
यूँ ही जिंदगी गुजरती जा रही है, आहिस्ता -आहिस्ता
जैसे सुबह की धुप पसरती जा रही है आहिस्ता-आहिस्ता
रात गुजर गयी पर ख्वाब तक न आये
जिन्दगी में मशरूफियत ठहरती जा रही है आहिस्ता-आहिस्ता
जुबान तो न जाने कबसे खामोश है
पर दिल की धड़कने बढती जा रही है आहिस्ता-आहिस्ता
जेहन में खयालो का समंदर सा हो गया है
पर ये आँखे बरसती जा रही आहिस्ता-आहिस्ता
थम गये है, वो सारे सिलसिले अब
पर ये जिंदगी गुजरती जा रही है आहिस्ता-आहिस्ता
पढकर अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंdhanyawaad amit ji
हटाएंsarkti jai h rukh se nkab ahista-ahista
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