बुधवार, 15 जुलाई 2009

चुपके-चुपके भाग -१

चुपके-चुपके-१
गली से गुजरा तुम्हारी, मैं एक शाम चुपके-चुपके
दिल को बैचैन कर गई, तुम्हारी मुस्कान चुपके-चुपके
तुम्हारी मुस्कुराहटों ने घायल कर दिया, इस संगदिल को
बना लो हमे अपना सनम , होगा तुम्हारा एहसान चुपके-चुपके
कब तुम ओगी, है इंतजार इस दिल-ऐ-महफ़िल को
पलके बिछाए खड़े है हम, बन जाओ मेरे मेहमान चुपके-चुपके
आंखे थकने न पाए ,कुछ तो तरस आए मेरी मंजिल को
बता दो कि कब पुरा करोगी , मेरा ये अरमान चुपके-चुपके
राह-ऐ-मोहब्बत के सफर में बन जाओ हमसफ़र तुम
बनके हमदम ,हम दे देंगे तुम्हारी खातिर जान चुपके-चुपके
जिन्दगी में मेरी आकर दे देना एक डगर तुम
बाकि न रहेगा कुछ जिन्दगी में ,होगा एक मुकाम चुपके-चुपके
हालत क्या है हमारे, डाल देना एक नज़र तुम
इंतज़ार तेरी खुशबू का इस "चंदन" को, महकेगा सारा जहाँ चुपके-चुपके
इस रचन में आपने एक लड़के की ख्वाहिश और गुजारिश देखि है , मगर उसकी प्रेमिका का जबाब भी उसे बड़े जोरदार तरीके से मिलता है। प्रेमिका का जबाब मैं आपको अगली पोस्ट में इस शर्त में लिखूंगा की ये रचना आपको पसंद आई इसका प्रमाण आपकी टिप्पणियों से जरुर मिलेगा , इसी आशा के साथ आपका हर बार की तरह स्नेहिल मुकेश पाण्डेय "चंदन"

2 टिप्‍पणियां:

ab apki baari hai, kuchh kahne ki ...

orchha gatha

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