इन लम्बे -लम्बे दरख्तों के बीच अपने को बौना पाता हूँ
इन जिंदगियों की खरीद-फरोख्त के बीच , अपने को खिलौना पाता हूँ
कुछ हसीं चेहरों में न जाने क्यों खौफ नज़र आता है
फैशन के नाम पर बदन पर बस चिथड़ा नज़र आता है
दर्दनाक चीखो में अपनी मुस्कान भी छीन गयी
मौत के सौदागरों के बीच जिन्दगी कहाँ गुम गयी
पत्थर की इन दीवारों में, अपने लिए छोटा कोना पाता हूँ
इन जिंदगियों की खरीद-फरोख्त के बीच , अपने को खिलौना पाता हूँ
हर तरफ छाई भीड़ पर तन्हाई ही दिखती है
पैसे हो गर जेब में , तो यहाँ हर चीज बिकती है
खो गये है हर रिश्ते-नाते , खो गया है अपनापन
बस गयी है मतलब की दुनिया , मतलबी है हर मन
यहीं रईसों के ठहाके , तो यहीं गरीबो की आँखों में रोना पाता हूँ
इन जिंदगियों की खरीद-फरोख्त के बीच , अपने को खिलौना पाता हूँ
मन के भावों की सुंदर प्रस्तुति ,,,
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST:...काव्यान्जलि ...: यह स्वर्ण पंछी था कभी...
खो गये है हर रिश्ते-नाते , खो गया है अपनापन
जवाब देंहटाएंबस गयी है मतलब की दुनिया , मतलबी है हर मन ..
मन के भावों को प्रभावी तरह से प्रस्तुत किया है ... लाजवाब रचना है ...
सशक्त लेखन के साथ उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ... आभार ।
जवाब देंहटाएंहृदय स्पर्शी । सुंदर रचना।
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