क्या कहे जिंदगी भटकी या फिर संभल गयी है
पहले जिंदगी ही चलती रही थी जा रही थी
पर अब तुमसे , मिलने जिन्दगी ठहर गयी है
धड़कने धड़कती है , बस तुम्हारे लिए ही
और सांसें , तो बस तुम्हारे लिए मचल गयी है
जिन्दगी की , रह की मंजिल हो गयी हो तुम
अब तो इस महकते 'चन्दन' की बदल गयी है
धड़कने धड़कती है , बस तुम्हारे लिए ही
जवाब देंहटाएंऔर सांसें , तो बस तुम्हारे लिए मचल गयी है
वाह !!!!! बहुत सुंदर बेहतरीन रचना //चन्दन जी,..बधाई
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