गुरुवार, 3 मई 2012

कुदरत के हर रंग में तुम

हर फूल में होती है, तुम्हारी खुशबू
हर बहार में होता है, तुम्हारा जादू
हर कली में दिख जाती है, तुम्हारी मुस्कान
हर भंवरे  से करता हूँ ,  तुम्हारा अरमान
कुदरत के हर रंग में दिख जाती तुम
बादलों में भी बिजली सी आती जाती तुम
ठंडी हवा से मुझे सहलाती तुम
बारिश की बूंदों में जी बहलाती तुम
चाँद भी हर रात करता, तुम्हारा ही अहसास
सुबह की पहली किरण सी ताजा तुम्हारी आस 
बहते झरने की कलकल सी तुम्हारी प्यास 
शबनम की ठंडक में है, तुम्हारा विश्वास 
कोंपल sa प्रफुल्लित , है तुम्हारा मन 
सरिता का निर्मल जल है , तुम्हारा दर्पण 
बस तुम्हारे लिए , मैं भटकता वन-उपवन 
और तुम महकती , मेरे भीतर बनके 'चन्दन'      
 
 

6 टिप्‍पणियां:

  1. कोंपल sa प्रफुल्लित , है तुम्हारा मन
    सरिता का निर्मल जल है , तुम्हारा दर्पण
    बस तुम्हारे लिए , मैं भटकता वन-उपवन
    और तुम महकती , मेरे भीतर बनके 'चन्दन'

    बहुत सुंदर सार्थक अभिव्यक्ति // बेहतरीन रचना // चन्दन जी //

    MY RECENT POST ....काव्यान्जलि ....:ऐसे रात गुजारी हमने.....

    जवाब देंहटाएं
  2. बस तुम्हारे लिए , मैं भटकता वन-उपवन
    और तुम महकती , मेरे भीतर बनके 'चन्दन...

    Beautiful presentation..

    .

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह....................
    अनुपम...........
    चाँद भी हर रात करता, तुम्हारा ही अहसास
    सुबह की पहली किरण सी ताजा तुम्हारी आस

    बहुत सुंदर ...............

    अनु

    जवाब देंहटाएं
  4. इसी कों प्रेम कहते हैं ... वो ही वो बस वो ही वो ...
    बहुत खूब ...

    जवाब देंहटाएं

ab apki baari hai, kuchh kahne ki ...

orchha gatha

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