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शुक्रवार, 23 मार्च 2012
कुदरत का अद्भुत इंजीनियर : बया
मित्रो नमस्कार ,
पक्षी श्रृंखला की लोकप्रियता को देखते हुए गौरैया , कौवा ,दूधराज, गिद्ध , नीलकंठ , पपीहा के बाद आज मैं एक बहुत ही कुशल इंजीनियर पक्षी से आपको रु-ब-रु करने वाला हूँ । आपने कई बार पेड़ो से लटके हुए गोल-मटोल घोंसले देखे होंगे ? इन घोंसलों को देख कर कभी कोई जिज्ञासा हुई होगी , कि किसने बनाये ये सुन्दर घोंसले ? किस की है कमाल की कारीगरी ?ये घोंसले अक्सर कंटीले वृक्षों पर या खजूर प्रजाति के वृक्षों पर ऐसी जगह पर होते है , जहाँ आसानी से अन्य जीव नही पहुँच पाते है । वैसे ये कमाल की कारीगरी भारत की दूसरी सबसे छोटी चिड़िया बया (विविंग बर्ड )की है। इन घोंसलों का निर्माण ये नन्ही (मात्र १५ से० मी० ) सी चिड़िया तिनको और घास से करती है । इन घोंसलों की सबसे बड़ी विशेषता ये है , कि कितनी भी बारिश हो इन घोंसलों में एक बूँद पानी भी नही जाता । इनकी इंजीनियरिंग का लोहा वैज्ञानिक भी मानते है , क्योंकि जीव वैज्ञानिको और इंजीनियरों द्वारा बहुत प्रयास करने के बाद भी इस तरह के घोंसले तैयार नही हो पाए । वैज्ञानिको के पास तो तमाम तरह के उपकरण होते है , मगर यह नन्ही सी चिड़िया सिर्फ अपनी छोटी सी चोंच की बदौलत बिना किसी उपकरण , बिना गोंद के सिर्फ तिनको और घास से इतना सुन्दर, मजबूत और वाटर प्रूफ घोंसला बनाती है ।ये सुन्दर सा घोंसला नर बया मादा बया को आकर्षित करने को बनता है। मादा बया सबसे सुन्दर घोंसले आकर्षित होती है , फिर घोंसले को बनाने वाले नर के साथ समागम करती है । कुछ समय बाद इसी घोंसले में मादा बया अंडे देती है।यह दो से चार सफ़ेद रंग के अंडे देती है । अंडे से निकले बच्चे जब बड़े हो जाते है , तो नर बया अपने बनाये घोंसले को नष्ट कर देता है ।बया पक्षी बड़े ही सामाजिक होते है , ये अक्सर झुण्ड में रहते है ।
प्लोसिउस फिलिप्नस नाम से वैज्ञानिक जगत में जानी जाने वाली यह नन्ही चिड़िया मुख्यतः दक्षिण एशिया क्षेत्र में पाई जाती है । अलग अलग भाषाओ में इसे अलग अलग नाम से जाना जाता है । जैसे -बया और सोन-चिरी (हिंदी क्षेत्र में ), बया चिड़िया (उर्दू में ), सुघरी (गुजराती में ), सुगरण (मराठी में ), बबुई (बंगला में ) और विविंग बर्ड (अंग्रेजी में )। देखने में यह चिड़िया जंगली गौरैया जैसी लगती है . यह नन्ही सी चिड़िया शाकाहारी होती है , यह पौधों से या खेत में गिरे हुए दानो को खाती है । इसे चावल के दाने बहुत पसंद है। घास में फुदकना भी इसे बहुत पसंद है। वैसे ये घरो में भी चक्कर लगाती हुई चहकती रहती है ।इसकी चहचाहट चिट-चिट .........ची ची की ध्वनि जैसी होती है . इसमें कोई दो मत नही है , कि बया बहुत ही बुद्धिमान और चालक पक्षी है । कई जगह इसका मनुष्यों द्वारा उपयोग किया जाता है । ये आसानी से मनुष्यों द्वारा प्रशिक्षित की जा सकती है । कई जगह फुटपाथ पर कुछ ज्योत्षी तोते की तरह इसका प्रयोग ज्योतिष कार्ड उठवाने में करते है । यह छोटे सिक्को को भी बड़ी आसानी से उठा कर अपने मालिक को दे देती है । इतिहास में इसका प्रयोग अकबर के समय से मिलता है। इसका कुछ शासको ने जासूसी में भी प्रयोग किया है । तो मित्रो, ये थी भारत की दूसरी सबसे छोटी चिड़िया से नन्ही सी मुलाकात , कैसी लगी ?
अगली बार फिर किसी चिड़िया से मिलते है , तब तक के लिए जय जय ...............
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जवाब देंहटाएंअदभुत है कुदरत का खेल, आपको भी नव वर्ष की बहुत-बहुत बधाई .
जवाब देंहटाएंwaakai
जवाब देंहटाएंshukriya
जवाब देंहटाएंhttp://bulletinofblog.blogspot.in/2012/03/6.html
जवाब देंहटाएंवाकई ग्यानवर्धक मुझे नही पता था कि बया का गोसला वॉटर प्रूफ होता है
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा जानकारी मिला ।
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