रविवार, 12 फ़रवरी 2012

ऐसी निभाना तुम प्रीत .........

सब भूल जाना चाहता हूँ , तुम्हारी बांहों में
रच-बस जाना चाहता हूँ, तुम्हारी निगाहों में
स्वर भी तुम हो , ह्रदय का स्पंदन भी तुम हो
तीर्थ सा पावन सरस, चन्दन भी हो तुम
तुम से शुरू होकर , तुम पर ही ख़त्म हो जीवन
मन में बसी एक सुन्दर सी मूरत हो प्रियतम
मेरा  सर्वस्य तुम, और मैं हूँ पर्याय तुम्हारा
रीत भले ही कुछ हो , पर तुम पर ही सब कुछ हारा
जिन्दगी भी तुम्हारे बिना, ख़त्म हो जाएगी
दम निकलने के बाद, मिलने की आरज़ू रह जाएगी
गीत अब तुम्हारे लिए होंगे. तुम जीवन का संगीत 
हो अमर अपना बंधन . ऐसी निभाना  तुम प्रीत       
मुकेश पाण्डेय " चन्दन "


2 टिप्‍पणियां:

ab apki baari hai, kuchh kahne ki ...

orchha gatha

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