विचारों की रेल चल रही .........चन्दन की महक के साथ ,अभिव्यक्ति का सफ़र जारी है . क्या आप मेरे हमसफ़र बनेगे ?
मंगलवार, 28 फ़रवरी 2012
ये कैसा बसंत आया ?
ये कैसा बसंत आया ?
हर दिन एक यौवना पे किसी ने सितम ढाया
प्रेम , उल्लास के मौसम में कैसी रुत आई
जाने क्यों हवस हर तरफ छाई
गर ऐसा हो बसंत तो मत आना अबकी बार
पतझर ही अच्छा , ऐसा बसंत बेकार
हे ऋतुराज ! क्यों आये ऐसे इस बार
क्या यही है ? ऋतुराज का ऐसा दरबार
धरती को आज भी है तुम्हारा इन्तजार
पर अब न आना ऐसे , जैसे आये इस बार
- मुकेश पाण्डेय 'चन्दन'
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