
बचपन में हम सब ने चालक कौए कि कहानी पढ़ी है , जिसमे एक प्यासा कौआ घड़े में कम पानी होने पर उसमे कंकड़ दाल कर जल स्तर ऊपर लता है । फिर अपनी प्यास बुझाता है । कौए कि एक कहानी चालक लोमड़ी के साथ है , जिसमे लोमड़ी कौए से गाना सुनाने कि कह कर उसकी रोटी छीन लेती है । इस तरह और भी कई कहानियो से कौआ हमारी स्मृति में बना हुआ है । मगर आज कौए तेजी कम होते जा रहे है । इसका प्रमुख कारन है , शहरो में तेजी से बड़े पदों का कम होते जाना है , क्योंकि कौए अक्सर अपने घोंसले विशाल वृक्षों की उपरी शाखाओ पर बनाते है। पहले हम बगीचों में गमले लगते थे , और अब गमलो में बगीचे लगाने लगे है . कौए के घोसलों में कोयल कौए के अन्डो को गिराकर अपने अंडे देती है । सी० स्प्लेंदेंस नाम से प्राणी शास्त्र में जाने जाने वाला यह पक्षी पर्यावरण प्रदुषण का शिकार हो रहा है । क्योंकि बढ़ते वायु प्रदुषण के कारण इसके अन्डो के केल्शियम कार्बोनेट के बने खोल पतले हो रहे है । जिससे अन्डो में से बहुत ही कम बच्चे सुरक्षित जीवित बच पा रहे है ।
जन सामान्य में अप्सगुनी मन जाने वाला ये कौआ हकीकत में पर्यावरण हितेषी होता है । पर्यावरण की सफाई और खेती को कीट पतंगों से बचने में इसकी बड़ी भूमिका है । बस जरुरत है , हम मानव भी इस प्यारे पक्षी को बचने में योगदान दे । क्योंकि हमारे पूर्वज सिर्फ पितर पक्ष में ही नही आते होंगे ।
अगर हम अभी नही संभले तो भविष्य में हमारे बच्चे सिर्फ तस्वीरो और फिल्मो में ही इसे देख पाएंगे .
per meri chhat per to roj aate hai hajaro kale kuoye kayu kayu kerte huye
जवाब देंहटाएंसच है की महानगरों से कोवे गायब होते जा रहे हैं ... एक समय आयगा बस इंसान ही रह जायगा फिर वो भी खत्म ...
जवाब देंहटाएंkya khoob kahi hai digambar ji
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