जिन्दगी में कुछ छूट जाता है , जाने कहाँ
होता है सब कुछ साथ, है पर दिल तनहा
अतीत की होती है , कुछ रंगीली यादें
कुछ खाली पन्ने , तो कुछ अधूरे फ़लसफ़ा
मन करता है, कि फिर लौट चले पीछे
पर बाकी है, अभी देखना आगे का जहाँ
हम तनहा ही चले थे , इस सफ़र में
फिर तनहा , छूटे जाने कितने कारवां
ख़ुशी सी होती नही , पर गम भी नही
निकले कितने अश्क, लगे कितने कहकहा
लहरें यूँ ही आती रही , साहिल पे खड़े हम
आखिर समंदर में , डूब ही गया ये आसमाँ
टूट गये वो बनाये हुए रेत के महल
पर अभी भी बाकी रह गये कुछ निशाँ
यही तो जीवन की सच्चाई है....
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी रचना .
अनु
सही कहा आपने ,बहुत सुंदर बधाई
जवाब देंहटाएंटूट गये वो बनाये हुए रेत के महल
जवाब देंहटाएंपर अभी भी बाकी रह गये कुछ निशाँ,,,,,
बढ़िया प्रस्तुति,,,बधाई
RECENT POST,,,इन्तजार,,,
बहुत सुंदर रचना ... आभार !
जवाब देंहटाएंकारगिल युद्ध के शहीदों को याद करते हुये लगाई है आज की ब्लॉग बुलेटिन ... जिस मे शामिल है आपकी यह पोस्ट भी – देखिये - कारगिल विजय दिवस 2012 - बस इतना याद रहे ... एक साथी और भी था ... ब्लॉग बुलेटिन – सादर धन्यवाद
खींचती हाँ यादें हमेशा अपनी और ... पीछे की और ...
जवाब देंहटाएंछूती हुयी रचना ...
सुंदर भाव… सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंसादर बधाई।
अतीत की निशानियां कमसे कम साथ तो रहती है, सुन्दर रचना, बधाई.
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