झुलसते से पेड़ खड़े हो जाते , आई जेठ की दुपहरी
पंछी भी निश्वास हो जाते , आई जेठ की दुपहरी
आसमान से मनो बरस रहे हो, आग के गोले
ताप इतना है, कि लगे सूर्य अनलकोष होले
नंदिनी गाय पेड़ टेल बैठी, पर वहां भी आराम कहाँ
भूरी कुतिया जीभ निकाले ,ढूँढती मानो शाम कहाँ
ताल-नदी सब सूखे, कालू कुआ ढूंढ रहा है पानी
सांवली भैंस कीचड़ से लथपथ. सबसे ज्यादा उसे परेशानी
हवा भी बहती नही , मिले कैसे गर्मी से छुटकारा
अब जाये कहाँ सब, जल रहा है जग सारा
पुसी बिल्ली आराम फरमाती , छोड़ चूहों कि चिंता
सब चुपचाप दुबके , पंख न फैलाये कोई परिंदा
सारा तन पसीना से नहाये,आई जेठ की दुपहरी
सब जन है अलसाये , आई जेठ की दुपहरी
- मुकेश पाण्डेय "चन्दन"
बहुत बढ़िया सर!
जवाब देंहटाएंसादर
गर्मी का दृश्य आँखों के सामने आ गया ... सटीक रचना
जवाब देंहटाएंsangita ji aabhar !
हटाएंbahut bahut shukriya yashwant ji !
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया...सुन्दर अभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंhardik dhanyawaad maheshwari ji !
हटाएंजेठ की दुपहरी सजीव हो उठी है
जवाब देंहटाएंshukriya rashmi ji !
हटाएंSach mein garmi ne to sabhi ki jaan le Li hai ... Bichare janvaron ka to aur Bhi bura Haal hai ... Is garmi ko majbooti se Bandha hai shabdon mein ... Lajawab rachna ...
जवाब देंहटाएंsir ji bahut bahut shukriya !
हटाएंक्या बात है मुकेश भाई
जवाब देंहटाएंसब ठीक है पर आप
जेठ की दुपहरी की याद मत दिलाओ
................... बहुत बढिया प्रस्तुति ...!!!
sanjay ji main jeth ki dupahri ki yad nhi dila rha hoon , balki haqikat bayan kar rha tha . jo hai so hai ! aap to badhiya a.c. me maje le rhe ho ji !
हटाएंsir ji dhanywad !
जवाब देंहटाएंपंछी भी निश्वास हो जाते , आई जेठ की दुपहरी
जवाब देंहटाएंबहुत ही सजीव चित्रण किया है आपने ... जेठ की दुपहरी का ... बेहतरीन शब्द रचना ।
shukriya sada ji !
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