गुरुवार, 24 मई 2012

आई जेठ की दुपहरी

झुलसते से पेड़ खड़े हो जाते   , आई जेठ की दुपहरी 
 पंछी भी निश्वास  हो जाते , आई जेठ की दुपहरी 
आसमान से मनो बरस रहे हो, आग के गोले 
ताप इतना है, कि लगे सूर्य अनलकोष होले 
नंदिनी गाय पेड़ टेल बैठी, पर वहां भी आराम  कहाँ 
भूरी कुतिया जीभ निकाले ,ढूँढती मानो शाम कहाँ
ताल-नदी सब सूखे, कालू कुआ ढूंढ रहा है पानी 
सांवली भैंस कीचड़ से लथपथ. सबसे ज्यादा उसे परेशानी 
हवा भी बहती नही , मिले कैसे गर्मी से छुटकारा 
अब जाये कहाँ सब, जल रहा है जग सारा 
पुसी बिल्ली आराम फरमाती , छोड़ चूहों कि चिंता 
सब चुपचाप दुबके , पंख न फैलाये कोई परिंदा 
सारा तन पसीना से नहाये,आई जेठ की दुपहरी 
सब जन है अलसाये , आई जेठ की दुपहरी      
 - मुकेश पाण्डेय "चन्दन"

15 टिप्‍पणियां:

  1. गर्मी का दृश्य आँखों के सामने आ गया ... सटीक रचना

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत बढिया...सुन्दर अभिव्यक्ति....

    जवाब देंहटाएं
  3. Sach mein garmi ne to sabhi ki jaan le Li hai ... Bichare janvaron ka to aur Bhi bura Haal hai ... Is garmi ko majbooti se Bandha hai shabdon mein ... Lajawab rachna ...

    जवाब देंहटाएं
  4. क्या बात है मुकेश भाई
    सब ठीक है पर आप
    जेठ की दुपहरी की याद मत दिलाओ
    ................... बहुत बढिया प्रस्तुति ...!!!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. sanjay ji main jeth ki dupahri ki yad nhi dila rha hoon , balki haqikat bayan kar rha tha . jo hai so hai ! aap to badhiya a.c. me maje le rhe ho ji !

      हटाएं
  5. पंछी भी निश्वास हो जाते , आई जेठ की दुपहरी
    बहुत ही सजीव चित्रण किया है आपने ... जेठ की दुपहरी का ... बेहतरीन शब्‍द रचना ।

    जवाब देंहटाएं

ab apki baari hai, kuchh kahne ki ...

orchha gatha

बेतवा की जुबानी : ओरछा की कहानी (भाग-1)

एक रात को मैं मध्य प्रदेश की गंगा कही जाने वाली पावन नदी बेतवा के तट पर ग्रेनाइट की चट्टानों पर बैठा हुआ. बेतवा की लहरों के एक तरफ महान ब...