शुक्रवार, 17 अप्रैल 2020

मेरी पहली हवाई यात्रा जो अविस्मरणीय बन गयी ।

                    हम आम भारतीयों के लिए हवाई यात्रा एक सपना ही होता है ।  मेरा भी बचपन से ही हवाई यात्रा का सपना रहा । बेरोजगारी के आलम में तो सपना ही रहा । नौकरी के बाद एकाध बार मध्य प्रदेश शासन के हेलीकॉप्टर में बैठने का सुख प्राप्त हुआ । फिर विवाह पश्चात एक बार वैष्णो देवी के दर्शनार्थ कटरा से सांझी छत तक हेलीकॉप्टर से गये । हिमालय की धवल श्रेणियों के भव्य दर्शन हुए । जुलाई 2018 में दिल्ली से अमरनाथ और लेह की यात्रा का सौभाग्य मिला , मगर 100 सीसी बाइक से । देश में सस्ती हवाई सेवा शुरू होने के बाद भी कभी अवसर नही मिल पा रहा था । सितम्बर 2019 ओरछा से स्थानांतरण पन्ना हो गया । अभी परिवार साथ नही लाया था । अकेले रहने का सुख या दुख जो समझ लीजिए भोग रहा था । दशहरा-दीपावली पन्ना में ही अकेले मनाया । फिर 8 नवम्बर को घर जाने की अनुमति मिली । एक दिन ऐसे ही फुरसत में बैठे बैठे मेक माय ट्रिप के एप पर खजुराहो से वाराणसी की हवाई जहाज खोजा । तो विस्तारा एयरलाइन की नई सेवा चालू हुई । और मात्र 3600 रुपये में उड़ान थी । फिर क्या अपना दिल बल्ली उछलने लगा । बचपन के सपने आंखों में तैर गए । हमने तुरंत फ्लाइट की टिकट बुक की । कार्यालय में बात करने के बाद 12 नवम्बर को वापिसी की टिकट 3800 रुपये में बुक कर दी । अभी घर में किसी को नही बताया । रात भर जागी आंखों से उड़ान के ख्वाब देख रहे थे । एक आम आदमी हवा में उड़ने की कल्पना से ही खुश हो जाता है । इधर मैंने तो टिकट ही बुक कर दी । खैर वो दिन भी आ गया , जब उड़नखटोला में बैठना था । मेरे जिला कार्यालय के बाबू  और स्टॉफ को पता चला तो वो लोग भी बोले - सर, हम लोग भी आपको छोड़ने चलेंगे । कम से कम इसी बहाने से एयरपोर्ट और ऐरोप्लेन तो देख लेंगे । अब हम सब पन्ना से खजुराहो हवाई अड्डे के लिए निकले । खजुराहो वैसे तो अपने आश्चर्य जनक स्थापत्य वाले नागर शैली के मंदिरों के लिए विशेष कर मन्दिर की बाह्य भित्तियों पर मैथुन शिल्पांकन के लिए विश्व विख्यात है । 42 किमी की दूरी तय करके खजुराहो पहुँचे , वहाँ मध्य प्रदेश पर्यटन निगम के होटल झंकार पहुँच कर प्रबंधक अमित कुमार जो मेरे मित्र भी है, उनके साथ चाय पी । फिर छोटू से खजुराहो हवाई अड्डे पहुँच गए । अपने सहकर्मियों के साथ हवाई अड्डे के बाहर फ़ोटो खिंचवाई और उनसे टाटा बाय करके टिकट दिखाकर अंदर प्रवेश किया । कुछ अंग्रेज और दो-चार भारतीय के अलावा अन्य यात्री नही थे । छोटा सा एयरपोर्ट जिसे एक नजर में ही देख लिया । चूंकि एक घण्टे पहले पहुँच गया था, तो तसल्ली से बोर्डिंग पास बनवाया । वैसे बड़े हवाई अड्डों पर एक घण्टे पहले पहुंचना यानी जल्दी से पहुँचना होता है । क्योंकि सुरक्षा जाँच की कतार लम्बी होती है, और उसमें समय लगता है । यहाँ तो गिने चुने यात्री ही थे । खैर हम चल पड़े द्वितीय तल पर स्थित प्रतीक्षालय में । आसपास देखने को कोई नजारे न थे । सामने एरोड्रम पर भी कोई उड़नखटोला न खड़ा था । वैसे भी पिछले कुछ साल से खजुराहो में विदेशी पर्यटकों की कमी के कारण कई हवाई कम्पनियों ने अपनी उड़ाने बन्द कर दी है । हाल ही में नई हवाई कम्पनी विस्तारा एयरलाइन्स ने अपनी उड़ान सेवा दिल्ली-खजुराहो-वाराणसी-दिल्ली के लिए चालू की है । जब से नेपाल में भूकम्प आया है, तबसे ये हवाई यात्रा सर्किट दिल्ली-खजुराहो-वाराणसी-बोधगया-नेपाल में विदेशी यात्री बहुत कम हो गए है । खैर हम कौन सा पर्यटन करने जा रहे है । इन्हें छोड़ अपनी उड़नखटोला यात्रा पर लौटते है ।  विस्तारा एयरलाइन्स सिंगापुर एयरलाइन्स (SIA) और टाटा कम्पनी का संयुक्त उपक्रम है । संयोग देखिए भारत के पहले कमर्शियल पायलट जमशेद जी टाटा थे, और टाटा एयरलाइन्स देश की पहली कमर्शियल एयरलाइन्स थी । स्वतन्त्रता पश्चात टाटा ने अपनी एयरलाइन्स देशहित में देश को समर्पित की जो आज एयर इंडिया के नाम से जानी जाती है । हमारी फ्लाइट आते ही सभी यात्रियों से अनुरोध किया जाता है, हम अनुरोध स्वीकार कर सीना ताने विमान में प्रवेश करते है । पहली बार हवाई यात्रा करने वाले आसानी से पकड़ में आ जाते है । हर चीज को ऐसे घूरते है, जैसे निपट देहाती व्यक्ति महानगरीय अट्टालिकाओं को । खैर 138 सीट वाले मेरे विमान में बमुश्किल 20 यात्री थे । विमान अंदर से रेलवे के प्रथम श्रेणी वातानुकूलित यान या चार्टेड बस की तरह ही लग रहा है । खिड़कियों का आकार ही उन्हें भ्रम मुक्त कर रहा था । विमान खाली होने से यात्रियों को निर्धारित सीट के अलावा अन्य सीट पर बैठने की छूट दी । परिचारिका जी ने मुझे बीच की सीट पर बैठने का संकेत किया । हम भी खुश की अगर विमान कही टकराया तो बीच वाले तो सुरक्षित रहेंगे । लेकिन तभी खयाल आया कि खजुराहो से वाराणसी के बीच कोई ऐसा पहाड़ तो है नही, जिससे विमान टकराये । और न सड़क मार्ग की तरह इतना ट्रैफिक है, कि कोई पीछे ही ठोक जाए । अब एक आशंका बच रही है, कि विमान दुर्घटनाग्रस्त हो जाये तो भले बीच से टूट जाये । ऐसे विचार पहली बार हवाई यात्रा करने वाले के मन में तो आते ही है । खैर हम खिड़की के पास वाली सीट पर बैठ गए । खिड़की के बाहर देखा तो पता चला कि हम उड़नखटोले के एक डैने के पास ही बैठे है । अब एक उड़न सुंदरी आई और अंग्रेजी में गिटर-पिटर करते हुए हाथ से इशारे के करने लगी । भारतीय शैली में अंग्रेजी बोलती तो कुछ पल्ले पड़ती मगर परले दर्जे की अंग्रेजी ऊपर से निकल गयी । खैर मुझे तो शुरुआत में उसका नाम दीक्षा और बाद में थैंक यू ही समझ आया । कुछ देर बाद वही उड़न सुंदरी आगे के मुसाफिरों से होते हुए मेरे पास आई । आते ही मुझसे बोली - व्हिच लैंग्वेज यू प्रिफर ?  इंग्लिश बोलने की गलती करते ही मोहतरमा अंग्रेजी में ऐसे सुपर फास्ट हुई कि हम प्लेटफॉर्म पर पैसेंजर के यात्री से देखते रह गए । खैर उनकी हरकतों से इतना समझ आया कि आपातकालीन परिस्थितियों में क्या करना है ? लेकिन अब कुछ समझ ही नही आया तो आपातकाल में क्या करेंगे ? खैर भगवान भरोसे हम सीट बेल्ट बांधकर बैठ गए । अब विमान में हरकत हुई इंजन स्टार्ट हुआ, दिल की धड़कन भी तेज हो गयी । तभी कॉकपिट से आवाज आई । नमस्कार, मैं आपकी पायलट कैप्टन अवन्तिका सिंह...हमारी उड़ान का निर्धारित समय है..1 घण्टा 35 मिनट और ...…..कैप्टन अवन्तिका सिंह ! वाह रे ! मेरी किस्मत, पहली उड़ान और पायलेट महिला ! पहले तो थोड़ा डर लगा, फिर सीना गर्व से चौड़ा हो गया । हमारे देश में लड़कियों ने हर क्षेत्र में पुरुषों को चुनौती दी है । वो अलग बात है, कि मैंने अभी तक अपनी पहली उड़ान की सूचना मायके में विराजमान अर्धांगिनी जी को नही दी है । अब विमान रनवे पर रेंगते रेंगते दौड़ने लगा । अभी तक लग रहा कि किसी लक्जरी बस में दौड़ रहा हूँ, फिर अचानक झटका लगा और उड़नखटोला आकाश की ओर उन्मुख हुआ , हम खिड़की से अपने मोबाइल में वीडियो बना रहे है, वीडियो को दिखा अपनी धाक भी तो जमानी पड़ेगी । नीचे खेत,मकान सड़क छोटे छोटे दिखने लगे थे । कुछ देर बाद बाहर का नजारा गजब का हो गया था, हम बादलों के बीच से गुजर रहे थे । रामानंद सागर की रामायण याद आ गयी । इंद्र आदि देवता बादलों के बीच ही तो रहते थे । हम अभी नजारों में ढंग से खो ही नही पाए कि विमान संचालिका कप्तान अवन्तिका जी की सुमधुर आवाज एक फिर से गूंजी । हम ....हजार फीट की ऊंचाई पर वाराणसी के आसमान में है, यहां तापमान है,28 डिग्री सेल्सियस और कुछ ही देर में हम लैंड करने वाले है, आप सभी अपनी पेटियां कस ले । लेकिन हम पेटी नही बैग लेकर आये थे । तभी आंग्ल संस्करण में पेटी मतलब बेल्ट पता चला । हमने खोली ही नही थी, तो कसने का सवाल ही नही । अब फिर से खेत मकान दिखने लगे । उम्मीद से भी कम समय में वाराणसी के लाल बहादुर शास्त्री अंतरराष्ट्रीय विमान तल बाबतपुर, वाराणसी पहुँच गए । यहाँ का हवाई अड्डा खजुराहो की तुलना में बड़ा था । यहाँ भीड़भाड़ भी दिख रही थी । कुछ दुकानें भी दिखी । खैर एकाध फ़ोटो खींच हम बाहर निकले । बाहर टैक्सी और ऑटो वालों की भीड़ यात्रियों को पकड़ने को आतुर दिखी । मैंने वाराणसी केंट (जंक्शन) का किराया पूछा तो 23 किमी के 250 रुपये से कम में कोई तैयार न हुआ । देवउठनी एकादशी के उपवास के कारण भोजन तो नही कर सकते थे, लेकिन हवाई अड्डे से थोड़ा आगे चलने पर एक दुकान पर कुल्हड़ में चाय पी । दुकान वाले से ही आसपास के टेम्पो स्थल की जानकारी ली । और हवाई यात्री पैदल ही लगभग एक किमी चले । ओवर ब्रिज के पास टेम्पो मिल गयी । 20 रुपये भाड़ा देकर स्टेशन पहुँच गए । पूछताछ केंद्र से बक्सर जाने वाली ट्रेन का पता किया । ट्रेन प्लेटफॉर्म पर पहुंचने वाली थी , हम भी दौड़कर ट्रेन के डिब्बे में दाखिल हो गए । डेढ़ घण्टे में बक्सर पहुँच गए । छोटा भाई बाइक से लेने आ गया । और लौटकर बुद्धू घर को आये । इस सफर में बुलेरो, हवाई जहाज, पैदल, ट्रेन और बाइक से अपना सफर पूरा किया । पर अब अपनी रामकहानी में ट्विस्ट आना बाकी है । घर पहुँचने के बाद हमारे जिला अधिकारी का कॉल आता है ! कल राम मंदिर अयोध्या का फैसला माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिया जाना है, पूरे देश मे हाई अलर्ट है अतः आप जितनी जल्दी हो सके वापिस लौटिए । माता श्री गांव गयी थी, तो उनसे मुलाकात हो न पाई । उन्हें जब कॉल कर वापिस जाने की बात बताई तो उन्हें भरोसा ही नही हुआ । वो इसे मजाक ही समझ रही थी । रात में ही वापिसी की फ्लाइट मोबाइल से बुक की । सुबह 7 बजे की ट्रेन से जाना तय हुआ । अब आंखों से नींद गायब ! जागती आंखों से रात काटी , सुबह 5 बजे नहा धोकर तैयार हुए । भाई स्टेशन तक छोड़ने आया । विदा होते समय आंखे नम थी । खैर प्लेटफॉर्म से बाहर यूटीएस एप्प के माध्यम से वाराणसी तक का टिकट लिया । अब ट्रेन में बैठ गए, 11 बजे ट्रेन के वाराणसी पहुँचने का समय था, और वाराणसी से 23 किमी दूर स्थित हवाई अड्डे पर रिपोर्टिंग टाइम 11:20 बजे तक का था । और मेरी ट्रेन अपनी परंपरा का पूर्णतः पालन करते हुए 30 मिनट देरी से चलने लगी । हवाई अड्डे समय पर पहुंचने की उम्मीद धुंधली पड़ने लगी । 11:30 पर वाराणसी पहुँच पाया तुरंत भागते ऑटो पकड़ा ईश्वर कृपा से पूरी सड़क खाली मिली,  रामजन्म भूमि पर माननीय उच्चतम न्यायालय से फैसला आना था । इसी कारण ऐतिहातन पूरे देश को हाइ अलर्ट पर रखा गया । ऑटो चालक ने पूरी स्पीड से ऑटो भगाया । हवाई अड्डे पर 12:15 बजे पहुँच पाया । 12:30 पर उड़ान थी । बोर्डिंग पास के लिए काउंटर पर बैठी भद्र महिला ने साफ मना कर दिया । आप बहुत लेट हो चुके है, आपको हम बोर्डिंग पास नही दे सकते , बस टेक ऑफ होने वाला है ।  अब मेरी हालत खराब । मैंने अपनी इमरजेंसी ड्यूटी का भी हवाला दिया । ये भी कहा कि अगर किसी से बात करनी हो बताए मैं बात करता हूँ ।  उन्होंने इनकार में सर हिला दिया । फिर किसी को फोन किया , वहाँ से भी मनाही हो गयी । अब ईश्वर ही याद आये । तभी चमत्कार हुआ । काउंटर का टेलीफोन घनघनाया । कुछ उम्मीद सी जगी । उधर से आवाज आई जल्दी भेजो ।  अब बोर्डिंग काउंटर पर हलचल तेज हुई । भद्र महिला बोली आप जल्दी से मेरे साथ आये, सिक्योरिटी चेक पर लम्बी लाइन लगी है । उनके साथ लाइन के बगल से गये, जल्दी से सिक्योरिटी चेक हुआ । सामान अलग से चेक हो रहा । भद्र महिला ने बोला जल्दी से आप ऊपर 4 नंबर गेट पर पहुँचे । हमने भी तेजी से दौड़ लगाई , ऊपर पहुँचा ही था, कि पीछे पीछे दौड़ता सीआईएसएफ का जवान आया । बोला- सर आपका समान कौन लाएगा ? अब फिर नीचे की ओर भागा ।  समान उठाया, बेल्ट गले में  लटकाया । फिर 4 नंबर की तरफ आया । यहाँ मेरा ही इंतज़ार हो रहा था । मेरे विमान में प्रवेश करने के कुछ देर बाद रनवे पर विमान दौड़ने लगा । तेज दिल की धड़कन सामान्य हुई । माथे से पसीने की बूंदे पोंछने पड़ी । विमान में सारी कवायद वही हुई । लौट के बुद्धू खजुराहो आये ।

खजुराहो हवाई अड्डे के बाहर
विमान के अंदर







52 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया लिखा है...आगे भी लिखते रहें 👍👍

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  2. आराम से और भड़भड़ी, दोनों स्थिति में उड़ लिए

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    1. प्रभु, गजब का मामले में आपसे बहुत पीछे है ।आभार

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  4. इतना जबर ट्विस्ट? इंटरवल के बाद कहानी में ऐसा मोड़ आएगा, कल्पना नहीं कि थी! पर ये सच है कि पहली हवाई यात्रा रोमांच से भर देती है।

    वैसे मुझे आपकी यात्रा बहुत महंगी अनुभव हुई! 3600/- और 3800 का टिकट तो आप खरीद ही चुके थे फिर एक और टिकट लेना पड़ा?

    मैंने भी 2007 में दिल्ली से उदयपुर और फिर वापसी की यात्रा की थी जो मेरे जीवन की पहली हवाई यात्रा थी। उसका लिंक http://www.ghumakkar.com/journey-udaipur-mt-abu-airtravel/. ये रहा। शायद असपको मज़ा आये!

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    1. आदरणीय अपनी जिंदगी ही ट्विस्ट से भरी लेकर आये है । क्या पता कल कोई फिलिम ही बना डाले । ;-)
      आभार

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  5. बहुत अच्छा वर्णन आपसे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा
    आपको ह्रदय से नमन करता हूँ कि आप इस भागदौड़ भरी ज़िंदगी जे सोचकर भी अपनी यात्रा वर्णन लिखा साथ ही आपके साहस व जज्बे को नमन क्योकि आप जैसे कर्मठ अधिकारी होते हुए भी भाषा मृदुलता वाकई गजब हैं
    लेखनी को इस तरह से शब्दों को पिरो कर लिखा कि बेहद कमाल
    👱👌👌👌👌👌

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    1. आभार सचिन जी । आपने चने के झाड़ पर चढ़ा दिया । हम साधारण ही है ।

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  6. उड़न सुंदरी क्या नामांकन किये है भैया
    लाजवाब लिखे है भैया

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  7. रोचक वर्णन एवं सुंदर चित्र । पढकर आनंद आ गया।

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  8. आप भाग्यशाली रहे। प्लेन नहीं छूटी। ट्रेन की लेटलतीफी में मेरी दिल्ली से त्रिवेन्द्रम की प्लेन छूट चुकी है। एक सुनहला नियम है कि ट्रेन से जाकर प्लेन पकड़नी हो तो कम से कम चार घंटे की मार्जिन रखें।

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  9. बहुत सुंदर,रोमांचक यात्रा वृतांत

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  10. अत्यंत रोचक यात्रा वृत्तांत। एक सुझाव है, जब आसान रिक्त थे तो आपको पंख से आगे अथवा पीछे के आसान का चुनाव करना चाहिए था। ऐसे में छायांकन में पंख बाधा न बनते।

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    1. पहली यात्रा थी, तो कुछ हिचक भी थी । कुछ जानकारी का अभाव भी था ।
      आभार

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  11. बहुत मजेदार और रोचकता से भरपूर लिखा, मुकेश भैया

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  12. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  13. लाजवाब लेखन और रोमांचक यात्रा वृतांत।बहुत-बहुत बधाई ।

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  14. वाह पाण्डेय जी वाह, ग़ज़ब की मनोदशा होती है जब रेल से प्लेन पकड़ना हो । मन कहीं तसल्ली देता है सब ठीक होगा और हकीकत कुछ और बयां कर रही होती है । ये कसमकश चलती रहती है जब तक दोनों में से एक तरफ नहीं हो जाते । और हाँ, हवाई यात्रा में मैन भी डर यही सोच कर भगाया थ्या कि डर कर मैं कर भी क्या लूँगा तो बेकार में डरा भी क्यूँ जाए 😝😝😝

    वैसे वो फोन क्यों और किसका आया जिसने आपको जहाज में चढ़ाया ? अपना कोई किया हुआ फोन काम आ गया या कोई सत्कर्म ?

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  15. और हाँ आपकी पहली से #दूसरी यात्रा ज्या अविस्मरणीय लगी 😊😊

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  16. मेरी भी पहली हवाई यात्रा जयपुर से बॉम्बे की थी और इतने ही रुपियो कि थी। मुझे भी जाने से पहले रातभर नींद नही आई थी😂

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  17. ये तो बड़ा ही शुभ शगुन हुआ 2 दिन में 2 हवाई यात्रा😂😂😂

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  18. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  19. बहुत ही बढ़िया और शानदार विवरण

    सच मे हवाई यात्रा के पहले सफर का कोई जवाब नही

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  20. इस सुनहरी हवाई यात्रा का बड़ा रोचक वर्णन प्रस्तुत किया आपने, हमें भी अपनी अण्डमान यात्रा के दौरान के नजारे याद आने लगे।

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  21. पहली हवाई यात्रा में मेरा भी ऐसा ही हाल था। आपने उसी की याद दिला दी। आपकी वापिसी यात्रा भी बड़ी रोमाँचक रही।
    Sachin3304.blogspot.com

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  22. बहुत बढियाँ लिखा भैया...����

    पर "छोटू से खजुराहों हवाई अड्डे पहुँचा" में छोटू न समझ आया....����

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  23. प्रदीप त्यागी4 मई 2020 को 6:45 pm बजे

    बढ़िया.....����

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  24. बहुत ही रोचक ढंग से वर्णन किया है आपने।

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  25. बहुत भागमभाग हुई आपकी लेकिन ये भी एक तरह का रोमांच था।  बहुत बढ़िया यात्रा संस्मरण 

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ab apki baari hai, kuchh kahne ki ...

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