शुक्रवार, 22 जून 2012

गरुड़ : एक दैवीय पक्षी को जानिए

मित्रो नमस्कार ,
मैंने अपनी पक्षी श्रृंखला के अंतर्गत भारत में पाए जाने वाले कुछ जाने -पहचाने तो कुछ अनजाने से प्यारे- प्यारे पक्षियों के बारे में बताया था . मेरी ये श्रृंखला काफी लोकप्रिय भी हुई थी . जो लोग इसे पहले नही पढ़ पाए है , वे मेरे ब्लॉग पर 'पक्षी' या' पर्यावरण 'लेबल पर क्लिक करके पढ़ सकते है . आज फिर से मैं उसी श्रृंखला के आगे बढ़ाते हुए गरुड़ पक्षी पर कुछ जानकारी बटोर के लाया हूँ .उम्मीद है पसंद आएगी
गरुड़ को हम अक्सर भगवान विष्णु के वाहन के तौर पर  एक पौराणिक चरित्र के रूप में जानते है .एक पूरा पुराण ही गरुड़ को समर्पित है "गरुड़ पुराण " . कहा जाता है , कि गरुड़ पक्षीराज (पक्षियों का राजा ) है , और वो साँपों को खाता है . भगवान राम और लक्ष्मण को जब मेघनाथ ने नागपाश में बांध दिया था , तब हनुमान जी गरुड़ को लेकर आये थे , तब कहीं जाकर भगवान को मुक्ति मिली थी .महाभारत के अनुसार भगवान कृष्ण अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ गरुड़ पर बैठ कर नरकासुर को मारने गये  थे .एक अन्य कथानुसार गज और ग्राह की लड़ाई में ग्राह (मगर ) को मारने भगवान विष्णु गरुड़ पर ही बैठ कर गये थे . पंचतंत्र (बाईबल के बाद दुनिया  की दूसरी सबसे ज्यादा अनुवादित पुस्तक ) में भी गरुड़ की कई कहानिया है .

भगवान् विष्णु के वाहन के रूप में गरुड़
होयसल काल की एक गरुड़ प्रतिमा
 गरुड़ हिन्दू धर्म के साथ ही बौद्ध धर्म में भी लोकप्रिय है. बौद्ध ग्रंथो में गरुड़ को सुपर्ण (अच्छे पंख  वाला ) कहा गया है . जातक कथाओ में भी गरुड़ के बारे में कई कहानिया  है. भारत के इतिहास में स्वर्ण युग के रूप में जाना जाने वाले गुप्त शासको का प्रतीक चिन्ह गरुड़ ही था . कर्नाटक के होयसल  शासको का भी प्रतीक गरुड़ था .

थाईलैंड में गरुड़ का एक रूप
 
भारत के अलावा गरुड़ इंडोनेशिया ,  थाईलैंड और मंगोलिया आदि  में भी सांस्कृतिक प्रतीक के रूप में लोकप्रिय है .इंडोनेसिया का राष्ट्रिय प्रतीक गरुड़ है , वहां की राष्ट्रिय एयरलाईन का नाम भी गरुड़ है . इंडोनेसिया की सेनाये संयुक्त  राष्ट्र मिशन पर गरुड़ नाम से जाती है .थाईलैंड  का शाही  परिवार भी प्रतीक के रूप में गरुड़ का प्रयोग करता है . थाईलैंड के कई बौद्ध मंदिर में गरुड़ की मूर्तियाँ और चित्र बने है . मंगोलिया की राजधानी उलनबटोर का प्रतीक गरुड़ है , जिसे पर्वत का संरक्षक और ईमानदारी का प्रतीक मन गया है .  
हवा में उड़ता एक नर गरुड़ पक्षी
गरुड़  चील की ही एक प्रजाति है .इसकी आवाज़ मिमियाती हुई कीयु जैसी होती है.इसका रंग विशिष्ट तथा विरोधाभासी होता है जिसे सफ़ेद सर तथा छाती को छोड़ कर अखरोट के रंग से मिलता-जुलता माना जा सकता है, पंखों के किनारे काले होते हैं. किशोरों पक्षी अधिक भूरे होते हैं, परन्तु फिर भी इन्हें पीलेपन, छोटे पंखों तथा गोलाकार पूंछ के कारण एशिया में गरुड़  की प्रवासी तथा अप्रवासी प्रजातियों से अलग पहचाना जा सकता है. पंख के नीचे की तरफ कलाई के क्षेत्र में पीला धब्बा वर्ग के आकर में होता है तथा ब्यूटियो गिद्धों से अलग दिखता है.
गरुड़  को श्रीलंका, भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश तथा दक्षिण-पूर्व एशिया में देखा जाना आम था , साथ ही यह दक्षिण में न्यू साउथ वेल्सऑस्ट्रेलिया तक में यह व्यापक रूप से फैली तथा रहता था . अपने क्षेत्र में मौसम के अनुसार, जो कि विशेष रूप से वर्षा से सम्बंधित है, वे स्थान परिवर्तन करती हैं.
वे मुख्य रूप से मैदानों में दिखते  हैं, परन्तु हिमालय में 5000 फीट ऊंचाई तक भी आते  हैं.
खतरे में आ गयी प्रजातियों की आईयूसीएन की रेड लिस्ट में उनका मूल्यांकन सबसे कम चिंताजनक प्रजाति के रूप में किया गया है. हालांकि जावा के रूप में कुछ भागों यह प्रजाति कम हो रही है
                                  दक्षिण एशिया में प्रजनन का मौसम अप्रैल से दिसंबर है. दक्षिणी और पूर्वी ऑस्ट्रेलिया में यह अगस्त से अक्तूबर तक तथा उत्तर व पश्चिम में अप्रैल से जून तक होता है. घोंसले छोटी शाखाओं एवं तीलियों से बनाये जाते हैं तथा इनके अंडे प्यालेनुमा आकार का निर्माण होता है, इसे पत्तियों से भी आरामदेह बनाया जाता है, कई प्रकार के पेड़ों पर इसे बनाते देखा गया है, मुख्य रूप से मैनग्रोव पर. वे एक ही क्षेत्र में कई वर्षों तक घोंसले बना कर उस स्थल के प्रति निष्ठा दिखाते हैं. कुछ दुर्लभ उदाहरणों में उन्हें पेड़ के नीचे जमीन पर घोंसला बनाते देखा गया है. एक बार में दो फीके-सफेद या नीले-सफेद अंडाकार अंडे जिनकी माप लगभग 52x41 मिमी होती है, दिए जाते हैं. माता-पिता दोनों ही घोंसला बनाने तथा बच्चों को खिलाने में भाग लेते हैं, परन्तु ऐसा देखा गया है कि अण्डों को सिर्फ मादा ही सेती है. अंडे 26-27 दिनों तक सेये जाते हैं.
ये मुख्यतः मुर्दाखोर पक्षी है , लेकिन कभी-कभी सांप , खरगोश , चूहा और चमगादड़ का शिकार भी कर लेते है. मित्रो हमारी ये सांस्कृतिक पहचान और भगवान विष्णु का वाहन तेजी से विलुप्त हो रहा है , कारण वही हम मनुष्यों का कृषि हेतु कीटनाशको का प्रयोग , इनके आवासों का नष्ट होना , पर्यावरण प्रदुषण ..........!
हे प्रभु ! हम तो नासमझ है , आप जरुर अपने वाहन की रक्षा करना ............... 
साभार - गूगल , विकिपीडिया

6 टिप्‍पणियां:

  1. हमारी टिप्पणियों पर फिर स्पाम का हमला हो रहा है....
    चेक करें प्लीस...

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  2. बहुत अच्छी सारगर्भित जानकारी .....

    जवाब देंहटाएं
  3. गरुण के बारे में काफी कुछ जानकारी दी है ...

    जवाब देंहटाएं

ab apki baari hai, kuchh kahne ki ...

orchha gatha

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