गुरुवार, 16 फ़रवरी 2012

करवटें बदलते रहे .........


आँखों में आंसू , दिल में कासक लिए करवटें बदलते रहे
पर वो न आये जिनके लिए , हम कबसे मचलते रहे

यूँ ही इन्तजार में कट गयी , न जाने कितनी रातें
और बस तन्हाईयों से होती रही हमारी मुलाकातें

इन्तहा हो रही है, हर घडी हमारे इन्तजार की
आखिर कब पूरी होगी , चाहत उनके दीदार की

जगी आँखों से ही हम कितने ख्वाब बुनते रहे
पर वो न आये , जिनके लिए हम कबसे मचलते रहे

अब सूख चूका है , इन आँखों का भी पानी
सोचा था हसीं होगी दास्तान , पर बनी दुःख भरी कहानी

हर पल आँखे ताकती है , उस डगर को
आखिर कब तरस आएगा , मेरे हमसफ़र को

हर शाम कितने चिराग जलते और बुझते रहे
पर वो न आये जिनके लिए , हम कबसे मचलते रहे

मुकेश पाण्डेय "चन्दन"

4 टिप्‍पणियां:

  1. koi kerta hai intjaar aapka is tarh jaise,
    dhalti sham kerti hai savare ka,
    shayad uske dil ki kasak pahuchi aapke dil tak or aapne ye kavita likhi istarh

    जवाब देंहटाएं
  2. कशक से भरी ये यादें
    तन्हा बनी मुलाकातें
    कह गए कब न थे आपके
    हम तो अंग संघ है आपके
    बस आँख खुली तो सपना ही था,
    रातभर करवटों का साथ अपना ही था।

    जवाब देंहटाएं

ab apki baari hai, kuchh kahne ki ...

orchha gatha

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