सोया पेड़ के नीचे एक थका राही
तभी कहीं से एक दर्द भरी आवाज़ कराही
नींद खुली राही की , देखा चारो तरफ सुनसान
एक अकेला पेड़ था, बाकि इलाका था वीरान
क्या देख रहे हो तुम , अचरज होके आसपास
मैं अकेला पेड़ बचा, बाकी का इंसानों ने किया नाश
थी यहाँ भी हरियाली , थे अनेक पशु और पक्षी
सबका नाश किया मानव ने, बनके पर्यावरण भक्षी
असहाय बनके खड़ा रहा , देखता रहा सहोदरों का नाश
मेरी बांहों को भी काट दिया, है अंतिम क्षण की आस
क्या शत्रुता थी इन मनवो से, सदा ही उनका कल्याण किया
मीठे-मीठे फल दिए उनको, और ऑक्सीजन सा प्राण दिया
पर वो हमारा मोल समझ न सका अब तक
यूँ ही अपने पैरो पर कुल्हाड़ी मारेगा कब तक
बढ़िया है...........
जवाब देंहटाएंati sunder hai.
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार !
हटाएंपर्यावरण की चिंता सबको करनी चाहिए।
जवाब देंहटाएंपर सब करते कहाँ है ?
हटाएंबहुत बहुत आभार !
बहुत सुन्दर....
जवाब देंहटाएंसार्थक भावाव्यक्ति......
अनु
n jane ye manav is pukar ko kab tak ansuna karta rahega.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार !
हटाएंबहुत ही बढिया।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार !
हटाएंबहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंबेहद ख़ूबसूरत ...बहुत खूब !
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