रविवार, 18 मार्च 2012

पहले मेरे घर खूब आती , गौरैया














पहले
मेरे घर खूब आती , गौरैया

पर अब जाने क्यों शर्माती, गौरैया
जब नानी आँगन में बिखेरती चावल के दाने
तब फुदककर आ जाती गौरैया उसे खाने
घर की मुंडेर के पास थी जगह खाली
उसमे गौरैया ने अपने नीड़ की जगह बनाली
फ़िर दिन भर अंडे रखाते चिरवा-चिरैया
पर अब जाने क्यो शर्माती गौरैया
छत की मुंडेर हुई पक्की , नही रही नानी
किसे फुर्सत ? जो दे गौरैया को दाना पानी
बैशाख में अब कहाँ टंगता , पानी का कटोरा
आख़िर पेड़ भी तो कट गए , जहाँ हो बसेरा
अपने घौंसलो की खातिर, छिनी हमने छैंया
पहले मेरे घर ,खूब आती गौ....रैया !!





दोस्तों , पहले हमारे हर घर घर में आसानी से फुदकती छोटो सी चिड़िया गौरैया अब मुश्किल से दिखती है । गौरैया का गायब होना एक साथ बहुत से प्रश्न खड़े करता है ।

जैसे - क्यो गौरैया ख़त्म हो रही है ?

आज हम मनुष्यो पर निर्भर इस चिडिया के आवास क्यो ख़त्म हो गए है ?

गौरैया अगर ख़त्म हो गई तो समझो हम बहुत बड़े धर्म संकट में पड़ जायेंगे ! क्योंकि हमारे धर्म ग्रंथो के अनुसार पीपल और बरगद जैसे पेड़ देवता तुल्य है। हमारे पर्यावरण में भी इनकी महत्वपूर्ण भूमिका है । पीपल और बरगद ऐसे वृक्ष है जो कभी सीधे अपने बीजो से नही लगते , इनके बीजो को जब गौरैया खाती है और बीज जब तक उसके पाचन तंत्र से होकर नही गुजरते तब तक उनका अंकुरण नही होता है । इसीलिए अपने देखा होगा की ये वृक्ष अधिकांशतः मंदिरों और खंडहरों के नजदीक अधिक उगते है , क्योंकि इनके आस-पास गौरैया का जमावडा होता है । मेरी ये बात निराधार नही है । मोरिशस और मेडागास्कर में पाया जाने वाला एक पेड़ सी० मेजर लुप्त होने कगार पर है , क्योंकि उसे खाकर अपने पाचन तंत्र से गुजारने वाला पक्षी डोडो अब विलुप्त हो चुका है। यही हाल हमारे यंहा गौरैया और पीपल का हो सकता है । अगर हम न चेते तो ........? अतः आप सभी से निवेदन है की आप स्वयं और अपने जान पहचान के लोगो को इस बारे में बताये और हमारी संस्कृति और पर्यावरण को एक संकट से बचने में सहयोग करे । मुझे आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा ।

आपका अपना- मुकेश पाण्डेय "चंदन"

31 टिप्‍पणियां:

  1. HAM BHI ARA KE RAHEWALA HAI BHAI JI. GAURAIYA PAR EGO KVITA ANK PRAKASHIT KAILEBANI. BADA NIK LAGAL KI RAUA BHI APNE ELAKAE BANI.
    7/6
    gRASIM STAFF COLONY BIRLAGRAM NAGDA UJJAIN M.P. PATA BA
    nAYA ANK KHATIR KAVITA BHEJ SAKAT BANI , ANUGRAH HOE.
    ARVIN PATHAK ,

    जवाब देंहटाएं
  2. अच्छी कविता के साथ सार्थक लेख ...........अच्छा लगा यहाँ आकर !

    जवाब देंहटाएं
  3. ना सिर्फ कविता बढ़िया है बल्कि पाण्डे जी ये आज की एक जिवंत समश्या है जिसकी तरफ बहुत कम लोगों का ध्यान गया है । मोबाईल टावर्स को इसके लिए मुख्यतः जिम्मेदार बताया जा रहा है जो कि हमारे लिए खतरे की एक खुली चेतावनी है । हमें इसके प्रति सजग होना चाहिए

    जवाब देंहटाएं
  4. अच्छी कविता है प्रभु याद कर लेता हूं😀

    जवाब देंहटाएं
  5. सम्वेदनाशाली कविता । छोटी चिड़ियाँ तो हमारे यहाँ काफी है ।

    जवाब देंहटाएं
  6. जब से दिल्ली आया हूं गौरैया तो एक सपना हो गया है, कितने सुहाने थे बचपन के वो दिन जब शाम को गौरैया धूल में नहाती थी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जबकि गौरैया को दिल्ली के राज्य पक्षी का दर्जा मिला है ।

      हटाएं
  7. बहुत खूब लिखा है..... सोचने पर मजबूर कर दिया आपने

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत प्यारी कविता लिखी है आपने वाह

    जवाब देंहटाएं
  9. गौरैया के बारे में बहुत सुंदर अभिव्यक्ति आपकी ....
    आजकल पर्यावरण संतुलन बिगड़ रहा है आधुनिकीकरण ली माया जाल में कंक्रीट के शहर खड़े हो गए है.... जल और पेड़ जीवन है और ये जीव इन्ही पर निर्भर है ....
    कुछ ध्यान तो देना ही चाहिये इस और भी

    जवाब देंहटाएं
  10. ये तो मैं पहले भी पढ़ चुकी थी सुंदर कविता के साथ साथ गोरिया के बारे मैं सुंदर जानकारी,

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत सुंदर प्रस्तुति,आभार

    जवाब देंहटाएं
  12. बडे भाई जी
    आप पुलिस में हो ऐसा नही लगता बल्कि लगता हैं कि आप एक कवि एक सरल सौम्य पुरष हो
    पर आप हो कमाल के इतनी भगदौड़ वाली ज़िंदगी के पलों में भी इतनी सुंदर कविता कही
    बहुत सुंदर 🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सचिन भाई, ये कविता 10 साल पहले लिखी थी । स्वभाव से प्रकृति प्रेमी हूँ । जहाँ प्रेम हो तो कविता स्वयं उपजती है । जिंदगी कितनी भी भागदौड़ वाली हो, अगर आप उसे अपने ऊपर हावी न होने दे तो कविता जिंदा रहती है ।

      हटाएं
  13. अद्भुत लिखा चंदन जी। आपके सद्प्रयासों को नमन करता हूँ।

    जवाब देंहटाएं
  14. बहुत बढ़िया कविता चंदन भैया। शानदार

    जवाब देंहटाएं
  15. लोग आजकल बर्ड हाऊस बना रहे है या घरों मे छोटे पक्षियों के लिए प्लास्टिक या लकड़ी के घर बनाकर लगा रहे है इसकी बजाय वृक्षारोपण किया जाए तो पक्षियों को प्राकृतिक आवास के साथ ही भोजन पानी भी उपलब्ध होगा और प्रकृति का संतुलन भी बना रहेगा

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मैंने कभी भी बर्ड हाउस को प्रोत्साहन नही दिया । पिछले महीने ही अपने आफिस के पीछे खाली पड़ी जमीन की घेराबंदी कर लगभग 25 फलदार पौधों का रोपण किया है । ऑफिस के आगे झाड़ीदार फूलों के पौधे लगाए है, जिनमे पिरिनिया, सनबर्ड, टेलर बर्ड, बुलबुल आदि के घोंसले है ।

      हटाएं
  16. एक और हम कंक्रीट के जंगल खड़े कर रहे हैं और उनको ही विकास का पैमाना मान कर इतराते रहते है, वहीं दूसरी ओर हमारी आत्मा आज भी फुरसत के कुछ पल प्रकृति की गोद में बिताने के अवसर तलाशती रहती है। वनस्पति और जीव जगत के परस्पर संबंध को पाश्चात्य विज्ञान के दुष्प्रभाव के कारण हम भारत वासी भी भुलाए बैठे थे, पर अब और विलंब किया तो बर्बादी की दास्तान लिखी जा चुकी होगी।

    इन्हीं सब गुरु गंभीर बातों को आपके संवेदनशील हृदय ने एक प्यारी सी कविता के माध्यम से व्यक्त किया है। मुझे तो लगता है कि ये कविता बच्चों को कंठस्थ कराई जानी चाहिएं ताकि उन के बाल मन में प्रारंभ से ही सही संस्कार विकसित हों।

    आपके ब्लॉग पर आना हमेशा सार्थक होता है। अभिनंदन।

    जवाब देंहटाएं
  17. बहुत सुंदर रचना.... यदि प्रकृति को बचाना है तो गौरैया को लौटाना ही होगा

    जवाब देंहटाएं

ab apki baari hai, kuchh kahne ki ...

orchha gatha

बेतवा की जुबानी : ओरछा की कहानी (भाग-1)

एक रात को मैं मध्य प्रदेश की गंगा कही जाने वाली पावन नदी बेतवा के तट पर ग्रेनाइट की चट्टानों पर बैठा हुआ. बेतवा की लहरों के एक तरफ महान ब...