शुक्रवार, 29 जून 2012

गंगा भले ही श्रेष्ठ हो मगर ज्येष्ठ है मैकलसुता !


अमरकंटक में नर्मदा  कुंड


नमस्कार मित्रो ,
 आज हम चर्चा करेंगे मध्य प्रदेश की जीवनरेखा कही जाने वाली एक अति महत्पूर्ण नदी "नर्मदा " की , जिसे पुराणों में रेवा के नाम से जाना गया है . भारत में बहने वाली लगभग सभी नदिया विवाहित मानी जाती है , जबकि सौमोदेवी - नर्मदा ही एक मात्र नदी है , जो अविवाहित है !   गंगा की उत्पत्ति की कथा तो आप सभी जानते होंगे , कि विष्णुपदी गंगा स्वर्ग से भागीरथ के प्रयास से पृथ्वी पर अवतरित  हुई . जबकि नर्मदा इसके पूर्व से ही भूलोक में विराजमान थी . अगर हम धार्मिक-पौराणिक संदर्भो से भी हटकर भूगर्भिक/ भौगोलिक प्रमाणों का सहारा ले तो हिमालय से निकलने वाली गंगा से नर्मदा प्राचीन प्रमाणित होती है
नर्मदा कुंड से नर्मदा का उद्गम
. जैसा  कि हमने भूगोल की किताबो में पढ़ा है , कि हिमालय एक नवीन वलित पर्वत है, जो प्लेट- विवर्तनिक प्रक्रिया के फलस्वरूप उत्पन्न हुआ है . अर्थात इसकी उत्पत्ति बहुत बाद में हुई है . इसके पूर्व यहाँ पर टेथिस सागर था , तो जाहिर है कि उससे निकलने वाली गंगा भी हिमालय के बाद ही उत्पन्न हुई होगी . जबकि भूगर्भिक साक्ष्य बताते है , कि अरावली , विंध्यांचल , सतपुड़ा और मैकल जैसी श्रेणिया अवशिष्ट पर्वतो का उदहारण है , जो कि हिमालय से बहुत पहले से मौजूद है .तो मैकल पर्वत की अमरकंटक चोटी (जिला  - अनुपपुर, मध्य प्रदेश) से निकलने वाली नर्मदा भी गंगा से बहुत प्राचीन है.
भेड़ाघाट (जबलपुर ) में संगमरमरी घाटी में नर्मदा   
नर्मदा के विवाह के सम्बन्ध में एक पौराणिक कथा मिलती  है - नर्मदा का विवाह सोनभद्र नाम के युवक से होने जा रहा था , तभी नर्मदा को पता चला कि सोनभद्र एक आदिवासी कन्या जोहिला से प्रेम करता है . तब नर्मदा क्रोधावेश में अमरकंटक से दक्षिण - पश्चिम दिशा की ओर नदी रूप में आगे बढ़ने लगी , नर्मदा को रोकने के लिए पंडित- नाई आदि पहाड़ो के रूप में खड़े हुए  , मगर नर्मदा सारी बाधाओ  को चीरकर आगे बढती  रही. इधर अमरकंटक में ही सोनभद्र नद का रूप लेकर उत्तर- पूर्व दिशा में आगे बढ़ा , जहाँ उसका मिलन जोहिला से हुआ . इस तरह भारत की सारी नदियों में नर्मदा ही अविवाहित है . और इसी कारण से नर्मदा का महत्त्व अन्य नदियों से ज्यादा है . नर्मदा ही भारत की एकमात्र नदी है , जिसकी परिक्रमा की जाती है . हर साल हजारो लोग नर्मदा  की पैदल परिक्रमा पूरी करते है .   
पूरी दुनिया में अमरकंटक ही ऐसा स्थल है , जहा से तीन नदियों (नर्मदा, सोन और जोहिला) का उद्गम हुआ है , और तीन विपरीत दिशाओ में बहती है .  
नर्मदा घाटी परियोजना के अंतर्गत नर्मदा  और उसकी सहायक नदियों पर 29 बड़े , १३५ मध्यम और 3000 छोटे बांध बनाये  जा रहे  है, जिसका विरोध नर्मदा बचाओ आन्दोलन (मेधा पाटकर ) जैसे संगठन कर रहे है.    
नर्मदा अपने उद्गम से 8 - 10 किमी ० बाद कपिलधारा एवं दुग्धधारा जलप्रपात बनाती  है, जबलपुर के पास भेड़ाघाट में नर्मदा मध्य प्रदेश का सबसे बड़ा जलप्रपात धूंआधार बनाती है . बडवाह के पास मान्धाता और दरदी नाम के दो जलप्रपात का निर्माण होता है . महेश्वर के निकट नर्मदा सहस्त्रधारा   जलप्रपात का निर्माण करती है .
ओम्कारेश्वर  में ॐ के आकार में नर्मदा का विहंगम दृश्य
नर्मदा मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले के अमरकंटक से निकल कर गुजरात में खम्भात की खाड़ी में मिलने तक 1312  किमी ० का सफ़र तय करती है , जिसमे सबसे ज्यादा मध्य प्रदेश में 1077  किमी ० प्रवाहित होती है . नर्मदा मध्य प्रदेश , महाराष्ट्र और गुजरात तीन राज्यों से बहती है . नर्मदा के बेसिन  का क्षेत्रफल 86,000  वर्ग किमी ० है . नर्मदा अनुपपुर , मंडला, डिंडोरी ,जबलपुर, नरसिंहपुर, होशंगाबाद , रायसेन , हरदा, खंडवा , खरगौन . धार, सीहोर  , देवास, बडवानी और अलीराजपुर जिलो से बहती है . 

गुजरात में सरदार सरोवर  बांध का सुन्दर दृश्य
 नर्मदा की सहायक नदियों के नाम भी बड़े दिलचस्प है . नर्मदा के दांये तट से मिलने वाली नदिया है - हिरन , तेंदोनी, बारना  , चन्द्र केशर , मान , हथिनी  आदि तो बांये तट से बंजर, दूधी  , शक्कर, तवा , गंजाल , छोटी तवा , कुण्डी देव, गोई आदि  


नमामि देवी नर्मदे


नर्मदा मैकल श्रेणी से निकल कर सतपुड़ा और विंध्यांचल पर्वत को विभाजित करती है . नर्मदा मध्य प्रदेश को भी दो भागो में बाँटती है नर्मदा के किनारे  बारह ज्योतिर्लिंगों  में से एक ओम्कारेश्वर स्थित है , जहाँ नर्मदा ॐ के आकार में बहती है  .नर्मदा के किनारे मांडू या मांडव नामक बहुत ही खूबसूरत पर्यटन स्थल है .गंगा जहाँ मनुष्यों के पापो को धोती है , तो नर्मदा जड़ वस्तुओ को भी देवत्व प्रदान करती है . तभी तो कवि शिव मंगल सिंह "सुमन " को लिखना पड़ा-
नर्मदा में   गिरा  जो कंकर 
 
                                                              हर- हर करता बना वो शंकर   !
तो कैसी लगी आप को नर्मदा की ये यात्रा .....जरुर बताना 
आपका अपना ही मुकेश पाण्डेय " चन्दन " 

























शुक्रवार, 22 जून 2012

गरुड़ : एक दैवीय पक्षी को जानिए

मित्रो नमस्कार ,
मैंने अपनी पक्षी श्रृंखला के अंतर्गत भारत में पाए जाने वाले कुछ जाने -पहचाने तो कुछ अनजाने से प्यारे- प्यारे पक्षियों के बारे में बताया था . मेरी ये श्रृंखला काफी लोकप्रिय भी हुई थी . जो लोग इसे पहले नही पढ़ पाए है , वे मेरे ब्लॉग पर 'पक्षी' या' पर्यावरण 'लेबल पर क्लिक करके पढ़ सकते है . आज फिर से मैं उसी श्रृंखला के आगे बढ़ाते हुए गरुड़ पक्षी पर कुछ जानकारी बटोर के लाया हूँ .उम्मीद है पसंद आएगी
गरुड़ को हम अक्सर भगवान विष्णु के वाहन के तौर पर  एक पौराणिक चरित्र के रूप में जानते है .एक पूरा पुराण ही गरुड़ को समर्पित है "गरुड़ पुराण " . कहा जाता है , कि गरुड़ पक्षीराज (पक्षियों का राजा ) है , और वो साँपों को खाता है . भगवान राम और लक्ष्मण को जब मेघनाथ ने नागपाश में बांध दिया था , तब हनुमान जी गरुड़ को लेकर आये थे , तब कहीं जाकर भगवान को मुक्ति मिली थी .महाभारत के अनुसार भगवान कृष्ण अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ गरुड़ पर बैठ कर नरकासुर को मारने गये  थे .एक अन्य कथानुसार गज और ग्राह की लड़ाई में ग्राह (मगर ) को मारने भगवान विष्णु गरुड़ पर ही बैठ कर गये थे . पंचतंत्र (बाईबल के बाद दुनिया  की दूसरी सबसे ज्यादा अनुवादित पुस्तक ) में भी गरुड़ की कई कहानिया है .

भगवान् विष्णु के वाहन के रूप में गरुड़
होयसल काल की एक गरुड़ प्रतिमा
 गरुड़ हिन्दू धर्म के साथ ही बौद्ध धर्म में भी लोकप्रिय है. बौद्ध ग्रंथो में गरुड़ को सुपर्ण (अच्छे पंख  वाला ) कहा गया है . जातक कथाओ में भी गरुड़ के बारे में कई कहानिया  है. भारत के इतिहास में स्वर्ण युग के रूप में जाना जाने वाले गुप्त शासको का प्रतीक चिन्ह गरुड़ ही था . कर्नाटक के होयसल  शासको का भी प्रतीक गरुड़ था .

थाईलैंड में गरुड़ का एक रूप
 
भारत के अलावा गरुड़ इंडोनेशिया ,  थाईलैंड और मंगोलिया आदि  में भी सांस्कृतिक प्रतीक के रूप में लोकप्रिय है .इंडोनेसिया का राष्ट्रिय प्रतीक गरुड़ है , वहां की राष्ट्रिय एयरलाईन का नाम भी गरुड़ है . इंडोनेसिया की सेनाये संयुक्त  राष्ट्र मिशन पर गरुड़ नाम से जाती है .थाईलैंड  का शाही  परिवार भी प्रतीक के रूप में गरुड़ का प्रयोग करता है . थाईलैंड के कई बौद्ध मंदिर में गरुड़ की मूर्तियाँ और चित्र बने है . मंगोलिया की राजधानी उलनबटोर का प्रतीक गरुड़ है , जिसे पर्वत का संरक्षक और ईमानदारी का प्रतीक मन गया है .  
हवा में उड़ता एक नर गरुड़ पक्षी
गरुड़  चील की ही एक प्रजाति है .इसकी आवाज़ मिमियाती हुई कीयु जैसी होती है.इसका रंग विशिष्ट तथा विरोधाभासी होता है जिसे सफ़ेद सर तथा छाती को छोड़ कर अखरोट के रंग से मिलता-जुलता माना जा सकता है, पंखों के किनारे काले होते हैं. किशोरों पक्षी अधिक भूरे होते हैं, परन्तु फिर भी इन्हें पीलेपन, छोटे पंखों तथा गोलाकार पूंछ के कारण एशिया में गरुड़  की प्रवासी तथा अप्रवासी प्रजातियों से अलग पहचाना जा सकता है. पंख के नीचे की तरफ कलाई के क्षेत्र में पीला धब्बा वर्ग के आकर में होता है तथा ब्यूटियो गिद्धों से अलग दिखता है.
गरुड़  को श्रीलंका, भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश तथा दक्षिण-पूर्व एशिया में देखा जाना आम था , साथ ही यह दक्षिण में न्यू साउथ वेल्सऑस्ट्रेलिया तक में यह व्यापक रूप से फैली तथा रहता था . अपने क्षेत्र में मौसम के अनुसार, जो कि विशेष रूप से वर्षा से सम्बंधित है, वे स्थान परिवर्तन करती हैं.
वे मुख्य रूप से मैदानों में दिखते  हैं, परन्तु हिमालय में 5000 फीट ऊंचाई तक भी आते  हैं.
खतरे में आ गयी प्रजातियों की आईयूसीएन की रेड लिस्ट में उनका मूल्यांकन सबसे कम चिंताजनक प्रजाति के रूप में किया गया है. हालांकि जावा के रूप में कुछ भागों यह प्रजाति कम हो रही है
                                  दक्षिण एशिया में प्रजनन का मौसम अप्रैल से दिसंबर है. दक्षिणी और पूर्वी ऑस्ट्रेलिया में यह अगस्त से अक्तूबर तक तथा उत्तर व पश्चिम में अप्रैल से जून तक होता है. घोंसले छोटी शाखाओं एवं तीलियों से बनाये जाते हैं तथा इनके अंडे प्यालेनुमा आकार का निर्माण होता है, इसे पत्तियों से भी आरामदेह बनाया जाता है, कई प्रकार के पेड़ों पर इसे बनाते देखा गया है, मुख्य रूप से मैनग्रोव पर. वे एक ही क्षेत्र में कई वर्षों तक घोंसले बना कर उस स्थल के प्रति निष्ठा दिखाते हैं. कुछ दुर्लभ उदाहरणों में उन्हें पेड़ के नीचे जमीन पर घोंसला बनाते देखा गया है. एक बार में दो फीके-सफेद या नीले-सफेद अंडाकार अंडे जिनकी माप लगभग 52x41 मिमी होती है, दिए जाते हैं. माता-पिता दोनों ही घोंसला बनाने तथा बच्चों को खिलाने में भाग लेते हैं, परन्तु ऐसा देखा गया है कि अण्डों को सिर्फ मादा ही सेती है. अंडे 26-27 दिनों तक सेये जाते हैं.
ये मुख्यतः मुर्दाखोर पक्षी है , लेकिन कभी-कभी सांप , खरगोश , चूहा और चमगादड़ का शिकार भी कर लेते है. मित्रो हमारी ये सांस्कृतिक पहचान और भगवान विष्णु का वाहन तेजी से विलुप्त हो रहा है , कारण वही हम मनुष्यों का कृषि हेतु कीटनाशको का प्रयोग , इनके आवासों का नष्ट होना , पर्यावरण प्रदुषण ..........!
हे प्रभु ! हम तो नासमझ है , आप जरुर अपने वाहन की रक्षा करना ............... 
साभार - गूगल , विकिपीडिया

बुधवार, 20 जून 2012

अपने को बौना पाता हूँ


इन लम्बे -लम्बे दरख्तों के बीच अपने को  बौना पाता हूँ 
इन जिंदगियों  की खरीद-फरोख्त के बीच , अपने को खिलौना पाता हूँ
कुछ हसीं चेहरों में न जाने क्यों खौफ  नज़र आता  है 
फैशन के नाम पर बदन  पर बस चिथड़ा नज़र आता है 
दर्दनाक चीखो में अपनी मुस्कान भी छीन गयी 
मौत के सौदागरों के बीच जिन्दगी  कहाँ गुम गयी 
पत्थर की इन दीवारों में, अपने लिए छोटा कोना पाता हूँ  
इन जिंदगियों  की खरीद-फरोख्त के बीच , अपने को खिलौना पाता हूँ  
हर तरफ छाई भीड़ पर तन्हाई ही दिखती  है 
पैसे हो गर जेब में , तो यहाँ हर चीज बिकती   है 
खो गये है हर रिश्ते-नाते , खो गया है अपनापन 
बस गयी है मतलब की दुनिया , मतलबी है हर मन 
यहीं रईसों के ठहाके , तो यहीं गरीबो की आँखों में रोना पाता हूँ 
इन जिंदगियों  की खरीद-फरोख्त के बीच , अपने को खिलौना पाता हूँ 
 

रविवार, 17 जून 2012

कुम्भकार सा कच्चे घड़े को , बाहर से चोट  , भीतर सहारा 
ऊपर से डांट-डपटते, पर दिल में था प्यार कितना सारा 
तब डांट बुरी लगती थी, पर मतलब आज समझ आया 
हर डांट के पीछे एक संदेसा, एक भरोसा था समाया 
सचमुच पिता हमेशा बाहर से कठोर, रहे भीतर से कोमल 
अगर हो जाते बाहर से  भी कोमल , तो कैसे बनाते हमें निर्मल 
बचपन में उनकी डांट -डपट , लगती थी जो बकबक 
आज समझ में आया , कि उनमे था कितना सबक

बुधवार, 13 जून 2012

एक अकेला पेड़ !

सोया  पेड़ के नीचे एक थका राही
तभी कहीं से एक दर्द भरी आवाज़ कराही
नींद खुली राही की , देखा चारो तरफ सुनसान 
एक अकेला पेड़ था, बाकि इलाका था वीरान 
क्या देख रहे हो तुम , अचरज होके आसपास 
मैं अकेला पेड़ बचा, बाकी का इंसानों ने किया नाश 
थी यहाँ भी हरियाली  , थे अनेक पशु और पक्षी 
सबका नाश किया मानव ने, बनके पर्यावरण भक्षी 
असहाय बनके खड़ा रहा , देखता रहा सहोदरों का नाश
मेरी बांहों को भी काट दिया, है अंतिम क्षण की आस 
क्या शत्रुता थी इन मनवो से, सदा  ही उनका कल्याण किया 
मीठे-मीठे फल  दिए उनको, और ऑक्सीजन  सा प्राण दिया   
पर वो हमारा मोल समझ न सका अब तक 
यूँ ही अपने पैरो पर कुल्हाड़ी मारेगा  कब तक
        

सोमवार, 11 जून 2012

ताज महल नहीं तेजोमहल, मकबरा नहीं शिवमन्दिर ।।

ताज महल नहीं तेजोमहल, मकबरा नहीं शिवमन्दिर ।।

बी.बी.सी. कहता है...........
ताजमहल...........
एक छुपा हुआ सत्य..........
कभी मत कहो कि.........
यह एक मकबरा है..........

प्रो.पी. एन. ओक. को छोड़ कर किसी ने कभी भी इस कथन को चुनौती नही दी कि........

"ताजमहल शाहजहाँ ने बनवाया था"

प्रो.ओक. अपनी पुस्तक "TAJ MAHAL - THE TRUE STORY" द्वारा इस

बात में विश्वास रखते हैं कि,--

सारा विश्व इस धोखे में है कि खूबसूरत इमारत ताजमहल को मुग़ल बादशाह
शाहजहाँ ने बनवाया था.....

ओक कहते हैं कि......

ताजमहल प्रारम्भ से ही बेगम मुमताज का मकबरा न होकर,एक हिंदू प्राचीन शिव
मन्दिर है जिसे तब तेजो महालय कहा जाता था.

अपने अनुसंधान के दौरान ओक ने खोजा कि इस शिव मन्दिर को शाहजहाँ ने जयपुर
के महाराज जयसिंह से अवैध तरीके से छीन लिया था और इस पर अपना कब्ज़ा कर
लिया था,,

=> शाहजहाँ के दरबारी लेखक "मुल्ला अब्दुल हमीद लाहौरी "ने अपने
"बादशाहनामा" में मुग़ल शासक बादशाह का सम्पूर्ण वृतांत 1000 से ज़्यादा
पृष्ठों मे लिखा है,,जिसके खंड एक के पृष्ठ 402 और 403 पर इस बात का
उल्लेख है कि, शाहजहाँ की बेगम मुमताज-उल-ज़मानी जिसे मृत्यु के बाद,
बुरहानपुर मध्य प्रदेश में अस्थाई तौर पर दफना दिया गया था और इसके ०६
माह बाद,तारीख़ 15 ज़मदी-उल- अउवल दिन शुक्रवार,को अकबराबाद आगरा लाया
गया फ़िर उसे महाराजा जयसिंह से लिए गए,आगरा में स्थित एक असाधारण रूप से
सुंदर और शानदार भवन (इमारते आलीशान) मे पुनः दफनाया गया,लाहौरी के
अनुसार राजा जयसिंह अपने पुरखों कि इस आली मंजिल से बेहद प्यार करते थे
,पर बादशाह के दबाव मे वह इसे देने के लिए तैयार हो गए थे.

इस बात कि पुष्टि के लिए यहाँ ये बताना अत्यन्त आवश्यक है कि जयपुर के
पूर्व महाराज के गुप्त संग्रह में वे दोनो आदेश अभी तक रक्खे हुए हैं जो
शाहजहाँ द्वारा ताज भवन समर्पित करने के लिए राजा
जयसिंह को दिए गए थे.......

=> यह सभी जानते हैं कि मुस्लिम शासकों के समय प्रायः मृत दरबारियों और
राजघरानों के लोगों को दफनाने के लिए, छीनकर कब्जे में लिए गए मंदिरों और
भवनों का प्रयोग किया जाता था ,

उदाहरनार्थ हुमायूँ, अकबर, एतमाउददौला और सफदर जंग ऐसे ही भवनों मे
दफनाये गए हैं ....

=> प्रो. ओक कि खोज ताजमहल के नाम से प्रारम्भ होती है---------

=> "महल" शब्द, अफगानिस्तान से लेकर अल्जीरिया तक किसी भी मुस्लिम देश में
भवनों के लिए प्रयोग नही किया जाता...

यहाँ यह व्याख्या करना कि महल शब्द मुमताज महल से लिया गया है......वह कम
से कम दो प्रकार से तर्कहीन है---------

पहला -----शाहजहाँ कि पत्नी का नाम मुमताज महल कभी नही था,,,बल्कि उसका
नाम मुमताज-उल-ज़मानी था ...

और दूसरा-----किसी भवन का नामकरण किसी महिला के नाम के आधार पर रखने के
लिए केवल अन्तिम आधे भाग (ताज)का ही प्रयोग किया जाए और प्रथम अर्ध भाग
(मुम) को छोड़ दिया जाए,,,यह समझ से परे है...

प्रो.ओक दावा करते हैं कि,ताजमहल नाम तेजो महालय (भगवान शिव का महल) का
बिगड़ा हुआ संस्करण है, साथ ही साथ ओक कहते हैं कि----

मुमताज और शाहजहाँ कि प्रेम कहानी,चापलूस इतिहासकारों की भयंकर भूल और
लापरवाह पुरातत्वविदों की सफ़ाई से स्वयं गढ़ी गई कोरी अफवाह मात्र है
क्योंकि शाहजहाँ के समय का कम से कम एक शासकीय अभिलेख इस प्रेम कहानी की
पुष्टि नही करता है.....

इसके अतिरिक्त बहुत से प्रमाण ओक के कथन का प्रत्यक्षतः समर्थन कर रहे हैं......
तेजो महालय (ताजमहल) मुग़ल बादशाह के युग से पहले बना था और यह भगवान्
शिव को समर्पित था तथा आगरा के राजपूतों द्वारा पूजा जाता था-----

==> न्यूयार्क के पुरातत्वविद प्रो. मर्विन मिलर ने ताज के यमुना की तरफ़
के दरवाजे की लकड़ी की कार्बन डेटिंग के आधार पर 1985 में यह सिद्ध किया
कि यह दरवाजा सन् 1359 के आसपास अर्थात् शाहजहाँ के काल से लगभग 300 वर्ष
पुराना है...

==> मुमताज कि मृत्यु जिस वर्ष (1631) में हुई थी उसी वर्ष के अंग्रेज
भ्रमण कर्ता पीटर मुंडी का लेख भी इसका समर्थन करता है कि ताजमहल मुग़ल
बादशाह के पहले का एक अति महत्वपूर्ण भवन था......

==>यूरोपियन यात्री जॉन अल्बर्ट मैनडेल्स्लो ने सन् 1638 (मुमताज कि
मृत्यु के 07 साल बाद) में आगरा भ्रमण किया और इस शहर के सम्पूर्ण जीवन
वृत्तांत का वर्णन किया,,परन्तु उसने ताज के बनने का कोई भी सन्दर्भ नही
प्रस्तुत किया,जबकि भ्रांतियों मे यह कहा जाता है कि ताज का निर्माण
कार्य 1631 से 1651 तक जोर शोर से चल रहा था......

==> फ्रांसीसी यात्री फविक्स बर्निअर एम.डी. जो औरंगजेब द्वारा गद्दीनशीन
होने के समय भारत आया था और लगभग दस साल यहाँ रहा,के लिखित विवरण से पता
चलता है कि,औरंगजेब के शासन के समय यह झूठ फैलाया जाना शुरू किया गया कि
ताजमहल शाहजहाँ ने बनवाया था.......

प्रो. ओक. बहुत सी आकृतियों और शिल्प सम्बन्धी असंगताओं को इंगित करते
हैं जो इस विश्वास का समर्थन करते हैं कि,ताजमहल विशाल मकबरा न होकर
विशेषतः हिंदू शिव मन्दिर है.......

आज भी ताजमहल के बहुत से कमरे शाहजहाँ के काल से बंद पड़े हैं,जो आम जनता
की पहुँच से परे हैं

प्रो. ओक., जोर देकर कहते हैं कि हिंदू मंदिरों में ही पूजा एवं धार्मिक
संस्कारों के लिए भगवान् शिव की मूर्ति,त्रिशूल,कलश और ॐ आदि वस्तुएं
प्रयोग की जाती हैं.......

==> ताज महल के सम्बन्ध में यह आम किवदंत्ती प्रचलित है कि ताजमहल के
अन्दर मुमताज की कब्र पर सदैव बूँद बूँद कर पानी टपकता रहता है,, यदि यह
सत्य है तो पूरे विश्व मे किसी किभी कब्र पर बूँद बूँद कर पानी नही
टपकाया जाता,जबकि
प्रत्येक हिंदू शिव मन्दिर में ही शिवलिंग पर बूँद बूँद कर पानी टपकाने की
व्यवस्था की जाती है,फ़िर ताजमहल (मकबरे) में बूँद बूँद कर पानी टपकाने का क्या
मतलब....????

==> राजनीतिक भर्त्सना के डर से इंदिरा सरकार ने ओक की सभी पुस्तकें स्टोर्स से
वापस ले लीं थीं और इन पुस्तकों के प्रथम संस्करण को छापने वाले संपादकों को
भयंकर परिणाम भुगत लेने की धमकियां भी दी गईं थीं....

==> प्रो. पी. एन. ओक के अनुसंधान को ग़लत या सिद्ध करने का केवल एक ही रास्ता है
कि वर्तमान केन्द्र सरकार बंद कमरों को संयुक्त राष्ट्र के पर्यवेक्षण में
खुलवाए, और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों को छानबीन करने दे ....

ज़रा सोचिये....!!!!!!

कि यदि ओक का अनुसंधान पूर्णतयः सत्य है तो किसी देशी राजा के बनवाए गए
संगमरमरी आकर्षण वाले खूबसूरत, शानदार एवं विश्व के महान आश्चर्यों में से
एक भवन, "तेजो महालय" को बनवाने का श्रेय बाहर से आए मुग़ल बादशाह शाहजहाँ
को क्यों......?????

तथा......

इससे जुड़ी तमाम यादों का सम्बन्ध मुमताज-उल-ज़मानी से क्यों........???????

""""आंसू टपक रहे हैं, हवेली के बाम से.......

रूहें लिपट के रोटी हैं हर खासों आम से.......

अपनों ने बुना था हमें, कुदरत के काम से......

फ़िर भी यहाँ जिंदा हैं हम गैरों के नाम से......"""""

*फेसबुक से साभार 

शनिवार, 9 जून 2012

प्रशासन की मजबूरियां और विकास की बढती दूरियां !


नमस्कार मित्रो ,
अक्सर हम नौकरशाहों को दोष देते है , कि वे अपने सी कमरों में आराम से बैठे रहते रहते और आम जनता परेशान होती है . कल मुझे इसका अलग नजारा देखने मिला . मैं अपने मित्र डॉ. चन्द्र प्रकाश पटेल को डिप्टी कलेक्टर के रूप में जोइनिंग करने दमोह (मध्य प्रदेश ) कलेक्ट्रेट  पंहुचा . वहां  के कलेक्टर श्री स्वतन्त्र कुमार सिंह का व्यवहार काफी अच्छा लगा . स्टाफ का व्यव्हार भी सहयोगी  रहा (हालाँकि ये नए डिप्टी कलेक्टर के साथ जाने के कारण भी हो सकता है ). लेकिन उसके बाद मुझे एक आश्चर्य जनक बात पता चली , कि नए डिप्टी कलेक्टर साहब को बिना गाड़ी के काम चलाना होगा  .और तो और कुछ दिन पहले अपर कलेक्टर साहब तो अपने बंगले से गाड़ी के आभाव में पैदल ही कार्यालय आते थे . पिछले १० सालो से दमोह जिले में अधिकारियो के लिए कोई नया वाहन नही ख़रीदा गये  है . जो दस साल पहले ख़रीदे गये थे , वो भी अब खटारा हो गये है
                                              मेरे मित्र डॉ. पटेल , डिप्टी कलेक्टर  जो कि मकान आवंटित होने तक सागर से ट्रेन से आयेंगे जायेंगे . अब सोचिये एक डिप्टी कलेक्टर रेलवे स्टेशन से ऑटो  में बैठ कर कलेक्ट्रेट  जायेगा ! हम मित्रो ने मजाक में ही पटेल साब को सलाह दी , कि वो अपने साथ अपनी डिप्टी कलेक्टर की नेम प्लेट और एक पीली बत्ती (डिप्टी कलेक्टर को मिलने वाली ) हमेशा रखे . जब ऑटो -रिक्शा में बैठे तो आगे डिप्टी कलेक्टर की  नेम प्लेट और ऊपर पीली बत्ती लगाले.
मित्रो यह इस पोस्ट को लिखने का उद्देश्य अधिकारियो को अधिक सुविधाए देने का नही है , बल्कि हमारी व्यवस्था की कमियों पर चर्चा  करना हैएक ओर जहाँ हमारे जन प्रतिनिधियों को तुरंत सारी सुविधाए मिल जाती है , वही प्रशासन  की रीढ़ अधिकारी-कर्मचारियों को आधारभूत सुविधाए भी नही मिल पाती है .ऐसी ही कई विडंबनाओ के साथ अधिकारी -कर्मचारियों को अच्छे कार्य करने की नसीहत दी जाती है . ऊपर से रोज राजनीतिज्ञों हा रोज हर काम में हस्तक्षेप होता है ( जो कि हमेशा मौखिक होता है ,ताकि काम बिगड़ने पर अधिकारी-कर्मचारी ही फंसे ). कुछ समय पहले मैं जब बिहार लोक सेवा आयोग की मुख्य परीक्षा की तैयारी पटना में रहकर कर रहा था , तो आये दिन अंचल विकास पदाधिकारी (बी डी ) के पीटने की खबर अखबारों में छपती थी . मेरी समझ में नही आता था , कि कारन क्या है ? क्या बिहार के सभी अधिकारी बेकार है( ये सभी बहुत कठिन प्रतियोगी परीक्षा को पास करके आते है ) , या यहाँ कि जनता ज्यादा उग्र है !( चूँकि मैं भी मूलतः बिहार से हूँ , और पता है बिहारी बड़े विनम्र  होते है , जब तक छेड़ा जाये .आम आदमी के पास रोजी रोटी की चिंता रहती  है . वह उग्र अति होने पर या किसी के भड़काने पर ही होता है ) फिर  पता चला कि बिहार में बहुत समय (लालू के राज में )से लोक सेवा आयोग की भर्ती ही नही हुई , जिससे अधिकारियो की बहुत ही ज्यादा कमी  है , और एक-एक  अधिकारी  से क्षमता  अधिक कार्य लिया  जा रहा है ,संसाधनों की भी कमी है . जिसका परिणाम आम लोगो के जरुरी कार्यो में भी देरी हो रही है . और बी डी साहब लोग पिट रहे है. कहने का मतलब ये है , कि आज भी पुरे देश में हर विभाग में अधिकारी - कर्मचारियों (पुलिस और न्याय विभाग सहित ) कि बहुत अधिक कमी है . और यही कारण है कि देश में भ्रष्टाचार धड़ल्ले से बढ़ रहा है, क्योंकि सक्षम लोग अपना काम जल्दी से करवाने के लिए पैसे लिए खड़े रहते है . और आम आदमी मज़बूरी में आपनी बाँट जोहता है .
    अगर केंद्र और राज्य सरकारे आवश्यकता  अनुसार समय- समय पर खली पदों को भरती  रहे तो  अधिकारियो पर से काम का बोझ हटेगा , कार्यो में गति आएगी साथ ही भ्रष्टाचार भी कम होगा (क्योंकि पूरी तरह से समाप्त तो कभी नही हो सकता है ). ईश्वर करे हमारी विधायिका में बैठे  लोगो को सद्बुद्धि आये ताकि कार्यपालिका  की क्षमता बढे और देश आगे तरक्की करे और हम आप चैन की साँस ले .
इसी आशा के साथ  .............राम राम
 

orchha gatha

बेतवा की जुबानी : ओरछा की कहानी (भाग-1)

एक रात को मैं मध्य प्रदेश की गंगा कही जाने वाली पावन नदी बेतवा के तट पर ग्रेनाइट की चट्टानों पर बैठा हुआ. बेतवा की लहरों के एक तरफ महान ब...