गुरुवार, 26 जुलाई 2012

बाकी रह गये कुछ निशाँ....

जिन्दगी में कुछ छूट जाता है , जाने कहाँ 
होता है सब कुछ साथ, है पर दिल तनहा 
अतीत  की होती है , कुछ रंगीली यादें
कुछ खाली पन्ने , तो कुछ अधूरे फ़लसफ़ा
मन करता है, कि फिर लौट चले पीछे 
 पर बाकी है, अभी देखना आगे का जहाँ 
हम तनहा ही चले थे , इस सफ़र में 
फिर तनहा , छूटे जाने कितने कारवां 
ख़ुशी सी होती नही , पर गम भी नही
निकले कितने अश्क, लगे कितने कहकहा 
 लहरें यूँ ही आती रही , साहिल पे खड़े हम 
आखिर समंदर में , डूब ही गया ये आसमाँ
टूट गये वो बनाये हुए रेत के महल
पर अभी भी बाकी रह गये कुछ निशाँ

7 टिप्‍पणियां:

  1. यही तो जीवन की सच्चाई है....
    बहुत प्यारी रचना .

    अनु

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  2. सही कहा आपने ,बहुत सुंदर बधाई

    जवाब देंहटाएं
  3. टूट गये वो बनाये हुए रेत के महल
    पर अभी भी बाकी रह गये कुछ निशाँ,,,,,

    बढ़िया प्रस्तुति,,,बधाई

    RECENT POST,,,इन्तजार,,,

    जवाब देंहटाएं
  4. खींचती हाँ यादें हमेशा अपनी और ... पीछे की और ...
    छूती हुयी रचना ...

    जवाब देंहटाएं
  5. सुंदर भाव… सुंदर रचना...
    सादर बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  6. अतीत की निशानियां कमसे कम साथ तो रहती है, सुन्दर रचना, बधाई.

    जवाब देंहटाएं

ab apki baari hai, kuchh kahne ki ...

orchha gatha

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