रविवार, 20 अक्तूबर 2024

नक्सली क्षेत्र में बम बने हम यात्रा भाग 4

 नक्सली क्षेत्र में बम बने हम 

शीतल कुण्ड जलप्रपात

(भाग 4)


अब नुकीले पत्थरों के बीच उतराई शुरू हो गयी थी । बहुत संभल संभल कर उतरना पड़ रहा था, क्योंकि असावधानी पर चोट लगने का खतरा था, और अगर चोट लगी तो आसपास तो ठीक दूर दूर तक कोई मेडिकल सुविधा नही थी । तभी देखा हमारे बगल से युवाओं का एक दल तेजी से नीचे उतरा । उनकी तेजी देखकर मैं आश्चर्य में था । मैंने कहा ये स्थानीय लोग होंगे, जो पहाड़ों पर रोज ही चढ़ते-उतरते होंगे । अभिषेक बोला - भैया यही तो नक्सली लोग तो नही है ! 

मैंने कहा हो सकता है । नक्सली भी तो लोकल में से है, कोई अलग से थोड़े होते है । 

तभी हमारा ड्राइवर बोला - भैया, ये जो भी हो, इनकी तेजी का कारण फुक्की थी ।

मतलब ?

ये लोग गांजा फूंक कर नशे में आगे बढ़ रहे है ।

तुम्हे कैसे पता ?

भैया, मैंने इन्हें चिलम फूंकते हुए देखा था । यहाँ आधे से ज्यादा लोग इसी तरह के है । बोल बम बोलकर चिलम पीते है ! 

इसलिए तो सिंगल हड्डी डबल बैटरी बने है । 

इतनी देर से मैं अपनी धीमी चाल पर दुखी था, अब इन सबकी हवाई चाल का राज समझ आया । लेकिन अब और सतर्कता से चलना पड़ रहा, क्योंकि हवाई यात्रियों के लिए रास्ता छोड़ना पड़ रहा था। अन्यथा हम हवाई दुर्घटना के शिकार हो सकते थे । 

तभी फिर से एक काफिला बोल बम का नारा लगाता हुआ बगल से गुजर गया । कांवर यात्रा में जो-जो व्यक्ति कांवर लिये होते है, वो परस्पर एक दूसरे को 'बम' नाम से संबोधित करते है । इस यात्रा में लोग कांवर तो नही लिये थे, मगर प्लास्टिक की कुप्पियों में गंगा जल लिये हुये है । इन बम से हम बम सावधान होकर चल रहे थे, कि कोई बम विस्फोट न हो जाये । 

खैर फूंक-फूंक कर कदम रखते हुए हम खड़ी उतराई आखिरकार उतर आये । चढ़ाई से ज्यादा उतराई खतरनाक हो गयी थी । अभी मंजिल दूर थी । नीचे उतरते ही कुछ दूर समतल जगह में चलना बड़ा अच्छा लग रहा था । आगे एक चाय की दुकान मिली । वहाँ मिली नींबू चाय ने कुछ थकान मिटाई । इस दुकान में चिलम भी मिल रही थी । इस बात ने टिंकु की बात को प्रमाणित कर दिया । हम जमीनी बम ही ठीक थे, हमे हवाई बम नही बनना था । अब हिम्मत जुटाकर आगे बढ़े । तो आगे नदी मिल गयी । नदी पर स्थानीयों ने बांस और लकड़ियों से पुल बना रखा था । नदी के बीच में दो सीमेंट के पिलर बना दिये थे, उन्ही के सहारे लकड़ियों का पुल बनाया गया था । पुल पार करने के लिए 10 रुपये का प्रति व्यक्ति टोल भी लिया जा रहा था । जिन्हें टोल नही देना था, वो कमर भर पानी वाली नदी चलकर पार करनी थी । तो हवाई लोग नदी में से पार हो रहे थे । मैंने पुल की फ़ोटो लेने के लिए मोबाइल निकाला तो टोल वसूल रहे व्यक्ति ने फ़ोटो के लिए मना किया । इस दुर्गम क्षेत्र में इनसे पंगा लेना ठीक नही ।  फिर भी जल्दबाजी में एक फ़ोटो निकाल ही ली । हमने टोल देकर पुल पार किया । 

रास्ते में मिल रही छोटी-छोटी झोपड़ियों में खुली अस्थायी दुकानों में चाय, बिस्किट, नमकीन आदि से पेट पूजा चल रही थी । खैर चरैवेति चरैवेति का पालन करते हम हँसी-मजाक करते हुये चल रहे थे । सबसे आगे टिंकु सिंगल हड्डी डबल बैटरी चल रहा था । सबसे पीछे संजय जी और उनसे पहले मैं चल रहा था । संजय जी पस्त हो गये थे । बोले हम लोग दो दिन में यह यात्रा करते थे । आप लोगो के साथ एक ही दिन में हो जायेगी । रास्ते में एक दुकान पर पुछा कि गुफा कितनी दूर है । तो जवाब मिला बस आ ही गये । यह जवाब पिछले कई किलोमीटर से मिल रहा था । खैर हम लोग गुप्तेश्वर धाम पहुँच ही गये । यहाँ भी एक नदी मिली, मगर इसमें घुटनों तक ही पानी था, तो बिना टोल दिये हम नदी पार किये । सामने पूरा मेला लगा हुआ था । खाने-पीने की दुकानें बड़ी संख्या में लगी थी । पूजा-पाठ की भी दुकानें लगी थी । रोजमर्रा की सामग्री भी मिल रही थी, बच्चों के खेल खिलौनों की दुकाने भी थी । अब मेरे आश्चर्य का ठिकाना नही रहा, कि हम बड़ी मुश्किल से यहाँ तक पहुँचे और ये लोग दुकानों का इतना सामान लेकर कैसे पहुँचे ? एक दो जगह ट्रेक्टर ट्राली सहित दिखे । अब मेरा मन थकान के बावजूद तेजी से चलने लगा । कही हम जबरन तो इतनी मेहनत कर के तो नही आये ? कोई दूसरा रास्ता सड़क वाला तो नही है ? जब ट्रेक्टर आ सकते है, तो कार भी आ ही जाती है । कार नही भी आती तो सड़क वाले रास्ते से हम आसानी से आ ही जाते ? कही संजय जी गलत रास्ते से तो नही लेकर आये ? हो सकता है उन्हें इस रास्ते की जानकारी ही न हो !  इसका जवाब एक दुकानदार ने ही दिया । भैया, हम दुकान का अपना सामान ट्रेक्टर पर लाद के बरसात के पहिले ही ले आते है । बरसात शुरू होते ही नदी में पानी आने से कच्चा रास्ता बंद हो जाता है । ये ट्रेक्टर आये तो बारिश के पहिले थे, मगर बारिश होने यही रह गये, अब जब नदी में पानी कम होगा तभी जा पायेंगे । ये सुनकर बड़ी राहत मिली । हम भारतीय अपने दुख से दुखी नही होते, बल्कि दूसरे के सुख से दुखी होते है । 

अब स्नान कर गुप्ता बाबा के दर्शन करना था । इसके भी दो विकल्प थे । पहला जो नदी हमने अभी पार की है, उसी में स्नान किये जायें । या फिर कुछ दूरी पर इसी नदी के स्रोत शीतल कुण्ड पर स्नान किया जाये । अब और चलने का मन नही था, लेकिन जब पता चला कि शीतल कुण्ड एक जलप्रपात है, तो भारी कदम से उस तरफ चल पड़े । दुकानों पर बिक रहे प्लास्टिक के लोटा नुमा जलपात्र हमने भी खरीद लिये । शीतल कुण्ड पहुँचने पर देखकर ही मन शीतल हो गया । जब झरने के नीचे खड़े हुये तो सारी थकान छू मंतर हो गयी । बोल बम के नारे यहाँ भी गूंज रहे थे । बड़ी देर तक सबने नहाया । यहाँ पुरुषों के साथ-साथ महिलायें भी नहा रही थी । हम ने नहाकर यही झरने से जल भरा और चल पड़े गुप्ता बाबा की गुफा की तरफ । बहुत बम गीले ही जल लेकर गुफा की तरफ जा रहे थे । पता नही हवाई बम थे या जमीनी बम । 

गुफा के सामने हम पहुँचे तो बाहर ऑक्सीजन के सिलेंडर पड़े हुये थे । कारण पता किया तो पता चला कि गुफा के अंदर ऑक्सिजन की कमी से कई बार लोगो को सांस लेने में दिक्कत होने लगती है । तब की आपातकालीन व्यवस्था है । कुछ लोग गुफा के थोड़े अंदर जाते ही वापिस आ रहे थे, उन्हें सांस लेने में दिक्कत हो रही थी । ये देखकर हमें भी थोड़ी घबराहट सी हुई । मगर बोल बम कहते हुए हमने गुफा में प्रवेश किया । गुफा काफी लंबी और ऊंचाई में कम थी । मुहाने को छोड़कर अंदर अंधेरा है । हमारी चीनी टॉर्च यहाँ भी काम आयी । अंदर ऑक्सीजन की कमी तो लगी मगर इतनी भी कम नही । कुछ लोग अंधेरे से ही डरकर रास्ते ही लौट रहे थे । कुछ लोग तो रास्ते में पत्थर को शिवलिंग समझ वही जल चढ़ा कर लौट आये , इस कारण नीचे पानी भी भर गया । आखिरकार हम गुप्तेश्वर बाबा तक पहुँच गये । यहाँ ऑक्सिजन की कमी महसूस होने लगी थी, इसलिए जल चढ़ाकर जल्दी ही प्रणाम कर हम भी वापिस हुये । गुफा आगे भी विस्तृत थी, बताते है, कि आज तक किसी को गुफा की लंबाई का पता ही नही चला । जो पता भी करने गया फिर उसका भी पता नही चला । यह एक प्राकृतिक गुफा है, जो चूने के निक्षेप से बनी है । शिवलिंग का निर्माण भी चूने के निक्षेप से ही हुआ है । पवित्र गुफा के द्वार पर जाने के बाद सीढि़यों के सहारे नीचे उतरना पड़ता है। गुफा में लगभग 363 फीट अंदर जाने पर बहुत बड़ा गड्ढा है। जिसमें सालों भर पानी भरा रहता है। इसे स्थानीय निवासी पातालगंगा कहते हैं। एक बात बड़ी बुरी लगी लोग प्लास्टिक के जल पात्र जल चढ़ाने के बाद वही गुफा में फेंक रहे थे । जो आने-जाने वालों के पैरों में लग रहे थे । हम अपने जल पात्र साथ ही लाये ।

दर्शन के बाद हम गुफा के बाहर निकले तो पेट में चूहे कबड्डी के बाद फुटबॉल खेलने लगे थे । एक पूड़ी सब्जी की दुकान पर बैठे । पूछा पूड़ी कैसे दिये ?

दुकानदार बोला - कितने किलो चाहिए ?  100 रुपये किलो है ।

पूड़ी और किलो में ? तब पूछा कि एक किलो में कितनी पूड़ी चढ़ेगी ? 

दुकानदार ने तराजू में तौलकर दिखाई । 8-10 पूड़ी चढ़ी । सब्जी पूड़ी के साथ मुफ्त थी । 

इतनी तेज भूख में कुछ भी खाते तो अच्छा ही लगता । कुछ देर के आराम के बाद फिर चल पड़े वापिस । वापिसी कुछ आसान लगी क्योंकि रास्ते अब पहचान के थे । 

 इस तरह गुप्तेश्वर बाबा के दर्शनों के लिए हम नक्सली क्षेत्र में बम बने । बोल बम । यह कुल 21 किमी लंबी पैदल यात्रा थी, जिसमे हमने पाँच पहाड़ियों को और दुर्गावती नदी को पांच बार पार किया था । सासाराम जिला मुख्यालय से लगभग 65 किमी की दूरी है । अब सड़क तो बनी है, मगर वन क्षेत्र होने से बहुत अच्छी नही है । सासाराम रेलवे लाइन से जुड़ा है । मुगलसराय-गया रेलखण्ड । सासाराम NH 2 यानी ग्रान्ट ट्रंक रोड से जुड़ा है । नजदीकी हवाई अड्डा पटना और वाराणसी है ।


नोट :- यह यात्रा जुलाई 2016 में की गयी थी, तबसे अब तक वहाँ की परिस्थितियों में बहुत परिवर्तन हो गया है । यात्रा पहले की तुलना में सुगम हो गयी है । 

ऑक्सिजन सिलेंडर

गुफा के सामने लगी दुकानें

टोल वाले पुल को पार करते हुऐ

गुफा के द्वार पर खड़े हम 

गुप्तेश्वर बाबा शिवलिंग

जलप्रपात के पास हम लोग

रास्ते में छोटे छोटे झरने खूब मिले



शुक्रवार, 8 सितंबर 2023

मोबाइल और आजकल का बचपन



मोबाइल अंग्रेजी भाषा का शब्द है, जिसका हिंदी अर्थ 'गतिशील' होता है। मगर आज मोबाइल फोन के लिए रूढ़ हो चुके शब्द 'मोबाइल' ने आजकल के बच्चों को गतिहीन कर दिया है । अब बच्चों में बचपना बचा ही नही । पैदा होते ही उन्हें खेलने के लिए मोबाइल सौंप दिया जाता है, जो उनके बचपन को ही लील जाता है । 

आज लगभग हर भारतीय परिवार जिनमें छोटे बच्चे है, उनमें बच्चों को मोबाइल की लत आम है । इसका सबसे बड़ा कारण स्वयं अभिभावक ही है । माताएं अपने घरेलू कार्यों के बीच बच्चों का मन बहलाने के लिए मोबाइल पकड़ा देती है, शुरू-शुरू में तो उन्हें यह आदत बड़ी राहत देती है । मगर अब बच्चों को हर समय मोबाइल चाहिए । उनकी दिन भर की सारी गतिविधियों में मोबाइल अनिवार्य हो जाता है, और समस्या यही से शुरू होती है । खाते समय मोबाइल, पढ़ते समय मोबाइल, खेलते समय भी मोबाइल । खेल भी मोबाइल गेम वाले खेल हो गए है । अब यूपीआई और पेमेंट एप्प के कारण इन गेम से खेलते समय कई बार बच्चे हजारों रुपये इन गेम भी खर्च कर देते है, अभिभावकों को जब पता चलता है, तब तक एक बड़ी रकम खर्च हो चुकी है । पबजी गेम के कारण बच्चे आक्रामक और चिड़चिड़े होने लगे थे, तो एक कदम आगे बढ़ते हुए ब्लू व्हेल गेम के कारण तो बच्चे आत्महत्या तक करने लगे थे । मजबूरन कई देशों को इन मोबाइल गेम पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाना पड़ा । 

मोबाइल फोन से हानिकारक रेडिएशन किरणें निकलती है, जो न केवल शरीर को हानि पहुँचाती है, बल्कि मस्तिष्क पर भी बुरा असर डालती है । बच्चों के मानसिक स्तर को प्रभावित करती है । शुरू शुरू में बच्चा चिड़चिड़ा और जिद्दी होता है, बाद में वो पागलों जैसी हरकतें करने लगता है । मोबाइल न मिल पाने पर वो घर के सामान की तोड़-फोड़ भी करने लगता है । 

अब अभिभावक इस समस्या से निजात कैसे पाये ? क्योंकि आज हमारे दैनिक जीवन में मोबाइल जरूरत नही मजबूरी बन गया है । इसके बिना आज के जीवन की कल्पना नही की जा सकती है । नौकरी और व्यवसाय भी मोबाइल के माध्यम से चल रहे है।  पैसे का लेन-देन भी मोबाइल के माध्यम से हो रहे है । यहाँ तक बच्चों के होमवर्क भी स्कूल वाले मोबाइल पर ही भेजते है । तो आज मोबाइल से बच्चों को दूर करना तो असंभव है, लेकिन हम अपनी निगरानी में बच्चों के मोबाइल उपयोग को सीमित कर सकते है । बच्चों के मोबाइल प्रयोग का समय निश्चित कर दें । उन्हें इकट्ठा लंबे समय के लिए मोबाइल न देकर थोड़े-थोड़े समय के लिए मोबाइल दे सकते है । उनके मोबाइल इस्तेमाल के समय अभिभावकों की निगरानी जरूरी है, ताकि हमें पता रहे कि बच्चे मोबाइल पर क्या कर रहे है । बच्चों को मोबाइल देते समय उसे चाइल्ड मोड (आजकल लगभग सभी स्मार्ट फोन में यह फीचर आता है ।) में करके दें । इसके अलावा पेमेंट वाले एप ऐसे पासवर्ड से लॉक कर दें, जिसके पासवर्ड बच्चे उपयोग नही कर पाये । जैसे फिंगर प्रिंट या फेस लॉक कर सकते है । सोशल मीडिया वाले एप पर उनका अकाउंट कम से कम 15 वर्ष के होने के बाद ही बनाये । अपने सोशल मीडिया के अकाउंट वाले एप लॉक रखे । पासवर्ड में पैटर्न या पिन की जगह फिंगरप्रिंट या फेस लॉक रखे ताकि आपकी जानकारी के बगैर किसी एप का इस्तेमाल न हो । बच्चों को आउटडोर गेम खेलने तो प्रेरित करें, हो सके तो उनके साथ भी खेले । समय-समय पर उनके साथ घर से बाहर घूमने जाए । घर पर भी उन्हें पर्याप्त समय दें, उन्हें कहानियां और किस्से सुनाए । उनकी बातें सुने, उनकी स्कूल की गतिविधियों को सुने, अपने स्कूल के अनुभव भी उन्हें सुनाये । जब आप घर पर हो तो खुद भी मोबाइल का कम से कम इस्तेमाल करें । रात को खाने के समय से लेकर सुबह तक यदि बहुत जरूरी न हो तो मोबाइल का प्रयोग न करें । मोबाइल में सीमित और उपयोगी एप रखे । गेम और टिकटोक सरीखे एप न रखे । बच्चों के लिए कामिक्स और किताबें पढ़ने की आदत डालें । रचनात्मक गतिविधियों को बढ़ावा देने, जैसे चित्रकला, क्राफ्ट बनाना, गायन-वादन आदि कलाओं से जोड़े ताकि उनका फुरसत का समय उसमें व्यतीत हो । बच्चे जितना अधिक अन्य गतिविधियों में व्यस्त रहेंगे वो उतना ही मोबाइल से दूर रहेंगे ।

उन्हें ये आदत डालें कि मोबाइल का उतना ही इस्तेमाल करें, जितनी जरूरत हो ताकि मोबाइल लत न बन पाये । हालांकि इसके लिए अभिभावकों को भी अपनी मोबाइल से जुड़ी आदतें कम करनी होगी । 


सोमवार, 25 जुलाई 2022

पन्ना का संक्षिप्त परिचय (भाग - 1 )

नमस्कार मित्रो ,

आप सभी ने फेसबुक पर मेरे माध्यम से पन्ना का नाम तो खूब सुना और देखा है।  फेसबुक पर अपने 56 हजार सदस्यों वाले समूह " घुमक्कड़ी दिल से " का आगामी सम्मिलन भी 6 से 8 नवम्बर 2022 तक पन्ना में ही प्रस्तावित है।  फेसबुक पर भी बहुत सारे लोगों ने भी पन्ना के बारे में सवाल पूछे है।  तो आपने ब्लॉग की इस पोस्ट के माध्यम से पन्ना शहर और जिले का एक छोटा सा परिचय देने का प्रयास रहेगा।  

पन्ना की भौगोलिक स्थिति :- 


(नोट - नक्शा सिर्फ समझने के लिए है , यह किसी माप या स्केल पर नहीं है।  )



पन्ना ( 👈 पन्ना शब्द पर क्लिक करके आप गूगल मैप पर पन्ना की लोकेशन देख सकते है।  )

पन्ना जिला मध्य प्रदेश में उत्तरी सीमा पर उत्तर प्रदेश के बाँदा जनपद  से लगा हुआ है।

  मध्य प्रदेश के अन्य जिले पूर्व में सतना जिला (दूरी - लगभग 70 किमी , मुंबई - हावड़ा रेलवे लाइन का महत्वपूर्ण जंक्शन ), 

दक्षिण - पूर्व में कटनी जिला ( यह भी एक महत्वपूर्व रेलवे जंक्शन है , इसमें बिलासपुर और कोटा रेल लाइन भी जुड़ती है। )

 दक्षिण में दमोह जिला ( यह कटनी-बीना रेलखंड का एक स्टेशन है ) 

पश्चिम दिशा में छतरपुर जिला ( ललितपुर - खजुराहो रेलखंड का स्टेशन है। ) पन्ना से नजदीकी हवाई अड्डा खजुराहो (42 किमी ) है।  इसके अलावा लगभग 200 किमी में जबलपुर, प्रयागराज ,कानपुर और झाँसी जैसे बड़े शहर है।  

पन्ना में देखने लायक क्या है ? 

सबसे महत्वपूर्ण सवाल यही है।  आखिरकार क्यों कोई पन्ना आना चाहेगा ? 

वैसे तो पन्ना का नाम दुनिया में हीरे के उत्पादन के लिए जाना जाता है।  जी हाँ, असली के प्राकृतिक हीरे ! पन्ना में सबसे अच्छी किस्म का हीरा मिलता है , जिससे आभूषण बनाये जाते है।  दुनिया में बाकी जगह हीरे बहुत गहरी खदानों से हीरा निकाला जाता है , जबकि पन्ना में हीरा गहरी खदान के अलावा उथली खदान से भी हीरा निकाला  जाता है।  उथली भी मात्र 3 - 4 फुट ही ! और मजे की बात , भारत का कोई भी नागरिक मात्र 250 रूपये का लायसेंस लेकर हीरा की खदान खोद सकता है।  खैर हीरा किस्मत से ही मिलता है, वरना सस्ता न हो गया होता।  पन्ना में भारत सरकार के उपक्रम राष्ट्रीय खनिज विकास निगम (एन एम डी सी ) की गहरी खदान भी है।  

हीरे की गहरी खदान 

हीरे के बाद पन्ना देश में पन्ना टाइगर रिजर्व के कारण प्रसिद्द है।  पन्ना टाइगर रिजर्व में लगभग 75 बाघ है , और बाघ का दिखना यहाँ बड़ा आसान है।  मुझे तो 15  बार की सफारी में हर बार टाइगर दिखा है।  400 के लगभग तेंदुए है। वैसे मध्य प्रदेश को टाइगर स्टेट के बाद अब लेपर्ड स्टेट का भी दर्जा मिल गया है। इसका मतलब ये है की  मध्य प्रदेश में भारत के सबसे ज्यादा बाघ और तेंदुए है।  

पन्ना में एक नहीं दो-दो टाइगर दिख जाते है।  

पन्ना की शेरनी की दहाड़ 


 पन्ना में दुर्लभ हो चुके गिद्धों की सात प्रजातियाँ पाई जाती है।  हाल ही में हुई जिओ टैगिंग में पता चला कि पन्ना के गिद्ध माउंट एवरेस्ट पार कर चीन का भी चक्कर लगा आये।  पन्ना में भालू ,चीतल ,सांभर , नीलगाय आदि बहुत आसानी से दिखते है।  पन्ना का जंगल भी विविधता भरा और बहुत ही खूबसूरत है।  केन नदी पन्ना टाइगर रिजर्व के बीचो बीच प्रवाहित होते हुए प्राकृतिक दृश्यों को और खूबसूरत बनाती है।  अगर बदकिस्मती से आपको टाइगर न भी दिखे तो जंगल ही इतना खूबसूरत है, कि आप अफ़सोस नहीं करेंगे।  सैकड़ों देशी-प्रवासी  मनमोहक पक्षी दिल लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ते है। 

ये खूबसूरत चीतल कितने आकर्षक है।  

 

पांडव जलप्रपात और पांडव गुफायें  :- 

पन्ना टाइगर रिजर्व के कोर एरिया में ही पांडव जलप्रपात के साथ ही पांडव गुफाएं स्थित है।  ऐसी मान्यता है, कि पांडवों ने अपने अज्ञातवास के कुछ दिन यही बितायेँ थे। चंद्र शेखर आजाद जी ने भी कुछ काल यही बिताया।  

पांडव जलप्रपात 
अब जंगल जंगल बात चली है , पता चला है ....
जंगल के चक्कर में शहर के बारे में तो बताना भूल ही गए।  क्या करे जंगल प्रेमी जो ठहरे।  खैर अब पन्ना शहर के बारे में संक्षिप्त (विस्तार से तो मिलने पर बताएँगे )  जानकारी लेते है।  
पन्ना प्राचीन शहर है , यहाँ आसपास हजारो साल पहले के आदि मानवों के बनाये हुए शैल चित्र बहुत सारी  जगहों पर मिल जायेंगे।  (अफ़सोस इनके संरक्षण पर किसी का ध्यान नहीं है ) पन्ना शहर में गौड़ शासको का शासन रहा है, आज भी पन्ना में गौंड़ों की कुलदेवी पद्मावती (बड़ी देवी ) का मंदिर पुराना पन्ना में स्थित है।  पद्मावती देवी के नाम पर ही पन्ना का प्राचीन नाम पदमावती पुरी था।  जो पदमा से परना हुआ और परना से पन्ना हो गया।  
मुग़ल बादशाह औरंगजेब के समय बुंदेलखंड के प्रसिद्द शासक महाराजा छत्रसाल ने पन्ना को अपनी राजधानी बनाया।  अकेले छत्रसाल महाराज ने मुग़लों को नाको चने चबा दिए थे।  इनकी एक पुत्री मस्तानी (बाजीराव वाली थी ) छत्रसाल के गुरु महामति प्राणनाथ (प्रणामी संप्रदाय के गुरु ) की समाधी बहुत ही भव्य स्वरुप में पन्ना में बनी हुई है।  प्रतिवर्ष शरद पूर्णिमा पर देश-विदेश से लाखो प्रणामी अनुयायी आते है।  
प्राण नाथ मंदिर पन्ना 

पन्ना शहर में बुंदेला शासकों द्वारा कई भव्य और खूबसूरत मंदिर बनवाये गए है।  पोस्ट ज्यादा लम्बी न हो जाये इसलिए इन मंदिरों के बारे में संक्षिप्त जानकारी ही दूंगा।  

जुगल किशोर जी का मंदिर - 

पन्ना का मुख्य मंदिर जुगल किशोर जी का मंदिर है।  इस मंदिर के गर्भगृह में भगवान् श्रीकृष्ण और राधा जी की प्रतिमा है।  कहा जाता है , कि किशोर जी की मुरली में हिरे जेड हुए है।  यह मूर्ति  ओरछा होते हुए पन्ना आई थी।  (इसकी कहानी फिर कभी )

जुगल किशोर जी मंदिर पन्ना 

बलदेव जी मंदिर : - 

दुनिया में बलराम जी के मंदिर बहुत कम है।  पन्ना में स्थित बलदेव जी का मंदिर न केवल भव्य है, बल्कि स्थापत्य की दृष्टि से बिलकुल अनूठा है।  यह मंदिर बाहर से देखने पर किसी चर्च की तरह दिखता है।  गर्भगृह में शालिग्राम पत्थर की एक ही चट्टान से निर्मित बलराम जी की आदमकद  प्रतिमा है।  

अनूठे स्थापत्य वाला बलदेव जी मंदिर 

जगन्नाथ मंदिर पन्ना : - 

जिस तरह जगन्नाथ पूरी में प्रतिवर्ष भगवन जगन्नाथ की रथ यात्रा निकलती है , उसी तरह पन्ना में भी रथ यात्रा सैकड़ों साल से निकल रही है।  इस यात्रा का आरम्भ जगन्नाथ मंदिर से होता है।  इस मंदिर में भी पूरी के जगन्नाथ मंदिर की तरह काष्ठ प्रतिमाएं विराजमान है।  



जगन्नाथ मंदिर पन्ना 



रामजानकी मंदिर :- 
पन्ना की महारानी द्वारा बनवाया गया यह मंदिर भी बुंदेली स्थापत्य का शानदार उदहारण है।  इस मंदिर की अंदर की दीवारों पर पूरी रामचरित मानस लिखी हुई है।  
रामजानकी मंदिर पन्ना 

इस पोस्ट में इतना ही।  अगली पोस्ट में पन्ना के आसपास  के झरने , मंदिर और भी आकर्षक स्थलों के बारे में जानकारी देने का प्रयास होगा।  आप के प्रश्न और सुझावों का भी स्वागत है, ताकि अगली पोस्ट में सुधर कर सकूँ। तब तक के लिए नमस्कार 

शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2020

बृहस्पति कुण्ड का रहस्य (भाग 1)



 बृहस्पति कुण्ड का रहस्य (भाग 1) 

                           एक दिन मन बड़ा ही उदास था, अपनी चार पहिया गाड़ी से ऐसे ही पन्ना से पहाड़ीखेड़ा मार्ग पर अनायास ही चल पड़ा । शाम का समय हो रहा, आकाश में बादल घुमड़ रहे है, बादलों की रंगत श्यामल हो चली है । मौसम ठंडा हो चला यानी आसपास कही बारिश हो चुकी है, हवा में भी ठंडक घुलने लगी थी । गाड़ी के शीशे उतार कर हम भी आराम से चले जा रहे थे । अभी तक खाली चल रहे मन में प्रकृति धीरे धीरे प्रवेश करने लगी । आसपास के खेत, पहाड़ियाँ और उनके ऊपर घुमड़ते आवारा बादल मन को प्रसन्न कर रहे थे । प्रकृति में इतना खोया रहा कि पता ही नही चला कि कब बृजपुर आ गया । बृजपुर आने पर मन बृहस्पति कुण्ड जाने का बनने लगा । गाड़ी अपने पथ पर चली जा रही थी । मैंने गाड़ी बृहस्पति कुण्ड की तरफ मोड़ दी । रास्ते में बाघिन नदी का पुल पड़ा । बाघिन नदी जो बृहस्पति कुण्ड जलप्रपात बनाती है, आज अलग ही अंदाज में बह रही थी । मैंने पुल के थोड़े पहले ही गाड़ी रोकी । पता नही क्यों एक अलग ही सम्मोहन मुझे नदी की ओर खींच रहा था । इससे पहले मैं कई बार बृहस्पति कुण्ड जाते समय यहाँ से गुजरा हूँ, मगर कभी रुका नही । आज एक अलग ही अहसास हो रहा था । लग रहा था, कि जैसे कोई मुझे बुला रहा हो ! यह अनुभव लौकिक तो बिल्कुल भी नही लग रहा था । मैं धीरे धीरे नदी की तरफ बढ़ने लगा ।      

                                     आसमान बादल काले हो रहे थे, हवा भी अपनी रफ्तार बढ़ा रही थी । अचानक बहुत तेज बिजली चमकती है ! मेघ गर्जना की बहुत तेज आवाज से हाथ अपने आप कानो को ढक लेते है । मुझसे कुछ दूर ही नदी में बज्रपात होता है , नदी का पानी बहुत ऊपर तक उछलता है ! यह दृश्य देख कर भय मिश्रित आश्चर्य होने लगता है, ऐसा दृश्य मैंने अपने जीवन में पहली बार देखा था । मस्तिष्क विचार शून्य हो गया । पैर अपनी जगह पर जम से गये, मैं चाहकर भी न आगे बढ़ पा रहा था, न पीछे हट पा रहा था । हृदय की गति भी इतनी तेज हो गयी कि स्पंदन स्पष्ट सुनाई दे रहा था । मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे । 

                                                                 खैर झंझावात  हुआ, नदी की लहरें सामान्य हुई , ये सामान्य भी मेरे लिए असामान्य सा था । लगा जैसे को स्वप्न देख रहा हूँ, और अचानक नींद टूट गयी हो । तभी पृष्ठभूमि से एक गुर्राहट मिश्रित आवाज आई - कैसे हो पुत्र ! स्वर मधुर था, मगर गुर्राहट मिश्रण से भय लगा । आसपास देखा तो कोई दिखा नही !

फिर से आवाज़ आई, 

भयभीत क्यों हो पुत्र ?

 तुम तो नदियों से पहले भी वार्तालाप कर चुके हो न ! यह सुन हृदय स्पंदन कम हुआ , आवाज नदी से ही आ रही थी । लगता है, आज फिर से मुझे नदी-संवाद का सौभाग्य मिलेगा ! 

पुत्र ! मैं बाघिन हूँ ! 

मैंने दोनो हाथ जोड़ प्रणाम किया । माते मुझ अकिंचन पर कृपा करें । 

तथास्तु ! आखिरकार विधाता ने तुम्हे मेरी कथा सुनने भेज ही दिया । युगों युगों से प्रवाहित मैं हर युग में किसी न किसी को अपनी कहानी सुनाती आई हूँ । सतयुग में देवगुरु बृहस्पति, त्रेता युग स्वयं नारायण अवतार श्रीराम , जगत जगनी सीता और शेषावतार सौमित्र के अलावा अगस्त्य मुनि, द्वापर में अज्ञातवास बिता रहे पाण्डव और कृष्णा (द्रोपदी) के बाद कलिकाल में आज तुम मिले हो ! 

अभी तक हाथ जोड़े खड़ा मैं अब नतमस्तक हो गया । आज मुझे बेतवा, गंगा और नर्मदा के बाद अरण्यानी बाघिन से भी संवाद का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है । 

आपके इस अनुग्रह से यह पातकी पावन हुआ ! 

आकाश में घुमड़ते मेघों के बीच भगवान भास्कर अस्तांचल गामी होने लगे । गोधूलि बेला में गौ-महिषी वन से गांवों की ओर वापिस लौटने लगे । उनके बछड़े रंभा रहे थे । पक्षी भी कलरव करते हुए नीड़ की ओर उड़ चले थे । बगुले त्रिभुजाकार अनुशासन में उड़ रहे थे । मैं भी नदी किनारे एक चट्टान पर हाथ जोड़े बैठ गया । पृष्ठभूमि में झींगुर अपना राग अलाप रहे थे, और तबले पर उनकी संगत मेंढ़क बखूबी दे रहे थे । 

सुनो पुत्र ! मैं अपनी कथा आरंभ से सुनाती हूँ । 

माते, एक निवेदन स्वीकार करें, यदि कथा के मध्य में कोई जिज्ञासा या प्रश्न हो तो उसका भी निवारण अवश्य करती चलें ।

ठीक है !  महाप्रलय के पश्चात सृष्टि का पुनः निर्माण हो रहा था । श्रीहरि मत्स्य अवतार ले चुके थे । वर्तमान स्थल जहाँ तुम अभी बैठे हो यह आधुनिक अफ्रीका महाद्वीप का भाग था । यहाँ बड़े बड़े घास के मैदान थे , जिसमें सिंह, बाघ, चीता, तेंदुआ, भालू, जिराफ और हाथी जैसे बड़े जीव विचरण करते थे । 

लेकिन माते ! जिराफ तो भारत में पाए नही जाते । 

पुत्र मैं आज से करोड़ो वर्ष पूर्व की बात कर रही हूँ, तब तो यहाँ भीमकाय सरीसृप जिसे पाश्चात्य जगत डायनासुर कहता है, वो भी विचरते थे । फिर श्रीहरि का कच्छप अवतार हुआ, कच्छप की पीठ पर ही मंदरांचल पर्वत रख कर समुद्र मंथन हुआ । चौदह रत्नों की प्राप्ति हुई । समुद्र मंथन से वसुंधरा के गर्भ में हलचल हुई । महाद्वीप टूटने लगे । अफ्रीका का एक भाग टूटकर उत्तर भारत के नीचे आ लगा । इस भौगोलिक प्रक्रिया से भूगर्भीय हलचल होने लगी , संयोजक स्थल पर ज्वालामुखी सक्रिय होने लगे । विंध्याचल पर्वत धीरे धीरे उच्च होने लगा । ज्वालामुखी का लावा प्रवाहित होने लगा । उत्तर भारतीय जन को नवीन भूमि और वहाँ के लोगों के जानने की उत्सुकता बढ़ रही थी । परंतु विंध्याचल और जवालामुखी बाधा बन रहे थे । लेकिन परिवर्तन संसार का नियम है । अफ्रीका से टूटकर अलग हुआ भाग वर्तमान भारत से जुड़ा और दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में ज्वालामुखी धधक रहे थे । ज्वालामुखी के लावे से नए नए पहाड़ो का निर्माण हो रहा था, जिनमे सबसे प्रमुख विंध्याचल पर्वत श्रेणी थी । धरती के अंदर चल रही भूगर्भीय हलचलों के कारण विंध्याचल ऊपर उठता जा रहा था । 

माते ! क्या पर्वत अपने निर्माण के बाद भी ऊपर उठते है ? 

एक मधुर मुस्कान के साथ बाघिन माता आगे बोली -

पुत्र , बिल्कुल पर्वत भी निरंतर परिवर्तन शील होते है । जैसे आज हिमालय में परिवर्तन हो रहे है । चूंकि ये परिवर्तन इतनी धीमी गति से होते है, कि मानवों को दिखाई नही देते है । इन परिवर्तनों में हजारों साल लग जाते है, तब तक मनुष्य की आयु ही समाप्त हो जाती है । 

हाथ जोड़े मैंने निवेदन किया - माते आपका नाम बाघिन क्यों पड़ा ? 

माता बाघिन कुछ देर तक मंद मंद मुस्कुराती रही है । मैं हाथ जोड़े खड़ा रहा । तभी उत्तर देने की जगह बोली - ईश्वर भी कैसे संयोग बनाता है ! पुत्र तुम्हारा गोत्र क्या है ? 

मैं - माते, मैं वशिष्ठ गोत्र का कान्यकुब्ज ब्राह्मण हूँ । 

तुम्हारा जन्म कहाँ हुआ ? 

बक्सर, बिहार में 

बक्सर का भगवान राम से क्या सम्बन्ध है ? 

माते, भगवान राम बक्सर में महर्षि विश्वामित्र के आश्रम में शिक्षा पाए, ताड़का और सुबाहु का वध किये । और वर्तमान अहिरौली गांव में अहिल्या का उद्धार किये । बक्सर से भगवान मिथिला की ओर प्रस्थान किये । 

तब बाघिन माता बोली - आज इसीलिए तुम मेरी गाथा सुनने चयनित हुए हो ! मेरी कथा भी भगवान राम से जुड़ी है ! तुम्हारा गोत्र बशिष्ठ है, अर्थात तुम महर्षि बशिष्ठ के वंशज हुए न ! 

जी , 

तुम्हारा जन्म राशि का नाम क्या है ?

 अवध बिहारी !

अभी तक जिन जगहों पर रहे हो, उनके पते क्या रहे ? 

सागर में राम मंदिर के पास, पुलिस लाइन सागर , हनुमान मंदिर के पीछे, सिविल लाइन सागर । फिर टीकमगढ़ में रामजानकी मन्दिर के पास, पपौरा चौराहा, उसके बाद रामराजा की नगरी ओरछा में पदस्थ रहा । 

इसका संकेत समझे ? 

तुम्हारे जीवन में हर जगह राम किसी न किसी रूप में जुड़े है । 

पता है, महर्षि बशिष्ठ के भाई कौन थे ? 

नही माते,

महान वैज्ञानिक, अविष्कारक महर्षि अगस्त्य ! जिनकी कृपा से मैं कृतार्थ हुई । महर्षि का जन्म भगवान विश्वनाथ की नगरी काशी में एक घड़े से हुआ था । वे बचपन से ही प्रखर बुद्धि और तपोबल वाले थे ।  उन्होंने सूर्यवंशी राजाओं के कुलगुरु का पद स्वयं न लेकर अपने भाई  बशिष्ठ को दिया । वे राजकाज के बंधन में नही बंधना चाहते थे । वे एक महान वैज्ञानिक थे । मुझे वो दिन अच्छे से याद जब महर्षि अगस्त्य ने अपने भाई को रघुवंश का कुलगुरु बनने की कथा सुनाई थी । 

बाघिन नदी की धारा शांत हो गयी, सूर्यास्त पश्चात अंधकार बढ़ने लगा था । झींगुरों की आवाज तेज हो गयी थी । इधर मेरी जिज्ञासा भी बढ़ने लगी थी । धीरे धीरे जल में हलचल हुई । माते बाघिन ने जैसे यादों में गोता लगाया हो । अगस्त ऋषि को सूर्यवंश का राजपुरोहित या राजगुरु बनने का निमंत्रण प्राप्त हुआ । परंतु अगस्त्य मुनि अपने अविष्कारों को अधबीच में छोड़कर पुरोहताई नही करना चाहते थे । लेकिन तत्कालीन विश्व के सर्वश्रेष्ठ कुल से सम्बन्ध विच्छेद भी नही करना चाहते थे । वो अपने भाई महर्षि बशिष्ठ के पास गए और उन्हें रघुकुल का राजपुरोहित बनने को कहा । बशिष्ठ भी अपने गुरुकुल के माध्यम से न केवल वैदिक शिक्षा को समाज में प्रसारित कर रहे थे, बल्कि कुछ वैज्ञानिक शोधों पर भी लगे हुए थे । 

अगस्त्य मुनि - प्रिय भ्राता बशिष्ठ, तुम्हे अयोध्या का राजपुरोहित बन जाना चाहिए ! 

बशिष्ठ - आदरणीय आप स्वयं जानते है, राजपुरोहित बनना एक बन्धन है । मुझे राज्य की नियमों से चलना होगा, मेरा गुरुकुल भी प्रभावित होगा ।

अगस्त्य - भ्राता, किसी महान उद्देश्य के लिए लघु वस्तुओं का त्याग करना होता है । 

बशिष्ठ - महान उद्देश्य ! राजपुरोहित बनना कौन सा महान उद्देश्य है ? 

अगस्त्य - बशिष्ठ, राजपुरोहित बनना तो एक माध्यम है । तुम्हे राक्षस राज दशानन के अत्याचार से पूरी पृथ्वी को मुक्ति दिलानी है ! 

बशिष्ठ - आदरणीय आप पहेली न बुझाये ! स्पष्ट बताये, कि मेरे राजपुरोहित बनने से लंकाधीश से मुक्ति कैसे होगी ? 

अगस्त्य - स्नेहिल बशिष्ठ, रघुकुल में भगवान श्री हरि अवतार के रूप में जन्म लेंगे और वही दसकन्धर का उद्धार भी करेंगे । 

बशिष्ठ - श्री नारायण रघुकुल में जन्म लेंगे ! कब , जल्दी बताइये कब  आदरणीय ? 

अगस्त्य -धैर्य धारण करो, श्री नारायण त्रेता युग में सूर्यकुल के सूर्य के रूप जन्म लेंगे । 

बशिष्ठ - धन्य है, आदरणीय ! अभी सतयुग चल रहा है, फिर द्वापर आएगा उसके पश्चात कही त्रेता युग में नारायण का अवतार होगा । तब तक मुझे प्रतीक्षा करते हुए पुरोहताई करनी होगी । मैं पूरे एक युग तक पुरोहताई नही करना चाहता । आप अयोध्या नरेश को संदेश भिजवा दीजिये वो किसी और को अपना राजपुरोहित बना ले । चाहे तो आप ही बन जाये । मुझसे इतनी प्रतीक्षा न हो पाएगी । 

अगस्त्य - सोचो , तुम्हे भगवान को शिक्षा देने का सौभाग्य मिल रहा है ! वो तुम्हारे गुरुकुल में पढ़ेंगे । तुम्हारे आदेशों का पालन करेंगे । तुम प्रतीक्षा के कारण इस परम सौभाग्य को त्यागना चाहते हो । 

बशिष्ठ - आप ही क्यों नही बन जाते ।

अगस्त्य - मुझे प्रभु के अवतार हेतु और भी कार्य करने है ।

बशिष्ठ - ऐसा कौन सा कार्य करना है ? 

अगस्त्य - प्रभु का अवतार रावण के उद्धार हेतु होने वाला है , रावण बहुत ही शक्तिशाली है, उसे महादेव और परमपिता ब्रह्मा का आशीर्वाद भी प्राप्त है । उससे युद्ध के लिये प्रभु को बड़े शक्तिशाली आयुधों की आवश्यकता होगी । उनका निर्माण हमे करना है । 

बशिष्ठ - जब वो स्वयं नारायण के अवतार है, तो उन्हें आपके आयुधों की आवश्यकता होगी ? 

अगस्त्य -  भ्राता, उनका ये अवतार मर्यादा पुरुषोत्तम का होगा । वो मानव की मर्यादा को पार नही करेंगे । वो ईश्वर की तरह नही बल्कि एक सामान्य मनुष्य की तरह युद्ध करेंगे ।

बशिष्ठ - बाकी सब उचित है, परंतु एक युग तक प्रतीक्षा करने का धैर्य मुझमें नही है । 

अगस्त्य - बालहठ न करो बशिष्ठ, विधि के विधान में सब निश्चित है । प्रभु का जन्म त्रेता युग में नियत है । और त्रेता प्रत्येक सृष्टि में द्वापर के पश्चात ही आता है । 

बशिष्ठ - यदि त्रेता द्वापर से पूर्व आ जाये तो ?

अगस्त्य - यह तो असंभव है ! 

बशिष्ठ - मैं परम् पिता ब्रम्हा की आराधना कर उन्हें प्रसन्न करूंगा । और इस असंभव को संभव बनाने का प्रयास करूंगा ।

अगस्त्य - अर्थात तुम राजपुरोहित बनने तैयार हो ? 

बशिष्ठ - आप ही बताइये जब श्री हरि विष्णु के अवतार का सानिध्य मिल रहा हो, तो कोई मूढ़ ही होगा जो तैयार न हो । 

इसके बाद महर्षि बशिष्ठ ने ब्रह्मा जी की उपासना कर प्रसन्न किया तो विधि के विधान को परिवर्तित करते हुए सतयुग के बाद द्वापर के स्थान पर त्रेता का आविर्भाव हुआ । इतना कह बाघिन माता ने विराम लिया । लेकिन मेरे मन में प्रश्न घुमड़ने लगे । 

सूर्य नारायण अस्तांचल से धरा के दूसरे भाग को प्रकाशित करने चले गए । इधर सूर्यवंश की राजपुरोहित बनने की कथा ने मेरे मस्तिष्क में हलचल मचा दी । मां बाघिन मंद मंद मुस्कान के साथ चुप हो गयी । लहरें भी मंद मंद गति से प्रवाहित हो रही थी, मगर मेरे हृदय में जिज्ञासा के ज्वार उठ रहे थे । अंधकार बढ़ने के साथ ही अज्ञानता के तिमिर में मैं स्वयं को असहाय पा रहा था । विवश होकर मैंने पुनः बाघिन नदी की ओर करबद्ध होकर विनती की । 

हे माते ! मेरे मन में उमड़ रहे प्रश्नों का निवारण कीजिये ? 

लहरों की गति में कुछ तीव्रता आई । ऊपर आकाश में हंसिये के आकार के चन्द्र देव निकल आये थे । अंधकार कुछ कम हुआ । चंद्र देव की परछाई नीचे नदी के जल में बन रही थी, लेकिन लहरों की गति के कारण ऐसा प्रतीत हो रहा था , कि जैसे स्वर्ण मयी कोई हंसिया जल में तैर रहा हो ! 

पृष्ठभूमि से आवाज़ आई - पुत्र, पूछो अपने प्रश्न ! 

माते, वशिष्ठ जी इतनी लंबी आयु के थे, कि सतयुग से त्रेता तक उपस्थित रहे ? 

बिल्कुल पुत्र, ऋषि-मुनि अपने तप के बल पर लम्बी आयु प्राप्त कर लेते है । आज भी बहुत से ऋषि मुनि हिमालय की कंदराओं में सैकड़ो वर्षों से तपस्यारत है । वैसे एक रोचक तथ्य बताऊँ , इंद्र की तरह वशिष्ठ भी एक पद है, जो समय समय पर अनेक ऋषि-मुनियों ने अपने तप के बल पर प्राप्त किया है । 

माते, थोड़ा समझाकर बताइये ।

जैसे आज के जमाने में प्रधानमंत्री एक व्यक्ति न होकर पद है, जो समय समय पर अलग अलग व्यक्तियों द्वारा धारण किया गया है । उसी प्रकार इंद्र, वशिष्ठ और व्यास भी एक पद है, जो समय समय पर अलग अलग ऋषि रहे है । इनमें से कुछ प्रमुख वशिष्ठ के बारे में संक्षेप में बताती हूँ । पहले वशिष्ठ ब्रह्मा जी के मानस पुत्र हुए ।

माते ! ये मानस पुत्र क्या होते है ? 

पु

त्र, जब महाप्रलय के पश्चात फिर से सृष्टि की रचना करनी थी, तो ब्रह्माजी ने अपनी योगमाया से 14 मानसपुत्र उत्‍पन्‍न किए:- मन से मारिचि, नेत्र से अत्रि,  मुख से अंगिरस, कान से पुलस्त्य, नाभि से पुलह, हाथ से कृतु, त्वचा से भृगु, प्राण से वशिष्ठ, अंगुष्ठ से दक्ष, छाया से कंदर्भ, गोद से नारद, इच्छा से सनक, सनन्दन, सनातन और सनतकुमार, शरीर से स्वायंभुव मनु और शतरुपा व ध्यान से चित्रगुप्त। 

ब्रह्माजी के उक्‍त मानस पुत्रों में से प्रथम सात मानस पुत्र तो वैराग्‍य योग में लग गए तथा शेष सात मानस पुत्रों ने गृहस्‍थ जीवन अंगीकार किया। गृहस्‍थ जीवन के साथ-साथ वे योग, यज्ञ, तपस्‍या तथा अध्‍ययन एवं शास्‍त्रास्‍त्र प्रशिक्षण का कार्य भी करने लगे। अपने सात मानस पुत्रों को, जिन्‍होंने गृहस्‍थ जीवन अंगीकार किया था ब्रह्माजी ने उन्‍हें विभिन्‍न क्षेत्र देकर उस क्षेत्र का विशेषज्ञ बनाया था ।


'सप्‍त ब्रह्मर्षि देवर्षि महर्षि परमर्षय:। 

कण्‍डर्षिश्‍च श्रुतर्षिश्‍च राजर्षिश्‍च क्रमावश:।।


1. ब्रह्मर्षि   2. देवर्षि   3. महर्षि   4. परमर्षि   5. काण्‍डर्षि   6. श्रुतर्षि    7. राजर्षि


उक्‍त ऋषियों का कार्य अपने क्षेत्र में खोज करना तथा प्राप्‍त परिणामों से दूसरों को अवगत कराना व शिक्षा देना था। मन्‍वन्‍तर में वशिष्‍ठ ऋषि हुए हैं, उस मन्वन्‍तर में उन्‍हें ब्रह्मर्षि की उपाधि मिली है। वशिष्‍ठ जी ने गृहस्‍थाश्रम की पालना करते हुए सृष्टि वर्धन, रक्षा, यज्ञ आदि से संसार को दिशा बोध दिया।

 

वशिष्ठ नाम से कालांतर में कई ऋषि हो गए हैं। एक वशिष्ठ ब्रह्मा के पुत्र हैं, दूसरे इक्क्षवाकु के काल में हुए, तीसरे राजा हरिशचंद्र के काल में हुए और चौथे राजा दिलीप के काल में, पांचवें राजा दशरथ के काल में हुए और छठवें महाभारत काल में हुए। पहले ब्रह्मा के मानस पुत्र, दूसरे मित्रावरुण के पुत्र, तीसरे अग्नि के पुत्र कहे जाते हैं। पुराणों में कुल बारह वशिष्ठों का जिक्र है।


 आगे बाघिन माते बताती है,

एक वशिष्ठ ब्रह्मा के पुत्र हैं, दूसरे इक्क्षवाकुवंशी त्रिशुंकी के काल में हुए जिन्हें वशिष्ठ देवराज कहते थे। तीसरे कार्तवीर्य सहस्रबाहु के समय में हुए जिन्हें वशिष्ठ अपव कहते थे। चौथे अयोध्या के राजा बाहु के समय में हुए जिन्हें वशिष्ठ अथर्वनिधि (प्रथम) कहा जाता था। पांचवें राजा सौदास के समय में हुए थे जिनका नाम वशिष्ठ श्रेष्ठभाज था। कहते हैं कि सौदास ही सौदास ही आगे जाकर राजा कल्माषपाद कहलाए। छठे वशिष्ठ राजा दिलीप के समय हुए जिन्हें वशिष्ठ अथर्वनिधि (द्वितीय) कहा जाता था। इसके बाद सातवें भगवान राम के समय में हुए जिन्हें महर्षि वशिष्ठ कहते थे और आठवें महाभारत के काल में हुए जिनके पुत्र का नाम पराशर था। इनके अलावा वशिष्ठ मैत्रावरुण, वशिष्ठ शक्ति, वशिष्ठ सुवर्चस जैसे दूसरे वशिष्ठों का भी जिक्र आता है। 

मैं अवाक सा सुन रहा था, कि मेरे गोत्र ऋषि वशिष्ठ के बारे में इतनी विस्तृत जानकारी के बारे में अब तक अनजान ही रहा है । मध्य रात्रि हो चुकी थी । लेकिन मन प्रसन्न था, भूख और नींद गायब थी । चन्द्र देव बिल्कुल सिर के ऊपर आ गए थे । पृष्ठभूमि तो जान गया, परंतु अभी तक बृहस्पति कुण्ड का रहस्य तो बाकी ही था । 

मां बाघिन मेरे मन की बात जानती हुई बोली,

पुत्र अभी पृष्ठभूमि पूर्ण नही हुई है, जब तक पृष्ठभूमि पूर्ण नही होगी, आगे बृहस्पति कुण्ड के रहस्यों को नही जान पाओगे । रहस्य इतने आसान होते तो रहस्य ही क्यों होते है । पृष्ठभूमि की एक एक बात आगे चलकर किसी न किसी रहस्य की परत खोलेगी ! अभी इन रहस्यों में बहुत से पात्रों का प्रवेश होगा, कुछ जाने होंगे कुछ अनजाने होंगे । लेकिन कोई भी पात्र कही से कमजोर नही बल्कि इन रहस्यों को समझने के लिए महत्वपूर्ण होगा । अब बहुत देर हो गयी पुत्र आज के लिये इतना बहुत है । फिर आना तो अगले किसी पात्र से परिचित कराउंगी ।
नदी के जल में अचानक हलचल हुई, जैसे ज्वार उठ रहा हो, एक लहर तेजी से उछल कर मेरे सिर का स्पर्श करती हुई, पुलिया के दूसरी ओर चली गयी । उस अलौकिक स्पर्श से ऐसा लगा जैसे बाघिन माता मुझे आशीर्वाद दे रही हो । मैं प्रणाम करते हुए अपनी गाड़ी में बैठ गया । मोड़दार रास्तों में स्टेरिंग की तरह मेरे मन में बहुत सारे प्रश्न घूम रहे थे । वशिष्ठ जी राजपुरोहित कैसे और क्यों बने ? भगवान राम के जीवन में अगस्त्य ऋषि की क्या भूमिका थी ?  अगस्त्य मुनि ने बृहस्पति कुण्ड को ही क्यों चुना ? 

( क्रमशः )




रविवार, 12 जुलाई 2020

खूबसूरत पाण्डव जलप्रपात और गुफाएं

पन्ना झरनों का एक अलग ही संसार
 नमस्कार मित्रों मानसून का प्रवेश देश में हो चूका है , लेकिन कोरोना के संक्रमण  कारण घुमक्कड़ी लगभग बंद सी है। लेकिन मानसून में देश में झरनो की एक अलग ही खूबसूरत दुनिया शुरू हो जाती है।  देश में बारहमासी झरने  कम ही है।  चलिए हम आपको मॉनसूनी झरनो की खूबसूरत दुनिया से रू ब रू कराते है।  देश के दिल यानि मध्य प्रदेश में उत्तर प्रदेश के बाँदा जनपद से लगा एक पिछड़ा सा जिला है।  जिसका नाम है , पन्ना।  हो सकता है,आपने नाम ही न सुना हो।  वैसे पन्ना सामान्य ज्ञान की किताबों में देश के एकमात्र हीरा उत्पादक जिले के रूप में जाना जाता है।  इसके अलावा यहाँ का पन्ना टाइगर रिजर्व भी थोड़ा-बहुत प्रसिद्द है। लेकिन आज हम पन्ना जिले के छुपे हुए खजाने की चर्चा करेंगे वो भी बिना खर्चा (कोरोना काल में यही कर सकते है ) पन्ना को प्रकृति ने दिल खोल कर अपनी सुंदरता प्रदान की है। मानसून आते ही यहाँ के पहाड़ अनगिनत झरनो को अपनी गोद से उतार देते है।  छोटे-बड़े झरने बड़े ही मनमोहक दृश्यावली उत्पन्न करते है।  मैदानी इलाकों में शायद ही कोई एक जिला होगा जिसमे इतने सारे जलप्रपात होंगे।  खैर हम एक एक कर के पन्ना जिले के खूबसूरत झरनो से आपको मिलवाते है।  इस श्रृंखला  का श्रीगणेश हम पन्ना जिले के सबसे प्रसिद्द जलप्रपात पांडव फॉल एवं गुफा से करते है।
  
स्थिति - छतरपुर -पन्ना मार्ग पर पन्ना टाइगर रिजर्व के मड़ला गेट से लगभग 5 किमी पन्ना की ओर मुख्य सड़क से 600 मीटर अंदर जंगल की ओर 
प्रवेश शुल्क -50 रूपये प्रति व्यक्ति ( पन्ना टाइगर रिजर्व  की तरफ से )
                   चार पहिया वाहन के 300 रूपये 
कब तक खुला रहता है - पूरे साल सूर्योदय से सूर्यास्त तक ( जबकि पन्ना टाइगर रिजर्व अक्टूबर से जून तक खुला रहता है।  )
                          अब नाम से इतना तो पता चल ही गया होगा कि इस जलप्रपात का नाम महाभारत कालीन पांच पांडवों से जुड़ा है।  अब पांडव हस्तिनापुर से यहाँ आये या नहीं इसका कोई प्रमाण है नहीं मुझे नहीं पता।  लेकिन पन्ना जिले में ही केन नदी पर  पण्डवन नाम से एक शानदार जगह है।  जिसका सम्बन्ध पांडवों से जोड़ते है।  इसके अलावा छतरपुर के बिजावर के पास भीमकुण्ड नाम से भी रहस्यमयी कुंड है।  पन्ना से 90 किमी की दूरी पर प्रसिद्द शक्तिपीठ शारदा देवी मंदिर मैहर है , जिसका सम्बन्ध पांडवों से जोड़ा जाता है। किंवदंती है, पांडव यहाँ  स्थित प्राकृतिक गुफा में अपने अज्ञातवास के दौरान रहे है।  अब अज्ञात वास है , तो उसे ज्ञात करना मुश्किल है।  इसके अलावा स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद भी काकोरी कांड के बाद यहाँ 4  सितम्बर 1929 को क्रांतिकारियों की एक गुप्त बैठक आयोजित की थी।  
दिल के आकार में बहने वाले इस खूबसूरत झरने को देखते ही बनती है।  टाइगर रिजर्व में पड़ने वाले इस जलप्रपात के आसपास प्राकृतिक खूबसूरती भी बहुत है।  कुछ वन्य जीव देखने मिल जाते है।  लंगूर, लाल मुँह वाले बन्दर, सियार , चीतल , सांभर , नीलगाय आदि गाहे-बगाहे दिख जाते है।  

  
पांडव जलप्रपात का पेनोरमा दृश्य 

                                       






चंद्रशेखर आजाद  

  • पांडव गुफाएं 














शुक्रवार, 17 अप्रैल 2020

मेरी पहली हवाई यात्रा जो अविस्मरणीय बन गयी ।

                    हम आम भारतीयों के लिए हवाई यात्रा एक सपना ही होता है ।  मेरा भी बचपन से ही हवाई यात्रा का सपना रहा । बेरोजगारी के आलम में तो सपना ही रहा । नौकरी के बाद एकाध बार मध्य प्रदेश शासन के हेलीकॉप्टर में बैठने का सुख प्राप्त हुआ । फिर विवाह पश्चात एक बार वैष्णो देवी के दर्शनार्थ कटरा से सांझी छत तक हेलीकॉप्टर से गये । हिमालय की धवल श्रेणियों के भव्य दर्शन हुए । जुलाई 2018 में दिल्ली से अमरनाथ और लेह की यात्रा का सौभाग्य मिला , मगर 100 सीसी बाइक से । देश में सस्ती हवाई सेवा शुरू होने के बाद भी कभी अवसर नही मिल पा रहा था । सितम्बर 2019 ओरछा से स्थानांतरण पन्ना हो गया । अभी परिवार साथ नही लाया था । अकेले रहने का सुख या दुख जो समझ लीजिए भोग रहा था । दशहरा-दीपावली पन्ना में ही अकेले मनाया । फिर 8 नवम्बर को घर जाने की अनुमति मिली । एक दिन ऐसे ही फुरसत में बैठे बैठे मेक माय ट्रिप के एप पर खजुराहो से वाराणसी की हवाई जहाज खोजा । तो विस्तारा एयरलाइन की नई सेवा चालू हुई । और मात्र 3600 रुपये में उड़ान थी । फिर क्या अपना दिल बल्ली उछलने लगा । बचपन के सपने आंखों में तैर गए । हमने तुरंत फ्लाइट की टिकट बुक की । कार्यालय में बात करने के बाद 12 नवम्बर को वापिसी की टिकट 3800 रुपये में बुक कर दी । अभी घर में किसी को नही बताया । रात भर जागी आंखों से उड़ान के ख्वाब देख रहे थे । एक आम आदमी हवा में उड़ने की कल्पना से ही खुश हो जाता है । इधर मैंने तो टिकट ही बुक कर दी । खैर वो दिन भी आ गया , जब उड़नखटोला में बैठना था । मेरे जिला कार्यालय के बाबू  और स्टॉफ को पता चला तो वो लोग भी बोले - सर, हम लोग भी आपको छोड़ने चलेंगे । कम से कम इसी बहाने से एयरपोर्ट और ऐरोप्लेन तो देख लेंगे । अब हम सब पन्ना से खजुराहो हवाई अड्डे के लिए निकले । खजुराहो वैसे तो अपने आश्चर्य जनक स्थापत्य वाले नागर शैली के मंदिरों के लिए विशेष कर मन्दिर की बाह्य भित्तियों पर मैथुन शिल्पांकन के लिए विश्व विख्यात है । 42 किमी की दूरी तय करके खजुराहो पहुँचे , वहाँ मध्य प्रदेश पर्यटन निगम के होटल झंकार पहुँच कर प्रबंधक अमित कुमार जो मेरे मित्र भी है, उनके साथ चाय पी । फिर छोटू से खजुराहो हवाई अड्डे पहुँच गए । अपने सहकर्मियों के साथ हवाई अड्डे के बाहर फ़ोटो खिंचवाई और उनसे टाटा बाय करके टिकट दिखाकर अंदर प्रवेश किया । कुछ अंग्रेज और दो-चार भारतीय के अलावा अन्य यात्री नही थे । छोटा सा एयरपोर्ट जिसे एक नजर में ही देख लिया । चूंकि एक घण्टे पहले पहुँच गया था, तो तसल्ली से बोर्डिंग पास बनवाया । वैसे बड़े हवाई अड्डों पर एक घण्टे पहले पहुंचना यानी जल्दी से पहुँचना होता है । क्योंकि सुरक्षा जाँच की कतार लम्बी होती है, और उसमें समय लगता है । यहाँ तो गिने चुने यात्री ही थे । खैर हम चल पड़े द्वितीय तल पर स्थित प्रतीक्षालय में । आसपास देखने को कोई नजारे न थे । सामने एरोड्रम पर भी कोई उड़नखटोला न खड़ा था । वैसे भी पिछले कुछ साल से खजुराहो में विदेशी पर्यटकों की कमी के कारण कई हवाई कम्पनियों ने अपनी उड़ाने बन्द कर दी है । हाल ही में नई हवाई कम्पनी विस्तारा एयरलाइन्स ने अपनी उड़ान सेवा दिल्ली-खजुराहो-वाराणसी-दिल्ली के लिए चालू की है । जब से नेपाल में भूकम्प आया है, तबसे ये हवाई यात्रा सर्किट दिल्ली-खजुराहो-वाराणसी-बोधगया-नेपाल में विदेशी यात्री बहुत कम हो गए है । खैर हम कौन सा पर्यटन करने जा रहे है । इन्हें छोड़ अपनी उड़नखटोला यात्रा पर लौटते है ।  विस्तारा एयरलाइन्स सिंगापुर एयरलाइन्स (SIA) और टाटा कम्पनी का संयुक्त उपक्रम है । संयोग देखिए भारत के पहले कमर्शियल पायलट जमशेद जी टाटा थे, और टाटा एयरलाइन्स देश की पहली कमर्शियल एयरलाइन्स थी । स्वतन्त्रता पश्चात टाटा ने अपनी एयरलाइन्स देशहित में देश को समर्पित की जो आज एयर इंडिया के नाम से जानी जाती है । हमारी फ्लाइट आते ही सभी यात्रियों से अनुरोध किया जाता है, हम अनुरोध स्वीकार कर सीना ताने विमान में प्रवेश करते है । पहली बार हवाई यात्रा करने वाले आसानी से पकड़ में आ जाते है । हर चीज को ऐसे घूरते है, जैसे निपट देहाती व्यक्ति महानगरीय अट्टालिकाओं को । खैर 138 सीट वाले मेरे विमान में बमुश्किल 20 यात्री थे । विमान अंदर से रेलवे के प्रथम श्रेणी वातानुकूलित यान या चार्टेड बस की तरह ही लग रहा है । खिड़कियों का आकार ही उन्हें भ्रम मुक्त कर रहा था । विमान खाली होने से यात्रियों को निर्धारित सीट के अलावा अन्य सीट पर बैठने की छूट दी । परिचारिका जी ने मुझे बीच की सीट पर बैठने का संकेत किया । हम भी खुश की अगर विमान कही टकराया तो बीच वाले तो सुरक्षित रहेंगे । लेकिन तभी खयाल आया कि खजुराहो से वाराणसी के बीच कोई ऐसा पहाड़ तो है नही, जिससे विमान टकराये । और न सड़क मार्ग की तरह इतना ट्रैफिक है, कि कोई पीछे ही ठोक जाए । अब एक आशंका बच रही है, कि विमान दुर्घटनाग्रस्त हो जाये तो भले बीच से टूट जाये । ऐसे विचार पहली बार हवाई यात्रा करने वाले के मन में तो आते ही है । खैर हम खिड़की के पास वाली सीट पर बैठ गए । खिड़की के बाहर देखा तो पता चला कि हम उड़नखटोले के एक डैने के पास ही बैठे है । अब एक उड़न सुंदरी आई और अंग्रेजी में गिटर-पिटर करते हुए हाथ से इशारे के करने लगी । भारतीय शैली में अंग्रेजी बोलती तो कुछ पल्ले पड़ती मगर परले दर्जे की अंग्रेजी ऊपर से निकल गयी । खैर मुझे तो शुरुआत में उसका नाम दीक्षा और बाद में थैंक यू ही समझ आया । कुछ देर बाद वही उड़न सुंदरी आगे के मुसाफिरों से होते हुए मेरे पास आई । आते ही मुझसे बोली - व्हिच लैंग्वेज यू प्रिफर ?  इंग्लिश बोलने की गलती करते ही मोहतरमा अंग्रेजी में ऐसे सुपर फास्ट हुई कि हम प्लेटफॉर्म पर पैसेंजर के यात्री से देखते रह गए । खैर उनकी हरकतों से इतना समझ आया कि आपातकालीन परिस्थितियों में क्या करना है ? लेकिन अब कुछ समझ ही नही आया तो आपातकाल में क्या करेंगे ? खैर भगवान भरोसे हम सीट बेल्ट बांधकर बैठ गए । अब विमान में हरकत हुई इंजन स्टार्ट हुआ, दिल की धड़कन भी तेज हो गयी । तभी कॉकपिट से आवाज आई । नमस्कार, मैं आपकी पायलट कैप्टन अवन्तिका सिंह...हमारी उड़ान का निर्धारित समय है..1 घण्टा 35 मिनट और ...…..कैप्टन अवन्तिका सिंह ! वाह रे ! मेरी किस्मत, पहली उड़ान और पायलेट महिला ! पहले तो थोड़ा डर लगा, फिर सीना गर्व से चौड़ा हो गया । हमारे देश में लड़कियों ने हर क्षेत्र में पुरुषों को चुनौती दी है । वो अलग बात है, कि मैंने अभी तक अपनी पहली उड़ान की सूचना मायके में विराजमान अर्धांगिनी जी को नही दी है । अब विमान रनवे पर रेंगते रेंगते दौड़ने लगा । अभी तक लग रहा कि किसी लक्जरी बस में दौड़ रहा हूँ, फिर अचानक झटका लगा और उड़नखटोला आकाश की ओर उन्मुख हुआ , हम खिड़की से अपने मोबाइल में वीडियो बना रहे है, वीडियो को दिखा अपनी धाक भी तो जमानी पड़ेगी । नीचे खेत,मकान सड़क छोटे छोटे दिखने लगे थे । कुछ देर बाद बाहर का नजारा गजब का हो गया था, हम बादलों के बीच से गुजर रहे थे । रामानंद सागर की रामायण याद आ गयी । इंद्र आदि देवता बादलों के बीच ही तो रहते थे । हम अभी नजारों में ढंग से खो ही नही पाए कि विमान संचालिका कप्तान अवन्तिका जी की सुमधुर आवाज एक फिर से गूंजी । हम ....हजार फीट की ऊंचाई पर वाराणसी के आसमान में है, यहां तापमान है,28 डिग्री सेल्सियस और कुछ ही देर में हम लैंड करने वाले है, आप सभी अपनी पेटियां कस ले । लेकिन हम पेटी नही बैग लेकर आये थे । तभी आंग्ल संस्करण में पेटी मतलब बेल्ट पता चला । हमने खोली ही नही थी, तो कसने का सवाल ही नही । अब फिर से खेत मकान दिखने लगे । उम्मीद से भी कम समय में वाराणसी के लाल बहादुर शास्त्री अंतरराष्ट्रीय विमान तल बाबतपुर, वाराणसी पहुँच गए । यहाँ का हवाई अड्डा खजुराहो की तुलना में बड़ा था । यहाँ भीड़भाड़ भी दिख रही थी । कुछ दुकानें भी दिखी । खैर एकाध फ़ोटो खींच हम बाहर निकले । बाहर टैक्सी और ऑटो वालों की भीड़ यात्रियों को पकड़ने को आतुर दिखी । मैंने वाराणसी केंट (जंक्शन) का किराया पूछा तो 23 किमी के 250 रुपये से कम में कोई तैयार न हुआ । देवउठनी एकादशी के उपवास के कारण भोजन तो नही कर सकते थे, लेकिन हवाई अड्डे से थोड़ा आगे चलने पर एक दुकान पर कुल्हड़ में चाय पी । दुकान वाले से ही आसपास के टेम्पो स्थल की जानकारी ली । और हवाई यात्री पैदल ही लगभग एक किमी चले । ओवर ब्रिज के पास टेम्पो मिल गयी । 20 रुपये भाड़ा देकर स्टेशन पहुँच गए । पूछताछ केंद्र से बक्सर जाने वाली ट्रेन का पता किया । ट्रेन प्लेटफॉर्म पर पहुंचने वाली थी , हम भी दौड़कर ट्रेन के डिब्बे में दाखिल हो गए । डेढ़ घण्टे में बक्सर पहुँच गए । छोटा भाई बाइक से लेने आ गया । और लौटकर बुद्धू घर को आये । इस सफर में बुलेरो, हवाई जहाज, पैदल, ट्रेन और बाइक से अपना सफर पूरा किया । पर अब अपनी रामकहानी में ट्विस्ट आना बाकी है । घर पहुँचने के बाद हमारे जिला अधिकारी का कॉल आता है ! कल राम मंदिर अयोध्या का फैसला माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिया जाना है, पूरे देश मे हाई अलर्ट है अतः आप जितनी जल्दी हो सके वापिस लौटिए । माता श्री गांव गयी थी, तो उनसे मुलाकात हो न पाई । उन्हें जब कॉल कर वापिस जाने की बात बताई तो उन्हें भरोसा ही नही हुआ । वो इसे मजाक ही समझ रही थी । रात में ही वापिसी की फ्लाइट मोबाइल से बुक की । सुबह 7 बजे की ट्रेन से जाना तय हुआ । अब आंखों से नींद गायब ! जागती आंखों से रात काटी , सुबह 5 बजे नहा धोकर तैयार हुए । भाई स्टेशन तक छोड़ने आया । विदा होते समय आंखे नम थी । खैर प्लेटफॉर्म से बाहर यूटीएस एप्प के माध्यम से वाराणसी तक का टिकट लिया । अब ट्रेन में बैठ गए, 11 बजे ट्रेन के वाराणसी पहुँचने का समय था, और वाराणसी से 23 किमी दूर स्थित हवाई अड्डे पर रिपोर्टिंग टाइम 11:20 बजे तक का था । और मेरी ट्रेन अपनी परंपरा का पूर्णतः पालन करते हुए 30 मिनट देरी से चलने लगी । हवाई अड्डे समय पर पहुंचने की उम्मीद धुंधली पड़ने लगी । 11:30 पर वाराणसी पहुँच पाया तुरंत भागते ऑटो पकड़ा ईश्वर कृपा से पूरी सड़क खाली मिली,  रामजन्म भूमि पर माननीय उच्चतम न्यायालय से फैसला आना था । इसी कारण ऐतिहातन पूरे देश को हाइ अलर्ट पर रखा गया । ऑटो चालक ने पूरी स्पीड से ऑटो भगाया । हवाई अड्डे पर 12:15 बजे पहुँच पाया । 12:30 पर उड़ान थी । बोर्डिंग पास के लिए काउंटर पर बैठी भद्र महिला ने साफ मना कर दिया । आप बहुत लेट हो चुके है, आपको हम बोर्डिंग पास नही दे सकते , बस टेक ऑफ होने वाला है ।  अब मेरी हालत खराब । मैंने अपनी इमरजेंसी ड्यूटी का भी हवाला दिया । ये भी कहा कि अगर किसी से बात करनी हो बताए मैं बात करता हूँ ।  उन्होंने इनकार में सर हिला दिया । फिर किसी को फोन किया , वहाँ से भी मनाही हो गयी । अब ईश्वर ही याद आये । तभी चमत्कार हुआ । काउंटर का टेलीफोन घनघनाया । कुछ उम्मीद सी जगी । उधर से आवाज आई जल्दी भेजो ।  अब बोर्डिंग काउंटर पर हलचल तेज हुई । भद्र महिला बोली आप जल्दी से मेरे साथ आये, सिक्योरिटी चेक पर लम्बी लाइन लगी है । उनके साथ लाइन के बगल से गये, जल्दी से सिक्योरिटी चेक हुआ । सामान अलग से चेक हो रहा । भद्र महिला ने बोला जल्दी से आप ऊपर 4 नंबर गेट पर पहुँचे । हमने भी तेजी से दौड़ लगाई , ऊपर पहुँचा ही था, कि पीछे पीछे दौड़ता सीआईएसएफ का जवान आया । बोला- सर आपका समान कौन लाएगा ? अब फिर नीचे की ओर भागा ।  समान उठाया, बेल्ट गले में  लटकाया । फिर 4 नंबर की तरफ आया । यहाँ मेरा ही इंतज़ार हो रहा था । मेरे विमान में प्रवेश करने के कुछ देर बाद रनवे पर विमान दौड़ने लगा । तेज दिल की धड़कन सामान्य हुई । माथे से पसीने की बूंदे पोंछने पड़ी । विमान में सारी कवायद वही हुई । लौट के बुद्धू खजुराहो आये ।

खजुराहो हवाई अड्डे के बाहर
विमान के अंदर







शनिवार, 4 अप्रैल 2020

एक अनजान हसीना के साथ यादगार सफर


नमस्कार मित्रों, वैसे तो पूरी जिंदगी ही एक सफर है , और हम सब यात्री होने के साथ साथ किसी न किसी के हमसफ़र है । खैर मेरी हर यात्रा में कोई न कोई हमसफ़र अवश्य ही रहा है, क्योंकि मुझे अकेले घूमने में मजा नही आता । तो बड़ा मुश्किल होता है , किसी एक यात्रा को चुनकर उसमें एक हम सफर चुनने का ।  चलिए आज एक ऐसे हमसफ़र के बारे में बताते है , जो मेरे लिए आज भी गुमनाम है । बात आज से लगभग 13 साल पहले यानी 2006 के बरस की है । मैं इलाहाबाद में सिविल सेवा की तैयारी कर रहा था । कुछ दिन की दीपावली की छुट्टियां हुई थी, तो बक्सर (बिहार) गया था । फिर वहां से सागर (म0प्र0) अपने नाना जी के पास आना था, क्योंकि माताजी वही थी । बक्सर से हम लोग (मैं और मेरा मंझला भाई निकेश)  श्रमजीवी एक्सप्रेस से वाराणसी आये और वाराणसी से सागर के लिए कामायनी एक्सप्रेस पकड़ी । सामान्यतः कामायनी एक्सप्रेस पूर्वांचल से मुंबई जाने वाले मजदूरों और नौकरीपेशा लोगों से भरी रहती है, लेकिन दीपावली के कारण लोग अपने घरों को लौट रहे थे । इसलिए लोकमान्य तिलक टर्मिनस जाने वाली ट्रेन में लोक कम ही मान्य हो रहा था । दीपावली नजदीक होने के बावजूद उस साल सर्दी अभी ढंग से आई नही थी, लिहाजा हम दोनों भाई एक पतली सी टी शर्ट ही पहने थे । खैर तयशुदा कार्यक्रम अनुसार हम दोनों शयनयान श्रेणी डिब्बे की अपनी सीट पर बैठ गए । हमारी सीट के सामने वाली सीट पर मेहंदी किये लाल बाल और दाढ़ी वाले एक बुजुर्ग मुस्लिम तशरीफ़ रखे थे । बाकी का डिब्बा खाली ही था । हम दोनों भाई आपस में ही बतिया रहे थे । ट्रेन ने सीटी बजाई जो इस बात का इशारा था, कि  छुकछुक गाड़ी यहां से रुखसत होने वाली है । मैं वाराणसी जंक्शन को विदा देने डिब्बे के दरवाजे पर आ खड़ा हुआ । ट्रेन झटके के साथ आगे बढ़ने लगी अभी रफ्तार धीमी ही थी, स्टेशन अपनी भीड़ के साथ पीछे सरकने लगा । तभी एक नवयौवना कंधे पर बैग टांगे मेरी तरफ हाथ बढ़ाये दौड़ी चली आ रही थी । ट्रेन की रफ्तार के साथ मेरे दिल की धड़कन भी तेज होने लगी , तभी मोहतरमा चिल्लाई...मेरा हाथ पकड़ो ! मैंने भी फिल्मी स्टाइल में हाथ बढ़ा दिया और उन्हें अपनी तरफ खींच लिया । अब वो ट्रेन के अंदर आ चुकी थी । ट्रेन और हृदय की रफ्तार तेज हो चुकी थी । हम मानो जागी आंखों से ख्वाब देख रहे थे । साइड हटिये...प्लीज ! की आवाज़ से मेरी तन्द्रा टूटी ।
पूरा डिब्बा खाली था, तो वो नवयुवती हमारी सीट की साइड लोवर बर्थ पर बैठ गयी । मैं भी अपनी सीट पर आया तो देखा निकेश बाबू ऊपर की बर्थ पर चादर तान चुके है । सामने बैठे मौलवी जी अपनी दाढ़ी खुजाते हुए कुछ फ़ारसी में पढ़ रहे है ।  हमने भी अपनी सीट पर आसन जमाया । नवयुवती अपना बैग सीट के किनारे पर लगाकर  उसे तकिया बनाकर उस पर टिककर पैर फैलाकर बैठ गयी थी ।
पूरे डिब्बे में हम चार लोग ही थे । ट्रेन अपनी पूरी रफ्तार में आ गयी थी । खिड़की के बाहर पेड़, खेत , मकान तेजी से पीछे भागने लगे थे । कुछ देर ट्रेन की खटर-पटर सुनने के बाद मैंने अपनी खटर-पटर चालू करने का फैसला किया ।
नमस्कार अंकल  !
जवाब में मौलवी जी  अपनी किताब में से बिना सर उठाये सिर्फ सिर हिला दिया ।
आप कहाँ तक जाएंगे ?
जौनपुर
मतलब आपने बनारस से जौनपुर जाने के लिए रिजर्वेशन करवाया है ?
नही , हम डेली पैसेंजर है । एमएसटी
ओह, मतलब आप बनारस में काम करते है और जौनपुर के रहने वाले है ?
हाँ ,
तभी मैंने कनखियों से देखा तो नवयुवती मेरी तरफ ही देख रही थी । तो मैंने देखकर मुस्कुरा दिया ।
प्रत्युत्तर में भी हल्की सी मुस्कान मिली । तो मैंने मौलवी साहब को किताब में गड़ा देखकर अपना मुंह साइड बर्थ की ओर घुमा लिया ।
मेरे सिर घुमाते ही नजरे दो-चार हुई , उधर मुस्कान थोड़ी लम्बी हुआ और इधर बांछे (शरीर मे जहां कही होती हो ) खिल गयी ।
आप कहाँ तक जाएंगी ?
जी, इलाहाबाद !
अरे, वाह ! इलाहाबाद में ही तो मैं भी सिविल सर्विस की तैयारी कर रहा हूँ । (मैंने रोब जमाने के हिसाब से कहा )
इलाहाबाद में लोग सिविल सर्विस की तैयारी करने आते है, और कुछ साल बाद मास्टर बन जाते है ।  उसकी मुस्कान अब हंसी में बदल गयी ।
नही, उनमे कुछ सफल भी होते है ।
सिर्फ कुछ ही
जी, जो दृढ़निश्चय के साथ मेहनत करते है , वो सफल ही होते है ।
कोई उत्तर नही मिलने पर मैं भी कुछ देर चुप बैठा रहा ।
माहौल की खामोशी को रेल की खटर पटर और मौलवी साहब की बुदबुदाहट तोड़ रही थी ।  अब नवयुवती खिड़की से नजारे देखने लगी । तो हम भी अपनी तरफ वाली खिड़की की तरफ खिसक आये ।  ट्रेन कुछ धीमी सी होने लगी शायद कोई स्टेशन आने वाला था , लेकिन खिड़की से देखने पर ऐसी कोई संभावना नजर नही आ रही थी ।  तभी ट्रेन धीमी होती हुई खड़ी हो गयी , सामने खेतों में जुताई चल रही थी, ट्रैक्टर के पीछे पीछे बगुले झुंड के झुंड में कीड़े खाने के लिए मंडरा रहा और इधर मेरे मन में कई विचार मंडरा रहे थे । तभी एक जोरदार सीटी के साथ बगल की पटरी से एक ट्रेन धड़धड़ाती गुजर गई ।  इसी ट्रेन को गुजारने के लिए हमारी ट्रेन रोक दी गयी थी । अब हमारी ट्रेन भी रेंगने लगी थी , खिड़की में से खेत , ट्रेक्टर और बगुले पीछे छूटने लगे थे ।  मौलवी जी की बुदबुदाहट के साथ मेरे भाई के खर्राटे ताल मिलाने लगे ।  ट्रेन की रफ्तार के साथ खड़खड़ाहट भी तेज होने लगी ।  दूर क्षितिज में सूरज लाल चुनरियाँ फैलाये डूबने की तैयारी में था । ट्रेन की तेजी बढ़ गयी, मगर सूरज अपनी रफ्तार से था । पंछियों के झुंड अपने घोंसलों में लौटने लगे थे ,  जैसे इस ट्रेन में भी लोग त्यौहार के समय अपने अपने घर लौट रहे थे । ट्रेन अपनी रफ्तार में थी ।  नवयुवती खिड़की से बाहर देख रही थी, मौलवी जी अभी भी किताब में गड़े हुए थे, हम भी बोर होने लगे तो बैग से 'प्रतियोगिता दर्पण' निकाल कर पलटने लगे ।  देश-दुनिया की जानकारी में हम उलझने वाले थे, कि नवयुवती की आवाज आई ।
क्या आप मेरी खिड़की का कांच बन्द कर देंगे , मुझसे हो नही रहा ।
मैं अनमने भाव से उठा , खिड़की  का कांच बंद कर अपनी सीट पर लौट आया ।
दो बार मदद करने का कोई अहसान नही । खैर हमे क्या ? हम फिर देश-दुनिया की जानकारी में घुसने वाले थे , कि उधर से एक मधुर आवाज आई । थैंक यू ! 
मैंने  देश-दुनिया की जानकारी में से निकलकर देखा कि नवयुवती के अधरों पर मुस्कुराहट तैर रही है । मैंने भी औपचारिकता वश यॉर वेलकम कह दिया ।
मगर इस बार नवयुवती की आंखों में मुझे नमी सी दिखी, जिसने मुझे पुनः देश-दुनिया की जानकारी में उलझने नही दिया ।  खैर हिम्मत कर मैंने उससे पूछा - इलाहाबाद में आपका घर है ?
नही, इलाहाबाद में मेरी एक सहेली रहती है , उसी के पास जा रही हूँ ।
लेकिन लोग त्यौहार पर अपने घर जाते है, और आप सहेली के पास जा रही है !
मैं अपने घर से भाग रही हूं !
क्या ?
मेरे जोर से क्या बोलने पर मौलवी जी ने गर्दन ऊपर उठाई और मेरी तरफ देखा , फिर किताब में ही गड़ गए ।  मैं खिसक कर साइड बर्थ की तरफ आया ।
आप अपने घर से क्यों भाग रही हो ?
मैं आगे पढ़ना चाहती हूं, और मेरे घरवाले मेरी शादी करना चाहते है ।
तो आप अपने घरवालों को समझा सकती है , भागना कोई सही विकल्प नही है ।
मैं उन्हें समझा समझा कर हार गई हूं, इसलिए मैंने ये फैसला लिया ।
खिड़की के बाहर आसमान अंधेरे के गिरफ्त में आ चुका था ।
आपने ये फैसला बिल्कुल भी गलत लिया । आखिर  आपके घरवाले  भी तो सोच समझकर ये फैसला ले रहे होंगे।
मेरे पिता जी एक छोटी सी नौकरी करते है, और उन पर 4 बेटियों का बोझ है । मैं सबसे बड़ी बेटी हूँ । बेटे की चाह  में चार बेटियां हो गयी , अब किसी तरह से सबकी शादी करनी है ।  कहते है , रिटायरमेंट के पहले चारों की शादी निपटानी है ।
एक तरह से आपके पिता की सोच सही है , लेकिन आप इस तरह से घर से भागकर  अपने पिता की समस्या बढ़ा ही रही है । और लड़कियों को बोझ मानने की सोच को विस्तार दे रही है ।
तो मैं क्या करूँ ? मुझे अभी शादी नही करनी  , मुझे आगे  पढ़ना है ।
आप अपने पिता से एक बार फिर से बात कीजिये और उनसे अपने लिए 2 साल मांगिये , साथ ही हो सके तो  आप पढ़ाई के साथ कोई पार्ट टाइम जॉब भी कर लीजिए , जिससे उनकी आर्थिक मदद भी हो सके । आप अपने पिता का गर्व बनिये न कि शर्म
!  सोचिए गांधी जी के चार बेटे थे, उन्हें आज कोई भी नही जानता है , जबकि नेहरू जी की सिर्फ एक ही बेटी थी, जिसकी वजह आज भी लोग नेहरू जी को याद करते है ।
खिड़की के बाहर उजाला बढ़ने लगा था  । शायद कोई स्टेशन आने वाला है ।
मेरी बातों से वो युवती सहमत नजर आई । और जौनपुर स्टेशन पर गाड़ी रुकते ही , उसने अपना बैग उठाया । आप सही कह रहे । मेरे पापा मेरे लिए परेशान हो रहे होंगे । मैं वापस बनारस जा रही हूं । आपने मेरी आँखें खोल दी । धन्यवाद ....और वो जौनपुर स्टेशन पर उतर गई ।
मौलवी साहब भी अपनी बुदबुदाहट खत्म कर किताब में से उखड़े और स्टेशन की ओर रुखसत हुए । अब शोरगुल बढ़ने लगा , लोग डिब्बे में चढ़ने लगे । और मैं देश-दुनिया की जानकारी में उलझने की कोशिश करने लगा ।

orchha gatha

बेतवा की जुबानी : ओरछा की कहानी (भाग-1)

एक रात को मैं मध्य प्रदेश की गंगा कही जाने वाली पावन नदी बेतवा के तट पर ग्रेनाइट की चट्टानों पर बैठा हुआ. बेतवा की लहरों के एक तरफ महान ब...