कहाँ गए ? उनमे थे जो नाव खिवैया
नदियों के भी आंसू सूख गये
अब कठौती में होती, जय गंगा मैया
माँ थी कभी सारी नदिया
आज मात् हंता बने हम सब भैया
धरती का सीना, चीर के चूसा
अब पानी को करते ता-ता थैया
मार के कुल्हाड़ी अपने पैरो पर
समझदार बने है, आज सैंया
सारे जंगल काट दिए है हमने
और ढूंढ रहे , क्रांकीट में छैंया
अब तो जागो , कुम्भकरणो
सच में बड़ा दुखद है.....
जवाब देंहटाएंहमारे शहर में तो तालाब में "मड-कार रैली" का आयोजन कर डाला था....
बहुत सार्थक रचना.
अनु
पुराने समय में हमारे देश में हर गाँव -शहर में तालाब, नदी होते थे , ये हमारी संस्कृति की धरोहर थे . इनसे भू-जल स्तर भी सही रहता था . लेकिन आज देश में तालाब - नदियों का जीवन खतरे में है . मेरे वर्तमान शहर सागर (मध्य प्रदेश ) में लाख बंजारा झील के लिए २२ करोड़ रूपये आये थे , लेकिन अब भी हाल वही है .
हटाएंसुंदर सार्थक प्रस्तुति,,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST ,,,,, काव्यान्जलि ,,,,, जिस्म महक ले आ,,,,,
धीरेन्द्र जी बहुत बहुत आभार
हटाएंअब तो जागो , कुम्भकरणो
जवाब देंहटाएंडूब रही है , चन्दन की नैया
...........खुबसूरत लाइन भावों संग अभिव्यक्ति का अनूठा संगम...बहुत सुन्दर पैगाम छुपा है आपकी इस रचना में
shukriya sanjay ji !
हटाएंIt's really sad to see our rivers and land in this pathetic state.
जवाब देंहटाएंyou are right zeal ji , thank you !
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