रविवार, 18 मार्च 2012

कौए : अब दुर्लभ होने लगे है !

बचपन में जब घर की छत या मुंडेर पर किसी कौए को काँव-काँव करते देखता देखता तो बड़ा खुश होता । पडौसी भी कहने लगते कि कोई मेहमान आने वाला है । मगर अब बड़ी मुश्किल से शहरो में कौए ढूँढने से भी नही मिलते है । भले ही ये कर्कश ध्वनि वाला पक्षी लोगो को पसंद न आता हो मगर भारतीय संस्कृति में इसका बड़ा ही महत्त्व है । पितर पक्ष में लोग कौओ को धोंध कर भोजन करते है । मन जाता है , कि हमरे पूर्वज इन दिनों कौए का रूप लेकर हमारे पास आते है । धार्मिक साहित्य जैसे रामायण और महाभारत आदि में भी कौओं का वर्णन है । कागभुशुंड जी नामक एक कौआ भगवन राम का प्रिय भक्त होता है । भगवान राम ने इन्द्र के पुत्र को सीता पर कुद्रष्टि डालने पर काना बना दिया था । भगवान कृष्ण ने भी कौए के रूप में आये कागासुर का वध किया था।
बचपन में हम सब ने चालक कौए कि कहानी पढ़ी है , जिसमे एक प्यासा कौआ घड़े में कम पानी होने पर उसमे कंकड़ दाल कर जल स्तर ऊपर लता है । फिर अपनी प्यास बुझाता है । कौए कि एक कहानी चालक लोमड़ी के साथ है , जिसमे लोमड़ी कौए से गाना सुनाने कि कह कर उसकी रोटी छीन लेती है । इस तरह और भी कई कहानियो से कौआ हमारी स्मृति में बना हुआ है । मगर आज कौए तेजी कम होते जा रहे है । इसका प्रमुख कारन है , शहरो में तेजी से बड़े पदों का कम होते जाना है , क्योंकि कौए अक्सर अपने घोंसले विशाल वृक्षों की उपरी शाखाओ पर बनाते है। पहले हम बगीचों में गमले लगते थे , और अब गमलो में बगीचे लगाने लगे है . कौए के घोसलों में कोयल कौए के अन्डो को गिराकर अपने अंडे देती है । सी० स्प्लेंदेंस नाम से प्राणी शास्त्र में जाने जाने वाला यह पक्षी पर्यावरण प्रदुषण का शिकार हो रहा है । क्योंकि बढ़ते वायु प्रदुषण के कारण इसके अन्डो के केल्शियम कार्बोनेट के बने खोल पतले हो रहे है । जिससे अन्डो में से बहुत ही कम बच्चे सुरक्षित जीवित बच पा रहे है ।
जन सामान्य में अप्सगुनी मन जाने वाला ये कौआ हकीकत में पर्यावरण हितेषी होता है । पर्यावरण की सफाई और खेती को कीट पतंगों से बचने में इसकी बड़ी भूमिका है । बस जरुरत है , हम मानव भी इस प्यारे पक्षी को बचने में योगदान दे । क्योंकि हमारे पूर्वज सिर्फ पितर पक्ष में ही नही आते होंगे ।
अगर हम अभी नही संभले तो भविष्य में हमारे बच्चे सिर्फ तस्वीरो और फिल्मो में ही इसे देख पाएंगे .

3 टिप्‍पणियां:

ab apki baari hai, kuchh kahne ki ...

orchha gatha

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