सोमवार, 7 मई 2012

अजन्मी की पुकार

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

अजन्मी की पुकार

सुना है माँ तुम मुझे , जीने के पहले ही मार रही हो
कसूर क्या मेरा लड़की होना , इसलिए नकार रही हो
सच कहती हूँ माँ , आने दो मुझे जीवन में एक बार
न मांगूंगी खेल-खिलौने , न मांगूंगी तुमसे प्यार
रुखी सूखी खाकर पड़ी रहूंगी, मैं एक कोने में
हर बात तुम्हारी मानूंगी , न रखूंगी अधिकार रोने में
न करुँगी जिद तुमसे , जिद से पहले ही क्यों फटकार रही हो
कसू क्या मेरा लड़की होना , इसीलिए नकार रही हो
माँ तुम भी तो लड़की थी, तो समझो मेरा दुःख
न करना मुझे दुलार, फ़िर भी तुम्हे दूंगी सुख
भइया से न लडूंगी , न छिनुंगी उसके खेल खिलौने
मेहनत मैं खूब करुँगी , पुरे करुँगी सपने सलौने
आख़िर क्या मजबूरी है , जो जीने के पहले मार रही हो
कसूर की मेरा लड़की होना , इसीलिए नकार रही हो
कहते है दुनिया वाले , लड़का-लड़की होते है सामान
तो फ़िर क्यों नही देखने देते , मुझे ये प्यारा जहाँ
आने दो एक बार मुझे माँ , फ़िर न तुम पछताओगी
है मुझे विश्वाश माँ, तुम मुझे जरूर बुलाउगी
क्या देख लू मैं सपने , जिसमे तुम मुझे दुलार रही हो
देकर मुझको जनम माँ, तुम मेरा जीवन सवांर रही हो


मेरे प्यारे दोस्तों मेरी ये कविता अब तक की श्रेष्ठतम एवं सर्वाधिक सराही गयी कविताओ में से एक है। इस कविता को लिखते समय मेरे मन में  देश में हो रहे भ्रूण हत्याओं से लगातार  कम हो रही लड़कियों की मार्मिक दशा थी ।इसे मैं पूर्व में भी अपने ब्लॉग पर पोस्ट कर चूका हूँ .  सचमुच जिस देश में कन्या को देवी माना जाता हो वहां कन्या भ्रूण हत्या वाकई शर्म की बात है । मेरी कविता का उद्देश्य केवल सराहना पाना नही है , बल्कि मैं चाहता हूँ की कोई बदलाव की बयार बहे .................
इस बदलाव में आपका साथ अपेक्षित  है , अपना सहयोग अवश्य दे क्योंकि हम कल भी देख सके
इसी आशा के साथ आपका अपना ही अनुज
- मुकेश पाण्डेय "चन्दन "

18 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर रचना मुकेश जी.....
    आपकी रचना प्रशंसनीय और आपकी सोच वाकई सराहनीय है.......
    उम्मीद करते है कि जनमानस की सोच में ऐसी रचनाएँ कुछ बदलाव ला सकें.....
    अनंत शुभकामनाएँ......

    अनु

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  2. क्या देख लू मैं सपने , जिसमे तुम मुझे दुलार रही हो
    देकर मुझको जनम माँ, तुम मेरा जीवन सवांर रही हो

    वाह...बहुत अच्छी प्रस्तुति,....चन्दन जी बधाई...

    RECENT POST....काव्यान्जलि ...: कभी कभी.....

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  3. मन को छूते हुए भाव इस रचना के ... उत्‍कृष्‍ट लेखन के लिए बधाई ।

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  4. कविता दिल को छूती है, मन में हलचल मचाती है।
    आपकी मुहिम में हम भी शामिल हैं।

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  5. बहुत मर्मस्पर्शी रचना...बेटियों के प्रति लोगों की सोच कब बदलेगी...दिल को छूती बहुत प्रभावी अभिव्यक्ति...

    जवाब देंहटाएं
  6. हर बेटी शायद यही गुहार लगाती है
    पर सामज के कान पर जूं भी नहीं रेंग पाती है


    बहुत मर्म स्पर्शी रचना

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  7. कब समझेंगे लोग, कब रुकेगा अत्याचार!

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  8. .माँ की कोख ,
    बेटी का कब्रिस्तान ,
    ये है हिन्दुस्तान .
    यत्र नार्यस्तु पीटन ते ,रमन्ते तत्र देवता .हिन्दुस्तान की पहचान ..बढ़िया प्रस्तुति ..कृपया यहाँ भी पधारें -
    बुधवार, 9 मई 2012
    शरीर की कैद में छटपटाता मनो -भौतिक शरीर
    http://veerubhai1947.blogspot.in/
    रहिमन पानी राखिये
    http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/

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  9. बहुत सुन्दर और सार्थक कविता |मुकेश जी बधाई और शुभकामनाएँ |

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  10. बहुत सुन्दर शब्द रचना पाण्डेय जी ,दिल को छू लिया।एक बालिका भ्रूण की व्यथा को इस तरह कलम से कागज पर उकेर दिया कि पलकें गीली हो गयीं। मैं एक एक शब्द से सहमत हूँ।आपका ये छोटा सा प्रयास रंग जरूर लाएगा।

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  11. बहुत सुन्दर शब्द रचना पाण्डेय जी ,दिल को छू लिया।एक बालिका भ्रूण की व्यथा को इस तरह कलम से कागज पर उकेर दिया कि पलकें गीली हो गयीं। मैं एक एक शब्द से सहमत हूँ।आपका ये छोटा सा प्रयास रंग जरूर लाएगा।

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ab apki baari hai, kuchh kahne ki ...

orchha gatha

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