे ग्रुप के एक सदस्य देवेंद्र कोठारी जी ( जयपुर से ) जो किसी कारणवश ओरछा नही आ पाए , उनसे किये वादे के अनुसार उनके नाम का भी एक पौधा लगाया। ये ग्रुप के सभी सदस्यों का एक दूसरे के प्रति प्रेम और सम्मान ही तो है , जो न आये हुए सदस्य की भी बात पूरी की गयी, जबकि विनोद भाई कभी कोठारी जी से भी मिले भी नही है। खैर हमारे महामिलन के स्मारक के रूप में ये वृक्ष तैयार होंगे। मेरे ख्याल से इस तरह के जिन्दा स्मारक शायद ही किसी घुमक्कड़ समूह ने बनाया होगा। अब मैं ओरछा रहूँ या न रहूँ , कोई भी सदस्य या उनसे जुड़े व्यक्ति कभी ओरछा आये तो उन्हें बताने के लिए हमारे ये जीवित स्मारक विशेष होंगे पौधा रोपण के इस पावन कार्यक्रम में सभी यानि बूढ़े, बच्चे और जवान तन-मन और तन्मयता से लगे थे।
अब वृक्षारोपण के पुनीत कार्य के बाद हम सभी ओरछा अभ्यारण्य में स्थित पचमढ़िया में अपने वनभोज कार्यक्रम के लिए चल पड़े। हमारे कुक पहले ही पहुँच चुके थे। गाड़ी में सबसे पहले बच्चों-महिलाओं और बुजुर्गों को तरजीह दी गयी। मैं अभ्यारण्य के प्रवेश की टिकट कटाने रुक गया था , तो देखा हमारे ग्रुप के नौजवान सदस्य मिसिर जी यानि सूरज मिश्र जी शौचालय की तरफ भाग रहे है। बाद में उन्होंने बताया कि उनके खाने पर लोगों ने नजर लगा दी है। खैर सब लोग इस महामिलन के सबसे यादगार भाग के हिस्सा बनने के लिए पचमढ़िया पहुँच गए थे। वहां का नजारा देख कर सबका दिल बल्लियां उछालने लगा , बच्चों को तो मन मांगी मुराद पूरी हो गयी थी। आखिर पचमढ़ियां में ऐसा क्या हुआ हम जानेंगे इस महामिलन की आखिरी मगर सबसे बेहतरीन किश्त में। .....तब तक के लिए राम -राम
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साउंड एंड लाइट शो के लिए जाने वाला रास्ता |
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साउंड और लाइट शो की एक झलक |
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दीवान-ए -आम में खास रौशनी |
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वृक्षारोपण करते हुए |
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ग्रुप की महिलाएं भी किसी कार्य में कम नही थी। |
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ओरछा अभ्यारण्य के रेंजर श्री आशुतोष अग्निहोत्री के साथ चर्चारत |
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मिलेंगे फिर से .. .घुमक्कड़ी दिल से |
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अब 25 दिसंबर का दिन हो और सांता क्लास न आये ! |
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घुमक्कड़ी दिल से |