विचारों की रेल चल रही .........चन्दन की महक के साथ ,अभिव्यक्ति का सफ़र जारी है . क्या आप मेरे हमसफ़र बनेगे ?
सोमवार, 20 फ़रवरी 2012
अनादि काल से पूजते आ रहे है शिव !
सर्वप्रथम आप सभी को महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभ कामनाएं !
"शिव " का शाब्दिक अर्थ होता है , कल्याण । अर्थात शिव कल्याण के देवता है । (शिव का संहारक रूप भी पुनः नव सृष्टि के लिए होता है ) शिव को महादेव कहा जाता है , क्योंकि सभी देवो में महँ शिव ही है । बाकि देवताओ और शिव में सबसे बड़ा अंतर ये है , कि शिव सभी (देव , दानव , मानव, किन्नर , नाग , भूत-पिशाच आदि ) में सामान रूप से लोकप्रिय और पूज्य है । शिव की पूजा के साक्ष्य इतिहास में सिन्धु घाटी सभ्यता (२३५०-१७५० ई० पू० ) से ही मिलना प्रारंभ हो जाते है । सिन्धु घाटी में लोग शिव की पूजा लिंग रूप में तो करते ही थे , साथ ही यहाँ से शिव के पशुपति रूप की मुद्राएं भी मिली है है । सिन्धु घाटी में लिंग-योनी के मृदा स्वरुप बहुतायत से प्राप्त हुए है ।
सिन्धु घाटी सभ्यता के बाद आर्य (वैदिक ) सभ्यता में भी शिव की पूजा का वर्णन मिलता है । चूँकि वैदिक सभ्यता पशुपालन पर आधारित थी , और शिव का सम्पूर्ण परिवार ही इसका समर्थन करता है ( शिव का वाहन -बैल, पारवती का सिंह , गणेश का मूषक , कार्तिकेय का मयूर ) ।
हर काल में शिव का पूजन अन्य देवताओ से अधिक होता रहा । एक कारन यह भी है , कि शिव का पूजन अन्य देवी देवताओ से सरल भी है , और शिव जल्दी प्रसन्न होने वाले देवता है । यही कारन है कि हमरे देश में महिलाएं सोलह सोमवार , सावन सोमवार , हरितालिका तीज आदि त्यौहार बड़ी मात्रा में रखती है । और पुरुष भी शिव को अपना आराध्य मानते है । हर गाँव में आपको सबसे ज्यादा शिव के ही मंदिर मिल जायेंगे ।
जय जय शिव शंकर
बम बम भोले
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