हम अक्सर अपने बड़े- बुजुर्गो से लोकोक्तिया / कहावतें सुनते आये है , इन कहावतो में जहाँ रोचकता, मधुरता होती है , वही इनके साथ कोई कहानी और सन्देश भी छुपा रहता है .आजकल तो इनका प्रयोग बहुत कम सुनने में मिलता है . अक्सर लोग कहावतों और लोकोक्तियों को एक ही समझते है . मगर इनमे भी कुछ अंतर है . जहाँ कहावतें किसी के भी द्वारा कही गयी होती है , वही अधिकांश लोकोक्तियाँ विद्वानों के द्वारा कही गयी होती है . कहावतों और लोकोक्तियों में थोड़े शब्दों में बहुत कुछ कह दिया जाता है . और भाषा में प्रांजलता , प्रवाहमयता , सजीवता के साथ ही कलात्मकता का प्रवेश हो जाता है .कहावतों और लोकोक्तियों का आधार घटनाये, परिस्थितियां और दृष्टान्त होते है .
आज मैं भी हिंदी और उसकी बोलियों से कुछ रोचक कहावतें सहेज कर आपके लिए लाया हूँ .
* नोट- इन कहावतों में जाति सूचक शब्दों का भी प्रयोग हुआ है , इन्हें किसी जाति से न जोड़े .बल्कि उनके अर्थो पर ध्यान दे . सधन्यवाद !
# अढाई हाथ की ककड़ी , नौ हाथ का बीज - अनहोनी बात होना
जैसे- पाकिस्तान द्वारा शांति के कार्य करना वैसे ही है - कि अढाई हाथ की ककड़ी , नौ हाथ का बीज
# अटका बनिया देय उधार- दबाव पड़ने पर सब कुछ करना पड़ता है .
जैसे- राष्ट्रपति पद के समर्थन के लिए यु पी ऐ बंगाल को अधिक राशि जारी करके यही जाता रही है , कि अटका बनिया देय उधार.
# अपना ढेंढार देखे नही , दुसरे की फुल्ली निहारे - अपने अधिक दुर्गुण को छोड़ कर दुसरे के कम अवगुण को देखना
जैसे - कांग्रेस द्वारा दुसरे दलों के भ्रष्टाचार की बात करने को तो यही कहा जा सकता है , कि अपना ढेंढार देखे नही , दुसरे की फुल्ली निहारे
# अपनी नाक कटे तो कटे , दुसरे का सगुन तो बिगड़े - दुसरो को हानि पहुचाने के लिए स्वयं की हानि को भी तैयार रहना .
जैसे - दिग्विजय सिंह के बयानों से तो ऐसा लगता है , कि अपनी नाक कटे तो कटे , दुसरे का सगुन तो बिगड़े
# अपनी गरज बावली - स्वार्थी मनुष्य दुसरो की चिंता नही करता है
जैसे- सांसदों द्वारा महामंदी के दौर में भी अपना वेतन बढ़ाने को लोगो ने कहा - अपनी गरज बावली
# अपने पूत को कोई काना नही कहता - अपनी चीज को कोई ख़राब नही कहता है
जैसे - उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में राहुल गाँधी के प्रचार के बाद भी हुई हार के बाद jab राहुल को कुछ नही कहा गया तो मजबूरन यही कहना पड़ा - अपने पूत को कोई काना नही कहता .
# आंख एक नही और कजरौटा दस- दस - व्यर्थ का आडम्बर
जैसे - योजना आयोग में 35 करोड़ का शौचालय बनने पर कहना ही पड़ा कि आंख एक नही और कजरौटा दस- दस .
# आठ कनौजिया , नौ चूल्हे - मेल न रहना
जैसे - आज भाजपा के हाल देख कर लगता है , आठ कनौजिया , नौ चूल्हे
# आई तो रोजी नही तो रोजा - कमाया तो खाया , नही तो भूखे ही सही
जैसे - भारत में आज भी गरीब लोग है , जिनका जीवन इस कहावत को चरितार्थ करता है - आई तो रोजी नही तो रोजा.
# आस-पास बरसे , दिल्ली पड़ी तरसे - जिसको जरुरत हो , उसे न मिले
जैसे - सरकार के गोदामों में सड़ रहे अनाज और देश में भूखे मरते लोगो को देख यही लगता है , कि आस-पास बरसे , दिल्ली पड़ी तरसे .
# इक नागिन अरु पंख लगायी - एक दोष के साथ दुसरे का जुड़ जाना
जैसे -
बढ़िया.....
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक.....
अनु
वाह... बहुत अच्छे से फर्क समझाया
जवाब देंहटाएंसभी मजेदार ... आज भी वैसे ही ताजा हैं जैसे मुद्दत पहले ...
जवाब देंहटाएंवाह ... बेहद रोचक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंलोकोक्तियाँ कहावतें भी स्थान के अनुसार ही बदलती रहती हैं जैसे :-
जवाब देंहटाएंअपने पूत को काना ना कहने वाले के लिए हरियाणा में है "आपने सीत ने कोय खाट्टा ना बतावे"...