सोमवार, 30 जुलाई 2012

सरदार को एक रुपया भीख दे देना..!

कुछ दोस्त मिलकर डेल्ही घूमने का प्रोग्राम बनाते है और रेलवे
स्टेशन से बहार निकलकर एक टेक्सी किराए पर लेते है , उस
टेक्सी का ड्राइवर बुढ्ढा सरदार था,

यात्रा के दौरान बच्चो को मस्ती सुजती है और
सब दोस्त मिलकर बारी बारी सरदार पर बने
जोक्स को एकदुसरे को सुनाते है

उनका मकसद उस ड्राइवर को चिढाना था . लेकिनवो बुढ्ढा सरदार चिढाना तो दूर पर उनके साथ
हर जोक पर हस रहा था ,
सब साईट सीन को देख बच्चे वापस रेलवे स्टेशन आ जाते है ...और तय
किया किराया उस सरदार को चुकाते है , सरदार
भी वो पैसे ले लेता है , पर हर बच्चे को अपनी और से एक एक
रूपया हाथ में देता है

एक लड़का बोलता है "पाजी हम सुबह से आपकी कोम
पर जोक मार रहे है , आप गुस्स्सा तो दूर पर हर जोक में
हमारे साथ हस रहे थे , और जब ये यात्रा पूरी हो गई आप हर लडके
को प्यार से एक-एक रूपया दे रहे है , ऐसा क्यों ? "

सरदार बोला " बच्चो आप अभी जवान
हो आपका नया खून है आप मस्ती नहीं करोगे तो कौन
करेगा ? लेकिन मेने आपको एक- एक रूपया इस लिए दिया के जब
वापस आप अपने अपने शहर जाओगे तो ये रूपया आप उस सरदार
को दे देना जो रास्ते में भीख मांग रहा हो ,
इस बात
को दो साल हो गए है और जितने लडके डेल्ही घूमने गए थे सब
के पास वो एक रुपये का सिक्का आज भी जेब में
पड़ा है ...उन्हें कोई सरदार भीख
मांगता नहीं  मिला .

 

गुरुवार, 26 जुलाई 2012

बाकी रह गये कुछ निशाँ....

जिन्दगी में कुछ छूट जाता है , जाने कहाँ 
होता है सब कुछ साथ, है पर दिल तनहा 
अतीत  की होती है , कुछ रंगीली यादें
कुछ खाली पन्ने , तो कुछ अधूरे फ़लसफ़ा
मन करता है, कि फिर लौट चले पीछे 
 पर बाकी है, अभी देखना आगे का जहाँ 
हम तनहा ही चले थे , इस सफ़र में 
फिर तनहा , छूटे जाने कितने कारवां 
ख़ुशी सी होती नही , पर गम भी नही
निकले कितने अश्क, लगे कितने कहकहा 
 लहरें यूँ ही आती रही , साहिल पे खड़े हम 
आखिर समंदर में , डूब ही गया ये आसमाँ
टूट गये वो बनाये हुए रेत के महल
पर अभी भी बाकी रह गये कुछ निशाँ

गुरुवार, 12 जुलाई 2012

ब्राह्मणों की कहानी ........

नमस्कार ,
मित्रो आज हम इतिहास से कुछ खोज कर बड़ी ही मजेदार चीज लाये है !
अरे भाई ! इतना जल्दी क्या है ?
जब खोज कर लाये है , तो आप को भी बताएँगे ही , यहाँ तो आप ही के लिए आते है न !
आज हम ब्राह्मणों के बारे में कुछ ज्ञान खोज के लाये है ! हां लेकिन ये सब आपकी जानकारी के लिए है , इसमें कोई जातिवाद नही है.
तो भैया तो सबसे पहले ब्राह्मण शब्द का प्रयोग अथर्वेद के उच्चारण कर्ता ऋषियों के लिए किया गया था . फिर प्रत्येक वेद को समझनेके लिए ग्रन्थ लिखे गये उन्हें भी  ब्रह्मण साहित्य कहा गया है . 
अब देखा जाये तो भारत में सबसे ज्यादा विभाजन या वर्गीकरण ब्राह्मणों में ही है . जैसे :- सरयू पारीण, कान्यकुब्ज , जिझौतिया , मैथिल , मराठी , बंगाली ,भार्गव ,कश्मीरी , सनाढ्य , गौड़ , महा-बामन और भी बहुत कुछ . इसी प्रकार ब्राह्मणों में सबसे ज्यादा उपनाम (सरनेम या टाईटल )  भी प्रचलित है , तो इन्ही  में कुछ लोकप्रिय उपनामों और उनकी उत्पत्ति के बारे में जानते है . 
एक वेद को पढने  वाले ब्रह्मण को पाठक कहा गया 
दो वेद पढने वाले को द्विवेदी कहा गया , जो कालांतर में दुबे हो गया 
तीन वेद को पढने वाले को त्रिवेदी/ त्रिपाठी  कहा गया , जो कालांतर में तिवारी हो गया 
चार वेदों को पढने वाले चतुर्वेदी कहलाये , जो कालांतर में चौबे हुआ 
शुक्ल यजुर्वेद को पढने वाले शुक्ल या शुक्ला  कहलाये 
चारो वेदों , पुराणों और उपनिषदों के ज्ञाता को पंडित कहा गया , जो आगे चलकर पाण्डेय .पाध्याय ( ये कालांतर में उपाध्याय हुआ ) बने .
इनके अलावा प्रसिद्द ऋषियों के वंशजो ने अपने  ऋषिकुल या गोत्र के नाम को ही उपनाम की तरह अपना लिया , जैसे :- 
भगवन परसुराम भी भृगु कुल के थे
भृगु कुल के वंशज भार्गव कहलाये , इसी तरह गौतम , अग्निहोत्री , गर्ग . भरद्वाज  आदि 


इन्हें तो आप पहचान गये होंगे ! अगर नही पहचाने तो जानकारी के लिए बता दे ये इन पंक्तियों का लेखक है .

शास्त्र धारण करने वाले या शास्त्रार्थ करने वाले शास्त्री की उपाधि से विभूषित हुए . बहुत से ब्राह्मणों को अनेक शासको  ने भी कई  तरह की उपाधियाँ  दी  , जिसे बाद में उनके  वंशजो ने उपनाम   की तरह उपयोग  किया . इस  तरह से ब्राह्मणों के उपनाम प्रचलन में आये . बाकि अगली किसी पोस्ट में ............
तब तक के लिए राम राम 

सोमवार, 9 जुलाई 2012

हिंदी की रोचक लोकोक्तिया / कहावतें !



हम अक्सर अपने बड़े- बुजुर्गो से लोकोक्तिया / कहावतें  सुनते आये है , इन  कहावतो में जहाँ रोचकता, मधुरता होती  है , वही इनके साथ कोई कहानी और सन्देश भी छुपा रहता है .आजकल तो इनका प्रयोग बहुत कम सुनने में मिलता है . अक्सर लोग कहावतों और लोकोक्तियों को एक ही समझते है . मगर इनमे भी कुछ अंतर है . जहाँ कहावतें किसी के भी द्वारा कही गयी होती है , वही अधिकांश लोकोक्तियाँ  विद्वानों के द्वारा कही गयी होती है . कहावतों और लोकोक्तियों में थोड़े शब्दों में बहुत कुछ कह दिया जाता है . और भाषा में प्रांजलता , प्रवाहमयता , सजीवता के साथ ही कलात्मकता  का प्रवेश हो जाता है .कहावतों और लोकोक्तियों का आधार घटनाये, परिस्थितियां और दृष्टान्त होते है .
आज मैं  भी हिंदी और उसकी बोलियों से कुछ रोचक कहावतें सहेज कर आपके लिए लाया हूँ
* नोट- इन कहावतों  में जाति सूचक शब्दों का भी प्रयोग हुआ है , इन्हें किसी जाति से जोड़े .बल्कि उनके अर्थो पर ध्यान दे . सधन्यवाद  ! 
# अढाई हाथ की ककड़ी , नौ हाथ का बीज - अनहोनी बात होना
जैसे- पाकिस्तान द्वारा शांति के कार्य करना वैसे ही है - कि  अढाई हाथ की ककड़ी , नौ हाथ का बीज

# अटका बनिया देय उधार- दबाव पड़ने पर सब कुछ करना पड़ता है .
जैसे- राष्ट्रपति पद के समर्थन के लिए यु पी   बंगाल को अधिक राशि जारी करके यही जाता रही है , कि अटका बनिया देय उधार.

# अपना ढेंढार देखे नही , दुसरे की फुल्ली निहारे - अपने अधिक  दुर्गुण को छोड़ कर दुसरे के कम अवगुण को देखना
जैसे - कांग्रेस द्वारा दुसरे दलों के भ्रष्टाचार की बात करने को तो यही कहा जा सकता है , कि  अपना ढेंढार देखे नही , दुसरे की फुल्ली निहारे

# अपनी नाक कटे तो कटे , दुसरे का सगुन तो बिगड़े - दुसरो को हानि पहुचाने के लिए स्वयं की हानि को भी तैयार रहना .
जैसे - दिग्विजय सिंह के बयानों से तो ऐसा लगता है , कि अपनी नाक कटे तो कटे , दुसरे का सगुन तो बिगड़े

# अपनी गरज बावली - स्वार्थी मनुष्य दुसरो की चिंता नही करता है
जैसेसांसदों द्वारा महामंदी के दौर में भी अपना वेतन बढ़ाने को लोगो ने कहा - अपनी गरज बावली

# अपने पूत को कोई काना नही कहता - अपनी चीज को कोई ख़राब नही कहता  है
जैसे - उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव  में राहुल गाँधी के प्रचार के बाद भी हुई हार के बाद jab राहुल को कुछ नही कहा गया तो मजबूरन यही  कहना पड़ा  - अपने पूत को कोई काना नही कहता .

# आंख एक नही और कजरौटा दस- दस - व्यर्थ का आडम्बर  
जैसे - योजना आयोग में 35  करोड़ का शौचालय बनने पर कहना ही पड़ा कि   आंख एक नही और कजरौटा दस- दस .

# आठ  कनौजिया , नौ चूल्हे - मेल रहना  
जैसे - आज भाजपा के हाल देख कर  लगता है  , आठ  कनौजिया , नौ चूल्हे

# आई तो रोजी नही तो रोजा - कमाया तो खाया , नही तो भूखे ही सही
जैसे - भारत में आज भी गरीब लोग है , जिनका जीवन इस कहावत को चरितार्थ करता है - आई तो रोजी नही तो रोजा.

# आस-पास बरसे , दिल्ली पड़ी तरसेजिसको जरुरत हो , उसे मिले
जैसे - सरकार के गोदामों में सड़ रहे अनाज और देश में भूखे मरते लोगो को देख यही लगता है , कि  आस-पास बरसे , दिल्ली पड़ी तरसे .



# इक नागिन अरु पंख लगायीएक दोष के साथ दुसरे का जुड़ जाना
जैसे -


बुधवार, 4 जुलाई 2012

कहाँ गया सावन ?

मित्रो ,
सावन ने दस्तक ने दस्तक दे दी है , मगर मन  है  कि मानने को तैयार ही नही है ! अरे सावन ऐसे आता है ? इस बार के सावन को देख कर लग रहा है, इन्द्र के यहाँ भी यूपीए कि सरकार बन गयी है. लगता है सावन भी घोटाले का शिकार हो गया है . अब प्रणब दा सरकार में रहे नही वरना  आंकड़े पेश करते और बताते आया सावन झूम के ! सचमुच किसानो की आँखों से आंसू टपकने  लगे .......फसलें सूखने की कगार पर आ  गयी है , तो दूसरी और असम में  ब्रम्हपुत्र  की बाढ़ से हजारो लोग त्राहि-त्राहि कर रहे  है 
कभी बाढ़ तो कभी सूखा
भारत  भूखा का भूखा  !
सावन का नाम सुनते ही बचपन की याद आने लगती है , बचपन में सिर्फ सावन के महीने  में ही खिलौने बिकते थे (तब चाईनीज खिलौने नही आते थे ). पूरी साल सावन का इन्तजार रहता था . खिलौनों की वैरायटी भी सीमित होती  थी .

orchha gatha

बेतवा की जुबानी : ओरछा की कहानी (भाग-1)

एक रात को मैं मध्य प्रदेश की गंगा कही जाने वाली पावन नदी बेतवा के तट पर ग्रेनाइट की चट्टानों पर बैठा हुआ. बेतवा की लहरों के एक तरफ महान ब...